Thursday, 30 July 2009
=चकबंदी रोकेगी पहाड़ों से पलायन
बिगड़े हालात: बिखरी जोतों ने बनाया पहाड़ी कृषि को अनुत्पादक
देहरादून, बिखरी जोतों के कारण मध्य हिमालयी क्षेत्र की कृषि अनुत्पादक बन गई है।
नतीजा यह है कि पर्वतीय क्षेत्र में पलायन अत्यधिक बढ़ गया है। स्वैच्छिक चकबंदी के तहत अब तक राज्य के दो गांव कदमताल कर रहे हैं। राज्य सरकार अब इस तरफ सक्रिय होती दिख रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि चकबंदी ही पहाड़ से हो रहे पलायन पर ब्रेक लगा सकती है।
राज्य का पर्वतीय क्षेत्र उद्योग शून्य है। गांवों में आय का कोई दूसरा संसाधन भी नहीं है। एक मात्र साधन सीढ़ीनुमा खेतों में कृषि का ही है। इसमें सिर्फ दस प्रतिशत भूमि सिंचित है। ऊपर से अतिवृष्टि, भूस्खलन, ओलावृष्टि और सूखा इस कृषि की कमर तोडऩे के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। अनुपयोगी कृषि और कोई दूसरा विकल्प न होने के कारण पहाड़ पलायन का गवाह बन रहा है।
पहाड़ों में परंपरागत कृषि से हटकर बागवानी, जड़ी-बूटी, फ्लोरीकल्चर जैसी व्यवसायिक गतिविधियों के संचालन को सबसे पहली जरूरत जोतों का एकीकरण है। इसी उद्देश्य से राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के लिए स्वैच्छिक चकबंदी योजना लागू की गई है। इसके तहत राज्य के दो गांव बीफ और खरसाली कदम बढ़ा रहे हैं।
राज्य की स्वैच्छिक चकबंदी समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य और चकबंदी के लिए समर्पित गणेश सिंह गरीब कहते हैं कि कृषि एवं गांव संबंधी जितनी भी सरकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं, चकबंदी के बिना उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। उनके अनुसार बीस सूत्रीय कार्यक्रम, एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम, जलागम प्रबंध योजना, जवाहर रोजगार योजना, सुखोन्मुख क्षेत्र विकास कार्यक्रम, अंबेडकर ग्राम, गांधी ग्राम, आदर्श ग्राम, हरियाली, आत्मा, हर्टिकल्चर टेक्नालाजी मिशन जैसी तमाम सरकारी योजनाएं चकबंदी के अभाव में अपने परिणाम नहीं दे सकती हैं। श्री गरीब के अनुसार पहाड़ में विकास की कुंजी चकबंदी ही है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ग्रामीण चकबंदी के लिए तैयार हैं पर सरकारी मशीनरी इसके लिए अपेक्षित कदम नहीं बढ़ा पा रही है। स्वैच्छिक चकबंदी समिति की बैठक में अब ग्राम स्तर पर कमेटी का गठन करने, पंचायतों के तीनों स्तरों पर चकबंदी पर चर्चा शुरू करने और जनता के सुझााव आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया है।
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