Wednesday, 14 September 2011

निजाम बदलते ही बदल गए लोक गायक नेगी के सुर ‘अब कनगै खैल्यो’

 यह जनरल की छवि ही है  कि उस गायक ने जिसके  स्वर राज्य की सत्ता को हिला देते हो वह फिर  नौछमी नारैण.. शीषर्क से बने इस गीत या अब कतिगा खैल्यो’ हो लेकिन  सत्ता परिवर्तन के बाद नेगी ने ‘अब कनगै खैल्यो’ गाकर एक तरह से जनरल की  ईमानदार छवि की अपने तीन स्वर मे बता दिया ,
प्रख्यात गढ़वाली लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के कंठ से निकली तीन शब्दों की एक रचना इसका ताजा अहसास है। ‘अब कनगै खैल्यो’ यानि ‘अब कैसे खाओगे’ गाने लगे हैं। उत्तराखंड के लोक का मर्म गहराई से समझने वाले नरेन्द्र सिंह नेगी की जुबान से ये शब्द बरबस ही निकल पड़े हैं


अचानक बदल गए लोक गायक नेगी के सुर
  देहरादून- राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की बयार दूर तक जाती दिख रही है। गिरि, कंदराओं से घिरे उन सुदूरवर्ती गांवों तक बदलाव का अहसास ही नहीं उम्मीदों को भी ‘पर’ लगे हैं, जहां रेडियो के माध्यम से जानकारी पहुंचती है। प्रख्यात गढ़वाली लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के कंठ से निकली तीन शब्दों की एक रचना इसका ताजा अहसास है। कल तक ‘अब कतिगा खैल्यो’ यानि बस कर, अब कितना खाओगे’ गा रहे नेगी ‘अब कनगै खैल्यो’ यानि ‘अब कैसे खाओगे’ गाने लगे हैं। उत्तराखंड के लोक का मर्म गहराई से समझने वाले नरेन्द्र सिंह नेगी की जुबान से ये शब्द बरबस ही निकल पड़े हैं जिसमें राज्य के नए मुखिया के आने के बाद उम्मीदों का एक बड़ा पिटारा मिला है। ‘अब कतिगा खैल्यो’ नेगी के उस अलबम के गीतों में से एक है जो पिछली सरकार के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाता है। आठ गीतों के इस एलबम में इस चर्चित गीत के आने के बाद बाजार से सीडी भी गायब हो गयी थी। माना जा रहा है कि हालिया परिवर्तन में इस गीत का भी बहुत बड़ा असर था। कांग्रेस सांसद सतपाल महाराज ने तो इसे लोकसभा में गाकर राज्य की भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं को स्तब्ध कर दिया था। नेगी का एक गीत भले ही डा. निशंक को सत्ताच्युत करने का कारण बना हो, लेकिन भाजपा को सत्ता में लाने के लिए भी नेगी का गीत ही बड़ा कारण बना। नौछमी नारैण.. शीषर्क से बने इस गीत के सामने आने के बाद कांग्रेस को जनता के जवाब देना मुश्किल हो गया था। अब सत्ता परिवर्तन के बाद भले ही नेगी ने ‘अब कनगै खैल्यो’ गाकर एक तरह से जनरल पर उम्मीदों का बोझ जरूर बढ़ा दिया है, लेकिन वे इस गीत के रूप में अपने स्वर नहीं दे रहे हैं। उनका कहना है कि यह कोई रचना नहीं है यह तो बरबस उनके मुंह से निकले स्वर हैं शायद उत्तराखंड का ‘लोक’ कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा है।

1 comment:

  1. किसी भी मुख्यमंत्री को भ्रष्ट कौन बनता है ? ये काम करता है दिल्ली में बैठा उसका राष्ट्रीय नेतृत्व I यही राष्ट्रीय स्तर के नेता लगभग हर माह प्रदेश के मुखिया से पार्टी फंड में मोटी राशि देने की मांग करते रहते हैं साथ ही विभिन्न ठेकों, नियुक्तियों, स्थानांतरण इत्यादि में अपनी मनमानी करने का प्रयास करते हैं. उत्तराखंड में भी यही हो रहा था. कहने को तो निशंक मुख्यमंत्री थे लेकिन कमान तो राष्ट्रीय नेतृत्व के हाथ में थी. बहुचर्चित सितुर्जिया घोटाले में आर एस एस के एक नेता के सम्बन्धियों का हिस्सा था तो ५६ पॉवर प्रोजेक्ट्स में अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश से थे और भा जा पा के राष्ट्रीय स्तर के एक नेता के कथित तौर करीबी थे. यंहा तक कहा जाता है की वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर के एक नेता जिन्हें उत्तराखंड का प्रभार भी सौंपा गया था राज्य के हर काम में हस्तक्षेप करते थे और यंहा मिलने वाले बड़े बड़े ठेके उनकी मर्जी के बिना नहीं मिलते थे. यंहा तक की सूबे के मलाईदार पदों पर भी उनके लोगों को ही नियुक्ति मिलती थी.
    जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को खुश करने के लिए पार्टी फंड में मोटा पैसा देना जरूरी है तो कोई ईमानदारी से इस पैसे को कैसे दे सकता है. चुनाओं में होने वाला खर्चा और हाई कमान की अनुचित मांगे ही इस भ्रष्टाचार का कारण है. क्या खंडूरी शपथ लेकर ये कह सकते हैं की अपने कार्यकाल में उन्होंने अपने विश्वस्तों की मदद से करोड़ों की थैलियाँ हाई कमान तक नहीं पहुंचाई. निशंक की गलती सिर्फ इतनी है कि प्रदेश को राजनैतिक अस्थिरता और अपनी कुर्सी बचने के लिए उन्होंने हाई कमान को कुछ ज्यादा ही महत्व दे डाला और दूसरा उनके पास सारंगी जैसा कोई विश्वस्त भी नहीं था जो सारे आरोप अपने सर पर ले मुखिया को बेदाग बचा जाये.
    प्रदेश को तबियत से लूटने खसोटने के बाद और आने वाले चुनाओं के मद्देनजर अब शीर्ष नेतृत्व को भ्रष्टाचार कि याद आयी और निशंक को इस्तेमाल करने के बाद उसे कुर्सी से हटा दिया गया. भा जा पा का के राष्ट्रीय नेतृत्व का ये दोगलापन उन्हें कंही का न छोड़ेगा  

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