Tuesday, 31 March 2009
सरकारी कालेजों की परीक्षा निजी संस्थानों में
राज्य को रोशन करेगा खंदूखाल
दरकते पहाड़, खिसकते खेत और सिसकती जिंदगी।
हरीश रावत के खिलाफ मंगलौर में मामला दर्ज
Monday, 30 March 2009
पंतनगर विवि देश के सर्वश्रेष्ठ तीन संस्थानों में शामिल
Sunday, 29 March 2009
सुरक्षा संभालेंगी महिलाएं
कालेजों को फरमान, नए सत्र में प्रवेश पर रोक
नेगी दा इन गीत तू लगा
इस बार भी कुछ पहाड़ी जन इस लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन इस बार भी वह नाम नहीं था, जिसे मैं हर बार 25 जनवरी की शाम अपने न्यूजरूम में खबरें लिखते वक्त दिल्ली की न्यूजएजेंसी से आने वाली खबरों में तलाशता हूं. जाने क्यूं मुझो लगता है कि मेरी तरह हजारों और पर्वतजन इस नाम को अगले दिन न्यूज पेपर में तलाशते होंगे. पर ऐसा नहीं हो पाता, साल दर साल. इन पुरस्कारों का चयन करने वाले कला, साहित्य समाज के मूर्धन्य विद्वानों से मेरा सवाल है कि अब तक मेरे नरू भै (नरेंद्र सिंह नेगी) को कोई पद्म पुरस्कार क्यूं नहीं मिला. अगर छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए तीजनबाई की पांडवानी को सम्मानित किया जाना गौरव की बात है तो हमारे नेगी दा भी लाखों उत्तराखंडवासियों के आवाज हैं. पहाड़ के किस व्यथा को उन्होंने आवाज नहीं दी. सरकारें जलागम, जंगलात जैसी नकली योजनाओं के जरिए जंगल बचाने का सपना पालती हैं, तो नेगी जी ' ना काटा तों डाल्यंू ना काट' गाते हैं. बात फिर भी समझा ना आए तो 'जिदेरी घसेरी' को भी समझााते हैं. पर्यावरण के नाम पर लेक्चर बांटने वाले तो खूब सम्मानित हुए हैं, पर लोक बोली में जंगल बचाने का सीधा संदेश देना वाला अब तक हासिए पर क्यूं है. इसलिए मेरा सवाल बनता है कि जब राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल हाल में ज्यादातर लोक बोलियों की गूंज हो चुकी है तो फिर 'ठंडो रे ठंडो' क्यूं नहीं. .........
चलो यह बात तो दिल्ली के विद्वानों की हुई, पर अपनी देहरादून की सरकारें क्या कर रही हैं. आखिर पुरस्कारों की औपचारिक घोषणा से पहले एक बार राज्य सरकारों से भी नाम मांगे जाते हैं. फिर कैसे हर बार नेगी दा पीछे छूट जाते हैं, फिर कैसे इंकार किया जा सकता है कि पुरस्कार काम के लिए नहीं जुगाड़ के लिए दिए जाते हैं. हम नहीं कर रहे हैं कि नेगी दा को पद्म पुरस्कार मिल गया तो पुरस्कार के साथ चलने वाले सारे विवाद दूर हो जाएंगे, बावजूद इसके जब हर साल अज्ञात अल्पज्ञात और विवादित फिल्मी हस्तियों को सम्मानित होता देखता हूं तो नेगी दा की कमी मुझो कुछ ज्यादा ही खलती है.अपनी हुकूमतों से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है, समाज समूह का दवाब कर गया तो कहना मुश्किल है. आखिर इन्ही सरकारों की नजर में नेगी जी और एक काल गर्ल रैकेट चलाने वाला दलाल बराबरी पर खड़े हैं. याद है ना जिस साहित्य सांस्कृतिक परिषद में नेगी सदस्य रहे हैं, उसके एक सदस्य पर इसी तरह के आरोप लगे थे. ऐसे में 'सब्बी धाणी देहरादूण' पर कमेंट करने वाले नेगी को देहरादून के सत्ताधीश भला कैसे स्वीकार कर सकते हैं. बल्कि इन लोगों ने जब तब नेगी को नीचा दिखाने की कोशिश की है. 'नौछमी' ने किस तरह नेगी को अपने खर्च पर फॉरेन टूर पर जाने से रोकने की कोशिश की, मीडिया से जुड़े होने के कारण मै इस ड्रामे से बखूबी वाकिफ हूं. नौछमी तो पहाड़ी प्रतीकों के प्रतिनिधि विरोधी हैं, पर मौजूदा सरकार भी नेगी से भय खाती नजर आ रही है. और इस सरकार में पहाड़ी सरोकारों का दम भरने वाली यूकेडी भी शामिल है. इसलिए मुझे कुछ ज्यादा बुरा लग रहा है. खैर अब जो हुआ सो हुआ, हमें ठोस एक्शन प्लान के साथ काम करना होगा. हमारे अप्रवासी भाई बंद इस बारे में अच्छी पहल कर सकते हैं. अपनी सरकार के नुमाइंदों से हम इस बारे में सवाल कर सकते हैं. पहाड़ आधारित डॉटकाम पर ऑनलाइन पोल काफी नहीं होगा, हो सके ?तो कुद सार्वजनिक मंचों से इस बात को उठाई जाए. गहरी नींद में सौ रहे सत्ता के कुंभकरणों को जगाने के लिए मंडाण लगाया जाए. मांगल गाए जाए, दैणा हुंय्या दिल्ली की सरकार, दैणा हुंय्या देहरादूण की सरकार ... लेखक दैनिक जागरण ग्रुप मेरठ में सीनियर रिपोर्टर हैं. आपकी राय का इंतजार -
mail me sanjeevkandwal@gmail.com
(uttarakhand first news blogs)
Saturday, 28 March 2009
हजारों मील दूर बसाया छोटा तिब्बत-वतन से दूर रहकर भी नही भूले संस्कृति
चार धाम यात्रा के लिए कंप्यूटरीकृत ग्रीन कार्ड होंगे इस बार
चार धाम यात्रा के लिए कंप्यूटरीकृत ग्रीन कार्ड होंगे इस बार देहरादून: चार धाम यात्रा के लिए परिवहन विभाग की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बार विभाग ने यात्रा पर चलने वाले व्यावसायिक वाहनों के लिए कंप्यूटरीकृत ग्रीन कार्ड बनाने का निर्णय लिया है। इससे विभाग के पास यात्रा पर जाने वाली गाड़ी का पूरा ब्योरा उपलब्ध रहेगा। यात्रा के दौरान परिवहन विभाग गाडि़यों के लिए ग्रीन कार्ड जारी करता है। पूर्व में ये कार्ड हाथों से बनाए जाते थे। ऐसे में इनमें गड़बड़ी होने की आशंका भी रहती थी। जांच के दौरान कई ग्रीन कार्ड फर्जी भी पाए गए। ऐसे में फर्जी ग्रीन कार्ड को रोकने और वाहन व चालक का संपूर्ण विवरण एक ही कार्ड में डालने के लिए विभाग ने इस बार ग्रीन कार्डो को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत बनाने का निर्णय लिया है। ग्रीन कार्ड में ड्राइवर के डीएल के साथ ही वाहन संबंधित जानकारी जैसे प्रदूषण प्रमाणपत्र की वैधता अवधि, रजिस्ट्रेशन, टैक्स, परमिट, फिटनेस और यात्रा फिटनेस आदि की संपूर्ण जानकारी होगी। यह जानकारी जानकारी कंप्यूटर में भी दर्ज होगी। यात्रा पर चलने वाले स्थानीय वाहनों के अलावा बाहर से आने वाले वाहनों को भी ये कार्ड जारी किए जाएंगे। ग्रीन कार्ड की पहली वैधता तीस जून तक रहेगी। इसके बाद आगे दो-दो माह तक इसकी समय सीमा बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। अपर परिवहन सचिव व अपर आयुक्त विनोद शर्मा ने बताया कि ग्रीन कार्ड का मकसद यह है कि वाहन चालक को एक बार ही सारे कागजात प्रस्तुत न करने पड़ें और जांच में भी विभाग का ज्यादा समय व्यर्थ न हो।
pahar1.blogspot.com
पीडि़त ने धस्माना को पहचाना
करनपुर गोलीकांड:
देहरादून, : उत्तराखंड आंदोलन के दौरान वर्ष, 1994 में देहरादून के करनपुर में हुए गोलीकांड की सुनवाई के दौरान गवाह ने तत्कालीन सपा नेता व वर्तमान में कांग्रेस के प्रांतीय मीडिया प्रभारी सूर्यकांत धस्माना को पहचान लिया। गवाह ने अदालत में बयान दिया कि सूर्यकांत धस्माना ने अपने घर की छत से पुलिसकर्मियों के साथ फायरिंग की थी। राज्य आंदोलन के दौरान वर्ष, 1994 में देहरादून के डालनवाला थाना क्षेत्र के करनपुर में आगजनी व पथराव के बाद तीन आंदोलनकारियों पर फायरिंग कर दी गई थी। इस गोलीकांड में एक आंदोलनकारी राजेश रावत की मौत हो गई थी, जबकि राजीव मोहन व रविंद्र रावत घायल हो गए थे। पहले सिविल पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इसमें अब तक 22 लोगों की गवाही हो चुकी है। गुरुवार को सीबीआई के विशेष न्यायधीश महेश चंद्र कौशिवा की अदालत में लंबे समय बाद इस मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पीडि़त के अलावा आरोपी सूर्यकांत धस्माना व पुलिसकर्मी भी कोर्ट में मौजूद थे। राजीव मोहन ने कोर्ट में गवाही दी कि घटना वाले दिन आगजनी व पथराव के बाद राजेश रावत और रविंद्र रावत के साथ वे पास में नन्हीं दुनिया स्कूल की गली में घुस गए। राजीव ने बताया कि तभी अपने घर की छत पर पुलिसकर्मियों के साथ मौजूद सूर्यकांत धस्माना ने उन पर फायरिंग कर दी। आठ से दस राउंड हुई फायरिंग में राजेश रावत की मौत हो गई, जबकि वे और रविंद्र गोली लगने से घायल हो गए। राजीव ने कोर्ट में सूर्यकांत धस्माना को पहचान लिया, जबकि पुलिसकर्मियों को नहीं पहचान सके। इस मामले में शुक्रवार को दूसरे पीडि़त रविंद्र रावत की गवाही होगी।
pahar1.blogspot.com
Parvatiya Mahaparishad by Uttarachali April 04, 2009 (
Parvatiya Mahaparishad Lucknow is organizing a HOLI MILAN SAMAROH in Lucknow. It is one of the largest progamme in Lucknow by Uttarachali. Near about 1-1.5 lakh people participated in this programme in every year. Heera Singh & group is coming from Delhi and Uttaranchal Swar Sangam (USS) Lucknow and other Uttaranchali organization based in Lucknow like Sanskritik & Samajik Sansthan, Gomti Nagar is jointly participating under Parvatiya Mahaparishad' s banner. GuestsMr. Bhagat Singh Kosyari, Ex. Chief Minister, Uttaranchal as Chief GuestMr. Akhilesh Das, Ex. Central Minister, GoI, as Guest of HonorMrs. Rita Joshi Bahugura, President of Congress, U.P., as Guest of Honor Kindly note the Date, Time and Address:April 04, 2009 (Suturday) evening 06.30pm onwards. It will be over by10.00 pm because of Election code of conduct Place: Ramleela Maidan, Near Daya Nanad Girls School, Mahanagar,(Near Wireless Chouraha) Lucknow Types of ProgrammeVandana, Famous Uttaranchali Jhora, Thariya, Chapeli and other such programmes "Sincere Request". Would I request to all of you, please participate on this programme as a audiance and hope, you will encourage to the invited cultural groups from Delhi,USS & others If you have any quarry regarding the above, please let us know.
Thanks and With Regards
Mahendra Singh GailakotiOrganizing SecretaryUSS, Lucknow
Friday, 27 March 2009
walk-in-interview in BEL-Ghaziabad, for Diploma holder on 30 March.
लोस चुनाव बाद होंगी कुविवि की परीक्षाएंबीकॉम की परीक्षाएं भी हुई स्थगित
बुर्जुगों ने चमकाया राज्य का नाम
देवभूमि के लाल, दिल्ली में कमाल
Thursday, 26 March 2009
राजधानी में हाइप्रोफाइल सेक्स रैकेट
नैनीताल से बाबा को कांग्रेस का टिकट
सत्ता सुख भोग रहे उक्रांद ने कार्यकर्ताओं को थमाया लालीपाप
जीप खाई में गिरी, सात मरे
विवादास्पद यू.टी.यू. प्रवेष परीक्षा
उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय द्वारा होटल प्रबंधन व अन्य पाठ्यक्रमों हेतु आयोजित की जाने वाली प्रवेष परीक्षा (यू.के.एस.ई.ई.-2009) तथा नेषनल काउंसिल आॅॅफ होटल मैनेजमेंट द्वारा होटल प्रबंधन पाठ्यक्रम हेतु प्रवेष परीक्षा (जे.ई.ई.-2009) की परीक्षा तिथि (9मई) तथा समय एक ही होने के कारण होटल प्रबंधन पाठ्यक्रम में प्रवेष लेने वाले छात्रों तथा उनके अभिभावकों में असंताश व्याप्त है। इसका सीधा अर्थ यह है कि उत्तराखंड के छात्र, आई.एच.एम. देहरादून सहित अन्य ख्यातिप्राप्त सरकारी व निजि राश्ट्रीय होटल प्रबंधन संस्थानो (आई.एच.एम.) में प्रवेष से वंचित रहेंगे। विदित है कि इस वर्श उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय द्वारा इंजीनियरिंग व होटल प्रबंधन सहित अनेक पाठ्यक्रमों हेतु स्चयं प्रवेष परीक्षा (यू.के.एस.ई.ई.-2009) लेने का निर्णय लिया गया जिसकी सूचना समाचार पत्रों में दी गई थी। इस सूचना के अनुसार 16फरवरी से आवेदन पत्र व विवरणिका अनेक डाक घरों में उपलब्ध होने थे, जोकि वास्तव में कोटद्वार डाकघर में 27फरवरी से मिलने प्रारम्भ हुए थे, साथ ही इसमे से इंजीनियरिंग का प्रवेष भी हटा दिया गया था। उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया आवेदन पत्र व विवरणिका का मूल्य भी अन्य सभी तकनीकि विष्वविद्यालयों व सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों की प्रवेष परीक्षाओं के आावेदन पत्रों की तुलना में सर्वाधिक (रु. 1030/-) है। क्या उत्तराखंड में रह रहे अभिभावकों की आय, अन्य सभी प्रदेषों व केन्द्र षाशित क्षेत्रों से अधिक है? देष के सर्वोच्च संस्थान जैसे आई.आई.टी. व आई.एच.एम. भी प्रवेष परीक्षाओं में इतना षुल्क नही लेते हैं। अभिभावकों को यह भी षिकायत है कि इस विष्चविद्यालय के अधिकारी किसी भी पूछताछ का उत्तर नही देते हैं। यदि षीघ्र ही उपर्लिखित प्रवेष परीक्षा में वांछनीय परिवर्तन नही किया गया तो यह इस बात का प्रमाण होगा कि उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय अभी तक कुप्रबंधन का षिकार है तथा प्रदेष में उच्च षिक्षा के क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाने में असमर्थ है। website of UTU- http://www.uktech.in/ website of NCHMCT- http://www.nchmct.org/
.C.Kukreti
Mktg, BELKotdwara
-246149Garhwal (UK)
Wednesday, 25 March 2009
कांग्रेस ने हरिद्वार सीट से पूर्व सांसद हरीश रावत को प्रत्याशी बनाना तय
उंधरयूं का बाटा’
( गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं।)- इंटर पास करने के बाद पहली बार 13 जुलाई को सुबह नौ बजे की बस से मैं पहाड़ से निकला था। जीएमओयू की बस मैं नेगी जी का ‘ना दौड़ ना दौड़ उंधरयूं का बाटा’ गीत बज रहा था, यह गीत मुझे रुला रहा था गीत मेरी पहाड़ से विदाई की पृष्ठभूमि में बज रहा था मेरी आंख नम हो रही थी. गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं। शुरू -शुरू के वर्षा में हर छोटी मोटी चीज छूटने का दर्द सालता रहा। यहां तक की पड़ोस के गांव के बौड़ा, का और काकी की भी याद आती रही। जो मेरे नाम के साथ मेरे पूरे परिवार का इतिहास और जमीन जायदाद- गौड़ी भैंसी के बारे में भी जानकारी रखते थे। गांव के नौनिहाल जो कई बार नंग- धडंग होकर एक साथ हाथ पकड़ खेलते रहते भी बरबश यादों में आते। गोकि वह मेरी उम्र से काफी छोटे थे। मैं उनमें खुद के बचपन को झांकने की कोशिश करता। तिबारी में दबे पांव आने वाली ‘बिरली’ याद आती, याद आता किस तरह गांव का एक मात्र पालतू कुत्ता वक्त बेवक्त भौंकता रहता। सौंण,भादौं , के महीने की घनधोर बरसात में ‘पटाल’ से लगातार गिरती धार सालों तक कानों में बजती रही। यादों का अंधड़ कई बार परदेश के दर्द को और बढ़ा जाता। मगर दिमाग में यादों को ठुंसे रखने की एक सीमा है, फिर नए सपनों के लिए भी तो दिमाग में ‘स्पेश’ रखनी है। आखिर इन सपनों को पूरा करने के लिए ही तो पहाड़ से भाग कर आए हैं। जल्द से जल्द सैलरी बढ़ानी है, फिर यहीं कहीं दिल्ली, चंडीगढ हद से हद देहरादून की पढ़ी लिखि लड़की को ‘ब्यौंली’ बनाने का सपना सच करना है। जिंदगी अतीतजीवी होकर आगे नहीं बढ़ती, पहाड़ देखने में या यूं कहें सपने में तो अच्छे लगते हैं, पर इन्हे झेलना सचमुच कठिन है। बैकग्राउंड मजबूत नहीं हो पाने के कारण मैं तो बहुत कुछ नहीं कर पाया, लेकिन बच्चों को वह सबकुछ देना है जो मुझे नहीं मिला। हां उम्र की आखिरी ढलान पर सारी जिम्मेदारी निभाकर अपने गांव में फिर बस जाउंगा। तब न मुझे कमाने की चिंता होगी, न भविष्य की। बस किसी तरह जिस जगह जन्म लिया वहीं पर खाक भी हो जाऊं। -----------॥॥॥॥ ------------॥॥॥॥॥॥॥------- अब उम्र उस मुकाम पर भी पहुंच गई है। जो सपने देखे थे वो आधे अधूरे ढंग से पूरे भी हो गए हैं। पहाड़ आज भी यादों में सताता है, सच मानो तो दर्द अब कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। पर, फिर कहीं कुछ बदल गया है। नयार, हेंवल और रवासन, भागीरथी, गंगाजी में अब तक कितना ही पानी बह चुका है। एक तो शरीर कमजोर हुआ है- ब्लडप्रेशर, यबटीज जैसी शहरी बीमारियां शरीर में घर कर गई हैं। पहाड़ की उतार चढ़ाव से घुटने में भी दर्द उभर आता है। मैं तो फिर भी यह सह लूं, पर ‘मिसेज’ का क्या करुं। वह तो सड़ी गरमी में भी ‘फ्लैट’ छोड़ने को तैयार नहीं। उसके पास कई तर्क हैं, बीमारी, मौसम और सबसे बड़ा घर खाली छोड़ने पर चोरी का। बंद घरों में चोरी की खबर वह कुछ ज्यादा ही जोर से पढ़ती है।कई बार मैं भी खुद को उसके तर्क से सहमत पाता हूं, जब वह कहती है कि पहाड़ में शौचालय तक का इंतजाम नहीं है। वहां ताजा बाजारू सब्जी और फल के लिए भी कोटद्वार, ऋषिकेश जाने वाले टैक्सी वाले की चिरौरी करनी पड़ती है। और फिर तबियत अचानक बिगड़ने पर अच्छे डॉक्टर कहां हैं, ‘धार -खाल’ के सरकारी डॉक्टर के भरोसे भला गांव में रहने का रिस्क लें। वह खुद के बजाय मुझे मेरी तबीयत का हवाला देकर रोक लेती है।कई बार सोचता हूं कि गांव में कम से कम दो कमरे और एक टायलेट का पक्का मकान बना दूं। कोई नहीं भी आए तो मैं खुद ही जाकर महीने दो महीने बिता आऊं। भतीजे की ‘ब्वारी’ दो रोटियां तो दे ही देगी, हमारी फुंगड़ी भी तो वही लोग खा रहे हैं। पर डरता हूं कि मैं तो बीमारियों का भोजन हूं, साल दो साल ही और इस धरती का वासिंदा हूं। मेरे पीछे गांव के मकान की क्या उपयोगिता, मेरे बाद बच्चे मुझे कोसेंगे ही। इस कशमकश में दिन तेजी से बीत रहे हैं, और मेरी बैचेनी भी। मैं अब भी दुविधा में झूल रहा हूं। यहां में ‘अजनबी’ हूं तो वहां पर ‘अनफिट’। मुझे पहाड़ में दिल्ली की ऐश चाहिए, पर यह संभव नहीं। आखिर वह पहाड़ है, दिल्ली नहीं। बस अब कभी कभी डीवीडी पर गढ़वाली गाने बजा कर खुद को तृप्त कर लेता हूं। घर में गढ़वाली बोली पर नियंत्रण रखने वाला मैं अकेला व्यक्ति हूं, बाकि सब ‘कटमाली’ हैं। गढ़वाली गाने सुनते वक्त मैं एक भाषायी अल्पसंख्यक की तरह भय महसूस करता हूं।आज 45 बरस बाद मेरा यह संकल्प बस सपना बन कर रहा गया। ना दौड़ ना दौड मैं अब भी सुनता हूं। यह गीत अब मुझे धिक्कारता है। संजीव कंडवाल दैनिक जागरण ग्रुप- मेरठ में वरिष्ठ उपसंपादक के पद पर कायर्रत -यदि पढकर पहाड़ की याद ताजा हो या पहाड़ आज भी यादों में सताता है तो आपने विचार मेल पर जरुर दीजिएगां आपकी राय को ब्लाक पर प्रकाशित किया जाएगां -mailmailto:-juyal2@gmail.com( यदि आपके पास भी पहाड़ से जुड़ी कोई यादगार जुडा़व या जानकारी जिसे हम आपस में बाट सके तो मेल कीजिए-) लेख पर टिप्पणी नीचे दे-
उंधारी क बाटा - साथियों का क्या कहना हैं-
आदरनीय Juyal Ji नमस्कार मैंने पहाड़ 1 मैं प्रकाशित आपका लेख उंधरयूं का बाटा pada aakhen nam ho gayei, us lekh ko maine 3 baar mai pura pada (itana roya jinta mai jis din padai puri karke pahli baar delhi ko aaya tha ). isse aage mujhe kuch nhi likha ja raha hai. aapke lekh itana aachach hai ki mere paas uske liya shabd nhi hia thank Pramod 9868905964
dear juyal ji bahut khusi huai 22 tarik ki bol likhi huai (na dhoor na dhoor)30 saal delhi rehene ke baad aaj lag raha hai ki koi hai apana jo ki bholi huai deno ki yadhi taja kara rahai hai thanks yesha laga ki yeh lekha mere jindgi per likha ho kaya aisa nahai hosakta (na dhor na dhor ukali ka bata )pahari log pahar hi mai bas jai many many thanks for you jayal ji thanks jai pahar jai uttrakhand
k s rana
----------------------------
yar rula diya hai apna to four line mai every thing is your four line thanks for juyal wake up all garhwali youth gererationthanks
manoj kumar <manojgouniyal@yahoo.co.in
------------------------------------------
Hi, You have storgly reminded everything, which I think everyone from Gadwal, after moving out of their place would have gone through, I am so touched..
umesh gusain <gusain_umesh@yahoo.co.in
------------------------
dear juyal jibahut khusi huai 22 tarik ki bol likhi huai (na dhoor na dhoor)30 saal delhi rehene ke baad aaj lag raha hai ki koi hai apana jo ki bholi huai deno ki yadhi taja kara rahai hai thanks yesha laga ki yeh lekha mere jindgi per likha ho kaya aisa nahai hosakta (na dhor na dhor ukali ka bata )pahari log pahar hi mai bas jai many many thanks for you jayal ji thanks jai pahar jai uttrakhand k s ranaJuyal ji Namaskar,App ka article pad ker dil ko buhut acha laga, Ati uttam. asa laga jase mey me he hu, hum sub uttrakhand walo ke kahne ek si hay.Jai Uttrakhand
Harish Pant
----------------------
Dear sir, बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून ,संजीव जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे,Thnaks,
UMESH JOSHI (9868553330)Ast. Sels Manager RAYMOND LtdNOIDA DELHI
-----------
-Sir aapki story pari par kar kushi or parshanta bhi hoi.Aaj bhi har pahari bhai ki yahi tamna hoti hai jo aapne aapne ish lekh mein likhi.Mein Pahar par peyda nahi ho wa.Laiki mare bhi vichar aapke hi tarhe hai.Aaj ki ish tej raftar mein hum kuch pechad gaye hai.Paranto aaj bhi kuch safal pahari bhai hai jo aapne sapno ko jaroor sakar karte hai inh mein kahi mashore hastia shamil hai.mein aapka shukariya ada karta ho jo aapne ish lekh duwara mere ao mere hi tare kai pahari bhaiyo ke dil mein jagayi. Aapko Sadar ParnamBest regards
Virenaagrivirender kumar <virenaagri@yahoo.com>
----------------------
बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून जुयाल जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे,
ThnaksHarish kumar soniyal
Dear Juyal Ji, Aapne Har pahari ki baat ka di, aapke lekh pad kar dil main kasak se uth gayi hai. Likhte rahe bahut accha hai. Main bhi Pithoragarh ka huin aur karib 18 saalo se Delhi main huin yahi padai huee ab rojgaar bhi yagi hai. Aap likhe hain to hardaya ke kone kone tak baat pahuchati hai.
( Mohan Joshi)9990993069-
----------------------------------कंडवाल जी नमस्कार ! बहुत खूब लिखा आप ने सच में बस घर कि यादे ताज़ी हो गयी जो सुख-चैन गाव में है ओ कही नहीं हो सकता है दीपावली में पिठ्या भैलू, होली में मिलकर होली खेलना अठवाडओ में घमाचुर का मंडाण वह अपना गाँव में पानी लेने जाना, गाय चुगने जाना अपना गाँव से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता यदि हम अपने गाँव में १ साल में चार शादी भी में भी जाते है तो हँस-खेल के नाच-कूद कर कितनी बीमारी तो दूर हो जाती है एक हम यहा है न दिवाली मना सकते है न होली न किसी से मिलना न कोई पार्टी और पार्टी है भी तो जाओ खाना खाओ चले आओ लेकिन ओ मजा अपने गाव में है ओ कही नहीं हो सकता लेकिन लोगो को उकाल का रास्ता नहीं चढ़ना है पैरो में दर्द होता है जो उंदार के रस्ते गए फिर मुड़ कर भी नहीं देखा कि अपने गाँव में क्या हो रहा है (कूदी बांज पुड्या छन) अभी भी टाइम है बौडी के आ जाओ अपने पहाड़ आप को आवाज दे रहे है ( धै लगानी छान डाडी-काठी कि बौडी कि ये जावा) एक दिन आएगा जब आप बहार वाले अपने उत्तराखंड में बस जायेंगे और हमें फिर जगह नहीं मिलेगा! नौकरी के लिए हमें जाना पड़ता है लेकिन फिर वापस नहीं आना..............कंडवाल जी आप से हमें ये सिख मिली कि अभी भी यदि हम कही दूर परदेश में जाकर बस गए तो लौट कर अपना देवभूमि उत्तराखंड को न भूले नहीं तो एक दिन हमें भी इसी तरह से पचाताप होगा जिस तरह से आप को हो रहा है! धन्यबादअपणु मूलक गाँव सी बढिक कुछ नी छ ये संसार मालोग बिचार कण बाघन चन बघाद पानी का धार मा !अपना मनखी उन्द भगणा छान बिदेशी बस्या छ्न घर मा चला दग्डियो बौढीक जौला, रोपणी लगौला स्यार मा !!(¨`·.·´¨)`·.¸(¨`·.·´¨)(¨`·.·´¨)¸.·´ ~~~
Pushkar Rana ~~~`·.¸.·´ <<<>>
>Rajesh said...kya baat he sanjeev ji, bahut acchaaapnay to sab kuch yaad dila diya realy i am feeling different kah nahi sakta abhi me 28 year ka hun but mera lagav gaun se he waha ka watawaran sab kuch acha thanda pani thandi hawa wo dhund, apna bachpan yaad aa jata he aur aankh bhar aati he rona aata he realy, wo din baday hi achay thay jab school pada kartay they na koi tension na fikr school jana wapas aana ma ke haath ka khan sara pariwar tha ek saath wo din kabhi nahi bhul paunga me, asli maza tabhi tha school phir ghar khelna kudna aur masti baarish me bhi football khella kartay the koi fikar nahi ki tabiyat kharab hogi kuch nahi bas khelna masti, realy thankfull to u sanjeev ji ki aapan ithkga achu lekh hum the pano ku mouka dyai..............March 19, 2009 10:05 PM
Rajesh said...gaun me kya yaad nahi aata sab kuch abhut he acha lagta he yaad aatay he gaun ke din garmi ke dino me danda jana kaful khana hisar ke ped, daanda gaur charnu the jaan dagdiyon dagri, aur bhi bahut kuch phir ghar aakar pandyara me nahen dagdiyon dagri, kya yaad ni aandu pahad ku..........March 19, 2009 10:15 PM
Manber said...Mai bahut hi emotional ho gaya ishe padkar. Mai bhi apne pahad ko bahut miss karata hun un sabhi cheejo ko jo gaon mein hoti hain."Aaj na jaani kile gaon ki aad aani cha"
March 20, 2009 1:44 AM Mr. Rakesh: Very nice article or uttaranchal or any pahari's life truth. It is really very real and emotional. Good blog and effort God blessMrs. Pandey Dear Juyal JieThanks.You have recalled my old memories also.I am a retired Fauji of Garhwal still trying to do something for my children. I passed my education after joining Force & learn Hindi & English I think to do something for the village poor people. But I am also one of them, how can manage. Only can give good wishes. Our people are still far behind in comparison to others although well educated but due to lack of oppertunity & source.We can not manage both end with the micro income.I learn recently computer e.mail etc. but do not know hindi script.Again thanks for a lovely script.-- Thanks & RegardsB S BishtGhaziyabad (UP) (INDIA)
prakash kumar <prakashkumar216@gmail.com>toपहाड़1 <juyal2@gmail.com> dateThu, Mar 26, 2009 at 5:48 AMsubjectRe: पहाड़1mailed-bygmail.com hide details 5:48 AM (12 hours ago) Reply prakash kumar said...gaun me kya yaad nahi aata sab kuch abhut he acha lagta he yaad aatay he gaun ke din garmi ke dino me danda jana kaful khana hisar ke ped, daanda gaur charnu the jaan dagdiyon dagri, aur bhi bahut kuch phir ghar aakar pandyara me nahen dagdiyon dagri, kya yaad ni aandu pahad ku..
thanksprakashkumar
-----
Adarniya Sanjeev ji Saadar Namaskar, aaj apka bichaar paidi ki man gad gad hoyi gaya. Sach bolan ta apna mera aknon ma ansso chhaliki geni. Aaj office ma comuter on karda hi apki mail padi. bahut khushi hoyi. Hum logu ko apni bhasha wa sanskriti zinda rakhana ke bahut awasaykta cha. mi jyada ni likhnu chandu , bichaar ta bindi likhana cha par samay ki kami cha . apna udgar rakhna ku bahut bahut dhanyabad. Subhash KukretiFaridabad
-----
Dear Kandwal Ji, You have done a remarkable job by writing such a beautiful article on thesweet memory of our Pahar. I am really thankful to you and greatlyappreciate your writing skils. On going through your article it recollectmy memories and I am of the same views / ideas. I could not do anything formy village since long. Thanks once again and appreciate your memories. With best wishes, (B.S.Negi
--
Tuesday, 24 March 2009
स्टेडियम के लिए अभी करना होगा छह माह और इंतजारश्रीनगर।
इंटरमीडिएट के चार विषयों की परीक्षाएं स्थगितउ8ाराखंड
हाईकोर्ट ने खारिज की अमरमणि की जमानत याचिकानैनीताल।
नैनो की लांचिंग से सिडकुल प्लांट में दीवाली
बद्री-केदार के कपाट खुलते ही यात्रियों को चमाचम व्यवस्था
नैनो से दो सौ करोड़ कमाएगा उत्तराखंड!
Remarks on Dr. Pratibha Naithani in JBU (24th Feb, 09)
This refers the remark of Shri Ramesh Rautela ,’Mukhya Mantri gaye par Pratibha naithani ke Ghar hi kyon Gaye’I did not understand the intention and reason for Shri Rautela accusing Chief Minister’ for his visit to Dr Pratibha Naithani.Paraiba Naithani is one of the celebrity of India and she belongs to a Gadhwali family. What is wrong there for Chief Minister visiting to such a famous lady of India? India Today positioned Pratibha Naithani among twenty one strongest women of India from a public survey, which means Pratibha is a well known figure of India . It is one of the main duties of a Chief Minister to pay a courtesy visit to such a dignity related to his/her state .Millions of Uttrakhandis are definitely proud of Pratibha Naithani and she is the symbol and inspiration for our pride too. I have been touring many places and meet people and when I say that Dr Pratibha Naithani is from our caste, area, or state, non-Uttrakhandis appreciate our community ,which has such a bold daughter. Dr. Pratibha Naithani provides our community a medium of recognition.Shri Rautela commented, “ kya is pariwar ka koi vaykti itna khyati prapt hai ki hum uske bare men nahi jante”If Rautela Jee does not know about the fame of Dr. Pratibha Naithani then Rautela Jee (if I am not mistaken , he is a social worker ) should be blamed and criticized for his utter ignorance about our famous people (migrated Gadhwali of Mumbai) .Shri Rautela jee also stressed on non contribution of Naithani family for Uttarakhand state movement. People may contribute our society from many angles , means or ways and how can we gratify only to separate state movement members and not other personalities who provided us fame, wealth, recognition etc.As far as CM’s willingness or unwillingness for visiting to late Shri arjun Singh Gusain’s house is concerned, it can not be compared with CM’s visit to Dr Pratibha’s house; because CM might be motivated by his political bondage or prejudices (Gusain jee (UKD) fought parliamentary election against a BJP candidate ). If we cant reach such a height of fame, where Dr Pratibha Naithani has reached we don’t have any right to criticize the credentials of Dr Pratibha Naithani (directly or indirectly). I don’t think there is much contribution of Uttrakhandis on the fame of Dr Pratibha that we dare to criticize her specially in comparison to other Uttrakhandis
Regard
sbhishma kukreti
भूख
जब कोइ मुझ से पूछता है कि,क्या, तुमने . कभी नियति को देखा है ?तो, न जाने क्यूँ तब मेरी निगाहें बरबस मेरी हथेलियों कि रेखाओ पर जाकर टिक जाती है औरढ़ुढ़ने लगती है उन रेखाओ के बीच फसेमेरे मुक्कदर को ... सुना है रेखाए भाग्य कीप्रतिबिम्ब होती है जिसमे छुपा होता है हर एक का कल कल किसने देखा है आज जिंदा रहूंगा तो कल देखूंगा ना ? अगर बच गया तो,फिरसे सारे सब्द , नियति ,सयम ,परितार्नाये रचने लगेगे अपने अपने चकबयूह मुझे घेरने का ! इससे अछा तो मैअपनी हथेलियों को बांध करदू ना बजेगी बांस , ना बजेगी बांसुरी आज फसर के सो जाता हूँ कल की कल देखेंगे नियति से कल निपट लेगे !
पराशर
Monday, 23 March 2009
अब आपको दून का केसर मिलेगा.
नैनो: ऊधम सिंह नगर भी गौरवान्वित
अब किताबों में पढि़ये भारत-तिब्बत व्यापार
खाल और धार करेंगे बेड़ा पार
चार धाम यात्रा:यात्रा पैकेज टूर की नई दरें जारी
Sunday, 22 March 2009
मेजर बिष्ट ने बढ़ाया उत्तराखंड का मान
Friday, 20 March 2009
उंधरयूं का बाटा’
इंटर पास करने के बाद पहली बार 13 जुलाई को सुबह नौ बजे की बस से मैं पहाड़ से निकला था। जीएमओयू की बस मैं नेगी जी का ‘ना दौड़ ना दौड़ उंधरयूं का बाटा’ गीत बज रहा था, यह गीत मुझे रुला रहा था गीत मेरी पहाड़ से विदाई की पृष्ठभूमि में बज रहा था मेरी आंख नम हो रही थी. गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं। शुरू -शुरू के वर्षा में हर छोटी मोटी चीज छूटने का दर्द सालता रहा। यहां तक की पड़ोस के गांव के बौड़ा, का और काकी की भी याद आती रही। जो मेरे नाम के साथ मेरे पूरे परिवार का इतिहास और जमीन जायदाद- गौड़ी भैंसी के बारे में भी जानकारी रखते थे। गांव के नौनिहाल जो कई बार नंग- धडंग होकर एक साथ हाथ पकड़ खेलते रहते भी बरबश यादों में आते। गोकि वह मेरी उम्र से काफी छोटे थे। मैं उनमें खुद के बचपन को झांकने की कोशिश करता। तिबारी में दबे पांव आने वाली ‘बिरली’ याद आती, याद आता किस तरह गांव का एक मात्र पालतू कुत्ता वक्त बेवक्त भौंकता रहता। सौंण,भादौं , के महीने की घनधोर बरसात में ‘पटाल’ से लगातार गिरती धार सालों तक कानों में बजती रही। यादों का अंधड़ कई बार परदेश के दर्द को और बढ़ा जाता। मगर दिमाग में यादों को ठुंसे रखने की एक सीमा है, फिर नए सपनों के लिए भी तो दिमाग में ‘स्पेश’ रखनी है। आखिर इन सपनों को पूरा करने के लिए ही तो पहाड़ से भाग कर आए हैं। जल्द से जल्द सैलरी बढ़ानी है, फिर यहीं कहीं दिल्ली, चंडीगढ हद से हद देहरादून की पढ़ी लिखि लड़की को ‘ब्यौंली’ बनाने का सपना सच करना है। जिंदगी अतीतजीवी होकर आगे नहीं बढ़ती, पहाड़ देखने में या यूं कहें सपने में तो अच्छे लगते हैं, पर इन्हे झेलना सचमुच कठिन है। बैकग्राउंड मजबूत नहीं हो पाने के कारण मैं तो बहुत कुछ नहीं कर पाया, लेकिन बच्चों को वह सबकुछ देना है जो मुझे नहीं मिला। हां उम्र की आखिरी ढलान पर सारी जिम्मेदारी निभाकर अपने गांव में फिर बस जाउंगा। तब न मुझे कमाने की चिंता होगी, न भविष्य की। बस किसी तरह जिस जगह जन्म लिया वहीं पर खाक भी हो जाऊं। -----------॥॥॥॥ ------------॥॥॥॥॥॥॥------- अब उम्र उस मुकाम पर भी पहुंच गई है। जो सपने देखे थे वो आधे अधूरे ढंग से पूरे भी हो गए हैं। पहाड़ आज भी यादों में सताता है, सच मानो तो दर्द अब कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। पर, फिर कहीं कुछ बदल गया है। नयार, हेंवल और रवासन, भागीरथी, गंगाजी में अब तक कितना ही पानी बह चुका है। एक तो शरीर कमजोर हुआ है- ब्लडप्रेशर, यबटीज जैसी शहरी बीमारियां शरीर में घर कर गई हैं। पहाड़ की उतार चढ़ाव से घुटने में भी दर्द उभर आता है। मैं तो फिर भी यह सह लूं, पर ‘मिसेज’ का क्या करुं। वह तो सड़ी गरमी में भी ‘फ्लैट’ छोड़ने को तैयार नहीं। उसके पास कई तर्क हैं, बीमारी, मौसम और सबसे बड़ा घर खाली छोड़ने पर चोरी का। बंद घरों में चोरी की खबर वह कुछ ज्यादा ही जोर से पढ़ती है।कई बार मैं भी खुद को उसके तर्क से सहमत पाता हूं, जब वह कहती है कि पहाड़ में शौचालय तक का इंतजाम नहीं है। वहां ताजा बाजारू सब्जी और फल के लिए भी कोटद्वार, ऋषिकेश जाने वाले टैक्सी वाले की चिरौरी करनी पड़ती है। और फिर तबियत अचानक बिगड़ने पर अच्छे डॉक्टर कहां हैं, ‘धार -खाल’ के सरकारी डॉक्टर के भरोसे भला गांव में रहने का रिस्क लें। वह खुद के बजाय मुझे मेरी तबीयत का हवाला देकर रोक लेती है।कई बार सोचता हूं कि गांव में कम से कम दो कमरे और एक टायलेट का पक्का मकान बना दूं। कोई नहीं भी आए तो मैं खुद ही जाकर महीने दो महीने बिता आऊं। भतीजे की ‘ब्वारी’ दो रोटियां तो दे ही देगी, हमारी फुंगड़ी भी तो वही लोग खा रहे हैं। पर डरता हूं कि मैं तो बीमारियों का भोजन हूं, साल दो साल ही और इस धरती का वासिंदा हूं। मेरे पीछे गांव के मकान की क्या उपयोगिता, मेरे बाद बच्चे मुझे कोसेंगे ही। इस कशमकश में दिन तेजी से बीत रहे हैं, और मेरी बैचेनी भी। मैं अब भी दुविधा में झूल रहा हूं। यहां में ‘अजनबी’ हूं तो वहां पर ‘अनफिट’। मुझे पहाड़ में दिल्ली की ऐश चाहिए, पर यह संभव नहीं। आखिर वह पहाड़ है, दिल्ली नहीं। बस अब कभी कभी डीवीडी पर गढ़वाली गाने बजा कर खुद को तृप्त कर लेता हूं। घर में गढ़वाली बोली पर नियंत्रण रखने वाला मैं अकेला व्यक्ति हूं, बाकि सब ‘कटमाली’ हैं। गढ़वाली गाने सुनते वक्त मैं एक भाषायी अल्पसंख्यक की तरह भय महसूस करता हूं।आज 45 बरस बाद मेरा यह संकल्प बस सपना बन कर रहा गया। ना दौड़ ना दौड मैं अब भी सुनता हूं। यह गीत अब मुझे धिक्कारता है।
संजीव कंडवाल
दैनिक जागरण ग्रुप- मेरठ में वरिष्ठ उपसंपादक के पद पर कायर्रत -यदि पढकर पहाड़ की याद ताजा हो या पहाड़ आज भी यादों में सताता है तो आपने विचार मेल पर जरुर दीजिएगां आपकी राय को ब्लाक पर प्रकाशित किया जाएगां -mailto:-juyal2@gmail.com( यदि आपके पास भी पहाड़ से जुड़ी कोई यादगार जुडा़व या जानकारी जिसे हम आपस में बाट सके तो मेल कीजिए-)
लेख पर टिप्पणी नीचे दे-
उंधारी क बाटा -क्या है पहाड़ के प्रति लोगों का लगाव
बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून जुयाल जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे, Thnaks Harish kumar soniyal
Dear Juyal Ji, Aapne Har pahari ki baat ka di, aapke lekh pad kar dil main kasak se uth gayi hai. Likhte rahe bahut accha hai. Main bhi Pithoragarh ka huin aur karib 18 saalo se Delhi main huin yahi padai huee ab rojgaar bhi yagi hai. Aap likhe hain to hardaya ke kone kone tak baat pahuchati hai.
( Mohan Joshi)9990993069
-----------------------------------
कंडवाल जी नमस्कार ! बहुत खूब लिखा आप ने सच में बस घर कि यादे ताज़ी हो गयी जो सुख-चैन गाव में है ओ कही नहीं हो सकता है दीपावली में पिठ्या भैलू, होली में मिलकर होली खेलना अठवाडओ में घमाचुर का मंडाण वह अपना गाँव में पानी लेने जाना, गाय चुगने जाना अपना गाँव से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता यदि हम अपने गाँव में १ साल में चार शादी भी में भी जाते है तो हँस-खेल के नाच-कूद कर कितनी बीमारी तो दूर हो जाती है एक हम यहा है न दिवाली मना सकते है न होली न किसी से मिलना न कोई पार्टी और पार्टी है भी तो जाओ खाना खाओ चले आओ लेकिन ओ मजा अपने गाव में है ओ कही नहीं हो सकता लेकिन लोगो को उकाल का रास्ता नहीं चढ़ना है पैरो में दर्द होता है जो उंदार के रस्ते गए फिर मुड़ कर भी नहीं देखा कि अपने गाँव में क्या हो रहा है (कूदी बांज पुड्या छन) अभी भी टाइम है बौडी के आ जाओ अपने पहाड़ आप को आवाज दे रहे है ( धै लगानी छान डाडी-काठी कि बौडी कि ये जावा) एक दिन आएगा जब आप बहार वाले अपने उत्तराखंड में बस जायेंगे और हमें फिर जगह नहीं मिलेगा! नौकरी के लिए हमें जाना पड़ता है लेकिन फिर वापस नहीं आना..............कंडवाल जी आप से हमें ये सिख मिली कि अभी भी यदि हम कही दूर परदेश में जाकर बस गए तो लौट कर अपना देवभूमि उत्तराखंड को न भूले नहीं तो एक दिन हमें भी इसी तरह से पचाताप होगा जिस तरह से आप को हो रहा है! धन्यबाद अपणु मूलक गाँव सी बढिक कुछ नी छ ये संसार मालोग बिचार कण बाघन चन बघाद पानी का धार मा !अपना मनखी उन्द भगणा छान बिदेशी बस्या छ्न घर मा चला दग्डियो बौढीक जौला, रोपणी लगौला स्यार मा !!
(¨`·.·´¨)`·.¸(¨`·.·´¨)(¨`·.·´¨)¸.·´ ~~~ Pushkar Rana ~~~`·.¸.·´ <<<>>>
Rajesh said... kya baat he sanjeev ji, bahut acchaaapnay to sab kuch yaad dila diya realy i am feeling different kah nahi sakta abhi me 28 year ka hun but mera lagav gaun se he waha ka watawaran sab kuch acha thanda pani thandi hawa wo dhund, apna bachpan yaad aa jata he aur aankh bhar aati he rona aata he realy, wo din baday hi achay thay jab school pada kartay they na koi tension na fikr school jana wapas aana ma ke haath ka khan sara pariwar tha ek saath wo din kabhi nahi bhul paunga me, asli maza tabhi tha school phir ghar khelna kudna aur masti baarish me bhi football khella kartay the koi fikar nahi ki tabiyat kharab hogi kuch nahi bas khelna masti, realy thankfull to u sanjeev ji ki aapan ithkga achu lekh hum the pano ku mouka dyai.............. March 19, 2009 10:05 PM Rajesh said... gaun me kya yaad nahi aata sab kuch abhut he acha lagta he yaad aatay he gaun ke din garmi ke dino me danda jana kaful khana hisar ke ped, daanda gaur charnu the jaan dagdiyon dagri, aur bhi bahut kuch phir ghar aakar pandyara me nahen dagdiyon dagri, kya yaad ni aandu pahad ku.......... March 19, 2009 10:15 PM Manber said... Mai bahut hi emotional ho gaya ishe padkar. Mai bhi apne pahad ko bahut miss karata hun un sabhi cheejo ko jo gaon mein hoti hain."Aaj na jaani kile gaon ki aad aani cha" March 20, 2009 1:44 AM
Mr. Rakesh: Very nice article or uttaranchal or any pahari's life truth. It is really very real and emotional. Good blog and effort God bless
Mrs. Pandey
Dear Juyal Jie Thanks. You have recalled my old memories also. I am a retired Fauji of Garhwal still trying to do something for my children. I passed my education after joining Force & learn Hindi & English I think to do something for the village poor people. But I am also one of them, how can manage. Only can give good wishes. Our people are still far behind in comparison to others although well educated but due to lack of oppertunity & source. We can not manage both end with the micro income. I learn recently computer e.mail etc. but do not know hindi script. Again thanks for a lovely script. -- Thanks & Regards B S BishtGhaziyabad (UP) (INDIA)