Saturday 12 September 2009
उत्तराखंड में बसा है 'मिनी जापान'
-टिहरी जिले के घनसाली ब्लाक में कई गांवों के लोग हैं जापान में
-इन गांवों के प्रत्येक घर से एक सदस्य कर रहा जापान में नौकरी
-जापानी मुद्रा 'येन' की बदौलत इलाके में सबसे समृद्ध हैं ये गांव
घनसाली (टिहरी):
शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि आखिर भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के सुदूरवर्ती अंचलों में मिनी जापान कैसे बस
सकता है। यह सोचना बिलकुल सही है, लेकिन यह बात भी सच है कि इन गांवों में एक भी जापानी नहीं रहता है। इसके बावजूद इलाके में ये गांव 'मिनी जापान' के नाम से ही जाने जाते है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों, चलिए हम ही बता देते हैं। बात दरअसल यह है कि इन गांवों के कमोवेश हर घर से कम से कम एक सदस्य जापान में नौकरी कर रहा है। ऐसे में जापानी मुद्रा 'येन' की बदौलत दूरस्थ होने के बावजूद आज इस गांव में कई आलीशान दोमंजिला पक्के मकान हैं। गांव में बिजली नहीं है, लेकिन हर घर में सौर ऊर्जा उपकरण लगे हैं। इससे ग्रामीणों की रातें रोशन होती हैं। खास बात यह है कि इस गांव के अधिकांश युवाओं का सपना भी पढ़-लिखकर जापान जाने का ही रहता है।
टिहरी जनपद के भिलंगना विकासखंड का हिंदाव क्षेत्र शिक्षा, बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है। इसके बावजूद यहां के गांवों में मौजूद सुख-सुविधाएं ऐसी हैं कि बड़े-बड़े शहरों को भी मात दे दें। सड़क मार्गों से काफी दूर खड़ी चढ़ाई पार करने के बाद इन गांवों को देखकर यकीन ही नहीं होता कि ये दूरस्थ क्षेत्रों के गांव हैं। यह गांव इतने समृद्ध कैसे हुए। इसकी कहानी शुरू हुई करीब दो दशक पूर्व जब रोजगार की तलाश में यहां के कुछ युवा शहरों की ओर गए। खास बात यह रही कि उन्होंने नौकरी के लिए सीधा जापान का रुख किया और बस गांव की तस्वीर बदलनी शुरू हो गई। आज पट्टी हिंदाव क्षेत्र के ग्राम सरपोली, पंगरियाणा, भौंणा, लैणी, अंथवालगांव आदि गांवों में लगभग हर घर से कम से कम एक सदस्य जापान में है। इनमें से अधिकांश वहां होटल व्यवसाय से जुड़े हुए हैं।
गांव के अधिकतर लोगों का जापान में होने का असर यहां की आर्थिकी पर भी पड़ा। आज पट्टी के सभी गांवों में सीमेंट के पक्के आलीशान भवन बने हुए हैं। इनमें न केवल आधुनिक सुख-सुविधाएं हैं, बल्कि मनोरंजन के सारे साधन मौजूद हैं। खास बात यह है कि जब क्षेत्र के अधिकांश गांवों में बिजली पहुंची ही नहीं थी, तब इन गांवों के लोगों ने अपने खर्चे पर सौर ऊर्जा उपकरण लगवा लिए थे। जापानी मुद्रा यानि येन की बदौलत यह गांव अन्य गांवों के मुकाबले सुविधा संपन्न हो गए। सरपोली के ग्राम प्रधान कुंदन सिंह कैंतुरा कहते हैं कि विदेश में बसे लोगों ने गांवों की तस्वीर बदल दी, लेकिन सड़क व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं जुटाने को प्रयास किए जाने की जरूरत है।
500 विदेशी खाते हैं घनसाली बैंक में
घनसाली: जनपद टिहरी की भारतीय स्टेट बैंक की घनसाली शाखा में 500 बैंक खाते ऐसे हैं, जो विदेश से संचालित होते हैं। यही वजह है कि एसबीआई घनसाली का सालाना टर्नओवर बैंक की अन्य शाखाओं से अधिक है। बैंक के शाखा प्रबंधक एमआर सिंह गिल बताते हैं कि सबसे अधिक खाते सरपोली गांव के लोगों के हैं। जापानी मुद्रा आने के कारण यहां गांवों की तकदीर बदली है।
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