Tuesday, 29 September 2009

अब हिमालय की सुध लेने में जुटी सरकार

जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन दौर की माथापच्ची से पहले भारत को हिमालय की सेहत की भी फिक्र सताने लगी है। विश्व बिरादरी के आगे अपने तर्को को धार देने की कवायद में सरकार हिमालय क्षेत्र में आने वाले इलाकों में विकास के तौर-तरीकों को नए दिशानिर्देशों में बांधने की तैयारी कर रही है। हिमालय क्षेत्र के पारिस्थितिकीय तंत्र के नाजुक ताने-बाने को सहेजने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय एक नई राष्ट्रीय कार्ययोजना को अंतिम रूप दे रहा है। इसके तहत जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय की सेहत में हुए बदलावों की वैज्ञानिक पड़ताल के साथ-साथ इसे बचाने के उपायों की भी फेहरिस्त तैयार की जा रही है। भारतीय हिमालय क्षेत्र की सेहत पर तैयार पर्यावरण मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट कहती है कि इस इलाके के नाजुक पारिस्थितिकीय तंत्र को सहेजना अब पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में जीवन के लिए जरूरी हो गया है। मंगलवार को जारी होने वाली गवर्नेस फार सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम : गाइडलाइंस एंड बेस्ट प्रैक्टिसेज नामक इस रिपोर्ट में सरकार ने माना है कि हिमालय क्षेत्र इस समय बड़े दबावों और कड़ी चुनौतियों से जूझ रहा है। लिहाजा भारत के 16 फीसदी से ज्यादा इलाके में फैले हिमालय क्षेत्र में शहरीकरण, पर्यटन, जल सुरक्षा, ऊर्जा, वन प्रबंधन और बुनियादी ढांचे के विकास के मौजूदा तौर-तरीकों में बदलाव की जरूरत है। पर्यावरण मंत्रालय ने रिपोर्ट में माना है कि हिमालय क्षेत्र में अंधाधुंध बढ़ते भूमि के व्यावसायिक उपयोग और टूरिस्ट रिसार्ट के निर्माण ने हिमालय के पारिस्थितिकीय तंत्र को काफी नुकसान पहुंचाया है। इसलिए पूरे हिमालय क्षेत्र के राज्यों में भूमि कानूनों में फौरन माकूल बदलाव किए जाने चाहिए। इसके अलावा मंत्रालय के ताजा आकलन में 10 राज्यों और असम व प. बंगाल के पहाड़ी इलाकों तक फैले हिमालय क्षेत्र में पर्यटन को भी नियंत्रित करने की जरूरत बताई गई है। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, वैष्णो देवी, अमरनाथ, हेमकुंड साहिब सहित अनेक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों का घर कहलाने वाले हिमालय क्षेत्र में पर्यटन के पर्यावरण-मित्र तरीके अपनाने की जरूरत है। इस बीच सरकार बड़े पैमाने पर हिमालय की सेहत का ताजा सूरते हाल जानने के उपाय भी शुरू कर रही है। इसके तहत अल्मोड़ा स्थित जीबी पंत इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एन्वायरनमेंट एंड डेवलपमेंट और बेंगलूर स्थित सेंटर फार मैथमेटिकल माडलिंग एंड कंप्यूटर सिम्यूलेशन मिलकर हिमालय क्षेत्र में मौसम के मिजाज का पता लगाने के लिए 32 मीटर ऊंचे टावरों की श्रृंखला खड़ी कर रहे हैं। इसके अलावा जीबीपीआईएचईडी पूरे हिमालय क्षेत्र में स्थाई जीपीएस सेंटर भी बना रहा है। जलवायु परिवर्तन पर बने अंतर सरकारी मंच आईपीसीसी ने 2007 में अपनी चौथी आकलन रिपोर्ट के दौरान पूरे हिमालय क्षेत्र को डाटा डेफिशिएंट यानी एक ऐसा इलाका घोषित किया था जिसके बारे में पुख्ता आंकड़े ही मौजूद नहीं हैं।

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