कन फरफरायो फूल संक्राती जन नौन...
बच्चों के उत्साह को मापने का यदि कोई पैमाना है तो चैत्र मास के एक गते मनाई जाने वाली फूलदेई। जिसमें बच्चे फूल इक्कठा कर घरों की देहली पर डाल प्रफुल्लित हो खुशहाली की कामना करते हैं। बदले में चावल गुड़ अथवा पैसों का उपहार पाते हैं।बसंत ऋतु में भांति-भांति के पुष्पों की भरमार में बच्चों को फूल चुनने में कठिनाई भी नहीं होती, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है पिछले 11 वर्षों में जाड़ों में यहां सबसे बड़ा सूखा रहा। इस वर्ष मात्र 16 मिमी बारिश हुई है। सूखे के कारण प्यूंली जनवरी में ही खिलने की औपचारिकता पूरी कर चुकी थी। तो बुरांश का भी यही हाल था। आडू-खुमानी भी अपने सामान्य से 30 से 45 दिन पहले ही फूल गए हैं। विगत फरवरी दूसरे सप्ताह में हुई हल्की बारिश और हिमपात से जो हरियाली और पुष्प खिलने के आसार दिख रहे थे, उसमें एक महीने से वर्षा न होने से पानी फिर गया है। पिछले एक साल से मई से सितंबर तक हुई लगातार वर्षा के बाद एकदम पड़े सूखे ने बच्चों का उत्साह तो कम किया ही है वहीं किसान ठगे से रह गए हैं। रबी की फसल चौपट होने के बाद खरीफ के लिए जो आस बंधी तो वह भी तार-तार हो रही है। किसान दरवान सिंह कहते हैं कि किसान कभी हि6मत नहीं हारता, लेकिन जब दो-दो फसलें लगातार सूखे की मार झोल रही हों तो हि6मत का जवाब देना लाजिमी है। होली और बसंत के गीत प्रकृति को न्यौतने में कामयाब नहीं हुए हैं। मौसम परिवर्तन पर किसानों को 1या करना चाहिए इस ओर वैज्ञानिक शोध अभी तैयार नहीं हैं।
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