Saturday, 26 September 2009
-सूती धागे से बीमारी बोले छूमंतर
-साइनस, अर्श व भगंदर जैसे रोगों का हो रहा इलाज
-ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में क्षारसूत्र पद्धति से किया जा रहा उपचार
-कुछ रोगों में एलोपैथिक से ज्यादा कारगर साबित हो रही यह चिकित्सा पद्धति
हरिद्वार
साइनस, अर्श व भगंदर जैसे रोगों को आमतौर पर लाइलाज माना जाता है। इन बीमारियों में एलोपैथिक दवा से रोगियों को कुछ समय के लिए राहत तो मिल जाती है, लेकिन आयुर्वेद में सूती धागे पर आधारित क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति के जरिये इन रोगों से पूरी तरह निजात मिल रही है। ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज में इस पद्धति से रोगियों का सफल उपचार हो रहा है।
क्षारसूत्र पद्धति का पहला सफल प्रयोग 1975 में बनारस हिंदू विवि में प्रो.पीजे देशपांडे ने किया था। बीते कुछ वर्षों से हरिद्वार के ऋषिकुल आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज में इस पद्धति को विकसित करने का काम चल रहा है। इस पद्धति में सूत के धागे का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं के चूर्ण, क्षार व दूध आदि की 21 कोटिंग की जाती हैं। साथ ही हल्दी, अपामार्ग व थूहर का भी प्रयोग किया जाता है। सूखने के बाद इस धागे की ड्राइ पैकिंग की जाती है। एक क्षारसूत्र तैयार करने में करीब एक सप्ताह का समय लग जाता है। इस तरह हर रोग के लिये अलग-अलग क्षार सूत्र तैयार किये जाते हैं। इलाज के लिए प्रभावित अंगों पर बांधकर या छू कर रोगी का उपचार किया जाता है। एलोपैथिक चिकित्सा में जहां आपरेशन के बावजूद इन रोगों के दोबारा होने की आशंका बनी रहती है, वहीं क्षारसूत्र से एक ही बार में रोग पूरी तरह खत्म हो जाता है। इस पद्धति की विशेषता यह है कि उपचार के दौरान रोगी को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती और वह अपने रोजमर्रा के काम भी आसानी से कर सकता है। क्षारसूत्र चिकित्सा की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते कुछ वर्षों से ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज अस्पताल में इसके जरिये सैकड़ों रोगी उपचार करा चुके हैं। इनमें उत्तराखंड यूपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान आदि प्रदेशों के रोगी शामिल हैं। ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज के प्राचार्य डा.प्रदीप भारद्वाज के मुताबिक क्षारसूत्र चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के महत्व को साबित करती है। कालेज में इस पद्धति पर लगातार शोध चल रहा है और कुछ अन्य रोगों के निदान लिए भी इसे कारगर बनाने की दिशा में काम हो रहा है। उन्होंने दावा किया कि जल्द ही यह चिकित्सा पद्धति और प्रभावी रूप में सामने आएगी।
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