Monday, 27 June 2011
भाई-चारे का प्रतीक है मौण मेला
जौनपुर का ऐतिहासिक मौण मेला अपने आप में एक अनोखी पहचान बनाए हुए है।
मेले में हजारों लोग अगलाड़ नदी से सामूहिक रूप से मछलियां पकड़ते हैं। यह मेला एक जुलाई से शुरू होगा। इस बार मौंण लाने की बारी पट्टी लालूर के पंचगांई की है।
मौण ऐसा मेला है, जिसमें लोगों टिमरू की छाल से बने महीन पाउडर को मौणकोण नामक स्थान पर अगलाड़ नदी में डालकर सामूहिक रूप से मछलियां पकड़ते हैं। इसमें 114 गांव के ग्रामीण ढोल-नगाड़ों के साथ उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं, जिसमें पट्टी दशज्यूला, अठज्यूला, सिलवाड़, लालूर, इडवालस्यूं व जौनपुर द्वितीय के समेत जौनसार के लोग प्रतिभाग करते हैं।
खास बात यह है कि टिमरू के इस पाउडर से मछलियां सिर्फ बेहोश होती हैं। बेहोश होने के बावजूद जो मछलियां मौणाइयों की पकड़ में नहीं आ पातीं, वह पानी के प्रवाह में फिर सामान्य अवस्था में आ जाती हैं। इस दौरान महिलाएं लोकगीत गाती है। इसके बाद लोग नदी में जाकर मछलियां पकड़ना शुरू कर देती है। मछली पकड़ने का सिलसिला लगभग तीन किमी लम्बी नदी में चलता है।
मछली पकड़ने के विशेष उपकरण कुंडियाला, फटियाला, जाल, फांड, कुडली का प्रयोग किया जाता है।
यह मेला टिहरी रियासत के राजा नरेन्द्र शाह ने स्वयं अगलाड़ नदी में पहुंचकर शुरू किया था, लेकिन वर्ष 1844 में आपसी भतभेद के कारण यह बंद हो गया। बाद में लोगों द्वारा गुहार लगाने बाद वर्ष 1949 में इस पुन शुरू किया गया। इस बार मौंण लाने की बारी पटटी लालूर के पंचगांई की है।
प्रधान खजान सिंह चौहान, श्याम सिंह भंडारी, शांती सिंह, मोहन लाल धिमान आदि का कहना है कि इस बार आठ कुतंल मौंण के साथ सभी तैयारी पूरी कर ली गई हैं।
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