हल्द्वानी ,कामकाजी छवि से इतर पहाड़ की नारी हिंदी के माथे की बिंदी बनती जा रही है। उत्तराखंड की आधी दुनिया की कुछ प्रतिनिधि विदेशों में हिंदी की अलख जगा रही हैं तो कुछ अहिंदी भाषी राज्यों में हिंदी की आवाज बन गई हैं।
कई ऐसी भी हैं जो पहाड़ पर ही हिंदी का शंखनाद कर रही हैं। कम लोग ही जानते होंगे कि 1997 से डेनमार्क में हिंदी की पताका फहरा रहीं अर्चना पैन्यूली ने गढ़वाल विश्र्वविद्यालय से जीव विज्ञान में एमएससी किया था। भारत में जन्मीं अर्चना ने डेनिश समाज पर पहला उपन्यास हिंदी में लिखा। परिवर्तन उपन्यास द्वारा उत्तरांचल के साहित्य में योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। उनके उपन्यास और कहानियां डेनमार्क को जीवंत करतीं, हर प्रवासी भारतीय के मन का प्रश्न पूछती हैं कि वे कहां से ताल्लुक रखती हैं। गुजरात में हिंदी का प्रवासी स्वर हैं रुड़की की अंजना संधीर। उन्होंने अमेरिका की कवयित्रियों पर पुस्तक संपादित कर वहां की महिला लेखिकाओं को जोड़ा। उन्हें पहचान और परिचय का मंच दे अमेरिका हड्डियों में बसता जाता है कहकर वह भारत लौट आई। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती में भी उनकी मजबूत पकड़ है। बारिशों का मौसम व धूप, छांव और आंगन (गजल संग्रह), तुम मेरे पापा जैसे नहीं हो व अमेरिका हड्डियों में जम जाता है (काव्य संग्रह) और प्रवासी हस्ताक्षर व सात समंदर पार से उनके संपादित काव्य संग्रह हैं। पिथौरागढ़ की दिवा भट्ट पहाड़ पर हिंदी का परचम लहरा रही हैं। कुमाऊं विश्र्वविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक दिवा की कृतियां हैं- मेरे देश की चांदनी, नौ दिन चले अढ़ाई कोस, अनिकेतन, अक्षरों का पुल, हिमालयी लोक जीवन और गुजराती में क्षणना भारा साहियारा। दिवा छह पुस्तकों का संपादन भी कर चुकी हैं। गुजराती, पंजाबी, उडि़या, मलयालम व अंग्रेजी में उनकी रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। उनके हिस्से में गुजराती साहित्य अकादमी का भगिनी निवेदिता पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी पुरस्कार, सारिका पुरस्कार, संजीवनी सम्मान एवं आइसीएआर का उत्कृष्ट सेवा सम्मान आ चुके हैं। डॉ. मधुबाला नयाल कुमाऊं में हिंदी की सेवा में लीन हैं। हिंदी में डीलिट की उपाधि प्राप्त मधुबाला की कृतियों में रामकाव्य में लक्ष्मण, छायावादोत्तर हिंदी कविता : एक अंतर्यात्रा, आधुनिक हिंदी कविता में शब्द-प्रयोग, समय-राग और मध्यकालीन काव्य सप्तक शामिल हैं। प्राचीन काव्य सुधा का उन्होंने संपादन किया। उनके 45 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी झोली में अपभ्रंश साहित्य अकादमी के डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय पुरस्कार समेत कई सम्मान हैं। अल्मोड़ा के पंत परिवार की निर्मला जोशी को स्वलिखित गीतों की लयबद्ध प्रस्तुति में महारथ हासिल है। अल्मोड़ा की ही मृणाल पांडे तो देश की हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में बड़ा हस्ताक्षर हैं।
कई ऐसी भी हैं जो पहाड़ पर ही हिंदी का शंखनाद कर रही हैं। कम लोग ही जानते होंगे कि 1997 से डेनमार्क में हिंदी की पताका फहरा रहीं अर्चना पैन्यूली ने गढ़वाल विश्र्वविद्यालय से जीव विज्ञान में एमएससी किया था। भारत में जन्मीं अर्चना ने डेनिश समाज पर पहला उपन्यास हिंदी में लिखा। परिवर्तन उपन्यास द्वारा उत्तरांचल के साहित्य में योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया। उनके उपन्यास और कहानियां डेनमार्क को जीवंत करतीं, हर प्रवासी भारतीय के मन का प्रश्न पूछती हैं कि वे कहां से ताल्लुक रखती हैं। गुजरात में हिंदी का प्रवासी स्वर हैं रुड़की की अंजना संधीर। उन्होंने अमेरिका की कवयित्रियों पर पुस्तक संपादित कर वहां की महिला लेखिकाओं को जोड़ा। उन्हें पहचान और परिचय का मंच दे अमेरिका हड्डियों में बसता जाता है कहकर वह भारत लौट आई। अंग्रेजी, उर्दू, गुजराती में भी उनकी मजबूत पकड़ है। बारिशों का मौसम व धूप, छांव और आंगन (गजल संग्रह), तुम मेरे पापा जैसे नहीं हो व अमेरिका हड्डियों में जम जाता है (काव्य संग्रह) और प्रवासी हस्ताक्षर व सात समंदर पार से उनके संपादित काव्य संग्रह हैं। पिथौरागढ़ की दिवा भट्ट पहाड़ पर हिंदी का परचम लहरा रही हैं। कुमाऊं विश्र्वविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक दिवा की कृतियां हैं- मेरे देश की चांदनी, नौ दिन चले अढ़ाई कोस, अनिकेतन, अक्षरों का पुल, हिमालयी लोक जीवन और गुजराती में क्षणना भारा साहियारा। दिवा छह पुस्तकों का संपादन भी कर चुकी हैं। गुजराती, पंजाबी, उडि़या, मलयालम व अंग्रेजी में उनकी रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। उनके हिस्से में गुजराती साहित्य अकादमी का भगिनी निवेदिता पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी अकादमी पुरस्कार, सारिका पुरस्कार, संजीवनी सम्मान एवं आइसीएआर का उत्कृष्ट सेवा सम्मान आ चुके हैं। डॉ. मधुबाला नयाल कुमाऊं में हिंदी की सेवा में लीन हैं। हिंदी में डीलिट की उपाधि प्राप्त मधुबाला की कृतियों में रामकाव्य में लक्ष्मण, छायावादोत्तर हिंदी कविता : एक अंतर्यात्रा, आधुनिक हिंदी कविता में शब्द-प्रयोग, समय-राग और मध्यकालीन काव्य सप्तक शामिल हैं। प्राचीन काव्य सुधा का उन्होंने संपादन किया। उनके 45 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी झोली में अपभ्रंश साहित्य अकादमी के डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय पुरस्कार समेत कई सम्मान हैं। अल्मोड़ा के पंत परिवार की निर्मला जोशी को स्वलिखित गीतों की लयबद्ध प्रस्तुति में महारथ हासिल है। अल्मोड़ा की ही मृणाल पांडे तो देश की हिंदी पत्रकारिता और साहित्य में बड़ा हस्ताक्षर हैं।
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