Friday, 13 March 2009
पंचायत उद्योग खोलेंगे स्वरोजगार के द्वार
हल्द्वानी ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दूर करने के लिए पंचायत उद्योगों की परिकल्पना तो बनी। लेकिन राज्य गठन के बाद भी इसमें आशानुरूप तेजी नहीं आई पाई है। नैनीताल जनपद में दो व ऊधमसिंहनगर में एक जगह पर पंचायत उद्योग दफ्तर चल भी रहे है। लेकिन जानकारी एवं प्रचार-प्रसार के अभाव में काम काज के नाम पर यहां दिखाने को कुछ खास नहीं है। वर्ष 1960 में विकास अन्वेषण एवं प्रयोग प्रभाग द्वारा चिनहट (लखनऊ) में एक पंचायती उद्योग की स्थापना हुई। 1969 तक स्थापित हुए उद्योगों को पंचायती राज निदेशालय को सौंप दिया गया। इनका गठन पंचायत राज अधिनियम की धारा 30 के अंतर्गत किया गया। इन उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए यहां से निर्मित वस्तुओं को सभी सरकारी विभाग एवं पंचायती राज संस्थाओं द्वारा बिना टेंडर व कोटेशन के खरीदे जाने का प्रावधान भी रखा गया। एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अंतर्गत लकड़ी, टीन अथवा लोहे से बनने वाली वस्तुएं जैसे बखारी, इक्का, तांगा, डनलप कार्ट, टाट पट्टी सहित विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए पंचायत उद्योग को अधिकार मिले हैं। हालांकि इनके लिए जिलाधिकारी एवं जिला ग्राम्य विकास अभिकरण के आदेश पर वस्तुएं बनाई जाती हैं। लेकिन राज्य में पंचायती उद्योग नाममात्र को हैं। हल्द्वानी, बाजपुर काशीपुर एवं रामनगर में संचालित तो हो रहे हैं लेकिन अभी तक यहां सरकारी विभागों की रुचि अब तक नहीं दिखी। खासकर प्रशासनिक अनदेखी भी इनके नहीं उबर पाने का प्रमुख कारण है। इसके अलावा कुमाऊं के पहाड़ी जनपदों में स्थापित पंचायत उद्योगों की हालत भी पतली है। दो से दस हजार रूपए प्रतिवर्ष का कारोबार यहां से होता है। हल्द्वानी पंचायत उद्योग दफ्तर के प्रबंधक राकेश प्रसाद का कहना है कि ग्राम्य विकास, उद्यान विभाग, शिक्षा, पशुपालन एवं जलागम आदि विभागों में सरकारी खरीद की अपार संभावनाएं हैं। इनके द्वारा सामग्री क्रय करने से न केवल पंचायत उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दूर करने में भी यह प्रभावकारी कदम साबित हो सकेगा। नरेगा के तहत ही प्रत्येक विकास खंड में तसला, फावड़ा, कुदाल एवं गैंती आदि की जरुरतें पंचायत उद्योग पूरा कर सकते हैं।
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