(संतोष बिष्ट )-आज जो पहाड़ भ्रष्टाचार से लहूलुहान हो चुका है क्या कभी किसी ने सोचा है कि यह लहू हमारे इस नंगे बदन पर किस ने पोथी है। आज पहाड़ की हर तरफ भ्रष्टाचार की सुरीले स्वर गुंज रहे हैं।
और हम जंगल के हिरण की तरह अपने कान खड़े किए हुए हैं। लेकिन मजाल क्या कि कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ एक लब्ज भी बोले, आखिर क्यों? हम जिन मंत्रियों के बारे में आज कानाफूसी कर रहे हैं पहले हमने ही तो इनको मौका दिया कि आज हम इनके खिलाफ एक लब्ज भी निकालने से कांप रहे हैं। आज ये जनता इतनी भोली क्यों बनीं है। जनता भोली है तो यह बात तो मंत्रियों की नींद के खरांटे में गूंजती है उनको तो मालूम है कि पहाड़ की जनता तो पहाड़ की हवा में ही उड़ रही है और उनके पास मौका भी यही है क्योंकि? कल अगर पहाड़ दरक जाएगा तो फिर यही जनता उड़ने के लिए हवा ढूंढती रह जाएगी। पहाड़ में मंत्रीराज आखिर कब तक रहेगा? ऐसी क्या बात है जो हम लोग गांधी जी के बंदर बने हुए हैं। क्या इसी दिन देखने के लिए उन आंदोलनकारियों ने अपने खून से सड़कों पर जय उत्तराखंड लिखा? क्या पहाड़ के मंत्री भी यह बात सोच नहीं पा रहे हैं, कि अगर इनी पहाड़ियों ने उस समय अपने बलिदान न दिए होते आज क्या हम इस पहाड़ में भ्रष्टाचार के रंग नहीं उड़ा पाते? भाई यूपी के सामने यूके की भले क्या मजाल जो बंटवारे की बात करे। पर जब पहाड़ियों की नारों की अवाज गंूजी तो पहाड़ के पत्थर भी खिसकने लगे थे। और आज जब ये मंत्री साहब अपने को पहाड़ी नेता कहते हैं तो क्या इनको तनिक भी लजा नहीं आती, आखिर किस मूंह से ये अपने आप को पहाड़ी का दर्जा दे रहे हैं। साहब को याद दिला दें कि जिस मंच पर आप लोग तांडव, रासों खेल रहे हो इस मंच को तैयार करने में बहुत से पहाड़ियों ने अपना खून बहाया है। कई भाहियों के अवाजें आज भी इन चट्टों में टकरा रही है । आज मैं अपने उन वीर भाईयों को सुमरण करके अपने आप से कह रहा हूं कि उत्तराखंड तो आजाद हो गया है, लेकिन उत्तराखंड के मंत्री आज भी उस धन के पिंजरे में कैद हैं। उत्तराखंड ने जिस यूपी से अगल होने की जिद् की आज वही उत्तराखंड भ्रष्टाचार की उंगूली पकड़कर यूपी से कंधे से कंधा मिलकार चल रहा है। मंत्री साहब आज उन पहाड़ियों की वो अधबूझी आंखें अपकी तरफ देख रही हैं वो इशारे कर रही हैं कि आज एक फिर से इस उत्तराखंड को यूपी से अलग करने की कसम खाओ और इस भोले-भाले पहाड़ को इस भ्रष्टाचार के रावण से आजाद कर दो।
जय उत्तराखंड
8923574216
और हम जंगल के हिरण की तरह अपने कान खड़े किए हुए हैं। लेकिन मजाल क्या कि कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ एक लब्ज भी बोले, आखिर क्यों? हम जिन मंत्रियों के बारे में आज कानाफूसी कर रहे हैं पहले हमने ही तो इनको मौका दिया कि आज हम इनके खिलाफ एक लब्ज भी निकालने से कांप रहे हैं। आज ये जनता इतनी भोली क्यों बनीं है। जनता भोली है तो यह बात तो मंत्रियों की नींद के खरांटे में गूंजती है उनको तो मालूम है कि पहाड़ की जनता तो पहाड़ की हवा में ही उड़ रही है और उनके पास मौका भी यही है क्योंकि? कल अगर पहाड़ दरक जाएगा तो फिर यही जनता उड़ने के लिए हवा ढूंढती रह जाएगी। पहाड़ में मंत्रीराज आखिर कब तक रहेगा? ऐसी क्या बात है जो हम लोग गांधी जी के बंदर बने हुए हैं। क्या इसी दिन देखने के लिए उन आंदोलनकारियों ने अपने खून से सड़कों पर जय उत्तराखंड लिखा? क्या पहाड़ के मंत्री भी यह बात सोच नहीं पा रहे हैं, कि अगर इनी पहाड़ियों ने उस समय अपने बलिदान न दिए होते आज क्या हम इस पहाड़ में भ्रष्टाचार के रंग नहीं उड़ा पाते? भाई यूपी के सामने यूके की भले क्या मजाल जो बंटवारे की बात करे। पर जब पहाड़ियों की नारों की अवाज गंूजी तो पहाड़ के पत्थर भी खिसकने लगे थे। और आज जब ये मंत्री साहब अपने को पहाड़ी नेता कहते हैं तो क्या इनको तनिक भी लजा नहीं आती, आखिर किस मूंह से ये अपने आप को पहाड़ी का दर्जा दे रहे हैं। साहब को याद दिला दें कि जिस मंच पर आप लोग तांडव, रासों खेल रहे हो इस मंच को तैयार करने में बहुत से पहाड़ियों ने अपना खून बहाया है। कई भाहियों के अवाजें आज भी इन चट्टों में टकरा रही है । आज मैं अपने उन वीर भाईयों को सुमरण करके अपने आप से कह रहा हूं कि उत्तराखंड तो आजाद हो गया है, लेकिन उत्तराखंड के मंत्री आज भी उस धन के पिंजरे में कैद हैं। उत्तराखंड ने जिस यूपी से अगल होने की जिद् की आज वही उत्तराखंड भ्रष्टाचार की उंगूली पकड़कर यूपी से कंधे से कंधा मिलकार चल रहा है। मंत्री साहब आज उन पहाड़ियों की वो अधबूझी आंखें अपकी तरफ देख रही हैं वो इशारे कर रही हैं कि आज एक फिर से इस उत्तराखंड को यूपी से अलग करने की कसम खाओ और इस भोले-भाले पहाड़ को इस भ्रष्टाचार के रावण से आजाद कर दो।
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