Monday, 29 June 2009
=ग्रामीणों ने बनाई जंगली जानवरों के लिए 'प्याऊ'
जंगल में सूख चुके प्राकृतिक तालाबों को भरा जा रहा है टैंकरों से
ग्राम पंचायत छरबा के ग्रामीणों ने शुरू की प्रेरणादायक पहल
पशु प्रेम की नई मिसाल कायम करने में जुटने लगे हैं और भी गांव
चिलचिलाती धूप और उमस भरी गर्मी में एक ओर लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं तो दूसरी ओर एक ऐसा गांव भी है, जो अपने लिए नहीं, बल्कि प्यासे जंगली जानवरों के लिए भी चिंतित है। यहां के ग्रामीणों ने अपने गांव के आसपास के जंगल में सूख चुके जोहड़ों (तालाब) को पानी से भरने का बीड़ा उठाया है। रोजाना टैंकरों से तालाबों में पानी डाला जा रहा है, जिसमें प्रतिदिन लगभग तीन हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। ये पैसा किसी फंड से नहीं, बल्कि पशु प्रेमी अपनी जेब से दे रहे हैं।
पशु प्रेम क्या होता है, यह देखना है तो देहरादून के सहसपुर विकासखंड की छरबा ग्राम पंचायत में आइये। यहां चिलचिलाती धूप में ग्रामीण एक मिशन को अंजाम दे रहे हैं। मिशन जंगली जानवरों की प्यास बुझााना है। दरअसल, कालसी वन प्रभाग की चौहड़पुर रेंज में ग्राम पंचायत छरबा के आसपास घना जंगल है। इस जंगल के बीचोबीच तीन तालाब (लाट का जोहड़, साहब का जोहड़ व लंबी जोहड़) हैं। वर्षों से ये तालाब मवेशियों और जंगली जानवरों की प्यास बुझााते रहे हंै। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहली बार गर्मी का ऐसा कहर बरपा है कि तीनों जोहड़ सूख गए।
करीब दस दिन पूर्व गांव के ग्राम प्रधान रूमीराम जायसवाल ने लाट के जोहड़ के पास कुछ प्यासे बंदरों को गीली मिट्टी चूसते हुए देखा तो उन्हें लगा कि इन बेजुबानों की पीड़ा समझाने वाला कोई नहीं है। दूसरे ही दिन उन्होंने गांव के कुछ लोगों को यह वाकया सुनाया और निर्णय लिया गया कि जोहड़ों की सफाई कर उन्हें रोजाना टैंकरों से पानी ले जाकर भरा जाएगा। पिछले एक सप्ताह से गांव के लोग रोजाना टैंकरों से जोहड़ों को भर रहे हैं, जिसमें लगभग तीन हजार रुपये रोजाना खर्च हो रहा है। पड़ोस की ग्राम पंचायत होरावाला के प्रधान मोहन लाल भी अपने गांव के कुछ लोगों के साथ इस मिशन से जुड़ चुके हैं और तन, मन, धन से अभियान में सहयोग कर रहे हैं।
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