Tuesday, 7 July 2009
आयुर्वेदिक विवि को हरी झांडी
निशंक कैबिनेट की पहली बैठक में लिया गया निर्णय
देहरादून कैबिनेट ने हरिद्वार में आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की स्थापना को मंजूरी दे दी है। साथ ही आज कैबिनेट बैठक में होम्योपैथ चिकित्सा सेवा नियमावली को पारित किया गया। कैबिनेट ने बजट, बिजली व पानी के मुद्दों पर भी अनौपचारिक चर्चा की।
कैबिनेट फैसलों के बारे में मुख्य सचिव इंदु कुमार पंाडे और प्रमुख सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) केशवदेसि राजू ने बताया कि आयुर्वेदिक विवि पर दिसंबर 2001 में निर्णय लिया गया था। किन्हीं कारणों से इस बारे में अधिनियम नहीं बन पाया। अब कैबिनेट ने इसे स्वीकृति दी है। हरिद्वार में ऋषिकुल व गुरुकुल आयुर्वेदिक कालेजों को मिलाकर आयुर्वेद विवि की स्थापना का प्रस्ताव है। होम्योपैथिक चिकित्सा सेवा नियमावली के संबंध में लिए गए निर्णय के बारे में प्रमुख सचिव श्री राजू ने बताया कि लंबे समय से नियुक्ति न होने से बड़ी संख्या में होम्योपैथिक चिकित्सक ओवर ऐज हो गए हैं। उनकी मांग पर आयु सीमा में पांच साल की छूट दी गई है। अब न्यूनतम आयु सीमा 35 से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दी गई है।
सूत्रों ने बताया कि ये दोनों मामले कुछ ही मिनटों की चर्चा के बाद पास हो गए। कैबिनेट का अधिकांश समय बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर अनौपचारिक बातचीत में लगा। बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री डा.निशंक ने कैबिनेट के साथियों से सूबे के आम बजट पर भी मंथन किया।
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राह आसान होने में लगे आठ साल
डा. निशंक का ड्रीम प्रोजेक्ट है आयुर्वेद विश्वविद्यालय
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की राह आठ साल बाद आसान होती दिख रही है। यह विवि मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। ऐसे में माना यही जा रहा है कि अपने सपने को जल्द पूरा करने को मुख्यमंत्री चिकित्सा शिक्षा विभाग अपने पास ही रख सकते हैैं।
निशंक कैबिनेट की पहली औपचारिक बैठक में ही उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को मंजूरी मिल गई है। अब इस विवि की स्थापना का राह आसान होती दिख रही है। खास बात यह है कि इस विवि को कैबिनेट की मंजूरी मिलने में आठ वर्ष लग गए। कहा तो यही जा रहा है कि यह आयुर्वेद विवि मुख्यमंत्री डा.निशंक का ड्रीम प्रोजेक्ट है। भाजपा की अंतरिम सरकार के समय में मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने बतौर चिकित्सा शिक्षा मंत्री इस बारे में एक प्रस्ताव तैयार करवाया था। उस वक्त किन्हीं कारणों से इसे मंजूरी नहीं मिल सकी थी। बाद में एनडी सरकार के समय में भी इस दिशा में कोशिशें शुरू हुईं पर उन्हें परवान नहीं चढ़ाया जा सका।
सवा दो साल पहले सूबे की सत्ता पर भाजपा काबिज हुई तो डा.निशंक एक बार फिर से कैबिनेट में शामिल हुए। उन्हें चिकित्सा महकमा दिया तो गया पर चिकित्सा शिक्षा को सीएम ने अपने पास ही रखा। इसके बाद भी डा. निशंक इस बारे में प्रयास करते रहे। तमाम कोशिशों के बाद इसका प्रस्ताव तैयार भी हुआ तो वित्त विभाग ने इसमें अड़ंगा लगा दिया। इसके साथ ही अन्य आपत्तियां भी लगा दी गईं। नतीजा यह रहा कि विवि स्थापना की दिशा में कोई भी काम आगे नहीं बढ़ सका।
सूबे की सरकार का मुखिया बनने के बाद डा.निशंक ने पहली कैबिनेट में ही इसे मंजूरी दिलाकर यह साबित कर दिया कि आयुर्वेद विवि उनका ड्रीम प्रोजेक्ट हैै। अब माना यही जा रहा है कि डा. निशंक चिकित्सा शिक्षा विभाग को अपने पास ही रख सकते हैैं। ऐसे में अपने सपने को तेजी से पूरा करने के लिए में सीएम को कोई भी दिक्कत नहीं होगी।
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