Tuesday, 22 September 2009
-'नैनीताल स्टाइल' में चैनलाइज होगा पहाड़ का पानी
-रेलवे ट्रैक पर मलबा आने से परेशान इंजीनियर ब्रिटिश तकनीक की शरण में
-पचास करोड़ से छोटी-छोटी नालियां व नालों के चैनलाइजेशन का सुझााव
-सभी नालों को ट्रेंड कर गंगा नदी में प्रवाहित किये जाने का सुझााव
-सुझााव मंजूर हुआ तो आईआईटी रुड़की तैयार करेगा स्कीम का डिजाइन
हरिद्वार
अंग्रेज चले गये मगर उनकी तकनीक भारतीय इंजीनियरों को आज भी रास्ता दिखा रही है। सो मंशादेवी पर्वत से आ रहा बरसाती पानी व मलबा रोकने में नाकाम इंजीनियर उसी ब्रिटिश तकनीक की शरण में पहुंचे हैं, जो नैनीताल की पहाडिय़ों पर इस्तेमाल की गई है। शासन से मंजूरी मिल गई तो जल्द ही मंशादेवी पर्वत पर वाटर ड्रेन के जरिए नालों में पानी लाया जाएगा। फिर नालों को ट्रेंड करके गंगा नदी में पहाड़ी पानी को समाहित किया जाएगा।
मंशादेवी पर्वत का बरसाती पानी बीते साल तक अनियंत्रित होकर बहता था। ऐसे में भीमगोड़ा नई बस्ती में हर साल लोगों को बेहद मुसीबत का सामना करना पड़ता था। यह देखते हुए लोक निर्माण विभाग ने हिल बाईपास के निर्माण के साथ एक नाले का निर्माण कर भीमगोड़ा नई बस्ती में आने वाले पानी को नियंत्रित कर दिया। इससे बरसात का पानी इस क्षेत्र में तो आना बंद हो गया, लेकिन पूरा पानी अनियंत्रित होकर प्राचीन काली मंदिर के समीप रेलवे ट्रैक पर जाने लगा। इसके चलते इस बरसात में दो बार रेलवे ट्रैक मलबा आ जाने की वजह से बुरी तरह बाधित हो गया। अभी करीब एक सप्ताह पूर्व तेज बरसात हुई तो रेलवे ट्रैक पर दो फुट तक मलबा चढ़ गया। इसके अलावा सड़क पर भी एक फुट मलबा आ गया। इसके मद्देनजर नगर विकास मंत्री मदन कौशिक ने अगुवाई करते हुए लोनिवि, वन विभाग, रेल विभाग आदि की सम्मिलित बैठक की और इस समस्या का स्थायी हल निकालने के निर्देश दिये।
मंत्री के आदेश के मुताबिक लोनिवि अधिकारियों ने इस पर्वतीय क्षेत्र का गहन निरीक्षण कर यह नतीजा निकाला कि यदि यहां नैनीताल की पहाडिय़ों पर अपनाई गई तकनीक इस्तेमाल की जाय तो पानी चैनलाइज हो सकता है। इस संबंध में लोनिवि ने सुझााव से जिलाधिकारी को भी एक बैठक में अवगत करा दिया। बैठक में निर्णय लिया गया कि इस कार्य को वन विभाग द्वारा अंजाम दिया जाय और तकनीकी मदद लोनिवि द्वारा उपलब्ध कराई जाए। इस संबंध में लोनिवि हरिद्वार खंड के सहायक अभियंता पीएस रावत ने बताया कि उनकी ओर से जो सुझााव दिया गया है, उसके मुताबिक पर्वत के पानी को पहले क्रैच वाटर ड्रेन के जरिये चार पांच बड़े नालों में लाया जाएगा। इसके बाद इन नालों का रुख बदला जाएगा ताकि मलबे की समस्या का स्थायी निदान हो सके। इसके बाद इस पानी को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस योजना पर करीब पचास करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। उन्होंने बताया कि इस पूरी योजना के लिए आईआईटी रुड़की से डिजाइन तैयार कराने का भी सुझााव दिया गया है। यदि शासन से इसे मंजूरी मिल जाती है तो जल्द ही काम शुरू कराया जा सकता है।
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