Wednesday, 30 September 2009
-बल्ती जाति: कब मिलेगा जौनसारी मिट्टी का लाभ
-ढाई सौ वर्ष के सफर में भी नहीं मिला जनजाति का दर्जा
-मुल्क में खुद को बेगाना महसूस कर रहे हैं ये लोग
-देश विभाजन के वक्तगुजर चुके हैं देशभक्तिके इम्तिहान से
विकासनगर(देहरादून):ढाई सौ साल पहले की बात है, कारगिल से शुरू हुआ दो दर्जन परिवारों का व्यावसायिक सफर उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र में आकर रुका। क्षेत्र की संस्कृति और सभ्यता का प्रभाव ही था कि अस्थायी प्रवास के लिए ठहरे ये परिवार यहीं के होकर रह गए। यहां अब तक इन लोगों की तीन-चार पीढिय़ां गुजर चुकी हैं, लेकिन जौनसारी मिट्टी का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा। अपने इस मुल्क में ये लोग खुद को बेगाना महसूस करने लगे हैं। और तो और, एक ऐसा भी समय आया, जब वर्ष 1947 में देश विभाजन के वक्त इन लोगों को देशभक्ति के इम्तिहान से भी गुजरना पड़ा।
बात देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र में निवास कर रहे मुस्लिम (शिया) समुदाय की बल्ती जाति के परिवारों की हो रही है। इन परिवारों के यहां आने की कहानी भी बड़ी रोचक है। ढाई सौ वर्ष पूर्व कश्मीर से उत्तराखंड होते हुए कुछ कश्मीरी लोग लद्दाख तक व्यवसाय किया करते थे। उनमें बल्ती जाति के लोग भी शामिल थे। हुआ यूं कि उस समय लगभग दो दर्जन बल्ती परिवार व्यावसायिक सफर के दौरान कुछ समय के लिए चकराता के डाकरा गांव में ठहर गए। यहां की मिट्टी की खुशबू उन्हें इतनी भायी कि वे यहीं के होकर रह गए। वक्त के साथ-साथ इन लोगों का कुनबा बढ़ता गया। वर्तमान में इस क्षेत्र में बल्ती जाति के लोगों की कुल जनसंख्या लगभग तीन हजार के आसपास है। डाकरा के अलावा अब ये लोग जौनसार-बावर के हरिपुर, कालसी, लालकुर्ती व चूना भटटा गांव में भी रहने लगे हैं। अब कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं, जो बल्ती समुदाय के लोगों का मन कचोट रही हैं। जौनसार की वादियों में 250 वर्ष का लंबा सफर तय करने के बाद भी उन्हें उनका हक नहीं मिल पा रहा है। इन लोगों का कहना है कि सन 1967 में भारत सरकार ने जौनसार-बावर को जनजाति क्षेत्र घोषित किया था, लेकिन कई पीढिय़ां गुजारने के बाद भी बल्ती समुदाय के लोगों को आज भी जौनसारी अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र नहीं दिया जा रहा है। और तो और सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी उन तक नहीं पहुंच पा रहा है। जबकि, ये लोग लंबे अरसे से लोकतांत्रिक प्रक्रिया (हर स्तर का चुनाव) में भाग लेते चले आ रहे हैं। इस कदर की जा रही सरकारी उपेक्षाओं से डाकरा निवासी मोहम्मद अली (83 वर्ष) काफी व्यथित हैं। उनका मन दुखी है, लेकिन आज भी गर्व के साथ वो एक पुराना किस्सा सुनाना नहीं भूलते। कहते हैं कि वर्ष 1947 में पार्टीशन के वक्त जौनसार-बावर में रह रहे बल्ती समुदाय के सभी लोगों को चकराता में रह रही आर्मी के ब्रिगेडियर ने तलब किया और 19 नंबर कोठी में उन्हें नजरबंद कर दिया। कुछ दिनों बाद कमिश्नर की मौजूदगी में उनसे सवाल पूछा गया कि वे हिन्दुस्तान में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में। अली गर्व से बताते हैं कि जौनसार बावर में रहे रहे बल्ती समुदाय के लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति मोहम्मद हुसैन ने पाकिस्तान की राह चुनी। उन्हें फख्र है कि बल्ती समुदाय अपने वतन हिन्दुस्तान को दिलोजान से चाहता है।
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