Monday, 29 June 2009
फिर भी दारोमदार पतियों पर ही
-प्रशासनिक एवं सामाजिक संरचनाओं में बदलाव है महिला आरक्षण का लक्ष्य
-महिला प्रतिनिधियों की भूमिका सिर्फ दस्तखत कर देने तक सीमित
-पंचायतों में 17 फीसदी महिलाएं अशिक्षित, इतनी ही कहनेभर को साक्षर
उत्तराखंड मेें पंचायती संस्थाओं में महिलाओं की पचास फीसदी भागीदारी सुनिश्चित जरूर है, लेकिन व्यवहार में महिला प्रतिनिधियों की पुरुषों पर निर्भरता कम होती नहीं दिखाई दे रही। पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों से ज्यादा दखल अब भी उनके पतियों अथवा पुरुष संबंधियों का है। योजना बनाने से लेकर उसके क्रियान्वयन तक में महिला प्रतिनिधियों की भूमिका सिर्फ दस्तखत कर देने तक सिमटी हुई है। जिन उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना, उनकी उन्हें जानकारी तक नहीं है। हालात की गंभीरता को समझाते हुए पंचायतीराज विभाग ने ऐसी व्यवस्था बनाई है, जिसका सही ढंग से अनुपालन होने पर महिला प्रतिनिधि अपने दायित्वों का स्वतंत्र रूप से निर्वहन कर पाएंगी।
बिहार के बाद उत्तराखंड ऐसा राज्य है, जहां पंचायतों में महिलाओं के लिए पचास फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। इसी का नतीजा है कि वर्ष 2008 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में रिकार्ड 30473 महिलाएं चुनकर पंचायतों में पहुंचीं। वर्तमान में हरिद्वार को छोड़कर शेष सभी जिलों में प्रधान के 3817, सदस्य क्षेत्र पंचायत के 1622, सदस्य जिला पंचायत के 203 पदों पर महिलाएं आसीन हैं। ग्राम पंचायतों में वार्ड मेंबर के 25 हजार पद भी महिलाओं के कब्जे में है। यह औसत 53 फीसदी के आसपास बैठता है।
दिखने में पंचायतों की यह तस्वीर सुहावनी है, लेकिन वास्तविकता ठीक उलट है। महिला प्रतिनिधियों का बहुमत होने पर भी पंचायतों में हस्तक्षेप उनके पतियों का ही है। नई योजना का प्रारूप तय करना हो या योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भागादौड़ी, सब कुछ महिला प्रतिनिधियों के पति ही करते हैं। चुनिंदा महिलाएं हैं, जो किसी भी मामले में स्वयं निर्णय ले पाती हैं। ऐसे में 'ग्रासरूट डेमोक्रेसी' की अवधारणा कैसे अंजाम तक पहुंचेगी, अंदाजा लगाया जा सकता है।
रूरल लिटिगेशन एंड एन्टाइटलमेंट केंद्र 'रूलक' के अध्यक्ष अवधेश कौशल बताते हैं कि इन परिस्थितियों के लिए अशिक्षा भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। पंचायतों में लगभग 17 फीसदी महिलाएं अशिक्षित हैं और इतनी ही कहनेभर को साक्षर। ऐसे में वह पंचायतों की कार्यप्रणाली तक नहीं समझा पाती।
हालात की इसी गंभीरता को समझाते हुए पंचायतीराज विभाग ने महिला प्रतिनिधियों के पति एवं संबंधियों पर अंकुश लगाने की ठानी है। अब महिला प्रतिनिधियों के कार्यालयों में उनके संबंधी प्रवेश नहीं कर पाएंगे। जरूरी होने पर उन्हें रजिस्टर में अपना नाम व आने का कारण दर्ज करना होगा। इस रजिस्टर का रखरखाव, आकस्मिक निरीक्षण जिला स्तर पर अपर मुख्य अधिकारी करेंगे।
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