Sunday, 1 March 2009

कुमाऊंनी होली का अनूठा अंदाज

हल्द्वानी शास्त्रीय रागों में गायी जाने वाली कुमाऊंनी होली का अंदाज अनूठा है। खड़ी व बैठकी होली का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है। राधा-कृष्ण की प्रेम लीला से जुड़े स्वर लय के साथ गाये जाने वाले इन गीतों पर होल्यार खूब झूमते हैं। भारत में कुमाऊंनी होली का अपना अलग ही महत्व है। वसंत पंचमी से ही होली की शुरुआत हो जाती है। क्षेत्र विशेष में कहीं तीन चरणों में तो कहीं पांच चरणों में होली का आयोजन होता है। सबसे पहले भजन के रूप में देवी-देवताओं का वर्णन व ध्यान से संबंधित गायन होता है। वसंत में ऋतुओं का वर्णन होता है। इसके साथ ही शिवरात्रि पर शिव गीतों को गाया जाता है तो इसके बाद श्रृंगार से संबंधित गीत गाये जाते हैं। फिर रंग-गुलाल के साथ होली का आनंद चरम पर पहुंच जाता है। सफेद रंग का कुर्ता, पायजामा व टोपी के साथ रंगों में मदमस्त होकर घर-घर जाकर होली का गायन किया जाता है। भाषाविद् प्रो. डीडी शर्मा का कहना है कि कुमाऊंनी होली प्राचीन परंपरा से चली आ रही है। इसमें वसन्तोत्सव, प्रहलाद गाथा, जातीय संघर्ष व जनजातीय उत्सवों के विभिन्न तत्वों का सम्मिश्रण होता है। कई वर्षो से कुमाऊं में तीन चरणों में होली होती है। पहले दो चरण बैठकी होली और तीसरा चरण खड़ी होली का होता है। संगीतज्ञ व कुमाऊंनी होली पर शोध करने वाले डा. पंकज उप्रेती का कहना है कि कुमाऊं में होली विशिष्ट पहचान रखती है। यहां पर गंगोली, काली कुमाऊं, सतराली आदि इलाकों की होली महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि पर्वतीय क्षेत्र में महिला होली का भी विशेष प्रचलन है। महिलायें अलग से टोली बनाकर होली गाती और नृत्य करती हैं। वरिष्ठ पत्रकार आनंद बल्लभ उप्रेती का कहना है कि राज दरबारों से ही होली की परंपरा मिलती है। दूसरे गांव वालों द्वारा चीर झपटने की परंपरायें भी हैं। चीर बनाने की विशेष परंपरा हल्द्वानी: खड़ी होली का प्रारंभ एकादशी से होता है। इससे पूर्व ही देवस्थल या किसी सार्वजनिक स्थान पर बांस या चीड़ की लकड़ी को आरोपित किया जाता है। इस पर अबीर-गुलाल से रंजित वस्त्र खंडों को बांधा जाता है। साथ ही इसकी पूजा भी की जाती है। पुरोहित मंत्रोच्चारण के साथ इसे स्थापित करते हैं। इसके बाद इसे घर-घर घुमाया जाता है और पूजा की जाती है। इसके बाद अंतिम दिन चीर का दहन किया जाता है। इससे पहले चीर की छीना-झपटी होती है। इस चीर के धागों को कमीज पर बांधना शुभ माना जाता है।

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