Saturday, 12 September 2009
-उत्तरकाशी: यहां तप कर विश्व को दिया अध्यात्म का ज्ञान
-संतो की तपस्थली रहा है उत्तरकाशी जिला
-योगगुरु बाबा रामदेव ने दंडी आश्रम में की थी तपस्या
उत्तरकाशी
'ऊं' नाद के साथ प्रवाहित गंगा के पवित्र तट साधु-संतों की तपस्थली रहे हैं। यहां से ज्ञान प्राप्त करने के बाद कई संतों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अध्यात्म की पताका फहराई। गढ़वाल मंडल में उत्तरकाशी भी इसी परंपरा का संवाहक रही है।
गंगा की कल-कल में 'ऊं' नाद समाहित हो जाता है और इसी पर ध्यान में बैठकर तपस्वी देवत्व को प्राप्त करते हैं। गायत्री परिवार के संस्थापक पंडित श्री राम आचार्य शर्मा की यादें आज भी यहां ताजा हैं। यहां की मुक्ति व तप शिला पर पंडित श्री राम आचार्य शर्मा कई घंटे तक ध्यान में खोए रहते थे। इसके बाद वह लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने का भी उपदेश दिया करते थे। बाद में उन्होंने शांतिकुंज हरिद्वार की स्थापना कर देश ही नहीं, बल्कि विश्व में भारत के अध्यात्म का परचम लहराया।
भावातीत ध्यान के जनक महर्षि महेश योगी ने ज्ञानसू कुटिया में पचास के दशक में तप और ध्यान से ईश्वर की साधना की। महर्षि ने ज्ञानसू को ज्ञान का सूर्य की संज्ञा दी। उनके अनुयायी आज भी नित्य कुटिया में पूजा-अर्चना कर जलाभिषेक करते हैं। उन्होंने यहां से ज्ञान प्राप्ति के बाद विश्व के 150 सौ स्थानों पर चेतना व वेद विज्ञान संस्थानों की स्थापना की। भारत में अनगिनत ऐसे स्थान हैं, जहां महर्षि के भावातीत ध्यान की दीक्षा के लिए लाखों लोग प्रति दिन पहुंचते हैं। हिमालयन इंस्टीट्यूट जौलीग्रांट के संस्थापक स्वामीराम ने कडोला ज्ञानसू स्थित कुटिया में साठ के दशक में साधना की। दीन और दुखियों की सेवा का संकल्प के साथ शुरू हुई स्वामीराम की तपस्या से आज कई दुखियों को सहारा मिल रहा है।
योगगुरुबाबा रामदेव ने उत्तरकाशी दंडी आश्रम व गंगोत्री में साधना के साथ ही हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों पर शोध किया। नब्बे के दशक में बाबा रामदेव ने दंडी आश्रम में तपस्या की थी। योगगुरु बाबा रामदेव अब पतंजलि योगपीठ के माध्यम से विश्व के लोगों को योग शिक्षा दे रहे हैं। पतंजलि योग पीठ के सचिव बालकृष्ण ने उत्तरकाशी स्थित दंडी आश्रम में जड़ी-बूटी और योग पर शोध किया। डुंडा के रनाड़ी में दीन बंधु महाराज ने 1970 से 94 तक कुटिया में योग-ध्यान के साथ प्रवचन से लोगों को धर्म की ओर मोड़ा। गंगोत्री की बर्फीली हवाओं में कृष्णा आश्रम महाराज हमेशा नग्न होकर तपस्या में रत रहे। दक्षिण काली की उपासक माता आनंदमयी ने भी उत्तरकाशी में ईश्वर का ध्यान किया। तपोवनी मां संत सुभद्रा ने 23 साल तपोवन के निर्जन वन में बर्फ के बीच तपस्या की।
कब होगी गायत्री शक्ति पीठ की स्थापना
उत्तरकाशी: शिवनगरी में तपस्या के बाद संतों ने देश और विदेशों में संस्थान स्थापित किए, लेकिन उत्तरकाशी में महर्षि विद्यापीठ के अलावा अन्य संतों ने उत्तरकाशी में अपने संस्थानों की स्थापना नहीं की। गायत्री परिवार के सदस्य चाहते हैं कि शांतिकुंज हरिद्वार गुरु की तपस्थली पर भी गायत्री शक्ति पीठ की स्थापना करें।
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