Monday, 20 July 2009
-उत्तराखंड आयुर्वेद विवि समेत दो विधेयक पारित
कांग्रेस ने किया विरोध, बसपा से मिला समर्थन
देहरादून, लंबे समय से प्रतीक्षारत उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय विधेयक को सदन ने पारित कर दिया है।
कांग्रेस ने विधेयक के स्वरूप तथा अलग विश्वविद्यालय बनाने का विरोध किया, जबकि बसपा ने विधेयक का समर्थन किया। सदन ने उत्तराखंड(उत्तर प्रदेश लोक सेवा) अधिकरण संशोधन विधेयक भी पारित कर दिया है।
सदन में विधेयक के पक्ष में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए यह पहल की गई है। यह पहल उत्तराखंड के विकास को गति प्रदान करेगी। गुजरात व राजस्थान के बाद अब उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय वाला तीसरा राज्य बना जाएगा। फिलहाल राज्य में ऋषिकुल, गुरुकुल, उत्तरांचल आयुर्वेदिक कालेज व हिमालय आयुर्वेदिक कालेज ही संचालित हैैं। उन्होंने कहा कि विधेयक परिपूर्ण है और इस पर जो आपत्तियां लगाई जा रही हैैं, वे पूरी तरह निराधार हैैं।
नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने कहा कि हरिद्वार के संस्कृत विश्वविद्यालय में एक फैकल्टी के रूप में आयुर्वेद से संबंधित पाठ्यक्रम व क्रियाकलाप संचालित किए जा सकते हैैं। कांग्रेस आयुर्वेदिक शिक्षा की समर्थक है, लेकिन भाजपा की इस पहल का कांग्रेस विरोध करती है। उन्होंने विधेयक में स्वायत्तता, नियुक्ति तथा प्रस्तावित धनराशि को लेकर भी चिंता व्यक्त की। बसपा के नारायण पाल ने विधेयक का पुरजोर समर्थन किया और नियमावली पर विचार करने की आवश्यकता जताई। चौधरी यशवीर, अनिल नौटियाल, त्रिवेंद्र सिंह रावत, शैलेंद्र रावत, व मदन कौशिक ने भी आयुर्वेद विश्वविद्यालय विधेयक का समर्थन करते हुए इसे राज्य के व्यापक हित में बताया।
सदन ने उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश लोक सेवा अधिकरण) संशोधन विधेयक पारित कर दिया। विधेयक पारित होने से अधिकरण में पांच न्यायिक व पांच प्रशासनिक सदस्यों की बाध्यता नहीं रहेगी। संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने बताया कि अभी तक राज्य में उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिकरण अधिनियम लागू था। इसके तहत अधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष (न्यायिक), एक उपाध्यक्ष (प्रशासनिक) और न्यायिक व प्रशासनिक श्रेणी के न्यूनतम पांच-पांच सदस्य उतनी संख्या में होंगे, जितनी राज्य सरकार रखेगी। उत्तर प्रदेश की तुलना में उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण में 315 वाद लंबित हैं। अब अधिकरण में अध्यक्ष, न्यायिक व प्रशासनिक उपाध्यक्ष होंगे। लंबित वादों की संख्या के मुताबिक सदस्यों के चयन का विकल्प भी रखा गया है।
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