Thursday, 2 July 2009
=आईएमए में झाुका है पाकिस्तान का सिर
आईएमए म्यूजियम में उल्टा लटका है पाकिस्तानी झांडा
1971 के सिलहत युद्ध में भारतीय सेना ने लिया था कब्जे में
भारतीय योद्धाओं की जाबांजी करता है बयां
इंडियन मिलेट्री एकेडमी (आईएमए) में पाकिस्तान का सिर झाुका हुआ है। चौंकिए नहीं यह सच है। आईएमए के म्यूजियम में 1971 के सिलहत युद्ध में भारतीय जांबाजों ने पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। इसी युद्ध में सेना ने इस झांडे को पाकिस्तानी सेना से कब्जाया। आईएमए की गोल्डन जुबली पर तत्कालीन थल सेनाध्यक्ष जनरल कृष्ण राव ने यह झांडा प्रदान किया। चूंकि यह झांडा कब्जाया हुआ है, इसलिए इसेे आईएमए के म्यूजियम में उल्टा लटकाया गया है।
आईएमए के म्यूजियम में यूं तो विभिन्न प्रकार के हथियार, ट्राफी और डाक्यूमेंट हैं। इनमें हर एक की अलग कहानी है। भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध की भी यहां कई निशानियां हैं। इनमें जनरल नियाजी की वह पिस्तौल भी शामिल है, जो उन्होंने आत्मसमर्पण के दौरान सौंपी थी। इसके अलावा हाल ही में जनरल नियाजी के स्टाफ मैस की विजिटर बुक भी आईएमए के म्यूजियम का हिस्सा बनी हैं।
इसी युद्ध की एक निशानी ऐसी है, जो बाकी से थोड़ी जुदा है। वह है चांद सितारा लगा हरे और सफेद रंग का एक पाकिस्तानी ध्वज, जो म्यूजियम में उल्टा लटका हुआ है। यह भारतीय सेना के अदम्य साहस और उसकी गौरव गाथा को बयां करता है। अब आते हैं इस झांडे की कहानी पर। यह झांडा भारतीय सेना ने पाकिस्तान की 31 पंजाब बटालियन से 7 से 9 सितंबर तक चले सिलहत युद्ध के दौरान कब्जे में लिया था। 1971 के युद्ध में बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) बार्डर पर मेघालय के निकट सिलहत को सैन्य दृष्टि के काफी महत्वपूर्ण माना गया था। सिलहत से ही पूर्वी पाकिस्तान का रास्ता था और पाकिस्तानी सेना यहीं डेरा जमाए हुए थी।
भारतीय सेना की 4/5 गोरखा रायफल्स ने यहां खुखरी से पाकिस्तानी सेना से आमने सामने की लड़ाई लड़ी। भारतीय सेना की कुछेक टुकडिय़ों ने ही अपने युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता के बूते दुश्मन को काफी देर तक रोके रखा। भारतीय सेना की और टुकडिय़ां पहुंचने पर सेना ने पूरे क्षेत्र को कब्जे में ले लिया। इसी दौरान भारतीय रणबांकुरों ने पाकिस्तानी सेना से यह झांडा भी कब्जाया।
इस लड़ाई में 8 माउंटेन डिवीजन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पूर्व भारतीय सेना अध्यक्ष और तत्कालीन मेजर जनरल कृष्ण राव ने इस डिवीजन का नेतृत्व किया। ऐसे में आईएमए की गोल्डन जुबली वर्ष (1982) में उन्होंने ही यह ध्वज आईएमए को प्रदान किया। चूंकि यह ध्वज कब्जाया हुआ था, ऐसे में इसे सीधा नहीं फहराया जा सकता। लिहाजा यह उल्टा लटका हुआ है। आईएमए म्यूजियम में रखी दुश्मनों की यह वस्तुएं यहां के भावी अधिकारियों के भीतर जोश और ऊर्जा का संचार करने के साथ ही उन्हें अपने गौरवशाली इतिहास को कायम रखने की भी प्रेरणा देती हैं। आईएमए के पूर्व कमांडेंट ले.जनरल जीएस नेगी बताते हैं कि लड़ाई के दौरान दुश्मन से कब्जाया ध्वज उलटा ही रखा जाता है।
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