Saturday, 25 July 2009

महाकुंभ की तैयारियां

हरिद्वार महाकुंभ आयोजन की व्यवस्थाओं में चल रहे विलंब को लेकर मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक का नाखुश होना लाजिमी है। संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक में उन्होंने अपना रोष जाहिर कर ही दिया। यह उचित भी है, आखिर आस्था का इतना बड़ा महापर्व है। इसमें करोड़ों लोगों का हरिद्वार आगमन होगा। इनकी मौलिक जरूरतें पूरी करने के लिए समुचित व्यवस्थाएं करना कोई हंसी खेल नहीं है। थोड़ी से भी अव्यवस्था विकट समस्या ला खड़ी करती है। आवागमन, आवास, स्वास्थ्य, स्नान, सुरक्षा, परिवहन आदि की व्यवस्थाएं किसी जादू की छड़ी से नहीं हो सकतीं। इनके लिए वर्षों पूर्व से तैयारियां करनी पड़ती हैं। यूं तो शासन पहले से ही इस बारे में सचेष्ट है और कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है। इनके लिए बजट जारी किया जा चुका है, लेकिन इन योजनाओं पर जिस गति के साथ काम किया जाना चाहिए था, वह तेजी नजर नहीं आ रही है। महाकुंभ के लिए अब ज्यादा समय भी शेष नहीं है। कोई भी स्नान पर्व आने पर ही हरिद्वार की हालत अस्त-व्यस्त हो जाती है, आस्था के सैलाब के आगे पुलिस एवं प्रशासन ढीला पड़ जाता है। फिर महाकुंभ तो इतना बड़ा पर्व है। इसके लिए व्यवस्थाएं करने में किसी भी तरह की ढील सहन नहीं की जा सकती। मुख्यमंत्री ने जिन व्यवस्थाओं के संबंध में निर्देश दिये हैं, वे तो अनिवार्य आवश्यकता हैं ही, इनके अलावा भी तमाम तरह की जरूरतें हैं, जिनके लिए व्यवहारिक व्यवस्थाएं करनी होंगी। कुछ ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जो दूसरे राज्यों से समन्वय स्थापित कर ही की जा सकती हैं, इनमें भी तेजी लानी होगी। तात्पर्य यह कि इस आयोजन के लिए दूरदृष्टि की नितांत आवश्यकता होगी। अधिकारियों को शासन के निर्देश समझाने चाहिए और द्रुत गति से योजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान देना चाहिए। समय कम बचा है, लेकिन कार्य तमाम शेष हैं। पृथक उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आने के बाद हरिद्वार में पडऩे वाला यह पहला महाकुंभ है। इस परिप्रेक्ष्य में इसे एक तरह से चुनौती के रूप में लेना चाहिए। सभी संबंधित विभागों को चाहिए कि बेहतर समन्वय स्थापित कर योजनाओं को इस तरह पूरी करें कि महाकुंभ सकुशल संपन्न हो और उत्तराखंड को सुव्यवस्था करने वाले राज्य के रूप में जाना जाए।

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