Thursday, 30 July 2009

Air Force will recruit soldiers in Pithoragarh.

Pithoragarh: last year this year as well as the Air Force will recruit soldiers in Pithoragarh. Recruitment in all districts of the Kumaon Mandal's youth will be able to participate. Air Force handed over to the Delhi office of the Information Department of the Air Force said the recruitment will begin from October 29. Six days in the recruitment of Group X and Y Gurp and will be recruiting for positions. Group X in the recruitment of young people willing to test Intrmeediatt Mathematics, Physics and English with 50 per cent of subjects with the points is to be passed. Three-year mechanical, electrical, electronic, Atomobails, Computer Science, Diploma in Instumenteshn Tekraloji holder will be able to participate in the recruitment. Candidate for recruitment in Group Y of science, art, Kamrs in points with 50 per cent is to be passed. 17 to 22 years of youth will take part in the recruitment. Recruitment in all the districts of Kumaon Mandal's youth will take part.

वायु सैनिकों की भर्ती को पिथौरागढ़ में होगी रैली

पिथौरागढ़: पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी वायु सेना पिथौरागढ़ में सैनिकों की भर्ती करेगी। भर्ती में कुमाऊं मण्डल के समस्त जिलों के युवा भागीदारी कर सकेंगे। वायु सेना के दिल्ली स्थित कार्यालय के हवाले से सूचना विभाग ने बताया वायु सेना के लिए भर्ती 29 अक्टूबर से शुरु होगी। छ: दिन चलने वाली इस भर्ती में ग्रुप एक्स और गु्रप और वाई के पदों के लिए भर्ती की जायेगी। ग्रुप एक्स में भर्ती के इच्छुक युवाओं को इण्टरमीडिएट परीक्षा गणित, फिजिक्स और अंग्रेजी विषयों के साथ 50 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। तीन वर्षीय मैकेनिकल, इलेक्ट्रीकल, इलेक्ट्रानिक, आटोमोबाइल्स, कम्प्यूटर साइंस, इंस्टूमेंटेशन टेक्रालॉजी में डिप्लोमा धारी भी इस भर्ती में भागीदारी कर सकेंगे। ग्रुप वाई में भर्ती के लिए अभ्यर्थी को साइंस, आर्ट, कामर्स में 50 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। 17 से 22 वर्ष के युवा इस भर्ती में भाग ले सकेंगे। भर्ती में कुमाऊं मण्डल के सभी जिलों के युवा भाग ले सकेंगे।

कुमाऊं में बनेगा विवेकानंद परिपथ

- पर्यटन के नजरिये से विकसित करेगा केएमवीएन नैनीताल: कुमाऊं के कई क्षेत्र स्वामी विवेकानंद की स्मृतियों को संजोये हैं। हर वर्ष काफी संख्या में पर्यटक व अनुयायी इन स्थलों को देखने पहुंचते हैं। इसे देखते हुए कुमाऊं मंडल विकास निगम इन स्थलों को एकसूत्र में पिरोते हुए विवेकानंद परिपथ की योजना तैयार कर रहा है। जिसके तहत इन स्थलों को विशेष पर्यटन पैकेज के तौर पर विकसित किया जाएगा। अगस्त में एक उच्च स्तरीय सर्वेक्षण टीम इन स्थलों का निरीक्षण कर रिपोर्ट देगी। कुमाऊं में स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा व चम्पावत जिलों में गये थे। अल्मोड़ा में वह काकड़ीघाट मंदिर के पास रुके जहां उनकी स्मृति में विवेकानंद स्मारक बना है। इसके साथ ही चम्पावत में मायावती आश्रम उनकी यादगार स्थली है। बताया जाता है कि अल्मोड़ा में स्थित देवदार इन होटल में स्वामी जी रुके थे। यहां विवेकानंद की यादों को संजोकर रखा गया है। वह टनकपुर के सूखीढांग भी गये थे। इन स्थलों पर देश-विदेश के अनुयायियों के साथ ही हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। इसे लेकर कुमाऊं मंडल विकास निगम ने इसे एक परिपथ के रूप में विकसित करने की योजना बनायी है। पर्यटकों के लिए इन स्थलों तक पहुंचने को विशेष टूर पैकेज बनाया जाएगा। इससे एक ओर जहां यह स्थल पर्यटन नक्शे पर आ जाएंगे वहीं खास तौर पर इन जगहों पर घूमने आने वाले पर्यटकों को सहूलियत मिल सकेगी। योजना का खाका बनाने में जुटे अफसरों का कहना है कि इसे धरातल पर लाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि इसका ब्लूपिं्रट तैयार हो गया है लेकिन अगस्त के दूसरे सप्ताह में उच्चस्तरीय सर्वेक्षण टीम भेजी जा रही है। जो इन स्थलों पर पर्यटन के नजरिये से उपलब्ध सुविधाओं व समस्याओं का जायजा लेगी। रिपोर्ट पर मंथन के बाद इसे लागू किया जाएगा। निगम के महाप्रबंधक अशोक जोशी का कहना है कि इन स्थलों को पर्यटन पैकेज के तौर पर विकसित करने की योजना है। इन स्थलों पर आवासीय व आवागमन की सुविधाओं की उपलब्धता को पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। -::परिपथ का स्वरूप::- दिल्ली या अन्य स्थानों से काठगोदाम- काकड़ीघाट-अल्मोड़ा-वाया दन्या-लोहाघाट (रात्रि विश्राम)-मायावती आश्रम-श्यामलाताल व टनकपुर।

भवाली व कोलीढेक बनेंगे आयुष ग्राम

नैनीताल व चंपावत जिलों से होगा आयुष ग्राम योजना का शुभारंभ -भूमि चिन्हित, कोलीढेक में वनभूमि हस्तांतरण को 16 लाख मंजूर देहरादून, सरकार ने आयुष ग्रामों को हकीकत की शक्ल देने की कवायद शुरू कर दी है। सूबे में यह शुरुआत नैनीताल के भवाली व चंपावत जिले के कोलीढेक आयुष ग्रामों की स्थापना से की जा रही है। राज्य में आयुर्वेद को बढ़ावा देने की मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की मुहिम रंग ला रही है। सीएम का रुझाान देखकर नौकरशाही ने इस दिशा में कसरत तेज कर दी है। सरकार की घोषणा के तहत प्रदेश के सभी जिलों में एक-एक आयुष ग्राम स्थापित किए जाएंगे। पहले चरण में कुमाऊं मंडल के नैनीताल जिले में भवाली और चंपावत जिले में कोलीढेक आयुष ग्राम के तौर पर विकसित होंगे। भवाली में आयुष ग्राम को दस एकड़ जमीन स्वास्थ्य महकमे ने दी है। कोलीढेक में आयुष ग्राम को 1.60 हेक्टेअर भूमि चिन्हित की गई है। इस वन भूमि के हस्तांतरण को आयुष विभाग ने 16 लाख रुपये वन विभाग को जारी कर दिए हैं। इन आयुष ग्रामों में जड़ी-बूटी उत्पादन से लेकर आयुर्वेदिक पद्धति से चिकित्सा को प्रोत्साहित किया जाएगा। सरकार की योजना कामयाब रही तो आयुष ग्राम भविष्य में पर्यटन को बढ़ावा देने में मददगार साबित होंगे। इससे स्थानीय लोगों के लिए आमदनी के नए स्रोत विकसित होंगे। सूत्रों के मुताबिक आयुष विभाग पहले इन दोनों गांवों को विकसित करेगा। बाद में इनकी तर्ज पर अन्य गांव भी विकसित करने की योजना है। सभी 13 जिलों में एक-एक आयुष ग्राम चिन्हित किए जाने हैं। उधर, आयुर्वेदिक विवि को इसी सत्र से कामकाज शुरू करने को संसाधन जल्द जुटाए जाएंगे। फिलहाल विवि को ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज परिसर से चलाने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है।

सुधरेगी तकनीकी शिक्षा

प्रदेश के सरकारी तकनीकी शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी की नियुक्ति को सरकार गंभीर नजर आ रही है। इसे तकनीकी शिक्षा के स्तर उन्नयन के लिए अच्छा संकेत माना जा सकता है। दूरदराज व पर्वतीय क्षेत्रों में फैकल्टी नियुक्ति में सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। तकनीकी प्रशिक्षितों को सुविधाजनक क्षेत्रों में ही रोजगार के अच्छे अवसर मुहैया हो रहे हैं। ऐसे में दूरदराज जाने में उनकी अपेक्षाकृत कम रुचि होना लाजिमी है। यही वजह है कि पौड़ी व अल्मोड़ा जिलों के दो सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में फैकल्टी भर्ती के लिए कई बार रिक्त पद विज्ञापित किए जा चुके हैं। इसके बावजूद पात्र लोगों का मिलना मुमकिन नहीं हो पा रहा है। अब यह जरूरी है कि तकनीशियनों, प्रशिक्षित, उच्च शिक्षित फैकल्टी व शिक्षाविदों को दूरस्थ क्षेत्रों का रुख करने के लिए नीति नियोजन में बदलाव किया जाए। अन्यथा सरकार के स्तर पर सामाजिक जिम्मेदारी के तौर पर दुर्गम क्षेत्रों में मुहैया कराई जा रही शिक्षा का स्तर बनाने की चुनौती हमेशा कायम रहेगी। यह भी देखने में आ रहा है कि संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा व प्रशासन का बेहतर माहौल बनाने में स्थानीय राजनीतिक हस्तक्षेप की शिकायतें बढ़ रही हैं। सरकार को क्षेत्रीय आकांक्षाओं का सम्मान तो करना है, लेकिन इसकी आड़ में गुणवत्ता से कतई समझाौता नहीं किया जाना चाहिए। वैश्विक प्रतिस्पर्धा और मौजूदा मंदी के दौर में यह साफ हो चुका है कि तकनीकी शिक्षा में कार्यकुशलता का हरसंभव विकास होना चाहिए। इससे समझाौता नहीं किया जाना चाहिए। इंजीनियरिंग कालेजों के साथ पालीटेक्निकोंमें भी कर्मशाला अनुदेशकों व लेक्चरर के रिक्त पदों पर भर्ती के रास्ते पर पांव आगे बढऩे से सूबे को अगले वर्षों में अच्छे तकनीशियन मिलने की उम्मीद बलवती हुई है। राज्य में नव स्थापित उद्योगों को भी कुशल तकनीशियन मिल सकेंगे। तकनीकी शिक्षा में पिछड़े मानव संसाधन को कामयाब प्रशिक्षित बनाने के लिए अभी ज्यादा ईमानदार कदम उठाने की दरकार है।

घोषणा के बावजूद नहीं बन सका पक्षी विहार

-नरेंद्रनगर में पांच साल पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने की थी घोषणा -पचास लाख रुपये का प्रस्ताव फांक रहा फाइलों की धूल , नरेंद्रनगर नई टिहरी जनपद के नरेंद्रनगर वन प्रभाग के अंतर्गत आगराखाल में पक्षी विहार बनाने की तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की घोषणा भी बेमानी साबित हो रही है। करीब पांच साल पूर्व की गई यह घोषणा अब तक अमलीजामा नहीं पहन सकी है। आलम यह है कि पक्षी विहार बनाने के लिए करीब पचास लाख रुपये का प्रस्ताव भी शासन स्तर पर फाइलों की धूल फांक रहा है। इससे स्थानीय युवाओं के रोजगार पाने के सपने भी चकनाचूर होते जा रहे हैं। उत्तराखंड की वादियों में हर साल लाखों देशी-विदेश पर्यटक हर वर्ष पहुंचते हैं। इनमें चार धाम यात्रियों के अतिरिक्त ऐसे लोग पहुंचते हैं, जो साहसिक खेलों के साथ पर्यटन की अन्य गतिविधियों में खास रुचि रखते हैं। इसी के तहत वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मुनिकीरेती में हर्बल पार्क उद्घाटन करते हुए आगराखाल में भी पक्षी विहार बनाने की घोषणा की थी। इसके बाद नरेंद्रनगर वन प्रभाग ने 244.5 हेक्टेयर वन क्षेत्र में पक्षी विहार बनाने के लिए करीब 50 लाख रुपये का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा था, लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी यह प्रस्ताव शासन की फाइलों में धूल फांक रहा है। पक्षी विहार में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी रखने की योजना है। इसके लिए बाकायदा तालाब बनाना भी प्रस्तावित है, जिसमें क्रीड़ा करते बत्तख व अन्य पक्षी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते। यही नहीं क्षेत्र में पर्यटकों की आमद से स्थानीय युवकों को भी रोजगार मिलता। वन विभाग ने भी इस मामले में कोई रुचि नहीं दिखाई और अब तक पक्षी विहार अस्तित्व में नहीं आ सका है। उल्लेखनीय है कि पक्षी विहार के बनने से स्थानीय बेरोजगार युवाओं में रोजगार की आस जगी थी, लेकिन सरकारी बेरुखी से उनके अरमानों पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष व तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक सुबोध उनियाल का कहना है कि पक्षी विहार की घोषणा आगरखाल व आस-पास क्षेत्र को विकसित करने के लिए की गई थी। स्वयं मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा की थी, इसलिए इसे अमल में लाने के लिए प्रदेश सरकार को कार्य करना चाहिए। इस बाबत, प्रभागीय वनाधिकारी मुनिकीरेती गोपाल सिंह राणा का कहना है कि पक्षी विहार के लिए पानी की उपलब्धता बहुत जरूरी है। जिस स्थान पर पक्षी विहार प्रस्तावित है, वहां पर्याप्त पानी नहीं है। इसके चलते प्रस्ताव अभी तक विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि विहार को शासन स्तर पर मंजूरी दिलाने के प्रयास जारी है।

=चकबंदी रोकेगी पहाड़ों से पलायन

बिगड़े हालात: बिखरी जोतों ने बनाया पहाड़ी कृषि को अनुत्पादक देहरादून, बिखरी जोतों के कारण मध्य हिमालयी क्षेत्र की कृषि अनुत्पादक बन गई है। नतीजा यह है कि पर्वतीय क्षेत्र में पलायन अत्यधिक बढ़ गया है। स्वैच्छिक चकबंदी के तहत अब तक राज्य के दो गांव कदमताल कर रहे हैं। राज्य सरकार अब इस तरफ सक्रिय होती दिख रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि चकबंदी ही पहाड़ से हो रहे पलायन पर ब्रेक लगा सकती है। राज्य का पर्वतीय क्षेत्र उद्योग शून्य है। गांवों में आय का कोई दूसरा संसाधन भी नहीं है। एक मात्र साधन सीढ़ीनुमा खेतों में कृषि का ही है। इसमें सिर्फ दस प्रतिशत भूमि सिंचित है। ऊपर से अतिवृष्टि, भूस्खलन, ओलावृष्टि और सूखा इस कृषि की कमर तोडऩे के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं। अनुपयोगी कृषि और कोई दूसरा विकल्प न होने के कारण पहाड़ पलायन का गवाह बन रहा है। पहाड़ों में परंपरागत कृषि से हटकर बागवानी, जड़ी-बूटी, फ्लोरीकल्चर जैसी व्यवसायिक गतिविधियों के संचालन को सबसे पहली जरूरत जोतों का एकीकरण है। इसी उद्देश्य से राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के लिए स्वैच्छिक चकबंदी योजना लागू की गई है। इसके तहत राज्य के दो गांव बीफ और खरसाली कदम बढ़ा रहे हैं। राज्य की स्वैच्छिक चकबंदी समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य और चकबंदी के लिए समर्पित गणेश सिंह गरीब कहते हैं कि कृषि एवं गांव संबंधी जितनी भी सरकारी योजनाएं संचालित हो रही हैं, चकबंदी के बिना उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। उनके अनुसार बीस सूत्रीय कार्यक्रम, एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम, जलागम प्रबंध योजना, जवाहर रोजगार योजना, सुखोन्मुख क्षेत्र विकास कार्यक्रम, अंबेडकर ग्राम, गांधी ग्राम, आदर्श ग्राम, हरियाली, आत्मा, हर्टिकल्चर टेक्नालाजी मिशन जैसी तमाम सरकारी योजनाएं चकबंदी के अभाव में अपने परिणाम नहीं दे सकती हैं। श्री गरीब के अनुसार पहाड़ में विकास की कुंजी चकबंदी ही है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि ग्रामीण चकबंदी के लिए तैयार हैं पर सरकारी मशीनरी इसके लिए अपेक्षित कदम नहीं बढ़ा पा रही है। स्वैच्छिक चकबंदी समिति की बैठक में अब ग्राम स्तर पर कमेटी का गठन करने, पंचायतों के तीनों स्तरों पर चकबंदी पर चर्चा शुरू करने और जनता के सुझााव आमंत्रित करने का निर्णय लिया गया है।

Tuesday, 28 July 2009

कारगिल में होने वाले बीरो की याद में

शहीद की चिता मेरा कारगिल में शहीद होना व्यर्थ नही जाएगा मेरी एक एक लहू की बूंद तुझसे हिसाब लेगी ! तारीख गवाह है तू ---- अब अपना कितना भी बचाऊ कर तू, बचनेवाला नही .... क्यूंकि तुने ------- अपने सर कलम की तारीख स्व्यम लिख दी है ! मेरे देश का बच्चा २ हाथो में तिरंगा लेकर तेरे सर कलम करने को निकल पडा है ! याद रख ----------- जैसे जैसे मेरी चिता पर आग की लपटे उठेगी हजारो करोडो ह्रदय में भारत माता के लिए प्यार तेरे लिए नफरत पैदा होगी क्यूँ की --------- ये नफरत की आग तुने लगाई है इसे तो अब तेरे ही रक्त से बुझाना होगा ये तभी बुझेगी ! पराशर गौड़

=नियुक्तियों में बाधक शासनादेश हटेगा

-महकमे की ओर से शिक्षा मंत्रालय को भेजा गया प्रस्ताव -बोर्ड विनियम बनने के बावजूद नियुक्तियों के लिए तरसे सहायताप्राप्त अशासकीय स्कूल देहरादून, : उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड के विनियम बनने के बावजूद सहायताप्राप्त अशासकीय स्कूलों में नियुक्तियों के इस मामले में सरकार का अपना ही आदेश बाधा बना है। मंत्रालय इस बाधा को दूर करने की तैयारी में है। राज्य के सहायताप्राप्त अशासकीय स्कूलों में वर्ष 2005 में नियुक्तियों का रास्ता खोल दिया गया था। राज्य का अपना एक्ट तो था पर बोर्ड विनियम न होने से नियुक्तियों में तकनीकी पेच फंस रहा था। यह बात दीगर है कि पिछली सरकार के कार्यकाल में आनन-फानन में कई स्कूलों में प्रधानाचार्यों व शिक्षकों के रिक्त पदों पर नियुक्तियां कर दी गईं। तकरीबन दो साल बाद वर्ष 2007 में बोर्ड के विनियम न होने का हवाला देते हुए सरकार ने नियुक्तियों पर रोक लगा दी। इससे कई अशासकीय स्कूलों को नियुक्तियों की प्रक्रिया बीच में ही रोकनी पड़ी। अब बोर्ड विनियम को राज्यपाल की मंजूरी मिल चुकी है पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। फिलहाल विनियमों पर शासनादेश भारी पड़ रहा है। तकरीबन 300 से ज्यादा सहायताप्राप्त अशासकीय स्कूलों में तकरीबन एक हजार पद रिक्त हैं। शिक्षकों की कमी से स्कूलों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत के चलते सरकार पर नियुक्तियों को लेकर दबाव है। लिहाजा, नियुक्तियों में बाधा बने शासनादेश को निरस्त करने की तैयारी है। शिक्षा महकमे ने इस बाबत प्रस्ताव मंत्रालय को भेज दिया है। शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गोविंद सिंह बिष्ट अशासकीय स्कूलों में नियुक्तियां जल्द करने का इरादा जाहिर कर चुके हैं। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक नियुक्तियों के लिए शासनादेश जारी करने से पहले प्रस्ताव पर मंत्रालय की मुहर लगनी शेष है। यह कार्य इस माह होने की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक सरकार की कोशिश है कि नियुक्तियों में प्रबंध तंत्र की मनमानी पर लगाम कसे। विनियम में नए प्रावधान के बाद अब इंटरव्यू पर मेरिट का दबदबा रहेगा। इस वजह से नियुक्तियों में भी अब प्रबंधकों का 'फ्री हैंड' नहीं रहेगा। चयन समिति को इंटरव्यू के 25 अंक में 18 से ज्यादा व 10 से कम अंक देने पर लिखित में कारण बताने होंगे। इंटरव्यू के अंक 50 से घटाकर 25 किए गए हैं। मेरिट के आधार पर गुणांक 150 से बढ़ाकर 175 किए गए हैं।

Monday, 27 July 2009

देवीधुरा : पत्थरों से बरसती हैं नेमतें

उत्तराखंड की संस्कृति यहां के लोक पर्व और मेलों में स्पंदित होती है। यूं तो राज्य में जगह-जगह साल भर मेलों का आयोजन चलता रहता है, लेकिन कुछ मेले ऐसे हैं जो अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। कुमांऊ के देवीधुरा नामक स्थान पर लगने वाला बगवाल मेला इन्हीं में एक है, जो हर साल रक्षा बंधन के दिन मनाया जाता है। इस अनूठे मेले की खास विशेषता ये है कि इसमें पत्थरों का रोमांचकारी युद्ध होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग जुटते हैं। चंपावत जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर अल्मोडा-लोहाघाट मार्ग पर बसा देवीधुरा समुद्रतल से करीब 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहीं पर विशाल शिलाखंडों के मध्य प्राकृतिक रूप से बनी गुफा में मां बराही देवी का मंदिर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए संकरी गुफा है। मंदिर के पास ही खोलीखांड दुबाचौड का लंबा-चौडा मैदान है। यहां पर रक्षा बंधन के दिन बगवाल यानी पत्थरों का रोमांचकारी युद्ध होता है। यह खेल लमगडिया, चम्याल, गहरवाल और बालिग खापों के बीच खेला जाता है। इन चारों खापों से जुडे आसपास के गांव के लोग इसमें हिस्सा लेते हैं। पत्थरों के इस रोमांचकारी खेल के पीछे कई लोकमान्यताएं जुडी हैं। इन्हीं के अनुसार प्राचीन काल में मां बराही देवी को प्रसन्न करने के लिए यहां नरबलि देने की प्रथा थी। कहा जाता है कि हर साल इन चारों खापों के परिवारों में से किसी एक सदस्य की बलि दी जाती थी। एक बार एक खाप की बूढी महिला के पोते की बारी आई लेकिन महिला ने अपने पोते की बलि देने से इंकार कर दिया। कहीं देवी कुपित न हो जाए, यह सोचकर गांव वालों ने निर्णय लिया कि बगवाल खेलकर यानी पत्थरों का रोमांचकारी खेल खेलकर एक मनुष्य शरीर के बराबर रक्त बहाया जाए। तभी से नरबलि के प्रतीकात्मक विरोध स्वरूप इस परंपरा को जीवित रखते हुए हर साल रक्षाबंधन के दिन चारों खापों के लोग यहां ढोल नगाडों के साथ पहुंचते हैं और पत्थरों के रोमांचकारी खेल को खेलते हैं। चारों खापों के लडाके युद्ध के मैदान खोलीखांड और दुबाचौड के मैदान में परंपरागत युद्ध पोशाक और छतोलियों को हाथ में लिए ढोल नगाडों के साथ मां बराही के मंदिर में पहुंचते हैं। सबसे पहले इन चारों खापों के योद्धाओं द्वारा मंदिर की परिक्रमा और पूजा-अर्चना की जाती है और फिर मंदिर के लंबे-चौडे प्रांगण में युद्ध के लिए मोर्च पर डट जाते हैं। लमगडिया और बालिग खाप के योद्धा दक्षिण दिशा में होते हैं और गहरवाल और चम्याल खाप के लडाके उत्तर दिशा में होते हैं। पुजारी के शंखनाद के साथ ही बगवाल शुरू हो जाती है और फिर शुरू होता है पत्थरों का रोमांचकारी युद्ध जिसमें लोगों की सांसें थम जाती हैं। युद्ध के दौरान घायल लडाके पत्थरों की चोट को माता का प्रसाद मानते हैं। युद्ध के दौरान मैदान का दृश्य देखने लायक होता है। बांस की बनी छतोलियों से लडाके अपना बचाव करते हैं। इस चोट पर किसी तरह की मरहम पट्टी नहीं की जाती। जिस समय ये रोमांचकारी युद्ध होता रहता है, पुजारी मंदिर में बैठकर मां बराही की पूजा अर्चना करता रहता है। यकायक वह भाववश मैदान में पहुंच शंखनाद करता है और पुजारी के शंखनाद के साथ ही पत्थरों के इस रोमांचकारी खेल को रोक दिया जाता है। इसके बाद चारों खापों के योद्धा आपस में गले मिलते हैं। इससे पहले सुबह मंदिर में मां वराही की प्रतिमा को को चारों खाप के लोग नंदगृह ले जाते हैं, जहां पर मूर्तियों को दूध से नहलाया जाता है और नए परिधानों से सुसज्जित किया जाता है। सामान्य दिनों में यह प्रतिमा तांबे के बक्से में विराजमान रहती है जिसके एक खाने में मां काली और एक खाने में मां सरस्वती की मू्र्ति भी रखी गई हैं। हर साल रक्षा बंधन के दिन पत्थरों के इस रोमांचकारी खेल को देखने के लिए हजारों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इनमें विदेशी पर्यटकों की तादाद भी होती है। यह मेला पर्यटन का स्वरूप लेता जा रहा है। अब मेले से पहले एक हफ्ते तक देवीधुरा में विभिन्न स्टाल आदि लगाए जाते हैं। रंगारंग कार्यक्रम चलते रहते हैं जिनमें उत्तराखंड की संस्कृ्ति के दर्शन देखने को मिलते हैं। यह सारा इलाका धार्मिक रूप से जितना प्रसिद्ध है, प्राकृतिक रूप से उतना ही सुंदर है। यही वजह है कि लोकपरंपराओं से जुडे इस अनूठे मेले को देखने श्रद्धालु तो पहुंचते ही हैं, साथ ही साथ प्रकृति प्रेमी भी यहां आना नहीं भूलते। कैसे पहुंचे यहां पहुंचने के लिए आप बस या रेल मार्ग का सहारा ले सकते हैं। अगर आप रेल से आना चाहें तो देश के किसी भी कोने से आप टनकपुर या काठगोदाम पहुंच सकते हैं। टनकपुर और काठगोदाम सीधी रेल सेवा से जुडे हैं। उसके बाद इन दोनों स्थानों से देवीधुरा की दूरी तकरीबन 150 किलोमीटर है।

कारगिल दिवस::जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी

विजय दिवस के अवसर पर उत्तराखंड के वीरों को शत शत नमन आज से दस साल पहले पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारतीय क्षेत्र में घुस कर कई महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इन स्थानों को दुश्मनों से छुड़ाने के लिए आपरेशन कारगिल शुरू किया गया। इसमें उत्तराखंड के 75 सैनिकों ने अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय देते हुए देश की आन बान और शान बचाने को सर्वोच्च बलिदान दिया और यहां तिरंगा फहराया। सरकार ने आपरेशन विजय और शहीदों की याद में 26 जुलाई को विजय दिवस मनाने का निर्णय लिया। विजय दिवस के अवसर पर उत्तराखंड के वीरों को शत शत नमन दून के अमर शहीद 1. मेजर विवेक गुप्ता, महावीर चक्र देहरादून के वसंत विहार निवासी ले. कर्नल (रिटायर्ड) बृजमोहन गुप्ता के घर 1970 में पुत्र रत्न ने जन्म लिया। जो आगे चलकर देश के अमर शहीदों की जमात में शामिल हुआ। विवेक गुप्ता ने 13 जून 1992 में द्वितीय राजपूताना रेजिमेंट में शामिल हुए। कारगिल में आपरेशन विजय के दौरान 12 जून 1999 को मेजर विवेक गुप्ता ने तोतोलिंग चोटी को पाक घुसपैठियों से मुक्त कराते हुए कई दुश्मनों को मौत के घाट उतार देश के लिए मात्र 29 वर्ष की आयु में अपने प्राण न्योछावर किए। इस वीरता और अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया। 2. स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर 28 अप्रैल 1962 में ग्राम बड़ोवाला में ठाकुर राजपाल सिंह व हेमवती पुंडीर के घर इस वीर सपूत का जन्म हुआ। उन्होंने 1979 में राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी में प्रवेश कर सैन्य जीवन की शुरुआत की। शहीद पुंडीर एक बेहतरीन पायलट होने के साथ एक कुशल खिलाड़ी, गायक व संगीत प्रेमी थे। आपरेशन विजय के दौरान शत्रुओं की गतिविधियों की जानकारी लेने के लिए उन्होंने उड़ान भरी। वह दुश्मनों के क्षेत्र में उनकी गतिविधियों का जायजा ले ही रहे थे कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने मिसाइल से उनके हेलीकाप्टर पर धावा बोल दिया। इसकी चपेट में आने से उत्तराखंड का लाडला देश के लिए अपनी आहुति दे गया। 3. नायक बृजमोहन देहरादून के ग्राम तुनवाला में 1 जून 1975 में माधो सिंह नेगी के घर भारत मां के इस वीर सपूत का जन्म हुआ। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा समाप्त करने के बाद बृजमोहन 9 पैरा कमांडों में भर्ती हो गया। मई 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान वह कश्मीर में जाकर मोर्चे पर डट गए। 1 जुलाई को पाकिस्तानी घुसपैठियों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए भारत मां का लाडला बृजमोहन मात्र 24 वर्ष की युवावस्था में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे गया। मरणोपरांत शहीद बृजमोहन को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। 4. रायफलमैन नरपाल सिंह पट्टी मालकोट में सुरेंद्र सिंह के घर 1 जुलाई 1969 में नरपाल सिंह का जन्म हुआ। बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह गढ़वाल रायफल में भर्ती हो गए। करगिल में आपरेशन विजय के दौरान उन्हें द्रास सेक्टर में मोर्चे पर जाने का हुक्म मिला। उत्तराखंड का वीर अपने साथियों के साथ द्रास सेक्टर से दुश्मनों की खदेडऩे मे जुट गया। 29 जून 1999 को उत्तराखंड के इस वीर सपूत ने अपने साथी को बचाते हुए गोलियों से छलनी हो गया। मरणोपरांत उन्हें सेना ने अनेक पदकों से सम्मानित किया। 5. रायफलमैन रमेश कुमार थापा देहरादून के इस लाडले ने वर्ष 1976 में अनारवाला निवासी सर्वजीत थापा के घर जन्म लिया। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा प्राप्त करने के बाद वह 5/3 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए। आपरेशन विजय के दौरान उनकी यूनिट को 32 राष्ट्रीय रायफल के साथ लगाया गया। 5 जुलाई 1999 के दिन कारगिल में दुश्मनों को खदेड़ते हुए दून का यह जांबाज सिपाही देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया। 6. नायक कृष्ण बहादुर भारत के इस वीर सपूत का जन्म 24 जून 1964 में सेलाकुई निवासी मोहन सिंह थापा के घर हुआ था। हाई स्कूल पास करने के बाद वह 4/3 गोरखा रेजिमेंट में भर्ती हो गए। आपरेशन विजय के दौरान बटालिक सेक्टर को मुक्त कराते हुए 11 जुलाई 1999 में वीरगति को प्राप्त हुए। 7. रायफलमैन जयदीप सिंह भंडारी शहीद जयदीप सिंह भंडारी का जन्म 15 जनवरी 1978 को नेहरूग्राम निवासी बचन सिंह भंडारी के घर हुआ। इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर वह 17 गढ़वाल रायफल में भर्ती हो गए। उन्हें निशानेबाजी व बाक्सिंग का शौक था। बाक्सिंग के लिए उन्होंने कई मैडल भी जीते। आपरेशन विजय के दौरान उन्हें बटालिक सेक्टर की जुबार हिल से शत्रुओं को खदेडऩे का हुक्म मिला। कई दिनों तक घुसपैठियों से लोहा लेते हुए तीस जून का उत्तराखंड का यह जांबाज वीरगति को प्राप्त हुआ। वह मात्र 21 वर्ष की आयु में भारत मां की गोद में चिरनिद्रा के लिए समा गए। 8. लांस नायक शिव चरण शहीद शिवचरण प्रसाद का जन्म 12 मई 1973 को अनारवाला निवासी सदानंद के घर हुआ। बीए की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद व सेना में भरती हो गए। आपरेशन विजय में मश्को घाटी में दुश्मनों से लोहा लेते हुए 6 जुलाई को उत्तराखंड के इस वीर सपूत ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। 9. राजेश गुरूंग अमर शहीद राजेश गुरूंग का जन्म 1975 को चांदमरी, घंघोड़ा निवासी श्याम सिंह गुरूंग के घर राजेश गुरूंग का जन्म हुआ। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे सेना में भर्ती हो गए। आपरेशन विजय के दौरान नागा रेजीमेंट को कारगिल भेजा गया। इस दौरान दुश्मनों से मुकाबला करते हुए 6 जुलाई को उत्तराखंड के इस वीर सपूत ने वीरगति प्राप्त की। 10. तेंगजिंग नमखा कारगिल शहीद तेंगजिंग नमखा का जन्म विकासनगर निवासी नोरबू थुंडुप के घर 1979 में हुआ था। सातवीं परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे सेना में भर्ती हो गए। कारगिल युद्ध के दौरान व अपनी कंपनी के साथ तुरतुक सैक्टर में मोर्चे पर डट गए। 19 जुलाई को यह शेर मातृभूमि की रक्षा करता हुआ देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गया। 11. जय सिंह नेगी, अमर शहीद जय सिंह नेगी का जन्म नया गांव मल्हान निवासी शिवराज सिंह नेगी के घर 20 दिसंबर 1977 में हुआ था। 12 की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद व गढ़वाल रायफल्स में भर्ती हो गए। आपरेशन विजय के दौरान मस्कोह घाटी में दुश्मनों से लोहा लेते 7 जुलाई 1999 को भारत मां के इस लाड़ले ने तिरंगा फहराने के लिए देश के सर्वोच्च बलिदान दिया। दून के अन्य शहीदों में 12. नायक मेख बहादुर गुरूंग, निवासी डाकरा कैंट, देहरादून 13.कैलाश कुमार, ग्राम डांडी, रानीपोखरी देहरादून 14. देवेंद्र सिंह, शांति विहार, गढ़ी कैंट, देहरादून 15. संजय गुरूंग, ग्राम नवादा, देहरादून 16. जिगमे सोनम, तिब्बत कालोनी, सहस्त्रधारा रोड, देहरादून 17. नायक विजय सिंह भंडारी, प्रेमनगर 18.नायक कश्मीर सिंह वीर चक्र, सप्लाई डिपो देहरादून शेष स्थानों से कितने हुए शहीद पौडी - नायक मंगत सिंह - रायफलमैन मान सिहं - लांस नायक मदन सिंह - रायफलमैन कुलदीप सिंह - नायक धर्म सिंह चमोली - हवलदार पदम राम - रायफलमैन सतीश चंद - रायफलमैन रंजीत सिंह - नायक दिवाकर सिंह - लांस नायक कृपाल सिंह - नायक हीरा सिंह - सिपाही हिम्मत सिंह - नायक आनंद सिंह रुद्रप्रयाग - रायफलमैन भगवान सिंह - नायक गोविंद सिंह - नायक सुनील दत्त टिहरी - रायफलमैन दलबीर सिंह - रायफलमैन विरेंद्र लाल - लांस नायक दिनेश दत्त - रायफलमैन बिक्रम सिहं - नायक शिव सिंह - सिपाही सुंदर सिंह - रायफलमैन राजेंद्र सिंह - नायक जगत सिंह - रायफलमैन बिजेंद्र सिंह - सुबेदार प्रताप सिंह - नायक सुबाब सिंह - रायफलमैन दिलवर सिंह लैंसडाउन - नायक हरेंद्र सिंह - लांस नायक सुरमन सिंह - रायफलमैन डबल सिंह - नायक अनिल सिंह - लांस नायक देवेंद्र प्रसाद - नायक ज्ञान सिंह - नायक सुरेंद्र सिंह - हवलदार मदन सिंह - रायफलमैन बलबीर सिंह नेगी - नायक भरत सिंह - सिपाही भरत सिंह - रायफलमैन अनसुया प्रसाद ध्यानी

Saturday, 25 July 2009

उल्लास ही नहीं, विरह की पीड़ा भी है सावन में

सौंणा का मैना ब्वै कनकै रैणा, कुयेड़ी लौंकलि, जिकुडि़ झूरलि, अंधेरी रात बरखा कु झमणाट, खुद तेरी लागालि (मां, सावन के महीने में कैसे रहूंगी। बारिश की झड़ी के बीच चारों ओर कोहरे की चादर पसरी हुई है। ऐसे में दिल बेहद उदास है और रह-रह कर मायके याद सताएगी।) सावन का एक भाव यह भी है। एक ओर जहां सावन में चारों तरफ हरीतिमा बिखरने से उल्लास का भाव होता है, वहीं उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र की विषम परिस्थितियां मन को उदास कर देती हैं। इसीलिए सावन को खुदेड़ महीना भी कहा गया है और पहाड़ के लोकगीतों में इसे बखूबी जगह मिली है। पहाड़ में चातुर्मास के शुभारंभ सावन में मानसूनी फुहारें पड़ने के बाद हर तरफ हरियाली ही हरियाली है। कोहरे की सफेद चादर से ढके पहाड़ व जंगल, नदी-नालों का शोर, चारों ओर नजर आते बरसाती झरने और जगह-जगह फूटे जलस्रोत। सावन में पहाड़ में प्रकृति की यह अनुपम छटा देखते ही बनती है। ऐसे में हर कोई प्रकृति के इस सृजनकाल से रूबरू होना चाहेगा, लेकिन इस परिदृश्य के बीच विषम परिस्थितियों वाले पहाड़ में सावन का दूसरा पहलू भी है। वह है खुद, बिछोह और अभाव। दरअसल, वन प्रांत के लोग ज्यादा उत्सवधर्मी होते हैं। ममता जब उत्कर्ष पर होती है, तब जीवन मेंथोड़ा-सा भी अभाव खुद (याद) के रूप में सामने आता है। पहाड़ भी इससे अछूता नहीं है। एक दौर में पहाड़ का जीवन घोर अभावग्रस्त था। आज के जैसे आवागमन के साधन व सुविधाएं भी नहीं थीं। वर्षाकाल में पैदल रास्ते बंद हो जाते थे। बिछोह भी कम नहीं था। बेटी को मायके संदेश भेजना हो तो रैबारी पर निर्भर रहना पड़ता था। ऐसे में सावन की घनघोर घटाएं अभाव से आशंकित मन को उदास कर देती थीं। सावन में पहाड़ के इस दर्द को लोकगीतों में खासा महत्व मिला। न सिर्फ सावन, बल्कि चातुर्मास का खाका रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में बखूबी खींचा है। इसकी बानगी देखिए-बरखा चौमासी, बण घिरि कुयेड़ी, मन घिरि उदासी..(चातुर्मास की बारिश, वनों में कोहरा घिर रहा है तो मन में उदासी)। ऐसे दर्जनों लोकगीत हैं, जिनमें सावन के इस पक्ष का बखूबी चित्रण है। कवि गणेश खुगशाल गणी एवं साहित्यकार डा.कुटज भारती कहते हैं कि पर्वतीय समाज में बिछोह ज्यादा है। पहले अभाव भी काफी अधिक था। फिर पहाड़ के लोग एक-दूसरे के प्रति अगाध स्नेह रखते हैं। ऐसे में समय, स्थान और वातावरण के चलते खुद की व्युत्पति होती है। सावन में जब थोड़ा सा अभाव होता था तो एक-दूसरे के प्रति स्नेह खुद के रूप में सामने आ जाता। यही वजह है कि गीतों के रूप में आई इस खुद को लोकगीतों में जगह मिली है।

कैबिनेट हल करेगी पत्राचार बीटीसी का मसला

देहरादून। पत्राचार बीटीसी को राजकीय सेवाओं के लिए मंजूरी के मामले में कैबिनेट फैसला करेगी। यही नहीं, सरकार ने तदर्थ शिक्षा बंधुओं के विनियमितीकरण से इंकार कर दिया है। विधायक ओम गोपाल रावत के सवाल के लिखित जवाब में सरकार ने स्वीकारा कि पत्राचार बीटीसी राजकीय सेवाओं के लिए मान्य करने के लिए मंत्रिमंडलीय उप समिति ने 27 नवंबर, 2006 के शासनादेश में संशोधन की संस्तुति की है। शिक्षा राज्यमंत्री गोविंद सिंह बिष्ट के मुताबिक संस्तुति के बारे में फैसला कैबिनेट करेगी। गोपाल सिंह रावत के सवाल के जवाब में मंत्री ने बताया कि राजकीय तदर्थ शिक्षक महासंघ अस्तित्व में नहीं है। अलबत्ता, शिक्षा बंधुओं का विनियमितीकरण संबंधी मांग पत्र मिला है। उमादेवी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते तदर्थ शिक्षा बंधुओं का विनियमितीकरण संभव नहीं है। सरकार ने बीते सत्र में 1748 शिक्षकों के तबादले किए। इनमें गढ़वाल के 1086 व कुमाऊं के 662 शिक्षक शामिल हैं। वर्ष 2008-09 की स्थानांतरण नीति घोषित होने से पहले 76 शिक्षकों के तबादले किए गए। तबादले उच्चस्तरीय अनुमोदन के बाद किए गए। उन्होंने बताया कि एलटी विज्ञान-गणित विषय के 43 शिक्षकों के विषय संयोजन असंगत हैं। विधायक नारायण पाल के सवाल के जवाब में राज्यमंत्री ने बताया कि विद्यालय भवनों के नव निर्माण व रखरखाव के लिए 58 अवर अभियंता कार्यरत हैं।

बिनहार बना पिछड़ा क्षेत्र

रायसिखों को एससी का दरजा देने की सिफारिश देहरादून का बिनहार क्षेत्र (विकासनगर के करीब) पिछड़ा घोषित कर दिया गया। आज विधानसभा में इससे संबंधित प्रस्ताव पारित हो गया। रायसिखों को अनुसूचित जाति का दरजा देने के लिए पेश सरकार का संकल्प भी पारित कर दिया गया।संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने प्रस्ताव और संकल्प पेश किए। बिनहार के पिछड़ा क्षेत्र घोषित होने के बाद अब इसके नोटिफिकेशन का कार्य रह गया है। उसका परिसीमन भी होगा। रायसिखों से संबंधित प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। केंद्र की मंजूरी के बाद ही उन्हें यह दरजा हासिल होगा। सदन में विशेषाधिकार हनन से संबंधित दो मामले उठे। कांग्रेस के किशोर उपाध्याय ने मु2यमंत्री के खिलाफ और कांग्रेस के ही प्रणव सिंह चै6िपयन ने कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक के खिलाफ मामले उठाए। स्पीकर हरबंस कपूर ने दोनों ही ठुकरा दिए।

महाकुंभ की तैयारियां

हरिद्वार महाकुंभ आयोजन की व्यवस्थाओं में चल रहे विलंब को लेकर मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक का नाखुश होना लाजिमी है। संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक में उन्होंने अपना रोष जाहिर कर ही दिया। यह उचित भी है, आखिर आस्था का इतना बड़ा महापर्व है। इसमें करोड़ों लोगों का हरिद्वार आगमन होगा। इनकी मौलिक जरूरतें पूरी करने के लिए समुचित व्यवस्थाएं करना कोई हंसी खेल नहीं है। थोड़ी से भी अव्यवस्था विकट समस्या ला खड़ी करती है। आवागमन, आवास, स्वास्थ्य, स्नान, सुरक्षा, परिवहन आदि की व्यवस्थाएं किसी जादू की छड़ी से नहीं हो सकतीं। इनके लिए वर्षों पूर्व से तैयारियां करनी पड़ती हैं। यूं तो शासन पहले से ही इस बारे में सचेष्ट है और कई योजनाओं पर कार्य चल रहा है। इनके लिए बजट जारी किया जा चुका है, लेकिन इन योजनाओं पर जिस गति के साथ काम किया जाना चाहिए था, वह तेजी नजर नहीं आ रही है। महाकुंभ के लिए अब ज्यादा समय भी शेष नहीं है। कोई भी स्नान पर्व आने पर ही हरिद्वार की हालत अस्त-व्यस्त हो जाती है, आस्था के सैलाब के आगे पुलिस एवं प्रशासन ढीला पड़ जाता है। फिर महाकुंभ तो इतना बड़ा पर्व है। इसके लिए व्यवस्थाएं करने में किसी भी तरह की ढील सहन नहीं की जा सकती। मुख्यमंत्री ने जिन व्यवस्थाओं के संबंध में निर्देश दिये हैं, वे तो अनिवार्य आवश्यकता हैं ही, इनके अलावा भी तमाम तरह की जरूरतें हैं, जिनके लिए व्यवहारिक व्यवस्थाएं करनी होंगी। कुछ ऐसी व्यवस्थाएं हैं, जो दूसरे राज्यों से समन्वय स्थापित कर ही की जा सकती हैं, इनमें भी तेजी लानी होगी। तात्पर्य यह कि इस आयोजन के लिए दूरदृष्टि की नितांत आवश्यकता होगी। अधिकारियों को शासन के निर्देश समझाने चाहिए और द्रुत गति से योजनाओं के क्रियान्वयन पर ध्यान देना चाहिए। समय कम बचा है, लेकिन कार्य तमाम शेष हैं। पृथक उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आने के बाद हरिद्वार में पडऩे वाला यह पहला महाकुंभ है। इस परिप्रेक्ष्य में इसे एक तरह से चुनौती के रूप में लेना चाहिए। सभी संबंधित विभागों को चाहिए कि बेहतर समन्वय स्थापित कर योजनाओं को इस तरह पूरी करें कि महाकुंभ सकुशल संपन्न हो और उत्तराखंड को सुव्यवस्था करने वाले राज्य के रूप में जाना जाए।

उत्तराखंडी बाघों के पूर्वजों का चलेगा पता

विष्ठा पर पड़ी झिाल्ली के जरिए होगी जेनेटिक कोडिंग -बाघ बचाने में भी मदद मिलेगी -राज्य में रहने वाले बाघों के मूल का भी पता चलेगा देहरादून: उत्तराखंड में अब उत्तराखंडी बाघों के पूर्वजों के बारे में पता लगाने की कवायद शुरू की गई है। बाघों के जेनेटिक कोडिंग के जरिए एक तो उनके मूल निवास का पता चलेगा, दूसरे अस्तित्व के लिए किए जा रहे उनके संघर्ष के बारे में भी सही जानकारी मिल सकेगी। इसी दृष्टिकोण से वन विभाग बाघों की जेनेटिक मैपिंग की योजना शुरू करने जा रहा है। वन क्षेत्र और वन्य जीवन के हिसाब से उत्तराखंड एकदम अनूठा प्रदेश है। यहां साठ प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा वन क्षेत्र है। इसमें यूं तो कई वन्य जीव निवास करते हैैं, लेकिन उनमें भी बाघ यानी टाइगर की अपनी शान है। जिम कार्बेट नेशनल पार्क व उससे सटे हुए हिस्से तो खासतौर पर बाघ के लिए ही देश-विदेश में जाने जाते हैैं। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में कुल 178 बाघ हैैं। इनमें से ज्यादातर जिम कार्बेट और उसके बफर जोन में निवास करते हैैं। हालांकि बाघों की आवाजाही के चिन्ह प्रदेश के अन्य वनों में भी मिलते रहे हैैं। राजाजी नेशनल पार्क में भी बाघों का मूवमेंट रहता है। यद्यपि स्थाई तौर पर निवास करने वाले बाघों की संख्या यहां पर कम ही है। वन्य जीव अंगों के तस्करों के शिकार और प्राकृतिक वासों के नष्ट होने के चलते इनके उत्तराखंड में भी इनके अस्तित्व पर संकट छाया हुआ है। संकट से उबरने के लिए वन विभाग ने एक नई पहल शुरू की है। विभाग बाघों की जेनेटिक मैपिंग करने जा रहा है। इसके जरिए बाघों की शारीरिक संरचना के साथ ही उनके पूर्वजों के बारे में भी जानकारी मिलेगी। अपर प्रमुख वन संरक्षक व मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला के मुताबिक बाघों की जेनेटिक कोडिंग के लिए उनके शरीर के किसी हिस्से की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि इसके लिए एक खास तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। वन्य जीवों के मल के ऊपर सामान्य तौर पर एक झिाल्ली पाई जाती है। इसी झिाल्ली से उनके जीनों का पता लगाया जा सकता है। श्री चंदोला के मुताबिक हैदराबाद की एक संस्था के साथ बाघों की जेनेटिक कोडिंग की बात चल रही है। इसके प्राथमिक नतीजे छह माह के अंदर आ जाएंगे। बाघों की जेनेटिक कोडिंग को उनके अस्तित्व बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण मानते हुए उनका कहना है कि कुछ दिनों पहले रणथंभौर के बाघों की जेनेटिक कोडिंग की गई तो पता चला कि उनमें कुछ जीन साइबेरियाई टाइगर्स के भी हैैं। यानी रणथंभौर के बाघ साइबेरिया से माइग्रेट हुए हो सकते हैैं। ऐसी स्थिति में किसी आपात स्थिति में वहां के बाघों के सर्द वातावरण में सर्वाइव करने की संभावना ज्यादा है।

ढाबों में काम करने वाले बनेंगे टूरिज्म प्रोफेशनल

-पर्यटन व्यवसायियों की कार्यकुशलता बढ़ाने को मिलेगा निशुल्क प्रशिक्षण -पर्यटकों के अतिथि-सत्कार से लेकर मैनेजमेंट के गुर भी सीखेंगे कामगार -केंद्रीय वित्त पोषित योजना पर टिकी पर्यटन विकास परिषद की निगाहें सुभाष भट्ट, देहरादून प्रदेश के पर्यटन विकास परिषद की कोशिशें परवान चढ़ीं, तो पहाड़ी सूबे के होटलों व ढाबों में मेहनत करने वाले कामगार भी कुछ हद तक 'टूरिज्म प्रोफेशनल' बन जाएंगे। पर्यटन से जुड़े संगठित व असंगठित क्षेत्र के कामगारों की क्षमता विकास के मद्देनजर पर्यटन विकास परिषद एक ठोस कार्ययोजना बनाने जुटा है। मंशा यह है कि पर्यटन व्यवसाय से किसी न किसी रूप में जुड़े लोगों को कुछ ऐसा प्रशिक्षण दिया जाए, कि वे अपने अच्छे व्यवहार व बेहतर सेवाओं के बूते पर्यटकों का दिल जीतने में कामयाब तो हों ही, साथ ही पर्यटन व्यवसाय को पहाड़ी सूबे की आर्थिक रीढ़ बनाया जा सके। प्रदेश में पर्यटन से जुड़े संगठित व असंगठित क्षेत्र के कामगारों व कार्मिकों को व्यवहारिक तौर पर प्रशिक्षित करने के लिए पर्यटन विकास परिषद की निगाहें केंद्रीय वित्त पोषित 'कैपेसिटी बिल्डिंग फॉर सर्विस प्रोवाइडर्स' योजना पर टिकी है। गत वर्षों के शुरुआती अनुभव के बाद परिषद आगामी वर्ष के लिए भी प्रशिक्षण कार्यक्रमों की कार्ययोजना तैयार कर रहा है। इसमें पर्यटन विभाग के उपक्रम गढ़वाल मंडल विकास निगम व कुमाऊं मंडल विकास निगम के साथ-साथ अन्य संस्थाओं को भी शामिल किया जाएगा। दोनों निगमों के अलावा फॉरेस्ट ट्रेनिंग एकेडमी, नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, भारतीय वन्यजीव संस्थान व पुलिस महकमे से प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रस्ताव मांगे गये हैं। योजना के तहत पर्यटक स्थलों व चारधाम यात्रा मार्गों पर संचालित होटलों-ढाबों, वाहन चालक-परिचालक, टूर ऑपरेटर्स, ट्रैवल्स एजेंटों, कुली-पोर्टर्स, राफ्टिंग कंपनियों के कार्मिकों समेत वन विभाग व पुलिस महकमे के कर्मचारियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण खासतौर पर बेहतर सत्कार व बेहतर सेवाएं देने पर केंद्रित होगा। साथ ही, पर्यटन क्षेत्र में सेवारत कामगारों की कार्यकुशलता व क्षमता विकास, इको-टूरिज्म के प्रति जागरूकता, हाई एल्टिट्यूड माउंटेन गाइड, हास्पिटेलिटी ट्रेनिंग, वाइल्ड लाईफ टूरिज्म, रिवर गाइड ट्रेनिंग जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल किए जाएंगे। पर्यटन विकास परिषद के संयुक्त निदेशक एके सिंह कहते हैं कि इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों के जरिए ऐसे अशिक्षित लोगों को भी प्रोफेशनल बनाया जा सकेगा, जो पर्यटन क्षेत्र में रोजगार से जुड़े हैं। योजना के मसौदे को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। उच्चाधिकारियों की संस्तुति के बाद प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया जाएगा। --- योजना के तहत प्रस्तावित प्रशिक्षण कार्यक्रम: -स्किल डेवलपमेंट फॉर सर्विस प्रोवाइडर्स -इको-टूरिज्म एवेयरनेस एंड ऑपरेशनल ट्रेनिंग -हाई एल्टिट्््यूड माउंन्टेन गाइड कोर्स -टूरिज्म एवेयरनेस प्रोग्राम फॉर नान-आर्गेनाईज्ड सेक्टर -हास्पिटेलिटी ट्रेनिंग प्रोग्राम -स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम फॉर पुलिस स्टॉफ -नेचर गाइड ट्रेनिंग प्रोग्राम -बर्ड वाचिंग कैम्पस -वाइल्ड लाईफ टूरिज्म वर्कशॉप -रिवर गाइड ट्रेनिंग कोर्स

'टाई मैच' में निशंक और हरक निखरे

-विस अध्यक्ष हरबंस कपूर की कोशिश भी रंग लाई -नई टीम में पुराने खिलाड़ी प्रकाश पंत संभालते रहे पारी -बिखरी रही बसपा की टीम, सुर-ताल में नहीं दिखा उक्रांद -युवा विधायकों ने दिखाए तेवर, होमवर्क की कमी दिखी देहरादून: बदले सियासी हालात में 'टीम निशंक' ने विधानसभा के बजट सत्र की पारी में मिला-जुला प्रदर्शन किया। मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने अपनी सूझाबूझा, प्रतिभा तथा संसदीय क्षमता का बखूबी परिचय दिया तो नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने सरकार को जनता के पैमाने पर कसने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर की कोशिश से सदन में नई परिपाटी प्रारम्भ हुई। सदन में बसपा बंटी रही, जबकि उक्रांद सदस्य पूरे रंग में नहीं दिखे। संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत नाजुक मौके पर पारी को संभालने की स्थिति में ही रहे। यह जरूर है कि कई मौकों पर सदस्यों संसदीय परंपराओं को नजरअंदाज भी किया गया। विधानसभा का बजट सत्र दस दिन चला। आखिर के दो दिन छोड़ दें तो सत्र ठीकठाक ढंग से चला। मौसम की तरह बदलती सियासत तथा लोकसभा चुनाव की छाया सत्र में पूरी तरह दिखाई दी। मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक का बजट की तैयारी का होमवर्क शानदार रहा। डा. निशंक की हालांकि सदन में मौजूदगी कम रही पर जिस तरह सवालों पर उनका स्पष्टीकरण आया, उससे विपक्ष के सदस्य भी बगलें झाांकते नजर आए। विरोधियों के हर तीर का सम्मान और सधा हुआ जवाब देकर सीएम ने इस पहली परीक्षा में बेहतर परफार्मेंस दी। नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत का पौने तीन घंटे का बजट भाषण इतना रोचक रहा कि सदन में सत्तापक्ष के लोग हंसते भी रहे और फंसते भी रहे। राज्य के सम-सामयिक विषयों पर अपना दृष्टिकोण ठोस तर्कों के साथ प्रस्तुत किया। नेता प्रतिपक्ष ने हर विषय की गंभीरता से सरकार को आगाह करने के साथ ही मार्गदर्शक के रूप में विपक्ष की भूमिका में खरा उतरने का प्रयास किया। बसपा के विधायक जरूर 'आत्मघाती गोल' करते रहे। जब बसपा कोई मुद्दा उठाती तो दो विधायक काजी निजामुद्दीन व चौधरी यशवीर के सुर बिलकुल अलग हो जाते। इससे बसपा की स्थिति सदन में असहज बनी रही। उक्रांद के दो विधायकों ने सदन में अनेक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की। एक विधायक तो विपक्ष के साथ वेल तक में घूम आए। इसके बाद भी उक्रांद कोटे के मंत्री दिवाकर भट्ट रंग में नहीं दिखें। विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर ने नियम-310 की परिपाटी में बदलाव कर सदस्यों को बड़ी सुविधा दी। सभी सदस्यों को अपनी बात कहने का पर्याप्त समय ही नहीं दिया, बल्कि सदन के बेहतर संचालन में पूरी कार्यकुशलता दिखाई। युवा विधायकों को भी भरपूर मौके मिले। सत्तारूढ़ दल भाजपा में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने समय-समय पर सूझाबूझा दिखाई। लडख़ड़ाती पारी को संभालने की कोशिश में उन्हें काफी ताकत लगानी पड़ी। सवालों पर घिरे मंत्रियों ने फिर साबित किया कि उन्हें होमवर्क करने की आदत ही नहीं है। नए मंत्रियों में गोविंद सिंह बिष्ट की परफार्मेंस बेहतर रही। कुल मिलाकर दस दिन सदन ठीक चला। दो दिन हंगामे के चलते कार्यवाही बाधित हुई। विपक्ष ने दबाव बनाने की कोशिश में सदन में सरकार को घेरने का मौका हाथ से जाने दिया। हां, एक विधायक को धमकी के मसले पर ही सदन का दो दिन तक बाधित रहना कई सवालों को जन्म दे गया।

Wednesday, 22 July 2009

-उत्तराखंड के प्रो.सजवाण को अमेरिका का राष्ट्रपति सम्मान

देहरादून, उत्तराखंडी मूल के प्रोफेसर केनेथ एस. सजवाण को हाल में अमेरिका का यानी प्रेजिडेंशियल अवार्र्ड फॉर एक्सीलेंस देने की घोषणा की गई है। यह सम्मान उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवा एवं कार्य के लिए दिया गया है। इसके तहत 10 हजार डॉलर का पुरस्कार दिया जाता है। व्हाइट हाउस ने प्रो. सजवाण के साथ ही 100 अमेरिकियों को यह अवार्ड देने की घोषणा की है। अल्मोड़ा जिले के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल रानीखेत में जन्मे प्रो. केनेथ एस. सजवाण अमेरिका के जार्जिया प्रांत के सवान्नाह स्थित सवान्नाह विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर व निदेशक हैैं। प्रो. सजवाण ने पंतनगर स्थित गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय से कृषि एवं पशुपालन में विज्ञान स्नातक की उपाधि लेने के बाद दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एग्रोनोमी में एमएससी किया। आईआईटी खडग़पुर से पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी में पीएचडी के बाद वह अमेरिका चले गए। प्रो. सजवाण ने वहां आर्मस्ट्रांग अटलांटिक स्टेट यूनिवर्सिटी से पब्लिक हेल्थ में एमएससी किया और कोलेरैडो स्टेट यूनिवर्सिटी से मृदा रसायन व पर्यावरण गुणवत्ता विषय में पीएचडी की है।

आयुर्वेद के प्रति बढऩे लगा है लोगों का क्रेज

ऐलोपैथी छोड़ जड़ी-बूटियों की शरण में आ रहे लोग उत्तराखंड में हैं औषधीय और सगंध पादपों की अपार संभावनाएं गोपेश्वर भारतीय परंपराओं में जड़ी-बूटियों का प्राचीन काल से ही विशेष महत्व रहा है। आयुर्वेद में जटिल से जटिल रोगों का भी इलाज बताया जाता है। दुनिया भर के लिए भारतीय वेद साहित्य व अन्य ग्रंथों में वर्णित औषधीय गुणों वाले पादप शोध का विषय रहे हैं। विडंबना ही रही कि औषधीय जानकारी का भंडार होने के बावजूद हमने इस ओर कभी ध्यान तक नहीं दिया, जबकि विदेशों में हमारी हल्दी तक का पेटेंट करा लिया गया। अब देर से ही सही, लेकिन लोग आयुर्वेद की ओर लौटने लगे हैं। जहां तक उत्तराखंड का सवाल है, तो यहां कई तरह के औषधीय पादप मौजूद हैं, लेकिन दोहन पर नियंत्रण न होने के कारण कई प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंचने लगी हैं। अगर समय रहते इस ओर ध्यान न दिया गया, तो हम कुदरत व आयुर्वेद की कई नेमतों से हाथ धो बैठेंगे। शहरीकरण व पाश्चात्य पद्धतियों के अंधानुकरण में हमने पारंपरिक औषधीय ज्ञान को गंवा दिया। छोटी-छोटी बीमारी पर भी ऐलोपैथिक दवाओं पर निर्भर रहने से घरेलू नुस्खों का प्रयोग नहीं किया गया। अंग्रेजी दवाओं ने रोगों से स्थायी छुटकारा तो दिलाया नहीं, जेब पर बोझा बढ़ा दिया और साथ ही शरीर पर समांतर दुष्प्रभाव भी छोड़ दिए। यही वजह है कि अब लोग चिर स्वस्थ रहने को फिर से आयुर्वेद की छांव में लौटने लगे हैं। जनसाधारण का ध्यान प्राकृतिक चिकित्सा पद्वति की ओर आकर्षित हो रहा है और जड़ी बूटियां पुनप्र्रतिष्ठित हो रही हैं। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हर्बल उत्पादों पर जोर दिया जा रहा है। उत्तराखंड की बात करें, तो पौराणिक आख्यानों के मुताबिक यहां प्राचीनकाल में औषधि निर्माण किया जाता था। यहां की वानस्पतिक प्रजातियों के औषधीय गुणों से प्रभावित होकर ही महर्षि चरक ने लिखा था कि 'हिमनौषधि: भूमीनाय श्रेष्ठय' यानी हिमालय की औषधियां इस भूमि पर सबसे श्रेष्ठकर हैं। यह तो अच्छी बात है कि आयुर्वेद दोबारा प्रचलित हो रहा है, लेकिन यहां ध्यान देना जरूरी है कि औषधीय पादपों के दोहन पर नियंत्रण रखा जाए। दरअसल, पिछले कुछ समय से अनियंत्रित दोहन के कारण सूबे में मिलने वाली बहुमूल्य वनौषधीय प्रजातियां ब्रह्मकमल, वनककड़ी, अतीश, कुटकी, चिरायता, सत्तावर, वज्रदंती, कूट, विषकंडारू आदि विलुप्ति की कगार पर जा पहुंची हैं। इस बाबत, पारंपरिक ग्रामीण चिकित्सा सभा के संरक्षक डा.एसएन थपलियाल व शोध प्रवक्ता प्रकाश चन्द्र फोंदणी ने बताया कि कुछ समय पूर्व गोविंद वल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की ओर से आयोजित सम्मेलन में गढ़वाल के 150 वैद्यों के अलावा देश के विभिन्न भागों से आए वैज्ञानिकों ने भाग लिया था। उन्होंने बताया कि इस दौरान पारंपरिक चिकित्सा पद्धति/वैद्य चिकित्सा पद्धति व बहुमूल्य जड़ी बूटियों के विकास का संकल्प लिया गया। उन्होंने बताया कि संस्थान ग्रामीण पारंपरिक चिकित्सा सभा के जरिए वैद्यकी को कारगर बनाने में जुट गया है। आने वाले दिनों में इसका लाभ मिलने लगेगा। उन्होंने कहा कि औषधियों के नियमित दोहन पर सरकार को विशेष नजर रखनी चाहिए।

Monday, 20 July 2009

पहाड़ में रेल

उत्तराखंड के राजनेताओं में पहाड़ पर रेल पहुंचाने की चिंता कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रही है। कांग्रेस, भाजपा, बसपा व उक्रांद समेत सभी राजनीतिक दलों के नेता कमोवेश एक तरह की भाषा बोल रहे हैैं। सभी का जोर इस बात पर है कि रेल मंत्रालय को पहाड़ में रेलवे सेवाओं के विस्तार में लाभ-हानि का आंकलन नहीं करना चाहिए। रेल बजट पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के सतपाल महाराज व विजय बहुगुणा ने राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में रेल सेवाओं के प्रस्ताव जोडऩे की पैरवी की तो भाजपा के राज्यसभा सदस्य भगत सिंह कोश्यारी ने रेल सेवाओं के विस्तार के मामले में कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। अब मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने रेलवे के उच्चाधिकारियों को दो टूक कहा है कि पहाड़ में रेल सेवाओं के परिप्रेक्ष्य में मंत्रालय नफा-नुकसान न देखे। डा. निशंक ने राज्य की रेल जरूरतों का ही खुलासा नहीं किया, बल्कि उत्तराखंड के लिए अधिक से अधिक योजनाओं के प्रस्तावों को हरी झांडी देने की भी पैरवी की। वर्तमान में रेल सेवाओं का विस्तार सभी सियासी दलों की प्राथमिकता में शामिल है। इसके बावजूद उत्तराखंड को रेलवे के मामले में अन्य प्रदेशों की तुलना में कुछ खास हासिल नहीं हुआ है। पर्वतीय क्षेत्रों में रेल पहुंचाने की बात तो दूर, इसके लिए सर्वेक्षण के प्रस्ताव पर भी मंत्रालय ने विचार नहीं किया। ऐसे में रेलवे का विषय पूरी तरह सियासत तक ही सिमटता दिखाई दे रहा है। जहां तक उत्तराखंड में रेल सेवाओं के विस्तार की बात है तो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस राज्य में रेल यातायात पर गंभीर पहल जरूरी है। रेल मंत्रालय जब अन्य पहाड़ी राज्यों में रेलवे सेवाओं पर भारी-भरकम धनराशि खर्च कर सकता है तो उत्तराखंड की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। अविभाजित उत्तर प्रदेश में भी इस पहाड़ी क्षेत्र को नजरअंदाज किया जाता रहा और अब ही यही स्थिति है। हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, नैनीताल व देहरादून पर ही रेलवे की थोड़ी-बहुत कृपा रहती है, जबकि राज्य के अन्य क्षेत्रों में क्या नया हो सकता है, इस पर ध्यान देने की जहमत नहीं उठाई जाती। बदले हालात में जरूरी है कि रेलवे सेवाओं के विस्तार पर नेता बातें कम करें और धरातल की जरूरतों पर गंभीरता से पहल करें। अन्यथा रेल का मुद्दा केवल चुनावी हथियार ही बनकर रह जाएगा, जिससे राज्य को कुछ हासिल नहीं होगा।

- पहाड़ में नफा-नुकसान न देखे रेलवे

मुख्यमंत्री ने रेलवे बोर्ड के चेयरमैन से की राज्य की रेल परियोजनाओं पर चर्चा कहा, राष्ट्रीय परियोजना में शामिल हों उत्तराखंड की रेल परियोजनाएं देहरादून,: मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कहा कि पहाड़ में रेल सेवा के विस्तार को लाभ-हानि के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। पर्यटन व तीर्थाटन के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त उत्तराखंड रेल कनेक्टिविटी के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। लिहाजा, रेल मंत्रालय को सूबे की विभिन्न रेल परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करते हुए पूर्वोत्तर राज्यों की तरह पर्याप्त बजट की व्यवस्था करनी चाहिए। मुख्यमंत्री डा. 'निशंक' ने यह बात बीजापुर राज्य अतिथि गृह में उनसे मिलने पहुंचे केंद्रीय रेलवे बोर्ड के चेयरमैन एसएस खुराना के साथ बातचीत में कही। उन्होंने प्रदेश में प्रस्तावित रेल परियोजनाओं पर विस्तार से चर्चा की और देहरादून-काठगोदाम रेलगाड़ी में वातानुकूलित प्रथम श्रेणी का कोच लगाने, देहरादून, काठगोदाम व हरिद्वार के रेलवे स्टेशनों को आदर्श स्टेशन बनाने, डीएमआर कोटा पूर्व की भांति देहरादून से ही करने का अनुरोध किया। साथ ही, गुजरात व महाराष्ट्र को भी रेल सेवा के जरिए उत्तराखंड से जोडऩे और 2010 में प्रस्तावित महाकुंभ के मद्देनजर प्रभावी कदम उठाने की जरूरत पर बल दिया। इसके अलावा दिल्ली-काठगोदाम के बीच प्रतिदिन शताब्दी एक्सप्रेस चलाने, लक्सर-दून रेल लाइन का विद्युतीकरण, बरेली-टनकपुर मीटर गेज रेल लाइन को गेज में परिवर्तन करने, मोतीचूर-देहरादून के बीच वाया ऋषिकेश-हर्रावाला डबल लाइन रेलवे ट्रैक के निर्माण का भी सीएम ने अनुरोध किया। उन्होंने बताया कि मुजफ्फरनगर-रुड़की नई रेल लाइन के निर्माण को राज्य सरकार ने 20 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है, जिस पर जल्द काम होना चाहिए। साथ ही, रेलवे बोर्ड को आश्वस्त किया कि रेल परियोजनाओं के लिए वनभूमि हस्तांतरण के मामले में सरकार प्रभावी तरीके से काम करेगी। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन श्री खुराना ने बताया कि उत्तराखंड में रेल सेवा के विस्तार के लिए 100 करोड़ रुपये के बजट की व्यवस्था की गई है। दिसंबर, 2010 तक दून रेलवे स्टेशन को आदर्श स्टेशन के रूप में विकसित किया जाएगा। दून स्टेशन पर अब 24 कोच की ट्रेन लाने की व्यवस्था की जा रही है। एसी स्पेशल में भी चार कोच बढ़ाए जा रहे हैं। महाकुंभ के मद्देनजर हरिद्वार-ऋषिकेश तक ट्रेनों के संचालन की योजना बनाई जा रही है। इस कड़ी में तीन नई ट्रेनें हरिद्वार व ऋषिकेश के लिए शुरू की गई हैं। इस अवसर पर उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विवेक सहाय, मंडलीय रेल प्रबंधक मुरादाबाद रमेश चंद्र, मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री सुभाष कुमार आदि उपस्थित थे।

-पैरामेडिकल डिग्री दिलाएगी सरकारी नौकरी

-पैरामेडिकल काउंसिल: खुलेगा प्राइवेट प्रेक्टिस का रास्ता -मानकों से कन्नी काटी तो कालेज भुगतेंगे दंड -कई राज्यों के छात्र-छात्राएं ले रहे हैं हर साल दाखिला -डेढ़ दर्जन से ज्यादा कालेजों को भी मिलेगी राहत , देहरादून उत्तराखंड में पैरामेडिकल के डिग्री कोर्सेज की पढ़ाई कर रहे स्थानीय और कई राज्यों के हजारों छात्र-छात्राओं की बल्ले-बल्ले होगी। सरकारी नौकरी के लिए अभी तक बंद दरवाजे उनके लिए खुल जाएंगे। यही नहीं, प्राइवेट पैरामेडिकल कालेजों ने मानकों से कन्नी काटी या मनमानी की तो उन्हें दंड भुगतना पड़ेगा। राज्य में पैरामेडिकल काउंसिल के गठन की कवायद जल्द परवान चढऩे को है। इस बाबत विधेयक विधानसभा में पेश किया जा चुका है। उत्तराखंड बनने के बाद पैरामेडिकल कालेजों की तादाद बेतहाशा बढ़ी है। अधिकतर कालेज दून में हैं। काउंसिल की जरूरत लंबे अरसे से महसूस की जा रही है। पैरामेडिकल के डिप्लोमास्तरीयकोर्स तो सरकारी नौकरी के लिए मान्य हैं, लेकिन पैरामेडिकल डिग्रीधारकों को रजिस्ट्रेशन के बगैर सरकारी नौकरी पाने में तो कठिनाई हो रही है, प्राइवेट प्रेक्टिस की मान्यता में भी पेच फंसा है। काउंसिल के गठन के बाद डिग्री कोर्स के रजिस्ट्रेशन में दिक्कतें नहीं आएंगी। सरकारी नौकरी के लिए भी ये डिग्री मान्य होंगी। रजिस्ट्रेशन के बाद डिग्रीधारक प्राइवेट प्रेक्टिस के पात्र भी होंगे। काउंसिल गठित होने से सूबे के तकरीबन डेढ़ दर्जन से ज्यादा कालेजों और उनमें पढऩे वाले हजारों छात्र-छात्राओं को सीधे फायदा मिलेगा। अस्पतालों, पैथोलौजी लैब, फीजियोथेरेपी सेंटर आदि का इजाफा होने के साथ ही इन पैरामेडिकल कोर्सेज की मांग बढ़ रही है। राज्य के करीब 20 पैरामेडिकल संस्थानों में तीन हजार से ज्यादा विद्यार्थी हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों के छात्र-छात्राएं पैरामेडिकल के डिग्री कोर्सेज के लिए हर साल उत्तराखंड का रुख कर रहे हैं। काउंसिल बनने से कालेजों के लिए भी मानकों से मुंह चुराना और छात्र-छात्राओं से मनमानी करना आसान नहीं रहेगा। ऐसे संस्थानों के लिए दंड का प्रावधान है। काउंसिल में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष समेत हर कोर्स का एक-एक फैकल्टी मेंबर, तीन पैरामेडिकल कालेजों के प्रतिनिधि, विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि, वित्त विभाग का उप सचिव स्तर का एक अधिकारी समेत तकरीबन दो दर्जन सदस्य होंगे। फिलवक्तकाउंसिल में तीन कोर्स रेडियोलाजी, फीजियोथेरेपी व लैब टेक्नोलाजी के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था रहेगी। प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत के मुताबिक विधेयक पारित होने के बाद काउंसिल के जल्द गठन का रास्ता साफ होगा। संपर्क करने पर चिकित्सा शिक्षा सचिव डा. राकेश कुमार ने बताया कि काउंसिल गठन होने के बाद उसके विनियम बनाए जाएंगे। इसमें अन्य पैरामेडिकल कोर्सेज के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया जाएगा।

=नाखूनों के बूते ईजाद की नई कला

न ब्रश की जरूरत, न महंगे कैनवास की, नाखून से उभर आती हैं कागज पर आकृतियां उत्तराखंड के रजनीश के पास है 'नेल आर्ट' का गजब का हुनर इस कला में नेत्रहीन भी सहजता से उकेर सकते हैं मन के भाव बगैर पैसे के सीखा जा सकता है यह हुनर, रजनीश के पास है सात सौ चित्रों का कलेक्शन देहरादून कहते हैं चित्रकारी बड़ा महंगा शौक है, लेकिन रजनीश का हुनर देखकर तो ऐसा नहीं लगता। न ब्रश की जरूरत और न महंगे कैनवास की। जेब खाली हो, इसकी भी फिक्र नहीं। बस! आपके नाखून सलामत रहें, वे भी अंगूठे के। फिर तो कहने ही क्या, आकृतियां खुद-ब-खुद कागज पर उभरती चली जाएंगी। चित्रकारी की यह ऐसी विधा है, जिसे छूकर भी महसूस किया जा सकता है। इस हुनर को सीखकर नेत्रहीन भी बखूबी अपनी भावनाओं का इजहार कर सकते हैं। रजनीश ने चित्रकारी की इस विधा को नाम दिया है-'नेल आर्ट'। मूल रूप से उत्तराखंड के पौड़ी जनपद की लैंसडौन तहसील के लंंगूरी गांव निवासी रजनीश डोबरियाल को रंगों से खेलने का शौक बचपन से ही रहा। इसके लिए उन्हें कई राज्यस्तरीय पुरस्कार भी मिले। अचानक उनके जीवन में बदलाव आया और वे 'नेल आर्टिस्ट' बन बैठे। बकौल रजनीश, 'एक दिन मैं नाखून से सादे कागज पर रेखाएं खींच रहा था, अचानक लगा कि कुछ आकृतियां उभर रही हैं। फिर तो इसमें इंट्रेस्ट आने लगा और धीरे-धीरे इसने मेरे जीवन की धारा ही बदल दी।' वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस सोसाइटी (लखनऊ) में कार्यरत रजनीश अब तक सात सौ के आसपास चित्र नेल आर्ट के माध्यम से बना चुके हैं। 'ú' को ही उन्होंने 151 तरीके से चित्रित किया है। रजनीश बताते हैं कि जरूरत के हिसाब से वे कुछ चित्रों में रंग भी भर देते हैं। रजनीश के अनुसार नेल आर्ट की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे नेत्रहीन भी महसूस कर सकते हैं। यही नहीं, वे अपने मन के भावों को सरलता एवं सहजता से कागज पर भी उकेर सकते हैं। इसीलिए वे नेल आर्ट को ब्रेल आर्ट की संज्ञा भी देते हैं। वे कहते हैं नेल आर्ट में महारथ हासिल कर नेत्रहीन अपने जीवन में रंग भर सकते हैं। रजनीश ने बताया कि अब तक वे अपनी कला का प्रदर्शन दूरदर्शन, जी न्यूज, एस-1, जन संदेश, ई-टीवी आदि टीवी चैनलों पर भी कर चुके हैं। अब उनकी तमन्ना 'लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड््र्स' और 'गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड््र्स' में नाम दर्ज कराने की है। रजनीश कहते हैं कि नेल आर्ट ऐसा हुनर है, जिसे कोई भी बगैर पैसे के सीख सकता है।

-उत्तराखंड आयुर्वेद विवि समेत दो विधेयक पारित

कांग्रेस ने किया विरोध, बसपा से मिला समर्थन देहरादून, लंबे समय से प्रतीक्षारत उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय विधेयक को सदन ने पारित कर दिया है। कांग्रेस ने विधेयक के स्वरूप तथा अलग विश्वविद्यालय बनाने का विरोध किया, जबकि बसपा ने विधेयक का समर्थन किया। सदन ने उत्तराखंड(उत्तर प्रदेश लोक सेवा) अधिकरण संशोधन विधेयक भी पारित कर दिया है। सदन में विधेयक के पक्ष में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए यह पहल की गई है। यह पहल उत्तराखंड के विकास को गति प्रदान करेगी। गुजरात व राजस्थान के बाद अब उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय वाला तीसरा राज्य बना जाएगा। फिलहाल राज्य में ऋषिकुल, गुरुकुल, उत्तरांचल आयुर्वेदिक कालेज व हिमालय आयुर्वेदिक कालेज ही संचालित हैैं। उन्होंने कहा कि विधेयक परिपूर्ण है और इस पर जो आपत्तियां लगाई जा रही हैैं, वे पूरी तरह निराधार हैैं। नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने कहा कि हरिद्वार के संस्कृत विश्वविद्यालय में एक फैकल्टी के रूप में आयुर्वेद से संबंधित पाठ्यक्रम व क्रियाकलाप संचालित किए जा सकते हैैं। कांग्रेस आयुर्वेदिक शिक्षा की समर्थक है, लेकिन भाजपा की इस पहल का कांग्रेस विरोध करती है। उन्होंने विधेयक में स्वायत्तता, नियुक्ति तथा प्रस्तावित धनराशि को लेकर भी चिंता व्यक्त की। बसपा के नारायण पाल ने विधेयक का पुरजोर समर्थन किया और नियमावली पर विचार करने की आवश्यकता जताई। चौधरी यशवीर, अनिल नौटियाल, त्रिवेंद्र सिंह रावत, शैलेंद्र रावत, व मदन कौशिक ने भी आयुर्वेद विश्वविद्यालय विधेयक का समर्थन करते हुए इसे राज्य के व्यापक हित में बताया। सदन ने उत्तराखंड (उत्तरप्रदेश लोक सेवा अधिकरण) संशोधन विधेयक पारित कर दिया। विधेयक पारित होने से अधिकरण में पांच न्यायिक व पांच प्रशासनिक सदस्यों की बाध्यता नहीं रहेगी। संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने बताया कि अभी तक राज्य में उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिकरण अधिनियम लागू था। इसके तहत अधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष (न्यायिक), एक उपाध्यक्ष (प्रशासनिक) और न्यायिक व प्रशासनिक श्रेणी के न्यूनतम पांच-पांच सदस्य उतनी संख्या में होंगे, जितनी राज्य सरकार रखेगी। उत्तर प्रदेश की तुलना में उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण में 315 वाद लंबित हैं। अब अधिकरण में अध्यक्ष, न्यायिक व प्रशासनिक उपाध्यक्ष होंगे। लंबित वादों की संख्या के मुताबिक सदस्यों के चयन का विकल्प भी रखा गया है।

उत्तराखंड से मेरा दिली लगाव: राज्यपाल

नव नियुक्त राज्यपाल से बातचीत देहरादून, जागरण ब्यूरो: उत्तराखंड की नव नियुक्त राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने कहा कि उत्तराखंड से उनका दिली लगाव रहा है। श्रीमती अल्वा अपनी पूरी क्षमता से उत्तराखंड की सेवा करने की ख्वाहिश रखती हैं। 'जागरण' से विशेष बातचीत में उत्तराखंड की नव नियुक्त राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने कहा कि उन्हें जब यह समाचार मिला तो वह बहुत खुशी हुईं। अपनी पूरी क्षमता से उत्तराखंड की सेवा करना उनका लक्ष्य है। उन्होंने विश्वास जताया कि उत्तराखंडवासियों का उन्हें पूरा सहयोग मिलेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड बहुत ही सुंदर राज्य है। उनके पति का भी उत्तराखंड से करीबी रिश्ता रहा है। वह खुद वेल्हम गल्र्स स्कूल के बोर्ड में छह साल तक रहीं। इस नाते उनका हर दूसरे महीने यहां आना होता था। कार्बेट नेशनल पार्क समेत उत्तराखंड के कई क्षेत्रों का वह भ्रमण कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि उनके पति की शिक्षा मसूरी के सेंट जार्जेज स्कूल से हुई। श्रीमती अल्वा के अनुसार उनका पूरा परिवार उत्तराखंड से भावनात्मक लगाव रखता है। वह उत्तराखंड के विकास में सहभागी बनने की मजबूत इच्छा रखती हैं।

Tuesday, 14 July 2009

बीस वर्षों बाद टूटी परिवहन विभाग की नींद

2009 तक मोटर यान नियमावली 1940 के फार्म हो रहे थे निर्गत 1988 के नए मोटर व्हीकल एक्ट के नए फार्म के विषय में नहीं थी जानकारी -कोर्ट के निर्णय के बाद जारी हो रहे हैं नए फार्म देहरादून परिवहन विभाग के किस्से भी अजब-गजब हैं। आलम यह है कि परिवहन विभाग बीस वर्षों से परमिट के ऐसे फार्म जारी कर रहा था, जिनका इस्तेमाल पहले ही समाप्त हो चुका था। मामले का खुलासा तब हुआ जब राज्य परिवहन न्यायाधिकरण ने ऐसे फार्मों पर जारी परमिट निरस्त कर दिए। तब जाकर परिवहन विभाग की नींद टूटी और अब नए एक्ट के अनुसार बनाए गए परमिट फार्म जारी किए जा रहे हैं। परिवहन विभाग में व्यावसायिक वाहनों को परमिट देने से पहले उनसे फार्म भरवाए जाते हैं। इनमें कांटे्रक्ट कैरेज (ठेके वाली गाड़ी) और स्टेज कैरेज (सवारी गाड़ी, जो जगह-जगह स्टाप पर रुकती है) के लिए परमिट जारी किए जाते हैं। फार्म को इसके बाद परमिट शाखा के कर्मचारी चेक करते हैं। फिर इन आवेदनों को राज्य परिवहन प्राधिकरण (एसटीए) और संभागीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीए) की बैठक में रखा जाता है, जहां प्राधिकरण के विवेकानुसार परमिट जारी किए जाते हैं। वर्तमान में इन परमिटों को आवेदन करने वाले फार्म मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के अनुसार बनाए गए हैं। हैरतअंगेज यह कि फरवरी 2009 तक जिन आवेदन फार्म पर परमिट जारी किए गए, वह वैध नहीं थे। दरअसल विभाग कांटे्रक्ट कैरीज के लिए ऐसे फार्म पर परमिट जारी कर रहा था, जो मोटर यान नियमावली 1940 के अंतर्गत तैयार किए गए थे। यानि कि विभाग के पास 2009 तक मोटर व्हीकल एक्ट 1988 के अनुसार बनाए गए फार्म उपलब्ध थे ही नहीं। बीस वर्षों में विभाग में सैकड़ों कर्मचारी आए और गए, किंतु किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। इसी प्रकार स्टेज कैरीज के लिए दिए जा रहे आवेदन फार्म भी पुराने थे। यह भले ही 1988 के एक्ट के अनुसार बने थे, लेकिन यह केवल एक्ट की धारा-70 के अनुसार जारी थे, जबकि नए फार्म में एक्ट की धारा 69, 70 और के उपबंध और धारा 66 के अंतर्गत परमिट का आवेदन करने का प्रावधान है। यह संशोधन कब लागू हुआ इस विषय में विभाग के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी को कोई जानकारी नहीं। शायद विभाग की कुंभकर्णी नींद जारी ही रहती यदि राज्य परिवहन प्राधिकरण के एक फैसले ने विभाग को झाकझाोर कर न दिया होता। न्यायाधिकरण ने दो ऐसे मामलों में तकरीबन चालीस से अधिक परमिट निरस्त कर दिए, हालांकि यह मामला अब हाईकोर्ट में चल रहा है। न्यायाधिकरण के इस फैसले के बाद विभाग ने नए आवेदन फार्म जारी करने शुरू कर दिए हैं। ऐसे में अहम सवाल यह है कि इतने वर्षों में इन फार्म पर जो परमिट जारी हुए क्या वे सभी अवैध हैं। और जो फार्म आरटीए की बैठक के बाद जमा किए गए उनका क्या होगा। शायद इन पर भी कोर्ट कचहरी के बाद ही कोई निर्णय हो। इस संबंध में आरटीओ देहरादून एके सिंह का कहना है कि पूर्व से ही ऐसी व्यवस्था चली आ रही थी, ऐसे में किसी ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। विभाग में अब नए आवेदन फार्म ही जारी किए जा रहे हैं।

सुविधाओं के अभाव में पहाड़ों से पलायन

एक वर्ष के अंतराल में हो पाया सिर्फ 60 करोड़ रुपये का निवेश रंग नहीं जमा पाई विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति विभिन्न कारणों के चलते उद्यमियों ने करीब डेढ़ सौ यूनिटों के प्रस्तावों से हाथ खींचे देहरादून, सूबे के पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। रीते होते गांव, बंजर होते खेत पहाड़ों की नियति बन गए हैं। उद्योग विहीन पहाड़ी क्षेत्र में औद्योगिक विकास को पिछले वर्ष घोषित विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति भी अभी रंग नहीं जमा पाई है। इसमें पर्वतीय क्षेत्र में उद्यमी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। यह बात इससे भी तस्दीक होती है कि एक वर्ष के अंतराल में पर्वतीय जिलों में सिर्फ 60 करोड़ रुपये का ही निवेश हुआ। मंदी, आधारभूत सुविधाओं का अभाव समेत अन्य कारणों के चलते करीब डेढ़ सौ यूनिटों के प्रस्तावों से संबंधित उद्यमियों ने हाथ पीछे खींच लिए। हालांकि, उद्योग विभाग का दावा है कि चालू वित्तीय वर्ष में निवेश करीब 300 करोड़ रुपये हो जाएगा। इसके लिए स्थानीय युवाओं समेत प्रवासियों को प्रोत्साहित किया जाएगा। उत्तराखंड में देश के नामी उद्यमियों, उद्योग समूहों ने इकाईयां स्थापित की हैं, लेकिन यह औद्योगिक निवेश राज्य के मैदानी क्षेत्रों मुख्य रूप से ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून जिलों तक ही सिमटा है। इस मामले में पर्वतीय जिलों की उपेक्षा होती रही है। नतीजतन उद्योग विहीन पर्वतीय जिले लगातार पलायन का दंश झोल रहे हैं। औद्योगिक विकास से अछूते पर्वतीय क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित कर रोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजित करने के मकसद से राज्य सरकार ने गत वर्ष पर्वतीय एवं दूरस्थ क्षेत्रों के लिए 'विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति' घोषित की। बीते एक वर्ष के दौरान आठ सौ यूनिटों के प्रस्ताव तो आए, लेकिन इनमें से डेढ़ सौ उद्यमियों ने हाथ पीछे खींच लिए। बताया गया कि वैश्विक मंदी के साथ ही पर्वतीय क्षेत्र में भूमि, सड़क, पानी, बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं के अभाव में उद्यमियों ने हाथ खींचे। एक साल में 60 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव ही पर्वतीय जिलों में योजनांतर्गत आए। कुछेक यूनिटों में तो उत्पादन शुरू हो गया है, जबकि अन्य में कार्य प्रगति पर है। योजना का मकसद विषम भौगोलिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों का समन्वित विकास, पलायन रोकने के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन, सामाजिक, आर्थिक दशा और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखना, स्थानीय स्तर पर मिलने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है। इस नीति की समयावधि 31 मार्च 2018 तक नियत है। श्रेणी-अ में पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, चंपावत व रुद्रप्रयाग जिले शामिल हैं, जबकि श्रेणी-ब में पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर के संपूर्ण भाग और देहरादून, नैनीताल जिलोंं के मैदानी क्षेत्रों को छोड़कर शेष पर्वतीय बहुल भाग शामिल हैं। इन उद्योगों को मिलेगा बढ़ावा हरित व नारंगी श्रेणी के अप्रदूषणकारी विनिर्माणक उद्योग। केंद्र के विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज में अधिसूचित थ्रस्ट सेक्टर के उद्योग। राज्य सरकार से उद्योग का दर्जा प्राप्त गतिविधियां। सेवा क्षेत्रांतर्गत होटल, साहसिक व अवकाशकालीन खेल व रोपवे, नर्सिंग होम, व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान, जैवप्रौद्योगिकी, संरक्षित कृषि एवं औद्यानिकी, कोल्ड स्टोरेज, पेट्रोल-डीजल पंपिंग स्टेशन, गैस गोदाम आदि गतिविधियां। प्रोत्साहन एवं सुविधाएं भूमि संसाधन विकास के तहत निजी क्षेत्र में औद्योगिक आस्थान के लिए भूमि की न्यूनतम सीमा दो एकड़ निर्धारित। औद्योगिक प्रयोजन के लिए भू-उपयोग परिवर्तन की प्रक्रिया का सरलीकरण। पांच करोड़ से अधिक अचल पूंजी निवेश के उद्योगों को मेगा प्रोजेक्ट का दर्जा। औद्योगिक आस्थानों-क्षेत्रों और इनसे बाहर उद्योग स्थापना को भूमि लीज पर लेने अथवा क्रय करने पर स्टांप शुल्क में छूट मेगा प्रोजेक्ट में अवस्थापना सुविधाओं के विकास को 50 लाख तक का अनुदान। श्रेणी-अ के जिलों में 25 फीसदी, श्रेणी-ब के जिलों में 20 फीसदी तक राज्य पूंजी निवेश उपादान सहायता। नये उद्यमों को विद्युत बिलों के भुगतान पर 30 से 75 फीसदी तक प्रतिपूर्ति सहायता। अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय प्रमाणीकरण, मानकीकरण पर वित्तीय प्रोत्साहन। स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्यमों को विशेष परिवहन उपादान सहायता। क्या आ रही हैं परेशानी योजना के अंतर्गत बड़े उद्योग लगाने के लिए उद्यमियों को अपेक्षित भूमि एक साथ नहीं मिल पा रही। जहां भूमि मिल रही है, वहां सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। यही नहीं, पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की अनुपलब्धता भी राह में रोड़े अटका रही है। कई जगह बैंक से फाइनेंस कराने के लिए संबंधित व्यक्ति को भूमि का संयुक्त खाता होने के कारण अन्य सदस्यों से एनओसी नहीं मिल पाती। सभी महकमों से करेंगे समन्वय उद्योग विभाग के अपर निदेशक एससी नौटियाल का कहना है कि विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति को मुकाम तक पहुंचाने के लिए संबंधित सभी महकमों से समन्वय स्थापित कर ठोस रणनीति बनाई जाएगी। साथ ही, स्थानीय लोगों को भी पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक विकास के लिए आगे आना होगा। उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर उनमें उद्यमिता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित किया जाएगा। यही नहीं, योजना के तहत पर्यटन, पुष्पोत्पादन, औद्यानिकी पर आधारित उद्यम, संरक्षित कृषि, हर्बल एवं सगंध पौधों पर आधारित उद्यम, लेजर टूरिज्म, साहसिक पर्यटन आदि गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा।

चीन के लिए पैक होने लगी चाय, काफी और सौन्दर्य सामग्री

बीस व्यापारियों को ट्रेड पास जारी जुलाई अंत तक चीनी मंडी तकलाकोट पहुंचेंगे भारतीय व्यापारी धारचूला(पिथौरागढ़): भारत-चीन व्यापार के लिए सीमांत के व्यापारियों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। सोमवार को बीस व्यापारियों को ट्रेड पास जारी हुए। व्यापारियों ने चीन के लिए चाय, काफी, सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियों की पैकिंग शुरू कर दी है। लम्बी जद्दोजहद के बाद इस बार भारत-चीन व्यापार के लिए स्वीकृति मिल सकी। सोमवार को ट्रेड पास जारी करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी। पहले दिन बीस व्यापारियों और एक हेल्पर ने ट्रेड पास जारी करवाया। व्यापार की तैयारियों में जुटे भारत-चीन व्यापार समिति के सचिव जीवन सिंह रौंकली ने बताया भारतीय व्यापारी जुलाई अंत तक चीनी मंडी तकलाकोट पहुंच जायेंगे। वे भारतीय काफी, चाय, सुर्ती, विभिन्न सौन्दर्य सामग्री, गुड़, मिश्री लेकर चीनी मंडी जायेंगे, जबकि चीन से ऊन, सुहागा, जूते, विभिन्न प्रकार के रेडीमेट कपड़े आदि का आयात होगा। धारचूला के उपजिलाधिकारी नवनीत पांडे के मुताबिक बीस जुलाई के बाद भारतीय व्यापारियों को भारतीय मंडी गुंजी से व्यापार के लिए ट्रेड पास जारी होंगे, इसके लिए दीवान सिंह बिष्ट को सहायक ट्रेड अधिकारी के रूप में गुंजी में तैनात कर दिया गया है।

सूबे में तेजी से पैर पसार रहा एड्स

- सूबे में इस साल के पहले चार माह में मिले 205 एचआईवी पॉजिटिव - राजधानी देहरादून में पाए गए सबसे अधिक मामले - सरकारी कवायद के बावजूद कम होने का नाम नहीं ले रही संख्या देहरादून: देवभूमि में एड्स तेजी से पैर पसार रहा है। बीते साल उत्तराखंड में जहां 539 लोग एचआईवी पाजिटिव थे तो इस साल पहले चार महीनों में ही 205 लोगों के एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने की पुष्टि हो चुकी है। राजधानी देहरादून में तो एड्स रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। एड्स रोगियों की बढ़ती संख्या भविष्य की भयावह स्थिति की ओर इशारा कर रही है। एड्स की रोकथाम के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन इनके अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आ रहे। 'जिंदगी जिंदाबाद', 'रेड रिबन एक्सप्रेस' कुछ ऐसे अभियान हैं, जिनके जरिए लोगों को इस महामारी के प्रति जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा तमाम सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएं भी कार्य कर रही हैं। इसके बावजूद सूबे में एड्स रोगियों की संख्या घटने के बजाए लगातार बढ़ रही है। उत्तरांचल स्टेट एड्स नियंत्रण समिति के आंकड़ों पर गौर करें तो ये भविष्य की खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करते हैं। इस साल के पहले चार महीनों में ही सूबे में 205 एचआईवी पॉजिटिव केस मिलने पर जानकारों का कहना है कि यदि अप्रैल तक यह स्थिति है तो साल खत्म होने तक यह संख्या 600 को भी पार कर सकती है। समिति के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो राजधानी देहरादून में सबसे ज्यादा एचआईवी पॉजिटिव हैं। बीते साल जहां 248 एचआईवी पॉजिटिव केस मिले तो इस साल अप्रैल तक यह संख्या 88 पहुंच चुकी थी। इनमें भी दून अस्पताल में सर्वाधिक पचास मामले सामने आए हैं। इसी अवधि में नैनीताल में 34, जबकि पौड़ी में 24 मामले सामने आ चुके हैं। उधमसिंहनगर में भी 14 मामले प्रकाश में आए हैं। उधर, स्वास्थ्य महानिदेशक डा.पीएल जोशी का कहना है कि हाल ही में उत्तरांचल राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी में स्टाफ बढाया गया है। नतीजतन एड्स रोगियों का सही आंकड़ा पता लगाने में आसानी हो रही है। पूर्व में कर्मियों की कमी के चलते आंकड़े एकत्र करने में दिक्कतें आती थीं। एड्स नियंत्रण सोसाइटी के अपर परियोजना निदेशक डा.डीसी ध्यानी कहते हैं कि एड्स की रोकथाम को पर्याप्त प्रयास किए जा रहे हैं। वर्षवार एड्स रोगियों की संख्या 2002 23 2003 83 2004 131 2005 229 2006 313 2007 504 2008 539 2009(अप्रैल)205

=स्थायी राजधानी: देहरादून ने बाजी मारी

फिजिबिलिटी रिपोर्ट में गैरसैंण, रामनगर तथा आईडीपीएल पिछड़े, काशीपुर का विकल्प खुला -दीक्षित आयोग की स्थल चयन को लेकर रिपोर्ट सदन में पेश देहरादून, स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त स्थल चयन के मानकों पर देहरादून पूरी तरह खरा उतरा है, जबकि काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) को विकल्प के रूप में लेने की संस्तुति है। गैरसैैंण(चमोली), रामनगर (नैनीताल)तथा आईडीपीएल ऋषिकेश को फिजिबिलिटी के आधार पर दौड़ में शामिल नहीं किया गया। आयोग ने यह भी स्वीकारा कि स्थायी राजधानी के स्थल चयन की समस्या सामाजिक, राजनैतिक, प्रशासनिक व तकनीकी समस्याओं से जुड़ी है। स्थायी राजधानी स्थल चयन को गठित जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आज से शुरू हुए विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन सदन में पेश की गई। इसमें पांच स्थलों की फिजिबिलिटी के आधार पर संस्तुति की गई है। मानकों में भौगोलिक केंद्रीयता, जनसंख्या केंद्रीयता, पहुंच मार्ग, परिवहन प्रणाली, वन क्षेत्र, स्थलाकृति, भूकंप, भूस्खलन, स्वीकार्यता, सुरक्षा, बस्तियों का स्वरूप, जलवायु, जल स्रोत, भूमि की उपलब्धता, प्राकृतिक जल निकासी, शहरी विस्तार की संभावना व स्थल विशेष पर निवेश आदि को शामिल किया गया। इन सभी मानकों पर देहरादून की अन्य स्थलों की अपेक्षा सर्वाधिक अनुकूलता रही। आयोग ने देहरादून को स्थायी राजधानी के लिए सबसे बेहतर माना है। काशीपुर को अपेक्षाकृत कठिन जल निकासी, गंगा का प्रवाह क्षेत्र, बांध से संभावित खतरा व पर्यावरणीय पक्ष के आधार पर कमजोर माना गया। इसके बावजूद सुधार की संस्तुतियों के साथ आयोग ने काशीपुर का विकल्प खुला रखा है। तृतीय चरण में आयोग ने देहरादून व काशीपुर के स्थलों का ही विश्लेषण किया। आयोग ने पाया कि देहरादून का नथुवावाला-बालावाला क्षेत्र राजधानी की स्थापना के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। यह स्थल अधिकतर मानकों पर खरा उतरता है। इससे 1200 हेक्टेयर कृषि भूमि निकालने में भी सुविधा रहेगी। इसके लिए करीब 1315 करोड़ की ही आवश्यकता होगी। इसके विपरीत नगर स्तरीय संबद्ध गतिविधियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए काशीपुर में 1200 हेक्टेयर भूमि की लागत करीब 4266 करोड़ होगी। यदि देहरादून में चिन्हित स्थल किसी कारणवश शासन द्वारा नहीं लिया जा सकता है तो काशीपुर के चिन्हित स्थल विकल्प के रूप में लिए जा सकते हैैं। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा है कि स्थायी राजधानी के लिए प्रस्तावित स्थल गैरसैैंण, रामनगर व आईडीपीएल ऋषिकेश को द्वितीय चरण की रिपोर्ट के साथ ही दौड़ से बाहर कर दिया गया। हालांकि इन तीनों स्थलों का उपग्रह चित्रों की सहायता से दोबारा परीक्षण भी किया गया। इसके बावजूद इन स्थलों की फिजिबिलिटी को लेकर बने दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन नहीं आया। गैरसैैंण की फिजिबिलिटी रिपोर्ट में स्थलों को पारिस्थितिकीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना गया। रामनगर को भी स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त नहीं माना गया, जबकि आईडीपीएल ऋषिकेश भी स्थल चयन के मानकों को पूरा करने में पिछड़ गया। ऐसे में आयोग ने हर लिहाज से देहरादून को ही स्थायी राजधानी के लिए उपयुक्त माना है।

खतरे में प्रकृति का अनमोल खजाना

-अनियोजित दोहन, सरकारों की उदासीनता ने 'दुर्लभ' श्रेणी में पहुंचाई लगभग दो सौ प्रजातियां -पेटेंट औषधियों के निर्माण में उतरीं बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनियां -आयुर्वेदिक औषधियों, हर्बल सौंदर्य प्रसाधनों की मांग बढऩे से बड़े पैमाने पर हो रही तस्करी -स्वयं तक सीमित रखे हुए हैं भैषज्य ज्ञान के जानकर महत्वपूर्ण जानकारियां देहरादून, उत्तराखंड में अनियोजित दोहन और सरकारों की उदासीनता के चलते जड़ी-बूटियों की सैकड़ों प्रजातियों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। लगभग दो सौ पादप प्रजातियां तो विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई हैं। समय रहते यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य की पीढ़ी को इन दुर्लभ जड़ी-बूटियों के लाभ से वंचित रहना पड़ सकता है। 'मेडिसिन फ्लोरा ऑफ गढ़वाल हिमालयाज' में डा.मायाराम उनियाल ने आठ सौ से अधिक जड़ी-बूटियों का उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में मिलने का उल्लेख किया है। हालांकि, कई जड़ी-बूटियां तो अब मिलती ही नहीं हैं और जो मौजूद हैं भी, उनमें से करीब 200 प्रजातियां 'दुर्लभ' की श्रेणी में आ गई हैं। दरअसल, अमरीका, ब्रिटेन समेत यूरोपीय देशों में आयुर्वेदिक औषधियों (हर्बल ड्रग्स) के प्रति आकर्षण पैदा होने से बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनियां पेटेंट औषधियों के निर्माण में उतर आई हैं। इसके अलावा बड़े पैमाने पर जड़ी-बूटियों की तस्करी भी हो रही है। विदेशों में आयुर्वेदिक औषधियों व हर्बल सौंदर्य प्रसाधनों की मांग बढऩा इसकी प्रमुख वजह है। केंद्रीय आयुर्वेद आयुष विभाग के पूर्व निदेशक डा.मायाराम उनियाल बताते हैं कि तमाम कारणों से हिमालय पर्वत शृंखलाओं में पाई जाने वाली अधिकांश पादप प्रजातियां आज संकटग्रस्त हो गई हैं। 'भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण विभाग' ने भी माना है कि द्रव्यों के अस्तित्व पर संकट का कारण अविवेकपूर्ण दोहन, वनों का कटान व प्राकृतिक वन संपदा का क्षरण होना है। एक दौर में हरड़, बहेड़ा, आंवला, बिल्लू, बदरी, प्याल (चिरोंजी), सेमल, जामुन, पिपली, ब्राह्मी, लटजीरा, कालाबांसा, गूलर, विडंग, अमलताश, जंगली पुदीना, गिलोय, अकरकरा, अगर तगर, सुसवा, सैन, चिरायता, धतूरा, आक, भिलावा, जमालघोटा, भृंगराज, मेदा, महमेदा, काकोली, जीवक, कौंच, ऋषभक, क्षीरकाकोली जैसी सैकड़ों वनौषधियां उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में सरलता से मिल जाती थीं। लेकिन, आज यह मात्र पुस्तकों तक सिमट कर रह गई हैं। डा.उनियाल बताते हैं कि उच्च हिमालय से लेकर शिवालिक क्षेत्र में वैध-अवैध रूप से सैकड़ों ठेकेदार जड़ी-बूटी संग्रह में लगे हैं। लेकिन, अप्रशिक्षित एवं अनुभवहीन मजदूरों से यह कार्य कराने के कारण दुर्लभ जड़ी-बूटियों का संग्रह कम, विनाश अधिक हो रहा है। वह कहते हैं कि इनके संरक्षण-संवद्र्धन हेतु मजबूत कानून के साथ ही अभियान के स्तर पर काम किए जाने की जरूरत है।

Monday, 13 July 2009

ट्रेन से रवाना हुई नैनो की पहली खेप

-रेलवे ने शुरू की नैनो की ढुलाई - हैदराबाद भेजी गईं 50 कारें हल्द्वानी : टाटा की बहुप्रतिक्षित नैनो कार आखिरकार रविवार को ट्रेन में सवार हो ही गई। रेलवे ने हल्दी रोड स्टेशन से 50 गाडिय़ों की पहली खेप हैदराबाद भेजी है। जबकि टै्रक्टर व मैगी आदि रेलवे के व्यावसायिक माल भाड़े में पहले ही शामिल हो चुका है। सिडकुल में स्थापित उद्योग धंधों पर पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर मंडल की पहले से ही नजर थी। रेलवे का उद्देश्य यहां से व्यावसायिक लाभ के साथ उद्योगों को मालभाड़े की सड़क मार्ग से बेहतर सुविधाएं देना भी रहा। इसे देखते हुए कई कंपनियों से करार भी हो चुका है और कुछ से बातचीत चल रही है। इसी कड़ी में टाटा की पंतनगर इकाई में तैयार हो रही नैनो की पहली खेप रविवार को यहां से हैदराबाद को रवाना की गई। नजदीकी हल्दी रोड स्टेशन से 15 कोच के हाई कैपिसिटी मोटर एंड पार्सल वैन रैक में 50 नैनो के साथ 36 मैजिक कार भी भेजी गईं। इससे रेलवे को करीब 8.71 लाख रुपए का भाड़ा मिला है। इज्जतनगर मंडल के जन संपर्क अधिकारी राजेंद्र सिंह ने बताया कि टाटा के मिनी ट्रक, नैस्ले की मैगी तथा महेंद्रा एंड महेंद्रा कंपनी के टै्रक्टर यहां से रेलवे पहले से ही ढो रहा है। रविवार को पहली खेप रवाना होने पर डीआरएम केबी नंदा व एडीआरएम एके कठपाल ने इसे रेलवे के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है। इस मौके पर हल्दी स्टेशन के एसएम आरबी शुक्ला, सीएस जीएस साहनी व एएसएम सुशील मिश्रा मौजूद रहे।

दून ही रहेगी उत्तराखंड की स्थायी राजधानी!

केंद्रीय अनुदान से राज्य स्तरीय अवसंचना सुविधाओं पर दो सौ करोड़ के प्रस्ताव -150 करोड़ अवमुक्त और 57 करोड़ अब तक किए खर्च -अब संभव नहीं राजधानी आयोग की रिपोर्ट पर अमल देहरादून केंद्र सरकार से मिले दो सौ करोड़ रुपये से देहरादून में राज्य स्तरीय अवसंचना सुविधाओं पर तेजी से काम हो रहा है। इसके लिए कांग्र्रेस शासन में केंद्र से अनुमति भी ली गई और भाजपा शासन में भी निर्माण जारी है। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सूबे की स्थायी राजधानी देहरादून से कहीं और जाएगी। हालात बता रहे हैैं कि इस सवाल उत्तर सिर्फ 'नहीं' ही हो सकता है। उत्तराखंड की स्थायी राजधानी के लिए 12वें वित्त आयोग ने दो सौ करोड़ का प्रावधान किया है। कई सालों तक यह राशि पड़ी रही। इस धन के 'लैप्स' होने की नौबत आई तो कांग्र्रेस की तत्कालीन सरकार ने केंद्र सरकार से इस राशि को राज्य स्तरीय अवसंचना में व्यय करने की अनुमति मांगी। सूत्रों ने बताया कि केंद्र की अनुमति के बाद एक उच्च स्तरीय समिति ने 194 करोड़ रुपये के प्रस्तावों को स्वीकृति दी। 31 मार्च-09 तक इसमें से 152 करोड़ रुपये कार्यदायी संस्थाओं को अवमुक्त किए जा चुके हैैं और लगभग 57 करोड़ की राशि खर्च भी की जा चुकी है। कुछ निर्माण राज्य लोक सेवा आयोग और सितारगंज जेल में भी हो रहे हैैं। खास बात यह है कि कांग्र्रेस शासन में शुरू हुआ यह व्यय भाजपा शासन में भी जारी रहा। कांग्र्रेस शासन में मौजूदा संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत इस पर सवाल भी उठा चुके है पर निर्माण आज तक जारी हैैं। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से स्थायी राजधानी के लिए एक बार दो सौ करोड़ की रकम दे दी गई है। अब अगर स्थायी राजधानी के लिए किसी और स्थान का चयन होता है तो इसके लिए करोड़ों की राशि कहां से आएगी। केंद्र सरकार से इस मद में अब बहुत ज्यादा धन मिलने की गुंजाइश न के बराबर ही है। फिर क्या राज्य सरकार अपनी कमजोर वित्तीय स्थिति के बाद भी स्थायी राजधानी के लिए करोड़ों की रकम जुटा पाएगा। इतना ही नहीं, अगर राजधानी कहीं और बनती है तो देहरादून में करोड़ों की लागत से बन चुके या फिर बन रहे भवनों का क्या होगा। जाहिर है कि राज्य अपने संसाधनों से शायद ही ऐसा करे। ऐसे में माना यही जा रहा है कि उत्तराखंड की स्थायी राजधानी अब देहरादून ही रहने वाली है। इंसेट राज्य स्तरीय अवसंचना (दून में) निर्माण राशि (लाख में) राज्यपाल आवास 640 राजभवन सचिवालय 1558 सीएम आवास व स्टाफ क्वार्टर 1656 स्वास्थ्य निदेशालय 1130 राज्य निर्वाचन आयोग 206 राज्य योजना आयोग 1500 सैनिक कल्याण निदेशालय 132 राजस्व आयुक्त दफ्तर 265 विजिलेंस निदेशालय 255 बाल विकास निदेशालय 364 वाणिज्य कर आयुक्त दफ्तर 455 बीजापुर गेस्ट हाउस 1265 ट्रांजिट हास्टल 452 केदार पुरम में आवास 1830 रेस कोर्स में आवास 142 भानियावाला-सहत्रधारा(फोर लेन)4756 सचिवालय में विभिन्न निर्माण 143 इंसेट दीक्षित आयोग ने की 'नए शहर' की सिफारिश देहरादून: राजधानी स्थल चयन को बने दीक्षित आयोग ने स्थायी राजधानी के लिए 'नया शहर' बसाने की सिफारिश की है। सूत्रों ने बताया कि आयोग ने अपनी रपट में स्थायी राजधानी के लिए चर्चा में आए गैरसैैंण, काशीपुर, आईडीपीएल, देहरादून समेत अन्य सभी स्थानों को किसी न किसी कारण से अनुपयुक्त करार दिया है। आयोग ने स्थायी राजधानी के लिए एक नया शहर ही बसाने की सिफारिश की है। सूत्रों की माने तो इस नए शहर के लिए रायपुर से रानीपोखरी के बीच के स्थान को हर लिहाज से उपयुक्त करार दिया गया है।

एक गांव, जो मिसाल बना देश के लिए

-टिहरी के गेंवाली गांव में आठ साल में पहली बार गई बिजली -2001 में ग्रामीणों ने स्वयं की मेहनत से तैयार की थी परियोजना -मौसम की मार से पानी की कमी के चलते ठप हुई विद्युत परियोजना नई टिहरी जनपद के सीमांत गांव गेंवाली के ग्रामीणों की मेहनत पर मौसम की मार भारी पड़ी है। ग्रामीणों का अपनी मेहनत से बनाया हुआ 25 किलोवाट क्षमता की विद्युत परियोजना बेहतर ढंग से काम कर रही थी और लगातार आठ साल तक इसके जरिए यह गांव रोशन रहा, लेकिन इस बार गदेरे (पहाड़ी नदी) में पानी कम होने के कारण परियोजना से विद्युत उत्पादन ठप हो गया। इसके चलते पिछले छह माह से दूसरे गांवों के लिए मिसाल बना रहा यह गांव अंधेरे में डूबा हुआ है। नई टिहरी मुख्यालय से 85 किमी दूर स्थित गेंवाली गांव के लोगों को सड़क से गांव तक पहुंचने के लिए 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यही कारण है कि अभी तक इस गांव में विद्युतीकरण नहीं हो पाया। दूसरे सीमांत गांवों की तरह बिजली के लिए सरकार की राह तकने की बजाय भिलंगना प्रखंड के गेंवाली गांव के लोगों ने खुद की मेहनत पर भरोसा जताया। इसके तहत ग्रामीणों ने साठ घरों वाले अपने गांव को रोशन करने का मन बनाया और 2001 में कड़ी मेहनत के बल पर 25 किलोवाट की विद्युत परियोजना का निर्माण कर लिया। इस परियोजना के लिए दिल्ली स्थित फोराल्ड नामक संस्था ने सहयोग दिया था। परियोजना में बिजली उत्पादन शुरू होने के बाद लकड़ी के खंभों से लाइन डालकर गांव तक बिजली पहुंचाई गई। इसके बाद से इस गांव ने आठ साल में एक भी रात अंधेरे में नहीं गुजारी। गांव के प्रत्येक घर में इस परियोजना की बदौलत चार बल्ब तो जले ही, अधिकांश परिवार टेलीविजन से भी जुड़े। परियोजना की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आठ साल में एक भी दिन पावर कट नहीं हुआ, लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी की मार ने परियोजना को नजर लगा दी। गदेरे में पानी कम होने के कारण करीब छह माह पूर्व विद्युत उत्पादन ठप्प हो गया। तब से गांव अंधेरे में डूबा हुआ है। घने बांज, बुरांश के जंगलों से घिरे इस गांव की ओर इस बार बादलों ने अब तक इस ओर रुख ही नहीं किया है। ग्रामीण नारायण सिंह का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ कि क्षेत्र में साल भर से बारिश नहीं हुई। साथ ही सर्दियों में बर्फ भी नहीं पड़ी। इसके कारण गांव में बहने वाले गदेरों में पानी कम हो गया है। परियोजना का कार्य देख रहे वीर सिंह राणा का कहना है कि परियोजना बनने के बाद आठ साल में पहली बार ग्रामीणों को अंधेरे में रहना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि परियोजना को दोबारा शुरू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। --- पचास रुपये में मिलती थी बिजली नई टिहरी: दो साल की अथक मेहनत के बाद तैयार हुई परियोजना के संचालन के लिए ग्रामीणों ने पंचायत समिति गेंवाली का गठन किया था। परियोजना के रखरखाव के लिए प्रति परिवार हर माह 50 रुपये शुल्क लिया जाता था। गांव के ही एक व्यक्ति को परियोजना के रखरखाव के लिए पूर्णकालिक तैनाती दी गई थी। अन्य गांवों में जहां बिजली की आंखमिचौनी व भारी भरकम बिलों से उपभोक्ता परेशान रहते हैं, वहीं यह गांव स्वावलंबन के मामले में मिसाल था।

Saturday, 11 July 2009

=देश भर में सर्वे ऑफ इंडिया के आठ दफ्तर बंद होंगे

-नागपुर, ग्वालियर, इंदौर, अजमेर, वाराणसी, विशाखापत्तनम समेत आठ जीडीसी पर गाज -स्टाफ की कमी, नई तकनीक का इस्तेमाल व आउटसोर्सिंग बनी वजह देहरादून देश का सबसे पुराना वैज्ञानिक महकमा सर्वे ऑफ इंडिया देश भर में अपने कम से कम आठ दफ्तर बंद करने की तैयारी में है। सर्वे की हर प्रदेश में उसका एक ही ज्योडीय आंकड़ा केेंद्र (जियोडिक डाटा सेंटर-जीडीसी) रखने की योजना है। इसके तहत सबसे पहली गाज नागपुर के सेमिनरी हिल्स स्थित सीजीओ कांप्लेक्स के दफ्तर पर गिरने की आशंका है। नागपुर का यह दफ्तर जीरो माइल पिलर के कारण मशहूर है। इस ऐतिहासिक पिलर की स्थापना 1802 में शुरू होकर 60 साल तक चले ग्रेट आर्क सर्वे (महान त्रिकोमितीय सर्वेक्षण)के दौरान की गई थी। यह सर्वे सर जॉर्ज एवरेस्ट ने पूरा किया था। नागपुर के पिलर का इस्तेमाल मानचित्र निर्माण में समुद्र तल से ऊंचाई मापने के लिए किया जाता रहा है। बताया जा रहा है कि नागपुर के बाद ग्वालियर, इंदौर, अजमेर, विशाखापत्तनम और वाराणसी समेत आठ दफ्तरों को भी बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। महाराष्ट्र में अब केवल पुणे में ही सर्वे आफ इंडिया का दफ्तर रहेगा। गौरतलब है कि 1767 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत का भौगोलिक सर्वेक्षण करने के लिए सर्वे आफ इंडिया की स्थापना की थी। सर्वे ऑफ इंडिया में नई तकनीक आने व आउट सोर्सिंग शुरू होने के बाद से 2004 से स्टाफ कम करने की कवायद चल रही है। नागपुर में इस वक्त सर्वे कार्य के लिए चार-पांच लोग हैं। एक सर्वे कैैंप टीम में कम से कम 29 लोग होने चाहिए। इसी तरह की स्थिति देश के अन्य केेंद्रों में भी है। इन दफ्तरों में इस वक्त 35 से40 लोग ही काम कर रहे हैं, जबकि एक केेंद्र में कम से कम 150 का स्टाफ होना चाहिए। नागपुर में दफ्तर बंद होने के बाद वहां का मानचित्र बिक्री केेंद्र भी बंद हो जाएगा। हालंाकि विभाग में कभी किसी किस्म की छंटनी नहींहुई, लेकिन कर्मचारियों को कम करने की योजना के तहत नई नियुक्तियां भी नहीं हुईं। सर्वे आफ इंडिया के ग्रुप बी आफिसर एसोसिएशन के अध्यक्ष बी पात्रो का कहना है कि नई नियुक्तियां न होने से सर्वे आफ इंडिया के कई दफ्तर कर्मचारियों की भारी कमी झोल रहे हैं। प्रिंटिंग प्रेसों का काम भी आउटसोर्स करने की कोशिश की जा रही है। जो प्रशासन की स्टाफ कम करने की योजना का हिस्सा है। यूनियनें विभाग में कर्मचारियों की तादाद कम करने का विरोध करती रही हैं। सर्वे के बंद हो रहे दफ्तरों के कर्मचारियों को दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित करने की कवायद चल रही है। सर्वे आफ इंडिया के उप महासर्वेक्षक मेजर जनरल आरएस तंवर का कहना है कि केवल उन्हींकेेंद्रों को बंद किया जा रहा है जो व्यवहारिक नहींरह गए हैं। जहां केवल दो या चार कर्मचारियों का स्टाफ रह गया है और इमारत का किराया 40,000 रुपये तक देना पड़ रहा है।

-'सास' ने कराया 'बहू' का गृह प्रवेश

मनमोहन के परिवार को करीब से जानने घर पहुंचीं राखी शुक्रवार सुबह तीर्थनगरी से विदा लेंगी राखी सावंत ऋषिकेश, स्वयंवर के माध्यम से वर का चयन करने की ठान चुकीं आइटम गर्ल राखी सावंत अपनी संभावित ससुराल व ससुरालियों का मिजाज जानने मनमोहन तिवारी के घर पहुंचीं। राखी की 'सास' ने अपनी 'बहू' का परंपरागत ढंग से गृह प्रवेश कराया। मनमोहन के परिवार ने राखी के स्वागत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। गुरुवार को अभिनेत्री राखी सावंत कार्यक्रम के प्रतिभागी मनमोहन तिवारी के परिवार को जानने उनके घर पहुंचीं। दोपहर करीब तीन बजे राखी मनमोहन के साथ गंगा नगर गणेश विहार स्थित उनके आवास पहुंचीं। यहां पहले से ही राखी के स्वागत की पूरी तैयारियां की गई थीं। पूरे घर को फूलमालाओं से सजाया गया था। राखी व मनमोहन की जोड़ी जैसे ही कार से बाहर निकली, उनके दीदार पाने को सैकड़ों लोग वहां जुट गए। घर के मुख्य द्वार पर मनमोहन की मां गायत्री तिवारी व पिता एसएन तिवारी सहित परिवार के कई लोगों ने फूलमालाओं से उनका स्वागत किया। मनमोहन की मां ने बाकायदा पारंपरिक रूप से घर आई राखी की आरती उतारी। राखी भी परिवार के वरिष्ठजनों का सम्मान करना नहीं भूलीं और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ग्रहण किया। संभावित 'बहू' के रूप में घर पहुंचीं राखी को देखने के लिए पड़ोस के लोग व रिश्तेदार पहले से ही घर में उपस्थित थे। राखी के पीछे उनके प्रशंसकों की बारात ने बिल्कुल 'बहू' के गृह प्रवेश का माहौल बना दिया। राखी ने परिवार के कई सदस्यों से अलग-अलग बातचीत की। बातचीत में अधिकांश सवाल राखी ने परिवार वालों से उसे बहू स्वीकार करने संबंधी पूछे। जबकि घर में होने वाले कार्यों के बारे में भी उन्होंने जानकारी ली। ये सभी चीजें एनडीटीवी इमेजिन के कैमरों के आगे शूट हुईं। टीम के साथ आए लोगों का कहना था कि चैनल पर अगले कार्यक्रमों के दौरान ये दृश्य दिखाए जाएंगे। घंटों तक परिवार के सदस्यों से बातचीत करने के बाद राखी मनमोहन के साथ घर के बाहर लॉबी में आ पहुंचीं। राखी ने बाहर आकर हाथ जोड़कर अपने प्रशंसकों व मिलने आए लोगों का अभिवादन किया। कुछ देर बाद राखी पुन: कमरे में जा पहुंचीं। राखी शुक्रवार को जौलीग्रांट हवाई अड्डे से वापस जाएंगी, जबकि देर रात तक विभिन्न स्थानों पर उनके कई शॉट फिल्माए गए। --- सिलबट्टे पर चटनी पीसकर दिया चैलेंज का जवाब ऋषिकेश: 'सास' का चैलेंज 'बहू' ने इतनी गंभीरता से लिया कि देखने वाले भी हक्के-बक्के रह गए। राखी ने सिलबट्टे पर चटनी पीसकर दिखा दिया कि वह एक आदर्श गृहणी की भूमिका भी निभा सकती हैं। मनमोहन की मां गायत्री तिवारी ने कार्यक्रम के दौरान राखी को बहू के रूप में स्वीकार करने की एक शर्त रखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि क्या राखी सिलबट्टे पर मसाले व चटनी पीस सकती हैं। हालांकि यह शो अभी तक प्रदर्शित नहीं हो पाया है। जवाब में राखी ने उनका यह चैलेंज सहर्ष स्वीकार किया था। ऋषिकेश पहुंचीं राखी ने गायत्री तिवारी को उनका चैलेंज याद दिलाया और उनके रसोईघर में जा पहुंचीं। राखी ने सिलबट्टे पर अपने हाथों से चटनी पीसकर सास की चुनौती का जवाब दिया। राखी के इस स्वभाव को देखकर परिवार के लोगों ने उनकी प्रशंसा की। --- शूटिंग में व्यस्त रहीं राखी, प्रशंसक लौटे निराश 'राखी का स्वयंवर' कार्यक्रम की ऋषिकेश में शूटिंग ऋषिकेश, संभावित 'ससुराल' तीर्थनगरी में आइटम गर्ल राखी सावंत का दूसरा दिन काफी व्यस्त रहा। शूटिंग के सिलसिले में राखी व चैनल की टीम दिनभर शहर क्षेत्र में भटकती रही। राखी के प्रशंसकों ने भी उनका पीछा नहीं छोड़ा। एनडीटीवी इमेजिन का चर्चित रियलिटी शो 'राखी का स्वयंवर' तीर्थनगरी के लिए खास बन गया है। कार्यक्रम में ऋषिकेश के प्रतिभागी मनमोहन तिवारी के साथ राखी सावंत इन दिनों शो के दृश्य फिल्माने के लिए तीर्थनगरी में हैं। बुधवार सायं राखी यहां पहुंची थीं। गुरुवार को शो के लिए विभिन्न जगहों पर शूटिंग की गई। सुबह सबसे पहले मनमोहन तिवारी के लक्ष्मण झाूला रोड स्थित पुराने आवास पर शूटिंग की गई। इसके बाद सत्यनारायण मंदिर में राखी के मनमोहन के साथ कई दृश्य फिल्माए गए।

-राज्य में बीटेक, बीफार्मा व एमबीए की फीस तय

-13 कालेजों के मुआयने के लिए सब कमेटी गठित -ज्यादा फीस ली तो दस लाख रुपये जुर्माना भरना होगा -सरकार ने 12 निजी कालेजों के लिए फीस निर्धारित की -न्यूनतम फीस बीटेक के लिए 52 हजार, बीफार्मा के लिए 60 हजार व एमबीए के लिए 55 हजार तय देहरादून: सरकार ने एक दर्जन निजी कालेजों के लिए बीटेक, बीफार्मा व एमबीए की फीस तय की है। इनमें छह कालेजों में अंतिम रूप से फीस निर्धारित करने से पहले मुआयना किया जाएगा। यही नहीं, इन कालेजों ने ज्यादा शुल्क वसूल किया तो संबद्धता के खात्मे के साथ ही दस लाख रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा। सरकार ने 13 कालेजों के मुआयने के लिए सब कमेटी गठित की है। उक्त कालेजों के लिए वर्ष 2009-10 से तीन वर्ष तक फीस निर्धारित की है। शासन स्तर पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश लक्ष्मी बिहारी की अध्यक्षता में गठित फीस कमेटी ने 12 कालेजों की ओर से पेश किए गए अभिलेखों व पत्रजातों के आधार पर यह कदम उठाया। इनमें दून के आठ व अन्य स्थानों के चार कालेज शामिल हैं। कमेटी ने बीटेक पाठ्यक्रम के लिए दून के उत्तरांचल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में 59000 रुपये, तुलाज इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी में 57000 रुपये, रुड़की इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी रुड़की के लिए 56000 रुपये, आम्रपाली इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलाजी के लिए 52000 रुपये फीस तय की है। बीफार्मा पाठ्यक्रम के लिए दून के हिमालयन इंस्टीट्यूट आफ फार्मेसी एंड रिसर्च में 60 हजार, जीआरडी इंस्टीट्यूट एंड टेक्नोलाजी में 60 हजार, सरदार भगवान सिंह पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट बायोमेडिकल साइंस में 67500 रुपये, श्रीमती तारावती इंस्टीट्यूट आफ बायोमेडिकल एंड एप्लाइड साइंस रुड़की में 60 हजार, देवभूमि कालेज आफ फार्मेसी रुद्रपुर (वनस्थली विद्यापीठ) में 60 हजार रुपये, श्री देवभूमि इंस्टीट्यूट आफ एजुकेशन साइंस एंड टेक्नोलाजी में 60 हजार रुपये फीस छात्र-छात्राओं को देनी पड़ेगी। एमबीए के लिए दून बिजनेस स्कूल सेलाकुई देहरादून व एकेडमी आफ मैनेजमेंट स्टडीज देहरादून में 55 हजार रुपये फीस ली जाएगी। फीस नए सत्र 2009-10 से अगले तीन वर्षों के लिए लागू होगी। पुराने छात्र-छात्राओं को नया व बढ़ा शुल्क नहीं देना पड़ेगा। कमेटी छह कालेजों के लिए फीस अनंतिम रूप से तय की है। कमेटी ने उक्त कालेजों के मुआयने को तकनीकी शिक्षा अपर सचिव व चार्टर्ड एकाउंटेंट की सब कमेटी गठित की है। कमेटी में तकनीकी विशेषज्ञ को नामित किया जाएगा। उक्त कालेजों के अतिरिक्त आईएमटी काशीपुर, निंबस एकेडमी आफ मैनेजमेंट, देहरादून एकेडमी आफ मैनेजमेंट स्टडीज, दून बिजनेस स्कूल, सरस्वती इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट रुद्रपुर, माडर्न इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी ऋषिकेश एवं कुकरेजा इंस्टीट्यूट आफ होटल मैनेजमेंट देहरादून का मुआयना भी कमेटी करेगी। सब कमेटी को 20 जुलाई तक रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है। फीस के संबंध में जारी शासनादेश में यह स्पष्ट किया गया है कि उक्त फीस में शिक्षण व डेवलपमेंट फीस शामिल है। इसके अलावा कालेज सिर्फ हास्टल व मैस की ही फीस ले सकेंगे। एग्जाम फीस तकनीकी विवि तय करेगा। तकनीकी शिक्षा प्रमुख सचिव राकेश शर्मा के मुताबिक निर्धारित से ज्यादा फीस लेने वाले कालेजों पर संबद्धता समाप्त करने के साथ ही न्यूनतम दस लाख रुपये जुर्माना लगाया जाएगा।

एक गांव, जो मिसाल बना देश के लिए

-टिहरी के गेंवाली गांव में आठ साल में पहली बार गई बिजली -2001 में ग्रामीणों ने स्वयं की मेहनत से तैयार की थी परियोजना -मौसम की मार से पानी की कमी के चलते ठप हुई विद्युत परियोजना नई टिहरी जनपद के सीमांत गांव गेंवाली के ग्रामीणों की मेहनत पर मौसम की मार भारी पड़ी है। ग्रामीणों का अपनी मेहनत से बनाया हुआ 25 किलोवाट क्षमता की विद्युत परियोजना बेहतर ढंग से काम कर रही थी और लगातार आठ साल तक इसके जरिए यह गांव रोशन रहा, लेकिन इस बार गदेरे (पहाड़ी नदी) में पानी कम होने के कारण परियोजना से विद्युत उत्पादन ठप हो गया। इसके चलते पिछले छह माह से दूसरे गांवों के लिए मिसाल बना रहा यह गांव अंधेरे में डूबा हुआ है। नई टिहरी मुख्यालय से 85 किमी दूर स्थित गेंवाली गांव के लोगों को सड़क से गांव तक पहुंचने के लिए 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यही कारण है कि अभी तक इस गांव में विद्युतीकरण नहीं हो पाया। दूसरे सीमांत गांवों की तरह बिजली के लिए सरकार की राह तकने की बजाय भिलंगना प्रखंड के गेंवाली गांव के लोगों ने खुद की मेहनत पर भरोसा जताया। इसके तहत ग्रामीणों ने साठ घरों वाले अपने गांव को रोशन करने का मन बनाया और 2001 में कड़ी मेहनत के बल पर 25 किलोवाट की विद्युत परियोजना का निर्माण कर लिया। इस परियोजना के लिए दिल्ली स्थित फोराल्ड नामक संस्था ने सहयोग दिया था। परियोजना में बिजली उत्पादन शुरू होने के बाद लकड़ी के खंभों से लाइन डालकर गांव तक बिजली पहुंचाई गई। इसके बाद से इस गांव ने आठ साल में एक भी रात अंधेरे में नहीं गुजारी। गांव के प्रत्येक घर में इस परियोजना की बदौलत चार बल्ब तो जले ही, अधिकांश परिवार टेलीविजन से भी जुड़े। परियोजना की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आठ साल में एक भी दिन पावर कट नहीं हुआ, लेकिन इस बार मौसम की बेरुखी की मार ने परियोजना को नजर लगा दी। गदेरे में पानी कम होने के कारण करीब छह माह पूर्व विद्युत उत्पादन ठप्प हो गया। तब से गांव अंधेरे में डूबा हुआ है। घने बांज, बुरांश के जंगलों से घिरे इस गांव की ओर इस बार बादलों ने अब तक इस ओर रुख ही नहीं किया है। ग्रामीण नारायण सिंह का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ कि क्षेत्र में साल भर से बारिश नहीं हुई। साथ ही सर्दियों में बर्फ भी नहीं पड़ी। इसके कारण गांव में बहने वाले गदेरों में पानी कम हो गया है। परियोजना का कार्य देख रहे वीर सिंह राणा का कहना है कि परियोजना बनने के बाद आठ साल में पहली बार ग्रामीणों को अंधेरे में रहना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि परियोजना को दोबारा शुरू करने के प्रयास किए जा रहे हैं। --- पचास रुपये में मिलती थी बिजली नई टिहरी: दो साल की अथक मेहनत के बाद तैयार हुई परियोजना के संचालन के लिए ग्रामीणों ने पंचायत समिति गेंवाली का गठन किया था। परियोजना के रखरखाव के लिए प्रति परिवार हर माह 50 रुपये शुल्क लिया जाता था। गांव के ही एक व्यक्ति को परियोजना के रखरखाव के लिए पूर्णकालिक तैनाती दी गई थी। अन्य गांवों में जहां बिजली की आंखमिचौनी व भारी भरकम बिलों से उपभोक्ता परेशान रहते हैं, वहीं यह गांव स्वावलंबन के मामले में मिसाल था।

Tuesday, 7 July 2009

-खामोश मौत की राह पर 'मौन साक्षी'

चंद्रशेख्रर आजाद ने दुगडडा के निकट एक वृक्ष पर गोली चलाकर बजाई थी क्रांति की रणभेरी -मौन साक्षी के तौर पर जाना जाता है यह पेड़ पेड़ गिरा, अब ठूंठ का संरक्षण करने को आतुर वन विभाग कोटद्वार(गढ़वाल), आजादी के मतवालों से जुड़ी यादों को सहेज कर रखने में हम कितने लापरवाह हैं, इसका अंदाजा पौड़ी गढ़वाल जिले में दुगड्डा-सेंधीखाल मार्ग पर नाथूपुर के निकट स्थित उस पेड़ की हालत को देखकर लगाया जा सकता है, जो कभी महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की यादों की गवाह था। आलम यह है कि संरक्षण के अभाव में यह वृक्ष जमींदोज होने की कगार पर है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं। दुगड्डा के निकट नाथूपुर के रहने वाले क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत के आग्रह पर वर्ष 1930 में चंद्रशेखर आजाद अपने साथियों रामचंद्र, हजारीलाल, छैल बिहारी, विशंबर दयाल के साथ यहां आए थे। यहां उन्होंने क्रांतिकारियों को शस्त्र प्रशिक्षण दिया था। प्रशिक्षण की समाप्ति पर जब साथियों ने आजाद से निशानेबाजी का कौशल दिखाने का आग्रह किया, तो उन्होंने इस पेड़ के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साध अपनी पिस्टल से फायर किए। एक के बाद एक पांच गोलियां चलीं, लेकिन पत्ता हिला तक नहीं। साथी समझो कि बार-बार आजाद का निशाना चूक रहे हैं, छठा फायर किया, तो पत्ता हिला। पेड़ के निकट पहुंचकर पता चला कि सभी छह गोलियां पत्ते को भेदती हुई पेड़ पर लगी थीं। तब से यह पेड़ आजाद की यादगार बन गया। क्षेत्रवासी लंबे समय से इसे ऐतिहासिक धरोहर में शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। नतीजतन, 12 मई 2006 को आंधी में वृक्ष का एक बड़ा हिस्सा टूट कर गिर गया। इसके बाद होश आया, तो पालिका परिषद व गणमान्य नागरिकों के आग्रह पर मई 2008 में एफआरआई देहरादून से पहुंचे एक दल ने यहां आकर पेड़ के नमूने लिए। दल ने पाया कि पानी व फंगस के कारण पेड़ का क्षरण हो रहा है। उस समय इस पेड़ के बचे हिस्से पर रासायनिक लेप की बात कही गई थी, लेकिन एक वर्ष गुजरने के बाद अब तक ऐसा नहीं किया गया है। --- कौन है दोषी कोटद्वार: वन विभाग ने इस ऐतिहासिक वृक्ष की समय रहते सुध नहीं ली। हालांकि, वृक्ष के निकट पार्क बनाकर क्षेत्र का सौंदर्यीकरण किया गया, लेकिन इसके संरक्षण की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए गए। लैंसडौन वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी निशांत वर्मा ने बताया कि वृक्ष के अवशेष ठूंठ को संरक्षित करने को शेड का निर्माण कराया जा रहा है। साथ ही टूटे हुए हिस्से को निकट ही स्थित पार्क में सुरक्षित रखा गया है। वृक्ष के संरक्षण को विभाग एक वृहद योजना भी तैयार कर रहा है।

आयुर्वेदिक विवि को हरी झांडी

निशंक कैबिनेट की पहली बैठक में लिया गया निर्णय देहरादून कैबिनेट ने हरिद्वार में आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की स्थापना को मंजूरी दे दी है। साथ ही आज कैबिनेट बैठक में होम्योपैथ चिकित्सा सेवा नियमावली को पारित किया गया। कैबिनेट ने बजट, बिजली व पानी के मुद्दों पर भी अनौपचारिक चर्चा की। कैबिनेट फैसलों के बारे में मुख्य सचिव इंदु कुमार पंाडे और प्रमुख सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) केशवदेसि राजू ने बताया कि आयुर्वेदिक विवि पर दिसंबर 2001 में निर्णय लिया गया था। किन्हीं कारणों से इस बारे में अधिनियम नहीं बन पाया। अब कैबिनेट ने इसे स्वीकृति दी है। हरिद्वार में ऋषिकुल व गुरुकुल आयुर्वेदिक कालेजों को मिलाकर आयुर्वेद विवि की स्थापना का प्रस्ताव है। होम्योपैथिक चिकित्सा सेवा नियमावली के संबंध में लिए गए निर्णय के बारे में प्रमुख सचिव श्री राजू ने बताया कि लंबे समय से नियुक्ति न होने से बड़ी संख्या में होम्योपैथिक चिकित्सक ओवर ऐज हो गए हैं। उनकी मांग पर आयु सीमा में पांच साल की छूट दी गई है। अब न्यूनतम आयु सीमा 35 से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दी गई है। सूत्रों ने बताया कि ये दोनों मामले कुछ ही मिनटों की चर्चा के बाद पास हो गए। कैबिनेट का अधिकांश समय बिजली और पानी जैसे मुद्दों पर अनौपचारिक बातचीत में लगा। बैठक की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री डा.निशंक ने कैबिनेट के साथियों से सूबे के आम बजट पर भी मंथन किया। --- राह आसान होने में लगे आठ साल डा. निशंक का ड्रीम प्रोजेक्ट है आयुर्वेद विश्वविद्यालय उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की राह आठ साल बाद आसान होती दिख रही है। यह विवि मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है। ऐसे में माना यही जा रहा है कि अपने सपने को जल्द पूरा करने को मुख्यमंत्री चिकित्सा शिक्षा विभाग अपने पास ही रख सकते हैैं। निशंक कैबिनेट की पहली औपचारिक बैठक में ही उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय को मंजूरी मिल गई है। अब इस विवि की स्थापना का राह आसान होती दिख रही है। खास बात यह है कि इस विवि को कैबिनेट की मंजूरी मिलने में आठ वर्ष लग गए। कहा तो यही जा रहा है कि यह आयुर्वेद विवि मुख्यमंत्री डा.निशंक का ड्रीम प्रोजेक्ट है। भाजपा की अंतरिम सरकार के समय में मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने बतौर चिकित्सा शिक्षा मंत्री इस बारे में एक प्रस्ताव तैयार करवाया था। उस वक्त किन्हीं कारणों से इसे मंजूरी नहीं मिल सकी थी। बाद में एनडी सरकार के समय में भी इस दिशा में कोशिशें शुरू हुईं पर उन्हें परवान नहीं चढ़ाया जा सका। सवा दो साल पहले सूबे की सत्ता पर भाजपा काबिज हुई तो डा.निशंक एक बार फिर से कैबिनेट में शामिल हुए। उन्हें चिकित्सा महकमा दिया तो गया पर चिकित्सा शिक्षा को सीएम ने अपने पास ही रखा। इसके बाद भी डा. निशंक इस बारे में प्रयास करते रहे। तमाम कोशिशों के बाद इसका प्रस्ताव तैयार भी हुआ तो वित्त विभाग ने इसमें अड़ंगा लगा दिया। इसके साथ ही अन्य आपत्तियां भी लगा दी गईं। नतीजा यह रहा कि विवि स्थापना की दिशा में कोई भी काम आगे नहीं बढ़ सका। सूबे की सरकार का मुखिया बनने के बाद डा.निशंक ने पहली कैबिनेट में ही इसे मंजूरी दिलाकर यह साबित कर दिया कि आयुर्वेद विवि उनका ड्रीम प्रोजेक्ट हैै। अब माना यही जा रहा है कि डा. निशंक चिकित्सा शिक्षा विभाग को अपने पास ही रख सकते हैैं। ऐसे में अपने सपने को तेजी से पूरा करने के लिए में सीएम को कोई भी दिक्कत नहीं होगी।

टीम निशंक को मिला काम

: आखिरकार मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के बीच विभागों का बंटवारा कर ही दिया। रविवार देर रात मुख्यमंत्री ने विभागों के बंटवारे की घोषणा की। अब टीम निशंक की शक्ल कुछ यूं है। मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल- गोपन, कार्मिक, गृह एवं सतर्कता, ऊर्जा, लोक निर्माण एवं राज्य संपत्ति, सचिवालय प्रशासन, वित्त, आवास, नागरिक उड्डयन, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, आयुष एवं चिकित्सा शिक्षा, आपदा प्रबंधन, खेलकूद, उच्च व तकनीकी शिक्षा, संस्कृति शिक्षा, सूचना एवं सूचना प्रौद्योगिकी। कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी- सिंचाई, लघु सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, खादी एवं ग्रामोद्योग, समाज कल्याण एवं विकलांग कल्याण। बिशन सिंह चुफाल- वन एवं वन्य जंतु पर्यावरण, जलागम प्रबंधन, परिवहन, सहकारिता, प्रोटोकाल एवं ग्रामीण अभियंत्रण सेवा। प्रकाश पंत- संसदीय कार्य, विधायी, पेयजल, श्रम, नियोजन, पुनर्गठन, बाह्य सहायतित परियोजनाएं, निर्वाचन एवं भारत नेपाल से संबधित उत्तराखंड की नदी परियोजनाएं। दिवाकर भट्ट- राजस्व, भूप्रबंधन, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति एवं सैनिक कल्याण। मदन कौशिक- आबकारी, गन्ना विकास, चीनी उद्योग, नगर विकास एवं पर्यटन। त्रिवेंद्र सिंह रावत- कृषि, कृषि शिक्षा, कृषि विपणन, उद्यान, फलोद्योग, पशुपालन, दुग्ध विकास एवं मत्स्य पालन। राजेंद्र सिंह भंडारी- पंचायती राज, वैकल्पिक ऊर्जा, जनगणना, नागरिक सुरक्षा एवं होमगार्ड व कारागार। राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विजया बड़थ्वाल- ग्राम्य विकास, महिला कल्याण एवं बाल विकास। गोविंद सिंह बिष्ट- विद्यालयी शिक्षा (प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा)। राज्यमंत्री खजान दास- आपदा प्रबंधन एवं समाज कल्याण। बलवंत सिंह भौर्याल- चिकित्सा एवं स्वास्थ्य तथा सूचना प्रौद्योगिकी।

पतंजलि विवि के कुलपति बने आचार्य बालकृष्ण

-स्वामी रामदेव ने योग शिविर में की घोषणा -कहा, आदर्श विवि बनाने की कोशिश होगी हरिद्वार, पतंजलि विश्वविद्यालय ने कुलाधिपति स्वामी रामदेव ने पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण विवि को कुलपति नियुक्त किया है। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सहयोग से दिल्ली से आए योग शिक्षकों के लिए आयोजित शिविर में स्वामी रामदेव ने इसका ऐलान किया। पतंजलि योग विवि के कुलाधिपति योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा कि बाल्यकाल से गुरुकुल शिक्षा पद्धति में शिक्षित आचार्य बालकृष्ण अद्भुत प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने कहा कि कुलपति के रूप में आचार्य बालकृष्ण विवि को नई दिशा देंगे। स्वामी रामदेव ने कहा कि देश में लगभग 450 विवि, 13 लाख प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय व लगभग 15 हजार महाविद्यालय हैं। विज्ञान, प्रबंधन व तकनीकी शिक्षा देने वाली अनेक शिक्षण संस्थाएं हैं, फिर भी शिक्षा संस्थानों में अपने संस्कारों एवं संस्कृति को पूरी तरह समाविष्ट नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पतंजलि विवि के माध्यम से उन्नत शिक्षा के साथ-साथ ध्यान, संयम व सदाचार की शिक्षा पर जोर दिया जाएगा। विवि योग, स्वास्थ्य, संस्कृति, पर्यटन, विज्ञान, प्रौद्योगिकी व पंचकर्म के क्षेत्र में काम करेगा। विवि में योग व आयुर्वेद आधारित डिप्लोमा व डिग्री कोर्स शुरू किए गए हैं। नवनियुक्त कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद सस्ती, सरल, सहज, शाश्वत, वैज्ञानिक, निर्दोष व संपूर्ण चिकित्सा विद्या है। उन्होंने कहा कि वे योग और आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति के रूप में प्रतिष्ठापित करना चाहते हैं। पतंजलि विवि के माध्यम से शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक नूतन क्रांति लायी जा रही है। ऐसे स्नातक तैयार किए जाएंगे जो जो स्वयं तो जीवन में आत्मनिर्भर बने ही साथ ही अन्य को भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में रोजगार व स्वावलंबन की नई दिशा देने में सक्षम हों।

कतने सुरक्षित हैं कुमाऊं के कारागार!

तीन साल में फरार हुए डेढ़ दर्जन अपराधी ऊधमसिंह नगर से भागे सर्वाधिक १० बंदी नैनीताल के पांच बंदी अभी भी पकड़ के बाहर नैनीताल। दशकों पूर्व बने कुमाऊं के कारागार कितने सुरक्षित हैं? 1या यहां सुरक्षा मानकों का पालन होता है? इसका अंदाजा आप बंदियों के भागने की सं2या से खुद ब खुद लगा सकते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले तीन वर्षों में कुमाऊं की जेलों से डेढ़ दर्जन बंदी फरार हो चुके हैं, इनमें भी सर्वाधिक ऊधमसिंह नगर से हैं। अकेले इस जिले से १० बंदी अब तक भागने में सफल रहे हैं।यहां बताते चलें कि कुमाऊं के जेलों में अकसर घटने वाली घटनाओं से सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगते रहे हैं। बावजूद इसके सुरक्षा व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सबसे पहले हम बात करते हैं नैनीताल जेल की। यहां से २६ जून २००६ को तीन बंदी (राजेश कुमार, राजू रावत तथा मोहन पालीवाल) सुरक्षा व्यवस्था का धता बताकर फरार हो गए थे। हालांकि पुलिस ने उन्हें उसी रोज मार गिराया था। इस घटना से सबके लेने की बजाय जेल प्रशासन अब भी उसी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। विभागीय सूत्रों की मानें तो बीते तीन वर्षों में कुमाऊं की विभिन्न जेलों से डेढ़ दर्जन बंदी फरार हुए। इनमें ऊधमसिंह नगर से १०, नैनीताल से आठ, पिथौरागढ़ से एक और चंपावत के दो बंदी थे। हालांकि पुलिस विभाग की ओर से तीन के एनकाउंटर समेत सात भगौड़ों की गिर3तारी कर ली गई, जिनका मुकदमा न्यायालय में चल रहा है। लेकिन ऊधमसिंह नगर के तीन तथा नैनीताल के पांच भगौड़े आज भी पुलिस की गिर3त से बाहर हैं। ऐसे में कुमाऊं की जेलों की सुरक्षा का सवाल हाईटेक होते दौर में साल दर साल बड़ा होता जा रहा है। ---- ये हैं पुलिस की गिर3त से बाहर ऊधमसिंह नगर की जेलों से भागे जितेन्द्र (रुद्रपुर), उमाशंकर (आगरा) और देवराम (गदरपुर)। नैनीताल जेलों से भागे अमरीक (काशीपुर), प्रकाश (हल्द्वानी), हेमराज (लालकुंआ), मुराद अली (रोहतक हरियाणा)।