Monday, 29 June 2009

- फिर गुलजार हुआ जीवन

-उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित एक छोटे से गांव ने पेश की मिसाल -पूरी तरह सूख चुके गदेरे को किया पुनर्जीवित ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के मिजाज में परिवर्तन, बेशक ये दोनों घटनाएं आज देश-दुनिया की बड़ी समस्या बनकर उभरी हैं। हर रोज प्राकृतिक जलस्रोतों के सूखने, नदियों में पानी घटने और जंगलों के जलकर नष्ट होने की खबरें इस चिंता को और अधिक बढ़ा देती हैं। इस सबके बावजूद हममें से शायद ही कोई पर्यावरण को संरक्षित करने की दिशा में कोई पहल करने को तैयार दिखता है। सब कुछ देख जानकर भी हम आने वाले खतरे से अनजान बने रहने की कोशिशें किया करते हैं। ऐसे में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के एक छोटे से गांव ठांडी के लोगों ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जो न सिर्फ उनकी पर्यावरण के प्रति ललक को दर्शाता है, बल्कि सरकार और सरकारी विभागों के लिए भी आईने की तरह है। पलायन को मजबूर हो चुके इन ग्रामीणों ने पूरी तरह सूख चुके एक गदेरे (प्राकृतिक नाला) को पुनर्जीवित कर अपना जीवन भी फिर गुलजार कर लिया है। उत्तरकाशी जिले में पट्टी गाजणा के ठांडी गांव को पानी उपलब्ध कराने वाला पनियारी गदेरा दो साल पूर्व पूरी तरह सूख चुका था। उस वक्त ग्रामीणों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन धीरे-धीरे काश्तकारों की फसलें नष्ट होने लगीं। साथ ही 180 परिवारों के इस गांव का मुख्य व्यवसाय पशुपालन भी चौपट हो गया। कई परिवारों को तो अपने दुधारू पशु तक बेचने पड़े। ऐसे में ग्रामीणों के सामने दो ही विकल्प बचे, या तो गांव छोड़ जाएं, या गदेरे में दोबारा पानी भरें। ग्रामीणों ने दूसरा विकल्प चुना। इस काम में उनका साथ दिया 'हिमालय पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान' ने। संस्थान के शोध में पता चला कि गदेरे का पानी भूमिगत हो गया है और कोशिश की जाए, तो इसे सतह पर लाया जा सकता है। इसके लिए योजना बनाने के बाद मई, 2009 में ग्रामीणों ने पानी को बाहर लाने के लिए चालें (छाटे तालाब) खोदनी शुरू कीं। पहली चाल में पानी मिलने के बाद आठ सीढ़ीनुमा चालें खोदी गईं। अब तक इनमें से तीन में पानी भर चुका है। अब गांववाले बारिश का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि बारिश के बाद सभी चालें पूरी तरह भर जाएंगी और गदेरा फिर बहने लगेगा। गांव के उत्तम सिंह गुसांई, गंगा नौटियाल, प्रमोद सिंह, पुरूषोत्तम, भरत सिंह समेत अन्य लोगों का कहना है कि गधेरे में पानी आने के बाद गांव में फिर से रौनक लौट आई है। अब पशुपालन के साथ ही कृषि के लिए जल भी गधेरे से ही लोगों को मिलेगा।

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