Tuesday, 23 June 2009
=पलायन की राह पर राज्य का फार्मा उद्योग
अब तक छोटे-बड़े चालीस उद्योग छोड़ चुके हैं उत्तराखंड
केंद्र और राज्य दोनों की नीतियों की मार ने किया बेहाल
देहरादून की सेलाकुई फार्मा सिटी, भगवानपुर औद्योगिक क्षेत्र हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले में रुद्रपुर एक समय देश भर के फार्मा उद्यमियों के लिए आशा की किरण थे पर आज यहां स्थापित उद्योग एक-एक कर पलायन कर रहे हैं। अब तक इन क्षेत्रों से छोटे-बड़े चालीस फार्मा उद्योग पलायन कर चुके हैं। कई उद्योगों ने अपना उत्पादन लगभग बंद कर दिया है और वे फिलहाल वेट एंड वाच की नीति पर चल रहे हैं।
रुड़की की स्पीड लाइफ साइंसेज, हरिद्वार की साई राम और अमीदीप, सेलाकुई की मोडेक, रुद्रपुर की उत्तरांचल लाइफ साइंसेज और लाल तप्पड़ की भविष्य फार्मा जैसे कुछ बड़े फार्मा उद्योगों के साथ ही करीब चालीस से अधिक उद्योग उत्तराखंड के पलायन कर चुके हैं। कई उद्योग ऐसे हैं, जो रुककर हालात की टोह ले रहे हैं। उन्होंने अपना उत्पादन लगभग बंद कर दिया है, लेकिन उद्योग अभी समेटा नहीं है। ये हालात उनके भी पलायन की तैयारी की गवाही दे रहे हैं।
उत्तराखंड औषधि निर्माण एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कालानी कहते हैं कि औद्योगिक पैकेज प्रारंभ होने के बाद उत्तराखंड के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में करीब तीन सौ से अधिक फार्मा उद्योग स्थापित हुए थे। उनसे जुड़े सहायक पैकेजिंग तथा अन्य उद्योग मिलाकर इनकी संख्या पांच सौ के करीब बैठती है लेकिन अब इन उद्योगों के पलायन का दौर शुरू हो गया है।
इसके लिए वे केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी नीति को जिम्मेदार मानते हैं। पहले देश भर में एक्साइज ड्यूटी 16 प्रतिशत थी और उत्तराखंड में उत्पादित माल के लिए यह शून्य थी। पहले केंद्र सरकार ने इसे घटाकर आठ प्रतिशत किया और अब यह मात्र चार प्रतिशत रह गई है। इससे उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को कठिन प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में कच्चा माल भी बाहर से ही आता है, उस पर टैक्स देना पड़ता है, उत्पादित माल पर देश भर में टैक्स कम होने से उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को करीबी स्पर्धा से जूझाना पड़ रहा है।
श्री कालानी का कहना है कि राज्य सरकार उद्योगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। उद्यमी अपनी समस्या कहां रखें, कोई बताने वाला नहीं है।
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