Friday, 13 March 2009
देहरादून, पहाड़ से अभी भी पलायन हो रहा है। जी हां, इस बात की पुष्टि निर्वाचन आयोग की मतदाता सूची कर रही है। एक बात और, इस पलायन पर अल्मोड़ा तथा बागेश्र्वर जिलों ने ब्रेक लगाया है। सूबे के पहाड़ी जिलों से लगातार पलायन हो रहा है। निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार मतदाता सूची इसकी गवाह है। सिर्फ तीन माह और दस दिन में मतदाताओं की संख्या में कई जिलों में कमी आई है। 20 सितंबर 08 से एक जनवरी-09 के बीच उत्तरकाशी जिले में 1054 वोटर कम हुए। चमोली में कम होने वाले वोटरों की संख्या 11284 है। रुद्रप्रयाग जिले में इस दौरान 2843 वोटर घटे। टिहरी जिले में भी इस दौरान 2665 और पौड़ी जिले में इस दौरान 11913 वोटर कम हो गए। पिथौरागढ़ जिले में कम होने वाले वोटरों की संख्या 1689 है। चंपावत जिले में भी इस दौरान 577 वोटर कम हो गए। पर्वतीय जिलों में अल्मोड़ा और बागेश्र्वर जिले ऐसे हैं, जहां वोटरों की संख्या बढ़ी है। अल्मोड़ा जिले में 6257 और बागेश्र्वर जिले में 2366 वोटर बढे़। इन दोनों जिलों की कोई विधानसभा सीट ऐसी नहंी है, जिसमें वोटर कम हुए हों। नैनीताल जिला भी आंशिक पर्वतीय और आंशिक मैदानी है। इस जिले में कुल वोटर 3848 बढ़े। नैनीताल की हल्द्वानी विधानसभा में 113 वोटर कम हुए हैं। जिले के अन्य सभी विधानसभा क्षेत्रों में वोटर बढ़े हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ तीन माह दस दिन में हरिद्वार की चार तथा देहरादून जिले की तीन विधानसभाओं में मतदाताओं की संख्या कम हुई है। हरिद्वार के भगवानपुर सीट पर 41, पिरानकलियर में 670, रुड़की में 183 और मंगलौर में 31 मतदाता कम हुए हैं। देहरादून जिले के चकराता में 471, राजपुर रोड में 1363 और देहरादून कैंट में 611 मतदाता कम हुए। कुल मिलाकर गढ़वाल के पर्वतीय जिलों में मतदाताओं की संख्या कम होने का स्तर काफी ऊंचा है। कुमाऊं के दो पर्वतीय और एक मैदानी जिले में मतदाता कम होने के स्थान पर बढे़ हैं। इस तरह पलायन के मामले में गढ़वाल मंडल सर्वाधिक प्रभावित है।
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