Thursday, 24 September 2009

-माउंटेन क्वील: नैनीताल में होगी खोज

-1876 में मसूरी और नैनीताल से हो चुकी है विलुप्त -पक्षी दिखने की बात पर सोसाइटी ने शुरू की थी खोज उत्तराखंड की वादियों से वर्ष 1876 में विलुप्त हो चुकी 'माउंटेन क्वील' की मसूरी की पहाडिय़ों में मिलने की आस जगी थी। दो वर्ष तक खोज के प्रयास भी हुए, लेकिन निराशा मिली। बावजूद इसके पक्षी विशेषज्ञों ने वर्ष के अंत में नैनीताल में माउंटेन क्वील की खोज को कमर कसी है। 'माउंटेन क्वील' अंतिम बार मसूरी की 6000 फीट व नैनीताल की 7000 फीट की ऊंची पहाडिय़ों पर 1876 में देखी गई थीं। कुछ समय बाद दोनों जगहों से उसके नहीं मिलने की बात सामने आने लगी। पक्षीविदों के लिए यह बुरी खबर थी। पर्यावरण व पक्षीविद् भी खोज में लगे, पर कुछ खास नहीं कर पाए। इसी बीच यह खबर आई कि मसूरी व नैनीताल की वादियों में 'माउंटेन क्वील' जैसी पक्षी को कुछ लोगों ने देखा है। करीब 15 वर्ष पहले डीएफओ रहे इंद्र सिंह नेगी ने बताया कि पक्षियों के उड़ान भरने वाले झाुंड में उन्हें मसूरी में 'माउंटेन क्वील' दिखाई दी थी। लिहाजा वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के वैज्ञानिकों के दल ने अध्ययन भी किया, लेकिन कुछ पता नहीं चला। चूंकि यह दुनिया के खूबसूरत पक्षियों में एक है इसलिए वाइल्ड लाइफ प्रीजरवेशन सोसाइटी आफ इंडिया ने वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड फार इंडिया को पक्षी की खोज करने का प्रोजेक्ट सौंपा, जिसे मंजूरी मिली। वाइल्ड लाइफ फंड फार इंडिया के बजट से दो वर्ष पहले जाड़े के मौसम में प्रीजरवेशन सोसाइटी ने काम शुरू किया। सर्द ऋतु में झााडिय़ां कम होने से पक्षियों सहित अन्य की साइटिंग अच्छी होती है। इसलिए ऐसे मौसम में इसकी शुरुआत की गई। मसूरी की वादियों में पक्षी विशेषज्ञों व शोध करने वालों को लगाया गया। लगभग दो वर्ष तक 'माउंटेन क्वील' की खोज हुई। वादियों से मिले करीब 80 पंखों को बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) भेजा गया। यहां से पंखों की जांच करने वाली विश्व की सबसे बड़ी संस्था, जो लंदन में है, उसे पंख भेजे गए, लेकिन पंखों में 'माउंटेन क्वील' की पुष्टि नहीं हुई। नैनीताल में भी यह पक्षी देखे जाते थे, लिहाजा यहां पर खोज करने के बाबत एक संभावना बनी। वाइल्ड लाइफ प्रीजरवेशन सोसाइटी आफ इंडिया ने इसके लिए पहल की है। सोसाइटी के सदस्य राजीव मेहता बताते हैं कि पहले से ही अनुकूल वातावरण को देखते हुए ये पक्षी गिनती के मसूरी व नैनीताल में मिलते थे। सोसाइटी के कार्यकारी वाइस प्रसीडेंट व प्रदेश के पहले मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक रहे एएस नेगी ने बताया कि 'माउंटेन क्वील' का शिकार किया जाता था। इस पर कोई प्रतिबंध नहीं था। मसूरी व नैनीताल में म्युनिस्पिलटी के लोग पहाड़ पर उगनी वाली घास घोड़ों के लिए नीलाम करते थे, जिससे धीरे-धीरे 'माउंटेन क्वील' का नेचुरल हैबिटेट नष्ट होने लगा। उन्होंने बताया कि देश में मसूरी व नैनीताल के अलावा कहीं भी रिकार्ड में पक्षी के मिलने की बात सामने नहीं आई है। इस वर्ष के अंत में मसूरी की टूटी आस को जिंदा करने को नैनीताल में माउंटेन क्वील की तलाश शुरू की जाएगी।

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