Monday, 27 June 2011
और वैली ऑफ फ्लावर गायब!
-किसी दिन विश्व प्रसिद्ध वैली ऑफ फ्लावर अपनी जगह से गायब मिले तो..।
यकीन हमें भी नहीं आ रहा, लेकिन वैज्ञानिकों की दस साल की मेहनत के नतीजे कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं। ये बदलाव अनूठा है। पहले पहाड़ों से इंसान का ही पलायन हो रहा था, अब यह 'संक्रमण' पेड़ पौधों में भी फैल गया। वनस्पतियां अपनी जड़ों से विस्थापित होने लगी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इंसानों का रुख मैदानों की ओर है और वनस्पतियों का ऊंचाई की ओर। मसलन चीड़ के पेड़ अमूमन 3700 मीटर तक की ऊंचाई पर होते हैं, अब ये आठ सौ मीटर की चढ़ाई चढ़ लगभग साढ़े चार हजार मीटर तक जा पहुंचे हैं। वन पीपल और धूप घास भी इसी राह पर हैं। फूलों की घाटी में भी यह आश्चर्य देखने को मिल रहा है।
कुदरत के करिश्मे से आम आदमी हैरान है और वैज्ञानिक चिंतित। वनस्पति जगत में मची उथल-पुथल को अस्तित्व बचाने की जुगत के रूप में देखा जा रहा है। दरअसल जो पेड़-पौधे कम तापमान पर फलने -फूलने की आदी हैं, वे अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट हो गए हैं और उनका स्थान गर्म जलवायु के पेड़ पौधे लेने लगे हैं।
फूलों की घाटी में दस साल से वनस्पतियों के विस्थापन पर नजर रख रहे हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के विशेषज्ञ डॉ. एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि घाटी की वनस्पतियों के अनुक्रम (वेजिटेशनल सक्सेशन) में तेजी से परिवर्तन आया है। इसके तहत नई वनस्पति झुंड के रूप में पनपने लगती हैं।
डा. बिष्ट कहते हैं कि घाटी के तापमान में आया बदलाव पौधों के पलायन का बड़ा कारण है। कम ऊंचाई पर मिलने वाला वन पीपल (पोपुलस), चीड़ की पाइनस वेल्सेयाना प्रजाति, एरीनिरीया जैसी वनस्पतियां 3700 से 4440 मीटर की ऊंचाई में पनप रही हैं, जबकि पहले ये 3700 मीटर की ऊंचाई तक ही पाई जाती थीं। घाटी में 3700 मीटर तक उगने वाली धूप घास (यूनिफर) जैसी वनस्पतियां पुराने स्नो कवर एरिया तक उगने लगी हैं।
इस शोध को प्रतिष्ठित साइंस जनरल करंट साइंस ने भी अपने हालिया अंक में स्थान दिया है। साथ ही नेपाल में आयोजित भूवैज्ञानिकों की अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला में भी डॉ. बिष्ट स्लाइड शो के माध्यम से इसका प्रदर्शन कर चुके हैं।
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