Monday, 28 September 2009
अब बुखार भी भगाएगी बिच्छू घास
इस घास में बुखार भगाने के गुणों की वैज्ञानिक पुष्टि
चूहों पर हुए परीक्षण में पैरासिटामोल से बेहतर साबित हुई
पर्वतीय क्षेत्र में उगती है यह घास
देहरादून
पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली कंडाली यानी बिच्छू घास को अब तक आमतौर पर तंत्र-मंत्र या भूत (ऊपरी साया) आदि भगाने के काम में लाया जाता है, लेकिन अगर इस पर जारी परीक्षण सफल रहे तो उससे जल्द ही बुखार भी भगाया जा सकेगा। वैज्ञानिक इससे बुखार भगाने की दवा तैयार में जुटे हैं। प्राथमिक प्रयोगों ने बिच्छू घास के बुखार भगाने के गुण की वैज्ञानिक पुष्टि कर दी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे तैयार दवा परीक्षण में पैरासिटामोल से भी बेहतर साबित हुई है।
बुखार भगाने की दवा तैयार करने के लिए किए गए परीक्षण में बिच्छू घास के पत्तों का सत्व निकालकर पेट्रोलियम, क्लोरोफार्म, ईथर, एसीटोन, मेथेनॉल और पानी में मिलाया गया, जिनका परीक्षण चूहों के सात समूहों पर किया गया। इन चूहों में पहले कृत्रिम तरीके से बुखार पैदा किया गया। इसके बाद चूहों के एक समूह को पैरासिटामोल के इंजेक्शन दिए गए जबकि अन्य को बिच्छू घास के तत्व वाले घोलों के इंजेक्शन लगाए गए। परीक्षण में सामने आया कि बिच्छू घास पैरासिटामोल से ज्यादा बेहतर काम कर रही है। पैरासिटामोल के इंजेक्शन दिए हुए चूहों की अपेक्षा बिच्छू घास के सत्व के इंजेक्शन लगाए गए चूहों का बुखार जल्दी उतर गया।
बिच्छू घास का बुखार खत्म करने वाला गुण एक शोध में सामने आया है। देहरादून स्थित सरदार भगवान सिंह पीजी इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल साइंसेज ऐंड रिसर्च के फार्मास्युटिकल केमिस्ट्री विभाग की दो शोध छात्राएं बिच्छू घास से बुखार भगाने की दवा तैयार करने के लिए परीक्षण में जुटी हैं। 'प्रिलिमनरी फायटोकेमिकल इन्वेस्टिगेशन ऐंड इवैल्यूशन ऑफ ऐंटी पायरेटिक ऐक्टिविटी ऑन अर्टिका पर्वीफ्लोरा' शीर्षक के तहत शोध कर रही प्रियंका पोखरियाल व अनुपमा सजवाण का कहना है कि चूहों पर परीक्षण के बाद अब महज यह देखना है कि किस रसायन के घोल ने चूहों के बुखार को जल्दी व बेहतर तरीके से खत्म किया। उनका कहना है कि स्थानीय चिकित्सा पद्धति में बिच्छू बूटी के अन्य इलाजों की वैज्ञानिक पुष्टि के लिए वे अपने प्रयोग जारी रखेंंगी।
क्या है बिच्छू घास
आम तौर पर दो वर्ष की उम्र वाली बिच्छू घास को गढ़वाल में 'कंडाली' व कुमाऊं में 'सिसूण' के नाम से जाना जाता है। अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है। बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैैं। पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें झानझानाहट शुरू हो जाती है, जो कंबल से रगडऩे या तेल मालिश से ही जाती है। अगर उस हिस्से में पानी लग गया तो जलन और बढ़ जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में बिच्छू घास का प्रयोग तंत्र-मंत्र से बीमारी भगाने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकडऩ और मलेरिया के इलाज में तो होता ही है, इसके बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसका साग भी बनाया जाता है। माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है। रूस में तो बिच्छू घास के बड़े फार्म हैैं। वहां इसे दूध की मात्रा बढ़ाने को गायों के लिए पौष्टिक चारे की तरह उपयोग में लाया जाता है। आयुर्वेद में इसकी तासीर गर्म मानी जाती है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
आपके लेख के माध्यम से बिच्छू घास के बारें में बहुत अच्छी जानकारी मिली है। आप हमारा लेख भी देख सकते है। बिच्छू घास के बारे में
ReplyDelete