Wednesday, 1 June 2011
आस्था की भेंट चढ़ा उत्तराखंड का एक और बांध
उत्तराखंड की पनबिजली की एक और परियोजना अब साध्वी उमा भारती के अनशन की भेंट चढ़ गई।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने श्रीनगर बांध का काम रोकने का आदेश दिया
पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश ने अलकनंदा नदी पर बनाई जा रही 200 मेगावाट क्षमता की श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के काम को रोकने के आदेश दिए हैं। इससे पहले पिछले साल जून में भी केंद्र ने उत्तराखंड की दो परियोजनाओं को पूरी तरह से निरस्त कर दिया था। श्रीनगर-गढ़वाल के समीप 200 मेगावाट क्षमता का जलविद्युत प्रोजेक्ट चल रहा है। बांध के बनने से धारी देवी का मंदिर डूब जाएगा। बांध का निर्माण करीब 50 प्रतिशत पूरा हो चुका है। यह प्रोजेक्ट 1981 में शुरू हुआ था और करीब 30 साल बाद भी तमाम अड़चनों के कारण पूरा नहीं हो पाया है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 1995 में इस प्रोजक्ट की क्षमता बढ़ाकर 330 मेगावाट करने की मंजूरी दे दी थी, लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इसकी ऊं चाई बढ़ाने पर रोक लगा दी। तब से केवल 200 मेगावाट क्षमता का बिजली घर ही बनाया जा रहा था। उत्तराखंड सरकार में मंत्री रहे मोहन सिंह गांववासी ने करीब दो साल पहले से इस प्रोजेक्ट के विरोध में जनजागरण अभियान शुरू किया था। उन्हें विश्व हिंदू परिषद और संघ का भी समर्थन मिला। इसके बाद 9 मई से मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने हरिद्वार में आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके कारण केंद्र सरकार को उनके आंदोलन पर विचार करना पड़ा। केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में निदेशक संचिता जिंदल की तरफ से जारी निर्देश में निर्माण करनेवाली कंपनी जीवीके से कहा गया है कि वह तुरंत बांध का निर्माण कार्य रोक दे। मंत्री जयराम रमेश ने निर्देश दिया है कि मंत्रालय की एक तकनीकी टीम बांध का दौरा करेगी और तीन हफ्तों के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी। उसके बाद मंत्रालय बांध के निर्माण कार्य पर अंतिम निर्णय लेगा। रमेश ने अपने पत्र में कहा है कि केंद्र ने अलकनंदा और भागीरथी घाटी में निर्माण की जानेवाली सभी जल विद्युत परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन का काम गत वर्ष आईआईटी रुड़की को सौंपा था। आकलन का काम पूरा हो गया है और इसे इसी हफ्ते के अंत में सार्वजनिक कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आईआईटी रुड़की की सिफारिश के आधार पर मंत्रालय उस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है कि कम से कम प्रत्येक परियोजना से पर्यावरणीय अनापत्ति के लिए जितने पानी के बहाव की आवश्यकता होती है उससे तीन या चार गुना पानी का बहाव निरंतर होता रहे । रमेश ने कहा कि इससे हर समय नदी में जितने पानी के बहाव की जरूरत होगी उतना पानी बहता रहेगा। मालूम हो कि डूब क्षेत्र में आने के कारण धारी देवी मंदिर को नजदीक की पहाड़ी पर पुनर्स्थापित करने का काम भी चल रहा है। नए भव्य मंदिर का निर्माण 2012 तक पूरा जाएगा, लेकिन साध्वी उमा भारती, स्थानीय निवासियों और मोहन सिंह गांववासी का कहना है कि धारी देवी मंदिर शक्ति पीठ है। देवी का स्थान बदला नहीं जा सकता। यह हजारों लोगों की आस्था का सवाल है, इसलिए परियोजना को ही निरस्त किया जाना चाहिए। उमा भारती ने मंगलवार को अपना अनशन इसीलिए तोड़ा। वह चाहती हैं कि बांध को निरस्त किया जाए। इससे पहले साधु समाज, विश्वहिंदू परिषद और आरएसएस के समर्थन से जीडी अग्रवाल के अनशन के कारण जयराम रमेश ने उत्तराखंड की दो परियोजनाओं 385 मेगावाट वाली भैरोंघाटी परियोजना और 480 मेगावाट वाली पाला मनेरी परियोजनाओं को पूरी तरह से रद्द कर दिया था।
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