Thursday, 10 September 2009
कभी एशिया में था चीड़ महावृक्ष का जलवा
विकासनगर/त्यूणी- कभी उत्तराखंड का गौरव समझा जाने वाला एशिया का सबसे ऊंचा चीड़ महावृक्ष अब सिर्फ इतिहास का हिस्सा मात्र रह गया है। 220 वर्षो तक हर तरह के मौसमी झंझावत झेले, लेकिन 8 मई 2007 को आए तेज आंधी-तूफान में अपने ऊंचे अस्तित्व को बचाए रखने में नाकाम चीड़ महावृक्ष अब सिर्फ डाटों के रूप में हमेशा के लिए अपनी याद छोड़ गया
है। टौंस वन प्रभाग पुरोला के देवता रेंज के भासला कंपार्टमेंट खूनीगाड़ में स्थित चीड़ महावृक्ष की लंबाई पर उत्तराखंड के लोगों को नाज था। बेहतर पालन पोषण में पल-बढ़ रहे चीड़ महावृक्ष को पूरे एशिया महाद्वीप में सबसे ऊंचे पेड़ का गौरव हासिल था। हनोल से पांच किमी. दूर स्थित देवता रेंज में चीड़ महावृक्ष की लंबाई 60.65 मीटर और गोलाई 2.70 मीटर थी। इस महावृक्ष की विशेषता यह थी कि इसमें मुख्य तने से लेकर ऊपर तक कोई शाखाएं नहीं थीं, सिर्फ शीर्ष में कुछ शाखाओं का झुरमुट था, जिसके कारण इसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। चीड़ महावृक्ष की लंबाई के चर्चे दूर-दूर तक पहुंचे तो वर्ष 1997 में भारत सरकार के वन व पर्यावरण मंत्रालय ने इस चीड़ वृक्ष को एशिया महाद्वीप का सबसे लंबा महावृक्ष घोषित कर दिया। जब इस वृक्ष ने यह गौरव हासिल किया, तब इसकी आयु करीब 220 वर्ष हो चुकी थी। गैनोडर्मा एप्लेनेटस नामक रोग ने अपना प्रकोप इस कदर फैलाया कि महावृक्ष को अंदर ही अंदर खोखला कर दिया। गिरने से कुछ समय पहले आईएफआरआई के वैज्ञानिकों ने महावृक्ष के रोग मुक्त होने की पुष्टि की थी। एक तरफ अच्छी खासी आयु और उसमें महावृक्ष की ताकत कम होने लगी और आठ मई 2007 में आए आंधी-तूफान का सामना करने की इसमें शक्ति नहीं बची, लिहाजा तीन टुकड़ों में टूटकर चीड़ महावृक्ष इतिहास का हिस्सा बन गया। इसकी यादें बरकरार रखने के लिए विभाग ने महावृक्ष के तने को काटकर उसकी 22 डाटें बनाईं, जिन्हें आज भी संग्रहालय के रूप में उसी स्थान पर संरक्षित रखा गया है, जहां कभी महावृक्ष अपनी लंबाई और सुंदरता के साथ तन कर खड़ा था। वैज्ञानिकों द्वारा समय-समय पर इन डाटों को मोनो क्रोटाफास नामक औषधि से उपचारित किया जाता है, ताकि डाटें सुरक्षित और संरक्षित रह सकें।
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