Saturday, 27 June 2009
-उत्तराखंड की सीमा को लांघ हिमाचल पहुंचेगा 'मैती'
-हिमाचल प्रदेश में भी शुरू होगा 'मैती' पर्यावरण संरक्षण आंदोलन
-इससेपहले हिमाचल में बीज बचाओ आंदोलन भी हो चुका है शुरू
'बीज बचाओ आंदोलन' के बाद अब 'मैती आंदोलन' भी उत्तराखंड की सीमा पार कर हिमाचल प्रदेश में दस्तक दे चुका है। वृक्षारोपण के जरिए पर्यावरण संरक्षण का 'मैती' आंदोलन जल्द ही हिमाचल में भी शुरू होगा।
हिमाचल प्रदेश से लौटे 'मैती' आंदोलन के प्रणेता व उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के वैज्ञानिक कल्याण सिंह रावत ने बताया कि हिमाचल के सोलन, किन्नौर और कांगड़ा जिलों में पर्यावरण संरक्षण की चेतना जागृत करने के लिए 'मैती' आंदोलन शुरू किया जाएगा। जुलाई से किन्नौर से आंदोलन की शुरुआत होगी। इसके तहत सतलुज नदी की घाटियों के क्षेत्रों को हरा-भरा किया जाएगा। उन्होंने बताया कि हिमाचल विवि के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड हिमालयन स्टडीज की निदेशक डॉ. विद्या शारदा और प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. पीएस नेगी उत्तराखंड के वन आंदोलनों व 'मैती' से बहुत प्रभावित हैैं। मालूम हो कि मैती के तहत विवाह के दौरान नव दंपती वधू के मायके में एक वृक्ष लगाते हैं। इसकी देखभाल उसके माता-पिता को करनी होती है। कल्याण सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड व हिमाचल दोनो पर्वतीय राज्य हैैं और दोनों की एक जैसी समस्याएं हैैं।
उत्तराखंड देश में 'चिपको', 'नदी बचाओ', 'रक्षा सूत्र' और 'नशा नहीं रोजगार दो' जैसे आंदोलनों की जन्मभूमि है। हिमाचल में चल रहा 'बीज बचाओ आंदोलन' भी उत्तराखंड में कुंवर प्रसून व विजय जड़धारी के 'बीज बचाओ आंदोलन' की प्रेरणा से ही जन्मा है। ऐसे में मैती आंदोलन का हिमाचल में शुरू होना दोनो राज्यों के बीच के रिश्तों को और मजबूत करेगा।
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