Thursday, 11 June 2009
ऐसा लगा कि बस चांद को छू लूं
21 मई को एवरेस्ट किया था फतेह
सपनों की दुनिया में तो इंसान चांद-तारों को खिलौना बनाकर उनके साथ खेलता है।
सपना जब हकीकत बन कर सामने आता है तो फिर इंसान निशब्द हो जाता है। दूनवासी कविता बुढाथोकी के सपने भी उस वक्त सच होते लगे जब भोर के हल्के अंधेरे में उन्होंने चांद को देखा। उनके शब्दों में कहें तो 'एवरेस्ट और चांद एक समान उंचाई पर दिख रहे थे। एक पल को ऐसा लगा कि कब हाथों से चांद को छू लूं'।
हिमालयी की सर्वोच्च चोटी पर फतेह पाना कोई हंसी खेल नहीं है। लेकिन अगर मन में जज्बा और चट्टानों से टकराने का हौसला हो तो फिर कोई चुनौती सामने नहीं टिकती। दून में पढ़ी-बढ़ी कविता बुढाथोकी को शुरू से ही पर्वतों से अठखेलियां करने का शौक था। यह शौक कब जुनून नब गया पता ही नहीं चला। एमकेपी से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक-एक कर कई चोटियों पर फतेह पाई। तमन्ना रह गई थी तो एवरेस्ट को छूने की। बड़े भाई आनंद सिंह बुढाथोकी ने भी इसमें उनका पूरा साथ दिया। कुछ महीनों पहले जब नेशनल इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग से एवरेस्ट अभियान के लिए आवेदन मांगे गए तो 24 वर्षीय कविता ने इसके लिए अपना आवेदन जमा किया। यहां उन्होंने बेहतर प्रदर्शन कर अपने को अभियान दल में शामिल करने के लिए योग्य साबित किया। कविता कहती हैं कि अभियान दल चार बजे एवरेस्ट के करीब पहुंच गया था, लेकिन अंधेरा होने के चलते वह तकरीबन एक घंटे तक एक चट्टान के करीब रूके रहे। पौं फटने के बाद उन्होंने एवरेस्ट पर फतह पाई। इस समय उन्होंने जो खुशी हुई वह वो बयां नहीं कर सकती। वापस आते हुए वह अपनी जिंदगी के सबसे डरावने झाण से भी रूबरू हुई। सुबह दस बजे अचानक ही एवलांच आ गया। एवलांच आते ही अफरातफरी मच गई। कविता ने बामुश्किल एक चट्टान की आड़ लेकर खुद को बचाया। एक विदेशी दंपत्ति और एक पोर्टर भी इसकी चपेट में आया। दंपत्ति को तो बचा लिया गया लेकिन पोर्टर वहीं दम तोड़ गया। उनके साथ अभियान में शामिल पिथौरागढ़ निवासी व बीएसएफ में कार्यरत लवराज सिंह धर्मसत्तू ने तीसरी बार एवरेस्ट फतेह किया है। वह बताते हैं कि अभियान में नौ उत्तराखंडी शामिल थे। जिसमें छह फौजी और चार सिविलियन हैं। इनमें से एक हिमाचल निवासी हैं। वह कहते हैं कि किसी भी राज्य से इतने ज्यादा लोगों का एवरेस्ट फतेह करना अपने में एक रिकार्ड है।
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