Thursday, 9 June 2011

मलेथा का ऐतिहासिक सेरा बंजर

कीर्तिनगर -वीर पुरुष माधोसिंह भंडारी के त्याग और बलिदान का प्रतीक मलेथा का ऐतिहासिक सेरा (खेत) इन दिनों सिंचाई विभाग की लापरवाही से बंजर पड़े हैं। ग्रामीणों के सिंचाई विभाग कार्यालय पर तालाबंदी करने के बावजूद भी विभागीय अफसर गहरी नींद में हैं। कीर्तिनगर ब्लॉक के अंतर्गत मलेथा गांव में मौजूद ऐतिहासिक सेरा (खेत) हैं, कहा जाता है कि इन खेतों को हरा-भरा करने के लिए माधव सिंह भंडारी ने गूल का निर्माण किया था। इस दौरान उन्हें अपने पुत्र की बलि भी देनी पड़ी थी। गूल ऐसी बनाई गई है कि यहां कभी पानी की कमी नहीं होती थी, खेत बारह महीने हरा- भरा रहा करते थे। अब बीआरओ के गूल (नहर) क्षतिग्रस्त करने से बंजर पड़े है। हालांकि बीआरओ ने नहर की मरम्मत करने के लिए सिंचाई विभाग को धन भी उपलब्ध कराया पर सिंचाई विभाग के अफसर इसके लिए कतई गंभीर नहीं हैं। अच्छी उपजाऊ भूमि होने के कारण यहां सालभर में तीन फसल उगाई जाती थी। इनमें गेहूं,चीणा व धान मुख्य फसल हैं। पर विगत कुछ माह पूर्व बीआरओ ने सड़क बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग का चौड़ीकरण कार्य किया इस दौरान यहां की ऐतिहासिक नहर क्षतिग्रस्त हो गयी थी। इस नहर की मरम्मत व नव निर्माण के लिए बीआरओ ने माह फरवरी 2010 में सिंचाई विभाग को 29 लाख रुपये भी दिये थे, लेकिन सिंचाई विभाग के ने एक साल से अधिक का समय बीतने के बाद भी आज तक काश्तकारों को सिंचाई के लिए कोई स्थायी व्यवस्था उपलब्ध नही करवायी गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि काश्तकारों को सिंचाई के अभाव में गेहूं की पैदावार में काफी नुकसान हुआ। इसके अलावा अप्रैल में बोई जाने वाली चीणा व उड़द दाल की फसल से भी काश्तकारों को हाथ धोना पड़ा। मलेथा निवासी सोवन सिंह, रिखेश्वरी देवी, दुर्गा देवी, रघुबीर सिंह नेगी तथा ग्राम प्रधान सीता देवी का कहना है कि उनके जीवन में आज तक पहली बार ऐसा हुआ है जब इस समय यह भूमि बंजर पड़ी दिख रही है। ग्रामीणों ने बताया कि 14 मई से धान की पौध के लिए बीज बोया जाता था, लेकिन अब इसका समय बीत जाने के बाद व विभागीय कार्यशैली से लगता है कि इस बार धान की फसल से भी काश्तकारों को हाथ धोना पड़ सकता है। 'सिंचाई के लिए जल्द ही वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी। नहर निर्माण कार्य भी दस दिन में पूर्ण होने के बाद काश्तकारों को सिंचाई के लिए पानी दिया जाएगा' विजय आर्य अवर अभियन्ता सिंचाई विभाग

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