Tuesday, 7 June 2011
पढ़ाई ही नहीं, खेलों में भी फिसड्डी हैं सरकारी स्कूल
पढ़ाई ही नहीं, खेलों में भी फिसड्डी हैं सरकारी स्कूल
महज खानापूर्ति हो रही है सरकारी स्कूलों में
। सरकारी स्कूल महज मास्टर लोगों की रोजी-रोटी के साधन बन कर रह गए हैं।
पढ़ाई ही नहीं दूसरी गतिविधियों में इन स्कूलों की भूमिका सिफर ही है। बोर्ड परीक्षा के परिणामों ने देहरादून जैसे विविख्यात शिक्षा के केंद्र की आंखें खोल दी हैं। देहरादून के सरकारी स्कूलों का सिर शर्म से झुक गया है। मामला सिर्फ पढ़ाई का नहीं है, शिक्षक बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं, लेकिन भरपूर स्टाफ होने के बाद भी यहां खेल व दूसरी गतिविधियों का परिणाम भी कुछ ऐसा ही है। इन मदों में पैसा जमकर खर्च होता है, लेकिन उपलब्धि करीब-करीब शून्य ही है। सोमवार को उत्तराखंड में 10वीं 12वीं के बोर्ड परिणाम घोषित किए गए। शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाला दून सरकारी स्कूलों के चलते अपनी पहचान दिनों दिन खोता जा रहा है। इस साल भी यहां का बोर्ड परिणाम कुछ खास नहीं रहा है। वैसे तो सरकारी स्कूलों के मास्टर अपने-अपने स्कूलों को हर गतिविधियों में सर्वश्रेष्ठ बताते हैं। पढ़ाई के अलावा खेल, सांस्कृतिक समारोह या जीके प्रतियोगिता हो इसमें भी सरकारी स्कूलों के छात्र फिसड्डी साबित हुए हैं। इन स्कूलों के अलावा दून के अधिकतर प्राइवेट स्कूलों के छात्र हर गतिविधियों में वास्तव में अव्वल स्थान बनाए हुए हैं। खेल हो जीके प्रतियोगिता उनके नाम गोल्ड ही आया है। हाल ही में आईसीएसई, सीबीएसई के परिणाम घोषित हुए थे उसमें भी दून के प्राइवेट स्कूलों के छात्रों ने टॉप किया। सरकारी स्कूलों में इतना पैसा खर्च करने के बावजूद यहां के छात्र पीछे ही रह जाते हैं। सही मायने में देखा जाये तो प्राइवेट स्कूलों में छात्रों से अधिक पैसा वसूला जाता है, लेकिन सरकारी स्कूलों में सरकार की ओर से दी जाने वाली सुविधाएं छात्रों तक नहीं पहुंच पातीं शायद इसलिए ही प्राइवेट स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूल हमेशा से ही पीछे रहा है। राष्ट्रीय स्कूल की खेल प्रतियोगिताओं में भी सरकारी स्कूलों के छात्रों को न के बराबर प्रोत्साहित किया जाता है। जिसके चलते गिने-चुने ही सरकारी स्कूलों छात्र प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पदक अपने नाम कर पाते हैं, इनके अलावा प्राइवेट स्कूलों के छात्र लगभग सभी खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर अपना डंका पिटते नजर आए हैं। पढ़ाई हो या खेल राज्य सरकार केवल अपनी डींगे हांकती रही है। जबकि देखा जाय तो सरकारी स्कलों में छात्रों की ओर से किसी का ध्यान आकषिर्त नहीं है। स्कूलों में बैठे मास्टर भी केवल अपनी नौकरी पूरा करना चाहते हैं। श्रीगुरु राम राय इंटर कालेज नेहरूग्राम के खेल अध्यापक रमाशंकर शर्मा ने कहा कि राजकीय स्कूलों की तुलना में प्राइवेट स्कूलों के छात्र सभी गतिविधियों में ज्यादा सफल रहते हैं। उनका मानना है कि सरकारी स्कूलों में अधिक कार्य होने के बावूजद अन्य काम भी सौंप दिए जाते हैं। स्कूलों में कम संख्या होने पर टीचर्स के ट्रांसफर भी कर दिये जाते हैं। साई कोच पीके महषर्ि का मानना है कि अधिकतर सरकारी स्कूल दूर होते हैं, स्कूल दूर होने की वजह से छात्र थक जाते हैं, जिसके कारण खेल तो दूर की बात बच्चे पढ़ने में भी हिचकिचाते हैं। उन्होंने कहा कि शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए बच्चों की शारीरिक फिटनेस बहुत जरूरी है, जिसके लिए बच्चों का खेलना अत्यंत जरूरी है। शरीर फिट रहेगा तो मानसिक तनाव भी दूर होंगे। महषर्ि का यह भी कहना है कि गरीब तबके के लोग ट्यूशन नहीं पढ़ पाते जिसकी वजह से उन्हें सर्वाधिक अंक लाने में भी परेशानी होती है, प्राइवेट स्कू लों में पढ़ने वाले छात्रों को आर्थिक समस्या कम होती है।
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