Tuesday, 30 June 2009

=रिपोर्ट के बाद तय होगा स्टैंड

स्थायी राजधानी के मसले पर सदन में रिपोर्ट पेश होने के इंतजार में कांग्रेस देहरादून, स्थायी राजधानी के मसले पर कांग्रेस अपना स्टैैंड सदन में रिपोर्ट पेश होने के बाद ही तय करेगी। इससे पहले कांग्रेस के सांसदों, विधायकों व वरिष्ठ नेताओं की बैठक में रिपोर्ट की समीक्षा होगी, ताकि पार्टी के भीतर इस अहम मसले पर आम राय कायम हो सके। स्थायी राजधानी के मामले में अभी कांग्रेस नेताओं के सुर अलग-अलग हैैं। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों ने इस मुद्दे पर अलग-अलग तरह से जनता के बीच संदेश दिया। हालांकि पौड़ी के सांसद सतपाल महाराज का मत चंद्रनगर (गैरसैैंण) को स्थायी राजधानी बनाने के पक्ष में हैैं। विधायकों की राय भी इस मामले में अलग-अलग है। पदाधिकारी भी स्थायी राजधानी को लेकर किसी एक नाम पर एकमत नहीं है। ऐसे में जो भी राय सामने आ रही है, उसे कांग्रेस नेताओं की व्यक्तिगत राय ही माना जा रहा है। अलबत्ता स्थायी राजधानी पर पार्टी का रुख साफ है। प्रदेश कांग्रेस शुरू से ही यह कह रही है कि इस मामले में किसी भी राय को तभी सुसंगत माना जा सकता है, जबकि स्थायी राजधानी के लिए गठित दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का खुलासा हो जाए। प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य का स्थायी राजधानी के मामले में कहना है कि आयोग की रिपोर्ट का खुलासा होने के बाद उसकी समीक्षा की जाएगी। कांग्रेस विधान मंडल दल की बैठक में रिपोर्ट पर चर्चा होगी। इसके बाद पार्टी के सांसदों व वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक में रिपोर्ट पर विचार-विमर्श किया जाएगा। सभी अहम स्तरों पर बैठक व बातचीत के बाद ही कांग्रेस स्थायी राजधानी के मसले पर रुख को स्पष्ट करेगी। उन्होंने कहा कि प्रमुख विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझाती है। कांग्रेस ने स्थायी राजधानी पर 'लाइन आफ एक्शन' तो तय कर दिया है पर पार्टी के भीतर इस मामले में आम सहमति बनाना आसान नहीं होगा। बदले हालात में कांग्रेस के दिग्गज नेता केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री हरीश रावत को अपने पुराने अंदाज को बदलना पड़ सकता है। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या दिग्गज नेताओं के बीच स्थायी राजधानी के मामले में संतुलन कायम करने की रहेगी। ऐसे में अगले महीने विधानसभा में पेश होने वाली राजधानी आयोग की रिपोर्ट से कांग्रेस में हलचल तेज हो सकती है। हालांकि स्थायी राजधानी पर सरकार की कोशिश सर्वदलीय सहमति का रास्ता अपनाने की है पर सियासी दृष्टि से नाजुक इस मुद्दे पर कांग्रेस समेत अन्य दलों को अपना बचाव भी करना पड़ेगा।

=उत्तराखंड में पहुंचा मानसून

इस बार प्री-मानसून की बारिश से अछूता रहा सूबा - सोमवार को प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में हुई बारिश - हिमाचल से लगे क्षेत्रों में आज-कल में हो सकती है वर्षा - अगले 48 घंटों में राज्य में हल्की से मध्यम वर्षा के आसार देहरादून, उत्तराखंड में मानसून ने दस्तक दे दी है। मौसम विभाग ने सोमवार को बाकायदा इसकी घोषणा भी कर दी। इस बीच प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में मेघ जमकर बरसे। हिमाचल प्रदेश से लगे कुछेक क्षेत्रों में मानसूनी बारिश नहीं हुई है, लेकिन वहां भी जल्द ही इसकी संभावना है। मौसम विभाग का कहना है कि अगले 48 घंटों में राज्यभर में हल्की से मध्यम वर्षा के आसार हैं। कुमाऊं क्षेत्र में ज्यादा बारिश हो सकती है। प्री-मानसून की बारिश न होने से उत्तराखंड में सूखे जैसे हालात पैदा हो गए थे। इस बीच बीते शनिवार को मौसम के करवट बदलने के साथ ही बादलों ने सूबे पर मेहरबानी बरसानी प्रारंभ कर दी। रविवार और फिर सोमवार को तड़के भी प्रदेश के करीब-करीब सभी हिस्सों में अच्छी वर्षा हुई। इसने गर्मी से त्रस्त लोगों को खासी राहत प्रदान की है, वहीं किसानों के मुरझााए चेहरों पर मुस्कान लौटी है। इस बीच सोमवार को मौसम विभाग ने राज्य में मानसून के आगमन की घोषणा भी कर दी। हालांकि, पहले इसके जुलाई के पहले हफ्ते में आने की संभावना जताई जा रही थी। राज्य मौसम केंद्र के निदेशक डा.आनंद शर्मा ने बताया कि 28/29 जून की रात मानसून की पहली बारिश हुई। मानसून के अनुमानित समय से पहले पहुंचने पर उन्होंने कहा कि अचानक हवाओं की रफ्तार बढऩे से मानसून की गति भी बढ़ गई। डा. शर्मा ने बताया कि राज्य में मानसून के आगमन का समय जून का तीसरा हफ्ता या चौथे हफ्ते की शुरुआत है। इस बार यह चौथे सप्ताह के अंत में यहां पहुंचा है। पिछले साल मानसून ने निर्धारित समय से करीब एक सप्ताह पहले दस्तक दे दी थी। राज्य मौसम केंद्र के निदेशक डा.शर्मा ने बताया कि अभी सिस्टम लगातार बना रहेगा। अगले 48 घंटों में उत्तराखंड में कहीं हल्की तो कहीं मध्यम वर्षा के आसार हैं। कुमाऊं के मैदानी क्षेत्रों में मूसलाधार बारिश हो सकती है। बीते पांच सालों में मानसून का आगमन वर्ष तिथि 2005 26 जून 2006 29 जून 2007 16 जून 2008 13 जून 2009 29 जून सोमवार को सूबे में हुई बारिश (मिमी.में) देहरादून-57, उत्तरकाशी-41, मरोड़ा (पौड़ी)-83, देवप्रयाग-13, ऋषिकेश-30, हरिद्वार-16, रुद्रप्रयाग-8, कर्णप्रयाग-6, ऊखीमठ-20, काशीपुर-15, सितारगंज-30, श्रीनगर-5, कोटद्वार-19, नरेंद्रनगर-39, नैनीताल-12, पिथौरागढ़-35, टिहरी-8, मुक्तेश्वर-12, पंतनगर-9।

राज्य मंत्रिमंडल विस्तार: हाईकमान की मुहर का इंतजार

अपने मंत्रियों की सूची लेकर मुख्यमंत्री निशंक पहुंचे दिल्ली दरबार पुराने मंत्रिमंडल के कुछ चेहरे बाहर होने की चर्चा नए नामों पर सहमति और संतुलन बनाने की कवायद उक्रांद के कोटे पर अभी भी बरकरार है असमंजस बुधवार तक शपथ न होने की दशा में टल सकता है विस्तार देहरादून राज्य मंत्रिमंडल की नई तस्वीर अभी साफ नहीं हो सकी है। नए मुख्यमंत्री ने पेंसिल से इसका खाका तो खींच लिया है पर इनमें रंग भरने से पहले हाईकमान की इजाजत ली जानी है। डा. निशंक अपने मंत्रियों की सूची लेकर दिल्ली दरबार में चले गए हैं। डा.निशंक के साथ तीन मंत्रियों ने ही मंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद से ही भाजपा और मुख्यमंत्री के स्तर पर कैबिनेट गठन को लेकर मंथन का दौर जारी है। दो रोज की कवायद में तमाम वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत के बाद मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों की सूची तैयार कर ली है। सूत्रों की मानें को इस बार कैबिनेट में कुछ नए चेहरे दिखाई दे सकते हैैं। एक कैबिनेट मंत्री का बाहर जाना तो तय सा माना जा रहा है। कैबिनेट गठन में तमाम सियासी मकसदों के साथ ही जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश भी की गई है। सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री नहीं चाहते हैैं कि कहीं कोई विवाद की स्थिति पैदा हो। इससे बचने के लिए हाईकमान की मुहर इस सूची पर लगवाने की जरूरत महसूस की जा रही है। इस सूची को लेकर डा. निशंक आज दिल्ली रवाना हो गए हैं। सूत्रों ने बताया कि इस मुद्दे पर सीएम ने आज पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को सूची दिखाने के साथ ही उनके सुझााव भी लिए हैं। सूची पर हाईकमान की मुहर लगवाने के बाद सीएम कल मंगलवार को राजधानी लौट आएंगे। माना जा रहा है कि कैबिनेट का विस्तार मंगलवार की शाम या फिर बुधवार को सकता है। इसके बाद राजभवन की व्यस्तता महामहिम राष्ट्रपति के प्रवास को लेकर होगी। ऐसे में बुधवार के बाद मामला टल सकता है। 13 जुलाई से बजट सत्र को देखते हुए सरकार अब इस मामले को शायद ही आगे खींचना चाहे। इधर, सरकार को समर्थन दे रहे उक्रांद कोटे पर स्थिति साफ होने में अभी वक्त लग सकता है। उक्रांद ने समर्थन की बात की है पर राजभवन तक अपना पत्र अभी देने में रुचि नहीं दिखाई। ऐसे में माना यही जा रहा है कि पहले मंत्रिमंडल विस्तार में उक्रांद की हिस्सेदारी शायद ही हो सके। पार्टी सूत्रों की माने तो उक्रांद में अभी इस बात पर भी मतभेद पैदा हो गए हैं कि किस विधायक को मंत्री बनवाया जाए। जाहिर है कि उक्रांद को पहले घर में मामला सुलझााना होगा, फिर भाजपा के साथ बैठकर मुद्दों पर चर्चा करनी होगी।

पुलिस भर्ती प्रक्रिया पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई

नैनीताल: हाईकोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल, लिपिक व स्टेनोग्राफर के पदों पर चल रही भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस मामले में सरकार को प्रति शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। अल्मोड़ा जनपद निवासी जीवन चंद्र पंत व महेन्द्र बिष्ट द्वारा हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए पुलिस विभाग की उक्त भर्ती प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। याचिका में कहा गया कि 18 दिसंबर 08 को पुलिस विभाग में रिक्त कांस्टेबल, लिपिक व स्टेनोग्राफर पदों पर नियुक्ति के लिए एक विज्ञप्ति जारी हुई थी। इन पदों के लिए याचिका कर्ताओं ने भी आवेदन किया। उक्त विज्ञप्ति में होमगार्ड में तीन वर्ष की सेवा पूर्ण करने वाले अभ्यर्थियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, परन्तु उक्त व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए याचिका कर्ताओं को आरक्षण से वंचित रखा गया। एकलपीठ ने मामले में सुनवाई के बाद भर्ती प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लगाते हुए सरकार को इस मामले में प्रति शपथ पत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की एकलपीठ में हुई।
Regards. H.C.Kukreti

ऋषिकेश-एक तीर्थस्थली

उत्तराखण्ड के चारां धामों का प्रवेश द्वार ऋषिकेश, यूं तो विश्व मानचित्र में योग अध्यात्मिक एवं धार्मिक पर्यटन के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुका है। किन्तु प्राचीन एवं पौराणिक समय से ही इस तीर्थ नगरी में ऋषि-मुनियों साधु-सन्यासियों के अलावा कई महापुरूषों ने भी तप किया है। आधुनिक परिपेक्ष्य में इस स्थान की तपस्थली के रूप में प्रतिष्ठित होने का महत्व अपने आप में अद्वितीय रहा है । ऋशिकेष नामः- इस स्थान के पौराणिक साहित्य में अनेक नाम आये है यथा कुब्जाम्रक क्षेत्र,और अब ऋशिकेष। पहले यहां का नाम कुब्जाम्रक तीर्थ था महाभारत वन पर्व 3082 में कुब्जाम्रक तीर्थ का उल्लेख इस प्रकार है। ततः कुब्जाम्रक गच्छेतीथे सेवी यथा क्रमम। गो सहस्रमचप्रोति स्वर्ग लोक च गच्छति। जिसमें सहस्र गोदान का फल और स्वर्ग लोक की प्राप्ति के सुख का वर्णन किया गया है। कालिकागम 20.25 के अनुसार महानगर के किसी कोण पर जब ऐसी बस्ती को निबिश्ट किया जाए,सौन्दर्यीकरण किया जाए जहां महानगर के लोग भीड भरी जिंदगी से,षोरगुल से बचने के लिए उस बस्ती को कुब्जक कहते है।तपस्वी, साधु सन्यासी,ऋशि,वानप्रस्थी कोलाहल से बचने के लिये यहां रहते थे, इससे इसकानाम कुब्जाम्रक पडा। इस र्तीथ को कुब्जाम्रक कहने का आधार रूप मंे केदारखण्ड पुराण का कथन है कि कुबडे रैभ्य मुनि को विश्णु ने यहां आम के वृक्ष के रूप में दर्षन दिये थे इसीलिए कुब्ज$आम्रक कुब्जाम्रक तीर्थ का दूसरा नाम हृशिकेष होगा। जब गुप्तकाल में अमर कोश की रचना हुई तो अमरकोश में विश्णु के उनतालीस नामों में हृशिकेष नाम क्रम इस प्रकार दिया-दामोदरों हृशीकेषः केषवां माधव स्वभूः। यह भी प्रमाण है कि महाभारत के समय हृशीकेष विश्णु को कहते थे। अनुषासन पर्व अ0127 में उल्लेख है कि हिमालय के निकट हृशीकेष है जहां जब पंचमहायज्ञ,त्रिविक्रम,विश्णुस्त्रोत तथा षिवस्त्रोत पारायण का विषेश महत्व है। केदारखण्ड पुराण्कार ने कुब्जाम्रक तीर्थ नाम की अवधारणा की कथा को देते हुए यह भी लिख दिया कि भविश्य में लोग इसे ऋशिकेष नाम से जानेगे। ऋशिकेष नाम प्रचलित होने के सन्दर्भ में विषालमणि षर्मा ने लिखा है कि श् ऋशिक नाम है इन्द्रियों का,जहां षमन किया जाए।श् हृशीक इन्द्रिय को जीत कर रैभ्य मुनि ना ईष ;इन्द्रियों के अधिपति विश्णु द्धको प्राप्त किया,इसीलिए ;हृशीक$ईष अ$ई त्र ए गुणद्धहृशीकेष यह नाम सटीक है।धीरे-धीरे यह ऋशिकेष के रूप में विख्यात गया। तपस्थली के रूप में ऋशिकेष- देवताओं से सम्बन्धित ऋशि-मुनियों की तपस्थली पर्वतों की तलहटी में बहती हुई देवनदी गंगा के कारण यह स्थान अति पवित्र माना गया है। स्कन्दपुराण में वर्णन आता है कि ऋशिकेष के चन्द्रेष्वर मंदिर जहां आज मंदिर स्थित है वहाॅं चन्द्रमा ने अपने क्षय रोग की निवृत्ति के लिए चैदह हजार वर्शो तक तपस्या की थी। बाल्मीकी रामायण में भी वर्णन आता है कि भगवान राम ने वैराग्य से परिपूर्ण होकर इसी स्थान पर विचरण किया था। षिव पुराण से ज्ञात होता है कि ब्रहा्रनुत्री संध्या ने भी यही तप कर षिव दर्षन प्राप्त किया जो बाद में अरून्धती के नाम से विख्यात हुई। केदारखण्ड पुराण के अनुसार-गंगा द्वारोत्तर विप्र स्वर्ग स्मृताः बुधैः,यस्य दर्षन मात्रेण वियुक्तों भव बन्धनौः अर्थात गंगाद्वार हरिद्वार के उपरान्त केदारभूमि स्वर्ग भूमि के समान षुरू होती है। जिसमें प्रवेष करते ही प्राणी भव बन्धनों से मुक्त हो जाता है। राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने उपरान्त जो चार पुत्र रह गये थे उसमें से एक ह्शिकेतु ने भी यहां तप किया था। यहां पर प्राचीन तपस्वीयों के तप का जिक्र करने का तात्पर्य यह है कि ताकि जन- मानस यह जान सके कि ऋशिकेष एक तीर्थ तो है ही साथ ही यह तपभूमि किन लोगो की तपस्या द्वारा फलीभूत हुई है इसके अलावा आधुनिक तीर्थयात्री भी इस पावन तीर्थस्थल की महत्ता को जान सकें। इसी क्रम में सतयुग में सोमषर्मा ऋशि ने हृशिकेष नारायण की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न हो भगवान विश्णु नें उन्हें वर मांगने को कहा था। भगवान विश्णु ने उन्हें वर प्रदान कर अपने दर्षन भी कराये इसका जिक्र भी केदारखण्ड में मिलता है। यहां के जो सिद्व स्थल है जैसे -वीरभद्र,सोमेष्वर एवं चन्द्रेष्वर में रात्रि में आलौकिक अनुभूतियां होती है। चन्द्रेष्वर में चन्द्रमा ने तप किया तो सोमेष्वर में सोमदेव नामक ऋशि ने अपने पांव के अंगूठे के बल पर खडे होकर षिव की कठोर तपस्या की।बालक धु्रव ने विश्णु की कठोर तपस्या यही की जिसके प्रतीक में धु्रवनारायण मंदिर की स्थिति बतायी जाती है। मुनि की रेती और तपोवन के उत्तर का नाम ऋशि पर्वत है इसके नीचे के भाग में अर्थात गंगातट पर एक गुफा में षेशजी स्वयं निवास करते है। इस तपोवन क्षेत्र में अनेकों गुफाएं थी जहां पूर्वकाल में ऋशि-मुनि तपस्यारत रहते थे।षिवपुराण खण्ड8 अध्याय 15 के अनुसार गंगा के पष्चिमी तट पर तपोवन है जहां षिवजी की कृपा से लक्ष्मण जी पवित्र हो गये थे । यहां लक्ष्मण जी षेश रूप में और षिव लक्ष्मणेष्वर के नाम से विख्यात हुए। ऋशिकेष के ही निकट षत्रुघन ने ऋशि पर्वत पर मौन तपस्या की। स्वामी विवेकानन्द ने एक वर्श यहां तप किया था। आज भी मानसिक रूप विक्षिप्त व्यक्तियों को मनसिक षान्ति एवं पुण्य का लाभ होता है। मणिकूट पर्वत में महर्शि योगी द्वारा ध्यान पीठ की स्थापना की गई है जिसमें चैरासी सिद्वों की स्मृति में चैरासी गुफाएं,योगसाधना के लिए सौ से अधिक गुफाएं भूमि के गर्भ में बनी है।यहां के आश्रमां में योग व अध्यात्म की अतुलनीय धारा बहती है। देष से ही नही वरन् विदेषों से भी काफी मात्रा में लोग तप के लिए यहां आते है। जहां एक ओर ऋशिकेष में आधुनिक पर्यटन की समस्त सुविधायें है वही दुसरी ओर त्रिवेणीघाट एवं परमार्थ की सांयकालीन आरती का दृष्य कितना आलौकिक लगता है। इसका वर्णन वही कर सकता है जिसने खुद इसका दर्षन व अनुभव किया हो । इस तपस्थली की गाथा का वर्णन हम षब्दों में नही कर सकते,इस तपस्थली की महिमा अपरम्पार है। सुनीता षर्मा पत्रकार 19,सुभाश नगर ऋशिकेष देहरादून उत्तराखण्ड।

Monday, 29 June 2009

=ग्रामीणों ने बनाई जंगली जानवरों के लिए 'प्याऊ'

जंगल में सूख चुके प्राकृतिक तालाबों को भरा जा रहा है टैंकरों से ग्राम पंचायत छरबा के ग्रामीणों ने शुरू की प्रेरणादायक पहल पशु प्रेम की नई मिसाल कायम करने में जुटने लगे हैं और भी गांव चिलचिलाती धूप और उमस भरी गर्मी में एक ओर लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं तो दूसरी ओर एक ऐसा गांव भी है, जो अपने लिए नहीं, बल्कि प्यासे जंगली जानवरों के लिए भी चिंतित है। यहां के ग्रामीणों ने अपने गांव के आसपास के जंगल में सूख चुके जोहड़ों (तालाब) को पानी से भरने का बीड़ा उठाया है। रोजाना टैंकरों से तालाबों में पानी डाला जा रहा है, जिसमें प्रतिदिन लगभग तीन हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। ये पैसा किसी फंड से नहीं, बल्कि पशु प्रेमी अपनी जेब से दे रहे हैं। पशु प्रेम क्या होता है, यह देखना है तो देहरादून के सहसपुर विकासखंड की छरबा ग्राम पंचायत में आइये। यहां चिलचिलाती धूप में ग्रामीण एक मिशन को अंजाम दे रहे हैं। मिशन जंगली जानवरों की प्यास बुझााना है। दरअसल, कालसी वन प्रभाग की चौहड़पुर रेंज में ग्राम पंचायत छरबा के आसपास घना जंगल है। इस जंगल के बीचोबीच तीन तालाब (लाट का जोहड़, साहब का जोहड़ व लंबी जोहड़) हैं। वर्षों से ये तालाब मवेशियों और जंगली जानवरों की प्यास बुझााते रहे हंै। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहली बार गर्मी का ऐसा कहर बरपा है कि तीनों जोहड़ सूख गए। करीब दस दिन पूर्व गांव के ग्राम प्रधान रूमीराम जायसवाल ने लाट के जोहड़ के पास कुछ प्यासे बंदरों को गीली मिट्टी चूसते हुए देखा तो उन्हें लगा कि इन बेजुबानों की पीड़ा समझाने वाला कोई नहीं है। दूसरे ही दिन उन्होंने गांव के कुछ लोगों को यह वाकया सुनाया और निर्णय लिया गया कि जोहड़ों की सफाई कर उन्हें रोजाना टैंकरों से पानी ले जाकर भरा जाएगा। पिछले एक सप्ताह से गांव के लोग रोजाना टैंकरों से जोहड़ों को भर रहे हैं, जिसमें लगभग तीन हजार रुपये रोजाना खर्च हो रहा है। पड़ोस की ग्राम पंचायत होरावाला के प्रधान मोहन लाल भी अपने गांव के कुछ लोगों के साथ इस मिशन से जुड़ चुके हैं और तन, मन, धन से अभियान में सहयोग कर रहे हैं।

फिर भी दारोमदार पतियों पर ही

-प्रशासनिक एवं सामाजिक संरचनाओं में बदलाव है महिला आरक्षण का लक्ष्य -महिला प्रतिनिधियों की भूमिका सिर्फ दस्तखत कर देने तक सीमित -पंचायतों में 17 फीसदी महिलाएं अशिक्षित, इतनी ही कहनेभर को साक्षर उत्तराखंड मेें पंचायती संस्थाओं में महिलाओं की पचास फीसदी भागीदारी सुनिश्चित जरूर है, लेकिन व्यवहार में महिला प्रतिनिधियों की पुरुषों पर निर्भरता कम होती नहीं दिखाई दे रही। पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों से ज्यादा दखल अब भी उनके पतियों अथवा पुरुष संबंधियों का है। योजना बनाने से लेकर उसके क्रियान्वयन तक में महिला प्रतिनिधियों की भूमिका सिर्फ दस्तखत कर देने तक सिमटी हुई है। जिन उत्तरदायित्वों के निर्वहन के लिए जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना, उनकी उन्हें जानकारी तक नहीं है। हालात की गंभीरता को समझाते हुए पंचायतीराज विभाग ने ऐसी व्यवस्था बनाई है, जिसका सही ढंग से अनुपालन होने पर महिला प्रतिनिधि अपने दायित्वों का स्वतंत्र रूप से निर्वहन कर पाएंगी। बिहार के बाद उत्तराखंड ऐसा राज्य है, जहां पंचायतों में महिलाओं के लिए पचास फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। इसी का नतीजा है कि वर्ष 2008 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में रिकार्ड 30473 महिलाएं चुनकर पंचायतों में पहुंचीं। वर्तमान में हरिद्वार को छोड़कर शेष सभी जिलों में प्रधान के 3817, सदस्य क्षेत्र पंचायत के 1622, सदस्य जिला पंचायत के 203 पदों पर महिलाएं आसीन हैं। ग्राम पंचायतों में वार्ड मेंबर के 25 हजार पद भी महिलाओं के कब्जे में है। यह औसत 53 फीसदी के आसपास बैठता है। दिखने में पंचायतों की यह तस्वीर सुहावनी है, लेकिन वास्तविकता ठीक उलट है। महिला प्रतिनिधियों का बहुमत होने पर भी पंचायतों में हस्तक्षेप उनके पतियों का ही है। नई योजना का प्रारूप तय करना हो या योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भागादौड़ी, सब कुछ महिला प्रतिनिधियों के पति ही करते हैं। चुनिंदा महिलाएं हैं, जो किसी भी मामले में स्वयं निर्णय ले पाती हैं। ऐसे में 'ग्रासरूट डेमोक्रेसी' की अवधारणा कैसे अंजाम तक पहुंचेगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। रूरल लिटिगेशन एंड एन्टाइटलमेंट केंद्र 'रूलक' के अध्यक्ष अवधेश कौशल बताते हैं कि इन परिस्थितियों के लिए अशिक्षा भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। पंचायतों में लगभग 17 फीसदी महिलाएं अशिक्षित हैं और इतनी ही कहनेभर को साक्षर। ऐसे में वह पंचायतों की कार्यप्रणाली तक नहीं समझा पाती। हालात की इसी गंभीरता को समझाते हुए पंचायतीराज विभाग ने महिला प्रतिनिधियों के पति एवं संबंधियों पर अंकुश लगाने की ठानी है। अब महिला प्रतिनिधियों के कार्यालयों में उनके संबंधी प्रवेश नहीं कर पाएंगे। जरूरी होने पर उन्हें रजिस्टर में अपना नाम व आने का कारण दर्ज करना होगा। इस रजिस्टर का रखरखाव, आकस्मिक निरीक्षण जिला स्तर पर अपर मुख्य अधिकारी करेंगे।

- फिर गुलजार हुआ जीवन

-उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित एक छोटे से गांव ने पेश की मिसाल -पूरी तरह सूख चुके गदेरे को किया पुनर्जीवित ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के मिजाज में परिवर्तन, बेशक ये दोनों घटनाएं आज देश-दुनिया की बड़ी समस्या बनकर उभरी हैं। हर रोज प्राकृतिक जलस्रोतों के सूखने, नदियों में पानी घटने और जंगलों के जलकर नष्ट होने की खबरें इस चिंता को और अधिक बढ़ा देती हैं। इस सबके बावजूद हममें से शायद ही कोई पर्यावरण को संरक्षित करने की दिशा में कोई पहल करने को तैयार दिखता है। सब कुछ देख जानकर भी हम आने वाले खतरे से अनजान बने रहने की कोशिशें किया करते हैं। ऐसे में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के एक छोटे से गांव ठांडी के लोगों ने कुछ ऐसा कर दिखाया है, जो न सिर्फ उनकी पर्यावरण के प्रति ललक को दर्शाता है, बल्कि सरकार और सरकारी विभागों के लिए भी आईने की तरह है। पलायन को मजबूर हो चुके इन ग्रामीणों ने पूरी तरह सूख चुके एक गदेरे (प्राकृतिक नाला) को पुनर्जीवित कर अपना जीवन भी फिर गुलजार कर लिया है। उत्तरकाशी जिले में पट्टी गाजणा के ठांडी गांव को पानी उपलब्ध कराने वाला पनियारी गदेरा दो साल पूर्व पूरी तरह सूख चुका था। उस वक्त ग्रामीणों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन धीरे-धीरे काश्तकारों की फसलें नष्ट होने लगीं। साथ ही 180 परिवारों के इस गांव का मुख्य व्यवसाय पशुपालन भी चौपट हो गया। कई परिवारों को तो अपने दुधारू पशु तक बेचने पड़े। ऐसे में ग्रामीणों के सामने दो ही विकल्प बचे, या तो गांव छोड़ जाएं, या गदेरे में दोबारा पानी भरें। ग्रामीणों ने दूसरा विकल्प चुना। इस काम में उनका साथ दिया 'हिमालय पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान' ने। संस्थान के शोध में पता चला कि गदेरे का पानी भूमिगत हो गया है और कोशिश की जाए, तो इसे सतह पर लाया जा सकता है। इसके लिए योजना बनाने के बाद मई, 2009 में ग्रामीणों ने पानी को बाहर लाने के लिए चालें (छाटे तालाब) खोदनी शुरू कीं। पहली चाल में पानी मिलने के बाद आठ सीढ़ीनुमा चालें खोदी गईं। अब तक इनमें से तीन में पानी भर चुका है। अब गांववाले बारिश का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि बारिश के बाद सभी चालें पूरी तरह भर जाएंगी और गदेरा फिर बहने लगेगा। गांव के उत्तम सिंह गुसांई, गंगा नौटियाल, प्रमोद सिंह, पुरूषोत्तम, भरत सिंह समेत अन्य लोगों का कहना है कि गधेरे में पानी आने के बाद गांव में फिर से रौनक लौट आई है। अब पशुपालन के साथ ही कृषि के लिए जल भी गधेरे से ही लोगों को मिलेगा।

जयशंकर ने बढ़ाया दून का गौरव

-तबला वादन के लिए प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्ला खान 'युवा पुस्कार' पाने वाले पहले उत्तराखंडी होंगे जयशंकर मिश्र -बनारस घराने के श्री मिश्र कई देशों में कर चुके हैं अपनी कला का प्रदर्शन देहरादून, जागरण संवाददाता: यह पहला मौका है, जब हिंदुस्तानी इंस्ट्रूमेंटल म्यूजिक के लिए दूनघाटी के किसी कलाकार का चयन संगीत नाटक अकादमी के प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्ला खान 'युवा पुस्कार' के लिए हुआ है। गौरव की बात यह है कि दून निवासी जयशंकर मिश्र इस पुरस्कार को पाने वाले पहले उत्तराखंडी तबला वादक होंगे। संगीत नाटक अकादमी द्वारा वर्ष 2006 में स्थापित यह पुरस्कार जयशंकर मिश्र को अगस्त माह में दिल्ली में प्रदान किया जाएगा। शनिवार को हिंदी भवन में संवाददाताओं से बातचीत में श्री मिश्र ने यह जानकारी दी। बनारस घराने से ताल्लुक रखने वाले श्री मिश्र के दादा जद्दू महाराज व पिता जगदीश शंकर मिश्र को भी तबला वादन में महारथ हासिल रही है। तबला वादन के लिए अब तक कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे जा चुके जयशंकर अमरीका व यूरोप समेत कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। तबले के पांच हजार बोल कंठस्थ रखने वाले श्री मिश्र की दो सीडी भी रिलीज हो चुकी हैं। एक में उन्होंने उत्तराखंड के प्रसिद्ध संतूर वादक मोहन सिंह रावत के साथ संगत की है। संगीत को आगे बढ़ाने के लिए वह राजधानी में स्वयं की अकादमी भी चलाते हैं, जो उनके दादा जद्दू महाराज के नाम पर स्थापित है। श्री मिश्र ने उन्हें मिलने वाले प्रतिष्ठित उस्ताद बिस्मिल्ला खान 'युवा पुस्कार' को उत्तराखंड को समर्पित करने की बात कही। इस मौके पर पर्यावरण के क्षेत्र में नेशनल यूथ अवार्डी जगदीश बाबला भी उपस्थित थे।

Saturday, 27 June 2009

=बिल गेट्स के साथ भोज करेंगे परमवीर

-माइक्रोसॉफ्ट ने इन्नोवेटिव टीचर अवार्ड से नवाजा -सौरमंडल के रहस्य खोलता है कठैत का प्रोजेक्ट एनिमेशन थ्रू -आज रवाना होंगे दिल्ली से गांव के बच्चों को कठिन साफ्टवेयर्स के जरिए कंप्यूटर सिखाना आसान नहीं था। उनके लिए अलग साधन विकसित करने की जरूरत है। यही मेरे जीवन का उद्देश्य है। यह कहना है नेशनल एजूकेशनल कंप्यूटिंग कांफ्रेंस (एनईसीसी), वाशिंगटन में देश का प्रतिनिधित्व करने जा रहे उत्तराखंड के शिक्षक परमवीर सिंह कठैत का। इस दौरान श्री कठैत प्रसिद्ध माइक्रोसाफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स के साथ रात्रिभोज भी करेंगे। निमंत्रण से उत्साहित कठैत ने कहा कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि बिल गेट्स के साथ बैठने का मौका मिलेगा। उत्तराखंड सरकार ने 2003 में ग्र्रामीण छात्रों को कंप्यूटर शिक्षा देने के लिए माइक्रोसाफ्ट के साथ करार किया था। इसी करार के तहत टिहरी में शिक्षण कार्य करने गए राजीव गांधी नवोदय विद्यालय, देहरादून के सामाजिक विज्ञान के सहायक अध्यापक परमवीर कठैत को कुछ दिन बाद लगा कि कठिन साफ्टवेयर्स के माध्यम से छात्रों को समझाना मुश्किल कार्य है। उनकी जरूरत के मुताबिक कुछ प्रोजेक्ट तैयार किए जाने चाहिए। इसी दौरान उन्होंने एक प्रोजेक्ट 'एनिमेशन थ्रू' विकसित किया। इस प्रोजेक्ट की सहायता से छात्र घर बैठे ग्रह-नक्षत्रों के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं। श्री कठैत ने बताया कि उनका प्रोजेक्ट सौरमंडल के रहस्यों को खोलता है। इसे इस प्रकार तैयार किया गया है कि छात्र इसे आसानी से प्रयोग कर सकें और समझा सकें। उन्होंने कहा कि अब उनका उद्देश्य ग्र्रामीण छात्रों के लिए साफ्टवेयर्स को आसान बनाना है। माइक्रोसाफ्ट ने उन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए विश्व स्तरीय 'इन्नोवेटिव टीचर्स अवार्ड' से नवाजा है। वाशिंगटन में 28 जून से एक जुलाई तक चलने वाली नेशनल एजूकेशनल कंप्यूटिंग कांफ्रेंस (एनईसीसी) में विश्वभर के तकनीकी विशेषज्ञ, शिक्षक व कंप्यूटर के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग जुटेंगे। इस सेमिनार का उद्देश्य विचारों, शिक्षा व तकनीकों का आदान प्रदान करना है। भारत से अकेले परमवीर सिंह कठैत इस सेमिनार में शामिल हो रहे हैैं। इस उपलब्धि पर परमवीर सिंह कठैत का कहना है उनके प्रोजेक्ट को माइक्रोसाफ्ट के जरिए इतनी प्रसिद्धि मिली है। फिलहाल वे ग्रीन हाउस, एसिड रेन और मौसम में आ रहे बदलावों पर कार्य कर रहे हैैं। उन्होंने इस प्रकार की जानकारियां एकत्र की है, जो गूगल जैसे सर्च इंजन पर भी उपलब्ध नहीं हैं।

-उत्तराखंड की सीमा को लांघ हिमाचल पहुंचेगा 'मैती'

-हिमाचल प्रदेश में भी शुरू होगा 'मैती' पर्यावरण संरक्षण आंदोलन -इससेपहले हिमाचल में बीज बचाओ आंदोलन भी हो चुका है शुरू 'बीज बचाओ आंदोलन' के बाद अब 'मैती आंदोलन' भी उत्तराखंड की सीमा पार कर हिमाचल प्रदेश में दस्तक दे चुका है। वृक्षारोपण के जरिए पर्यावरण संरक्षण का 'मैती' आंदोलन जल्द ही हिमाचल में भी शुरू होगा। हिमाचल प्रदेश से लौटे 'मैती' आंदोलन के प्रणेता व उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के वैज्ञानिक कल्याण सिंह रावत ने बताया कि हिमाचल के सोलन, किन्नौर और कांगड़ा जिलों में पर्यावरण संरक्षण की चेतना जागृत करने के लिए 'मैती' आंदोलन शुरू किया जाएगा। जुलाई से किन्नौर से आंदोलन की शुरुआत होगी। इसके तहत सतलुज नदी की घाटियों के क्षेत्रों को हरा-भरा किया जाएगा। उन्होंने बताया कि हिमाचल विवि के इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटेड हिमालयन स्टडीज की निदेशक डॉ. विद्या शारदा और प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. पीएस नेगी उत्तराखंड के वन आंदोलनों व 'मैती' से बहुत प्रभावित हैैं। मालूम हो कि मैती के तहत विवाह के दौरान नव दंपती वधू के मायके में एक वृक्ष लगाते हैं। इसकी देखभाल उसके माता-पिता को करनी होती है। कल्याण सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड व हिमाचल दोनो पर्वतीय राज्य हैैं और दोनों की एक जैसी समस्याएं हैैं। उत्तराखंड देश में 'चिपको', 'नदी बचाओ', 'रक्षा सूत्र' और 'नशा नहीं रोजगार दो' जैसे आंदोलनों की जन्मभूमि है। हिमाचल में चल रहा 'बीज बचाओ आंदोलन' भी उत्तराखंड में कुंवर प्रसून व विजय जड़धारी के 'बीज बचाओ आंदोलन' की प्रेरणा से ही जन्मा है। ऐसे में मैती आंदोलन का हिमाचल में शुरू होना दोनो राज्यों के बीच के रिश्तों को और मजबूत करेगा।

Thursday, 25 June 2009

निशंक होंगे उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री

-विधायक दल की बैठक में मतदान से चुने गए नेता -निशंक को 23, पंत को मिला 13 विधायकों का समर्थन -खंडूड़ी, कोश्यारी के नाम मतदान से अलग रखा गए पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा विधायक दल की बैठक में उनका चुनाव बहुमत के आधार पर हुआ। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी गुरुवार को प्रदेश अध्यक्ष बची सिंह रावत के साथ राज्यपाल को नए नेता के नाम के साथ अपना इस्तीफा सौंपेंगे। सूत्रों के अनुसार बैठक में अधिकांश विधायकों ने खंडूड़ी व भगत सिंह कोश्यारी का नाम लिया, लेकिन केंद्रीय पर्यवेक्षक वेंकैया नायडू ने साफ किया कि कोश्यारी व खंडूड़ी को छोड़कर बाकी लोगों में से ही नया नेता चुनना है। इसके बाद निशंक व प्रकाश पंत के बीच मतदान हुआ। उत्तराखंड में भाजपा को नया नेता चुनने के लिए चार घंटे तक कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। भाजपा मुख्यालय में दोपहर 11 बजे शुरू हुई बैठक साढ़े तीन बजे जाकर समाप्त हुई। बैठक के बाद नायडू ने सर्वसम्मति वे निशंक के नए नेता चुने जाने का ऐलान किया, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शुरुआत में वेंकैया नायडू ने विधायकों को अनुशासन की घुट्टी पिलाई और उसके बाद नया नेता चुनने को कहा। पहले तो अधिकांश विधायकों ने खंडूड़ी को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने की बात कही, तो कुछ ने बदलाव कर कोश्यारी को बनाए जाने की बात रखी। इस पर नायडू ने साफ किया कि खंडूड़ी व कोश्यारी को छोड़कर बाकी नामों पर बात करनी है। इसके बाद प्रकाश पंत ने अपनी दावेदारी की तो खंडूड़ी ने निशंक का नाम आगे बढ़ाया। कुछ विधायकों ने यह भी कहा कि केंद्र ही निर्णय कर सकता था, उनको क्यों बुलाया। इसके बाद दोनों पर्यवेक्षकों ने सभी विधायकों से अलग-अलग बात की। आखिर में मतदान का सहारा लेना पड़ा। बैठक में मौजूद सभी 36 विधायकों (दो मनोनीत विधायकों सहित) ने पर्चियों से मतदान कर अपनी-अपनी पसंद बताई। सूत्रों के अनुसार निशंक के पक्ष में 23 व पंत के पक्ष में 13 विधायक रहे। इसके बाद एक बार सभी विधायक साथ बैठे जिसमें मुख्यमंत्री खंडूड़ी ने निशंक के नाम का प्रस्ताव रखा व प्रकाश पंत, त्रिवेंद्र रावत आदि ने उसका समर्थन किया। नेता चुने जाने के बाद भाजपा संसदीय दल के नेता लालकृष्ण आडवाणी व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने निशंक को बधाई दी। कोश्यारी इस बैठक में तो आए ही नहीं थे, जब निशंक को नेता बनाए जाने की घोषणा की गई वे तब भी नहीं थे। उनके नाम का समर्थन करने वाले पंत व रावत वहां से चले गए। ऐसे में खंडूड़ी खेमे की मौजूदगी में निशंक के नाम की घोषणा की गई। कोश्यारी समर्थक मतदान में हार के बाद उत्तराखंड निवास गए और वहां पर कोश्यारी के साथ सारी स्थिति पर विचार विमर्श किया। इधर बैठक में निशंक व खंडूड़ी साथ-साथ एक ही गाड़ी में आए थे और गए भी साथ। नेता चुने जाने के बाद निशंक ने खंडूड़ी की शान में जमकर कसीदे काढ़ते हुए कहा कि वे खंडूड़ी के विकास के काम को ही आगे बढ़ाएंगे। बैठक के बाद अधिकांश विधायक उत्तराखंड के लिए रवाना हो गए, लेकिन खंडूड़ी व पंत गुरुवार सुबह देहरादून जाएंगे।

Wednesday, 24 June 2009

खंडूड़ी का इस्तीफा:

भाजपा आलाकमान ने आखिरकार उत्तराखंड में मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी का इस्तीफा मंजूर कर लिया है। बुधवार को दिल्ली में होने वाली विधायक दल की बैठक में नए नेता का चुनाव होगा। सूत्रों के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने रमेश पोखरियाल निशंक के नाम पर मन बना लिया है। निशंक उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की भाजपा सरकारों में भी मंत्री में रह चुके हैं। इधर कोश्यारी लाबींग में जुटे हैं तो प्रकाश पंत का नाम भी चर्चा में है। उत्तराखंड में सत्ता में आने के बाद से ही अंदरूनी असंतोष से जूझते रहे मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को आखिरकार इस्तीफा देना ही पड़ा है। राज्य में लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद गत 19 मई को दिल्ली में हुई वरिष्ठ नेताओं की बैठक में उन्होंने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दिया था। इसके बाद भी भाजपा आलाकमान क शुतुरमुर्गी रवैया जारी रहा। इससे भन्नाए कोश्यारी ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया और एक दर्जन विधायकों ने दिल्ली आकर सरकार गिराने की धमकी दी थी। दरअसल उत्तराखंड में भाजपा का संकट तभी से बढ़ना शुरू हुआ था, जबकि इस नाजुक राज्य का संगठन प्रभारी दिल्ली के डॉ अनिल जैन को बनाया गया था। जैन की अनुभवहीनता से समस्याएं सुलझने के बजाए बढ़ती ही गई। वे न तो राज्य का मिजाज जान सके और न ही केंद्रीय नेतृत्व तो सही जानकारी दे सके। इधर खंडूड़ी के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर घमासान शुरू हो गया है। केंद्रीय नेतृत्व राज्य मंत्रिमंडल के सबसे वरिष्ठ सदस्य रमेश पोखरियाल निशंक को नया नेता बनाने के पक्ष में हैं। वे न केवल पार्टी के जातीय समीकरण में फिट बैठते हैं, बल्कि राजनीतिक लिहाज से दुनियादारी को भी बखूबी समझते हैं। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने अभी भी हथियार नहीं डाले हैं। विधायक दल की बैठक के लिए दिल्ली पहुंच रहे विधायकों की अलग-अलग बैठकों के दौर में शुरू हो गए हैं। बुधवार को होने वाली इस बैठक में वेंकैया नायडू व थावरचंद गहलौत केंद्रीय पर्यवेक्षक होंगे।

न संस्कृति सुरक्षित रही, न परंपराएं ही

उत्तराखंडी समाज जिस तरह अपने रीति-रिवाज, परंपराओं, यहां तक कि खान-पान को भी भूल रहा है, उससे आशंका बन रही है कि कहीं इस समाज को भविष्य में अस्तित्व न तलाशना पड़े। गुजरात के लोग भले ही ढाल में चीनी, केरल के नारियल व मछली, बंगाली माछ-भात, राजस्थानी मट्ठा व मकई की रोटी, पंजाबी सरसों का साग खाना नहीं भूलते, लेकिन उत्तराखंडी कोदा-झंगोरा को बिसरा चुके हैं। यह कैसी विडंबना है कि पहाड़ के लोगों को ही उनके परंपरागत व्यंजनों से परिचित कराने के लिए स्टाल लगाने की जरूरत पड़ रही है। जरा उस दौर को याद करें, जब पूरा पहाड़ी जनमानस सड़कों पर उमड़ पड़ा था। हर ओर एक ही आवाज थी कि कोदा-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे, लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद शायद ही किसी ने सोचा हो कि पारंपरिक अनाजों से तैयार व्यंजन इस पर्वतीय राज्य की पहचान बन सकते हंै। किसी क्षेत्र का खानपान वहां का भौगोलिक परिवेश निर्धारित करता है। संबंधित इलाके में किसी खास तरह के अनाज को अपनाने के पीछे मुख्य वजह है, वहां इसकी ज्यादा पैदावार। वहां की जलवायु, लोगों का जीवन स्तर, काम करने की शैली व प्रवृत्ति, लोगों की रुचि खान-पान की एक खास परंपरा को जन्म देती है। उत्तराखंड की बात करें तो यहां परंपरा में कोदा-झंगोरा, गहथ, उड़द व तोर मिली हुई है और इसी से मिली है फाणू, थिंचौणी, कफली जैसे स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन बनाने की शैली। रोट, अरसा, खटाई, तिलों की चटनी, पतूड़, उड़द के पकवान जैसे व्यंजनों को बनाने की विधि भी पहाड़ की विरासत का हिस्सा है। इन सभी व्यंजनों का महत्व पहाड़ में सिर्फ स्वाद के लिए नहीं है, बल्कि ये यहां की जलवायु व परिस्थिति के अनुसार भी हैं। पहाड़ की ठंडी जलवायु में कोदा और फाणू का महत्व सहज समझा जा सकता है। दिल्ली में उत्तराखंडी सरोकारों से जुड़े मौल्यार संस्था के जयपाल सिंह रावत व नत्थीप्रसाद सुयाल कहते हैं कि हम आखिर कब तक स्टाल लगाकर अपनी परंपराओं व रीति-रिवाजों का मातम मनाते रहेंगे। वह कहते हैं कि जब गुजराती ढेकुली दुकानों में सज सकती है तो फिर कोदे की पेस्टी क्यों नहीं। बिहार का सत्तू सजीले पैकेट में बंद होकर मुंबई की दुकानों की शोभा बढ़ा सकता है तो टिहरी की सिंगोरी व अल्मोड़ा की बाल मिठाई बड़े-बड़े शहरों में क्यों नहीं जा सकती। होटल व्यवसाय से जुड़े कमलेश जोशी कहते हैं उत्तराखंडी व्यंजनों को यदि प्रोत्साहन मिले तो यह आर्थिकी संवारने का मजबूत जरिया बन सकते हैं। लेकिन, सरकारी स्तर पर इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुए। व्यावसायिक नजरिए से इन्हें प्रचार मिले तो इनके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ेगा। इधर, जीएमवीएन के जीएम युगल किशोर पंत का कहना है कि निगम के मीनू में पारंपरिक व्यंजन भी शामिल हैं, लेकिन इन्हें डिमांड पर ही तैयार किया जाता है। निगम के कुछ होटलों में जरूर पारंपरिक व्यंजन तैयार मिलते हैं। इन्हें प्रोत्साहित करने को निगम के स्तर पर क्या प्रयास हो रहे हैं, इस सवाल को वह टाल गए।

थाली में सजी गहथ की दाल-मंडुवे की रोटी

, उत्तरकाशी सौड़ उत्तराखंड का पहला ऐसा गांव बन गया है जो पर्यटकों को न सिर्फ होम स्टे व्यवस्था उपलब्ध करवा रहा है, बल्कि गढ़वाली व्यंजन व रात्रि में स्थानीय लोक नृत्य व संगीत की महफिल भी सजा रहा है। प्रकृति की सबसे सुंदर घाटी हरकीदून मार्ग पर उत्तरकाशी से 176 किमी दूर उत्तराखंड के सपनों को सजाने वाला गांव सौड़ बसा है। इस गांव से उच्च हिमालय क्षेत्र की हिमाच्छादित चोटी स्वर्गारोहणी, कालानाग, बंदरपूंछ व रंगलाना जैसी सुंदर चोटियां का खूबसूरत रास्ता गुजरता है। ये सभी चोटियां 6,100 से 6,387 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से ढ़की चोटियों के साथ इस गांव से हरकीदून घाटी के सम्मोहन सा असर करने वाले पर्यटक स्थलों का रास्ता है। केदारकांठा, भारड़सर, चांगसील, मांजीवण, देवक्यारा जैसे पर्यटक स्थलों पर दूर तलक फैले हरी मखमली घास पर फूलों की खूशबू से महकते बुग्यालों का नजारा देखने के लिए इसी गांव से आगे कदम पर्यटकों के कदम बढ़ते हैं। एक साल पहले तक गांव में पर्यटकों व प्रकृति प्रेमियों को सिर्फ रास्तों से गुजरते हुए देखा जा सकता था, लेकिन अब ग्रामीणों ने पर्यटकों को अपने घरों में रात्रि विश्राम की सुविधा उपलब्ध करवानी शुरू कर दी है। गांव को यह प्रेरणा गांव के ही युवक चैन सिंह ने दी। हरकीदून संरक्षण एवं पर्वतारोहण समिति से जुड़े चैन सिंह ने सबसे पहले अपने घर में विश्राम गृह बनाया और पर्यटकों को आवासीय सुविधा उपलब्ध करवाई। रात्रि व दोपहर के भोजन में गढ़वाली व्यंजन फाफरे की पोली, कंडाली की सब्जी, गहथ की दाल, मडुवे की रोटी और जागला परोसना शुरू किया। इससे उन्हें प्रति दिन चार से पांच हजार रुपए की आमदनी हुई। गांव के कुल 75 परिवारों में से अब तक इस व्यवसाय से दस परिवार जुड़ चुके हैं। गांव के प्रदीप रावत, बलवीर रावत, शूरवीर रावत, वचन रावत, भरत रावत, विजेन्द्र रावत, राजमोहन रावत, रजन सिंह, बर्फिया लाल व गंगा सिंह इससे जुड़ चुके हैं। पहले पर्यटकों को सिर्फ होम स्टे व्यवस्था दी जाती थी, अब गांव में हर शाम सांस्कृतिक संध्या भी पर्यटकों के आने की खुशी में आयोजित की जाती है। हर रात यहां ढोल-बाजों व रणसिंगे की टंकार पर गांव की महिलाएं व पुरुष स्थानीय लोककला का प्रदर्शन करते हैं। गांव को कांग्रेस सरकार में पर्यटन गांव भी घोषित किया, घोषणा के बाद सरकार गांव को भूल गई। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी आरएस यादव का कहना है कि गांव को लेकर अब योजना तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि अब तक विभागीय स्तर पर फिलहाल कोई कार्य नहीं हुआ है।

कांग्र्रेस नेता व पूर्व दर्जा मंत्री चंद्रमोहन गिरफ्तार, जेल भेजा

कांग्र्रेस नेता व पूर्व दर्जा मंत्री चंद्रमोहन गिरफ्तार, जेल भेजा -ज्ञापन देकर लौटते वक्त पुलिस ने किया नाटकीय अंदाज में गिरफ्तार -कोर्ट ने न्यायिक हिरासत में भेजा बेस अस्पताल में चिकित्सक के साथ मारपीट व अभद्रता करने के आरोपी कांग्रेसी नेता एवं पूर्व दर्जा मंत्री को आखिरकार सोमवार को पुलिस ने गिरफ्तार कर ही लिया। कोर्ट के आदेश पर पूर्व मंत्री को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। पुलिस ने डाक्टर से मारपीट व अभद्रता करने के आरोपी पूर्व दर्जा मंत्री ठा.चंद्रमोहन सिंह को नाटकीय अंदाज में थाने के ठीक सामने से गिरफ्तार किया। सोमवार को पूर्वाक्ष पूर्व दर्जा मंत्री ठा.चंद्रमोहन सिंह अपनी तहरीर पर मुकदमा दर्ज नहीं होने के बाबत सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन देकर लौट रहे थे। इसी दौरान थाने के सामने से गुजर रहे ठा. चंद्रमोहन को सीओ देवेंद्र पींचा ने भारी पुलिस बल के साथ गिरफ्तार कर लिया। यह सब इतना अचानक हुआ कि पूर्व मंत्री के साथ चल रहे समर्थक भी कुछ समझा नहीं पाए। इधर पुलिस ने भी कांग्र्रेसियों के बवाल की आशंका के चलते पूर्व मंत्री को कोतवाली में न रोककर सीधे न्यायालय में पेश कर दिया। वकीलों की लम्बी जिरह के बाद न्यायालय ने आरोपी पूर्व मंत्री को न्यायिक हिरासत में भेज दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया। पुलिस अब इस मामले के अन्य आरोपियों के बारे में भी पूछताछ कर रही है। गौरतलब है कि शनिवार को एसएस जीना बेस अस्पताल हल्द्वानी में मरीज को भर्ती कराने को लेकर पूर्व दर्जा मंत्री व कांग्रेसी नेता ठा. चंद्रमोहन सिंह व डाक्टर बीएन सिंह के बीच कहासुनी हो गयी। विवाद बढऩे पर दोनों पक्षों में मारपीट की नौबत आ गयी थी। इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से कोतवाली में मामला दर्ज कराया गया था। पुलिस ने डाक्टर की तहरीर के आधार पर ठा. चंद्रमोहन व दो अन्य के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली। जबकि चंद्रमोहन की तहरीर तो ले ली गई, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। इधर, प्रांतीय चिकित्सक संघ ने डाक्टर से अभद्रता के मामले में आरोपी की 72 घंटे के भीतर गिरफ्तारी न होने पर प्रदेशव्यापी हड़ताल की चेतावनी दे दी थी। इससे पुलिस पर भी दबाव बढ़ गया था। हालांकि सीओ देवेंद्र पींचा का कहना है कि आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज है, जिसके चलते गिरफ्तारी की गई है।

देवभूमि में लहलहाई 'असलहों की फसल'

- छह जिलों में 15 हजार से अधिक लाइसेंसी शस्त्रधारक -पहाड़ में असलहे बने स्टेटस सिंबल देवभूमि के कुमाऊं अंचल में भी 'असलहों की फसल' लहलहा रही है। राज्य गठन के बाद आठ साल में ही कुमाऊं मंडल में कुल लाइसेंस धारकों की संख्या 15 हजार का आंकड़ा पार कर गयी है, जबकि हजारों शौकीन असलहा लाइसेंस के स्वीकृत होने के इंतजार में हैैं। इससे यहां की शांत वादियों में अपराधों के ग्र्राफ मेें जबरदस्त इजाफा हुआ है। एक समय था जब पहाड़ की सुरम्य व शांत वादियों में असलहे या अपराध जैसे शब्द सुनने को भी नहीं मिलते थे, लेकिन अब यह आम बात हो गयी है। पहले कुछ लोग भले ही अपनी सुरक्षा व सतर्कता की दृष्टि से लाइसेंसी असलहे लेते थे, लेकिन पहाड़ के नव धनाढ्यों के लिए अब यह दिखावे की वजह भी बन गये हैं। कुछ जगहों पर इससे अपराध का ग्राफ भी बढ़ा है। पुलिस आंकड़ों पर नजर डालें तो कुमाऊं के छह जिलों में कुल 15957 लाइसेंसी शस्त्र धारक हैं। इनमें ऊधमसिंह नगर 8198 असलहाधारियों के साथ शीर्ष पर है। नैनीताल में इनकी संख्या 4499 है। पहाड़ के चार जिलों में पिथौरागढ़ 1020 शस्त्रधारकों के साथ सबसे आगे है। जबकि अल्मोड़ा में 807, चम्पावत में 850 व बागेश्वर में 583 लाइसेंसी असलहे हैं। इनमें अधिकांश असलहे राज्य गठन के बाद बने हैं। हालांकि कुछ को यह पारिवारिक विरासत में भी मिले हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में असलहों के शौकीन लाइसेंस लेने के लिए अभी कतार में हैं। वहीं हाल के कुछ वर्षों में हत्या जैसे अपराधों पर नजर डालें तो भयावह स्थिति सामने आती है। प्रतिवर्ष लगभग 50-60 से अधिक हत्याएं आपसी रंजिश में हो रही हैं। पिछले तीन वर्षों में मंडल में दो सौ से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है। इसमें अकेले 100 से अधिक हत्याओं के साथ ऊधमसिंह नगर सभी छह जिलों में अव्वल है। पर्यटन के लिए विश्व प्रसिद्ध नैनीताल में पिछले तीन सालों में हत्याओं का ग्राफ 60 से उपर पहुंच चुका है। अमूमन शांत रहने वाले पिथौरागढ़, चम्पावत, अल्मोड़ा व बागेश्वर जिलों में भी हत्याओं के तीन साला आकड़े दो दर्जन से अधिक हैं। पहाड़ में असलहों व अपराधों के साल दर साल बढ़ते जा रहे यह आंकड़े समाज के साथ पुलिस के लिए भी चिंता का कारण बनती जा रही है।

=दून में दिखी मिनी इंडिया की झालक

-नेहरू युवा केंद्र का राष्ट्रीय एकता शिविर - लोकसंस्कृतियों का आदान-प्रदान कर रहे पांच राज्यों के युवा - शिविर में सम-सामयिक विषयों पर हो रहा है गहन मंथन अनेकता में एकता का दर्शन सिर्फ भारतीय संस्कृति में ही समाहित है। सूबे की राजधानी देहरादून में भी इन दिनों पांच राज्यों के युवा ऐसी ही झालक पेश कर रहे हैं। ये युवा संस्कृतियों का ही आदान-प्रदान नहीं कर रहे, बल्कि राष्ट्रीय एकता और मजबूत कैसे हो, देश कैसे विकसित व संपन्न बने, इस पर भी गहन मंथन कर रहे हैं। राजधानी में इन दिनों न केवल उत्तराखंड, बल्कि मणिपुर, उत्तर प्रदेश, झाारखंड व मध्य प्रदेश की लोक संस्कृति के तमाम रंग बिखर रहे हैं। नेहरू युवा केंद्र संगठन की ओर से आयोजित राज्य स्तरीय राष्ट्रीय एकता शिविर में मणिपुर का लयमा जगोई, लहरवबा जगोई, उत्तर प्रदेश के बृज क्षेत्र का लांगुरिया, झाारखंड का कर्मा, असारी, सरहुलजैमा, मध्य प्रदेश का मालवा, उत्तराखंड के नंदा राजजात, पांडव नृत्य जैसे पारंपरिक लोकगीत-लोकनृत्य की धूम है। शिविरार्थी पारंपरिक वेशभूषा में न सिर्फ प्रस्तुतियां दे रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे की संस्कृति, बोली-भाषा, खान-पान, रहन-सहन को समझाने व सीखने की ललक उनमें देखते ही बनती है। ऐसे में बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में ये दल एक-दूसरे के राज्यों की लोकसंस्कृति की झालक अपने-अपने क्षेत्रों में बिखेरेंगे। मध्य प्रदेश की टीम लीडर लता श्रीवास कहती हैं कि यह एक ऐसा मंच है, जिससे संस्कृतियों के आदान-प्रदान का मौका मिलता है। युवाओं में समझा विकसित होने के साथ ही व्यक्तित्व का विकास होता है। वह बताती हैं कि इस शिविर में न केवल संस्कृतियों का ही आदान-प्रदान हो रहा है, बल्कि युवाओं में सम-सामयिक विषयों पर समझा विकसित भी हो रही है। लता का कहना है कि भारत गांवों का देश है और ग्रामीण भारत की सही तस्वीर व वहां की समस्याओं को समझाने को ऐसे शिविर दूरस्थ गांवों में भी लगने चाहिए। मणिपुर के टीम लीडर चितरंजन, उत्तराखंड के प्रेमचंद, उप्र के केके शर्मा, झाारखंड के पार्वती व संजय, मध्य प्रदेश के अजय ने कहा कि अनेकता में एकता देश की विशेषता है। युवाओं की सकारात्मक सोच और कठिन परिश्रम की मदद से राष्ट्रीय एकता ही हमारे देश को विकसित व संपन्न राष्ट्र बना सकती है। उनका कहना है कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण, गरीबों के उत्थान, युवाओं के अधिकार, युवाओं को स्वतंत्र पहचान के लिए उन्हें नया हिंदुस्तान चाहिए।

='जख्म' को हाईकमान ने ही बनाया 'नासूर'

उत्तराखंड: भाजपा नेतृत्व की टालमटोल नीति से ही सूबे में अस्थिरता का माहौल नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी दिया गया खासा महत्व देवभूमि की जनता को भुगतना पड़ रहा खामियाजा प्रदेश भाजपा में उपजे विवाद के 'जख्म' को पार्टी हाईकमान ने हमेशा ही 'नासूर' बनने की हद तक पकने दिया। हालात इतने बिगड़े कि अब पार्टी 'सेप्टिक' की स्थिति में है। नेतृत्व भले ही इसके उपचार में सफल हो जाए पर इससे देवभूमि में माहौल पूरी तरह से अस्थिर हैै और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सत्ता संभालने के बाद से मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को 'अपनों' के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आज हालात उनके इस्तीफे की नौबत तक आ गए। खास बात यह है कि भाजपा हाईकमान ने यहां उपजे विवाद को थामने में जो रणनीति अपनाई उस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैैं। माना जा रहा है कि या तो नेतृत्व इस सूबे के सियासी हालात को समझाने में असफल रहा या फिर 'जख्म के नासूर बनने के बाद ही इलाज' की दिशा में काम शुरू किया गया। यूं तो सरकार विरोधी स्वर कई बार उठे पर आवाज दिल्ली तक नहीं गई। छह माह पहले 17 विधायकों ने एक साथ दिल्ली जाकर नेतृत्व परिवर्तन की मांग की। नेतृत्व ने लगभग एक सप्ताह तक मौन रहकर मानों इस विवाद को हवा ही दी। ज्यादा फजीहत होने के बाद ही हाईकमान ने कड़ी फटकार लगाकर विधायकों को उत्तराखंड रवानगी की नसीहत दी। बाद में कई बार लगा कि सत्ता संघर्ष जारी है पर नेतृत्व मौन रहकर तमाशा देखता रहा। लोससभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के हाथ से पांचों सीटें फिसलने के बाद सीएम विरोधी खेमे को एक बार फिर मौका मिला। सूबे में नेतृत्व परिवर्तन की मांग फिर से उठी। खास बात यह रही कि दिल्ली में तमाम झांझाावात झोल रहे पार्टी हाईकमान ने यहां के असंतोष को थामने की बजाय यहां दो पर्यवेक्षक भेजकर 'चिंगारी' को 'शोला' बना दिया और विधायकों की महत्वकांक्षाएं फिर से जाग्र्रत हो गईं। दिल्ली में हाईकमान ने रिपोर्ट पर चर्चा न हो पाने की बात करके तो मानो विरोधी खेमे को संजीवनी दे दी गई। बात आगे बढ़ी तो हर किसी को सीएम की कुर्सी नजर आने लगी। अब भाजपा ने नासूर बन चुके जख्म का इलाज शुरू किया तो पता चला कि इसमें जहर फैल चुका है। एक तरफ खाई है तो दूसरी तरफ कुआं। अब भाजपा के सामने इस सूबे में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार को बचाने की चिंता सताने लगी है। देखना है पार्टी हाईकमान के इस टालमटोल वाले रुख का नतीजा किस करवट जाता है। हो सकता है कि भाजपा अपने नासूर का इलाज करने में सफल हो जाए पर इसके चलते सूबे में फैली अस्थिरता के लिए आखिर किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा। पहले वाले घटनाक्रम की तरह इस बार भी बीते छह रोज से राजधानी में न तो कोई विधायक दिख रहा है और न ही कोई मंत्री। खुद सीएम भी दिल्ली में ही जमे हैैं। सचिवालय में सन्नाटा है और सरकारी दफ्तरों में कोई काम नहीं हो रहा है। आम लोग भटक रहे हैैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। वक्त आने पर जनता भाजपा इस स्थिति पर जवाब जरूर मांगेगी।

=पीसीएस परीक्षा: पेपर रद्द, पैनल ब्लैक लिस्ट

सामाजिक कार्य विषय का पुराना पेपर रिपीट होने के बाद आयोग ने उठाया कदम -निरस्त प्रश्नपत्र की परीक्षा 26 जुलाई को दोबारा होगी देहरादून, जागरण संवाददाता: आखिरकार उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की समझा में आ ही गया कि पीसीएस की हालिया परीक्षा में कहीं न कहीं गड़बड़ी हुई। सामाजिक कार्य विषय का पुराना पेपर रिपीट होने को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने इस पेपर को रद्द कर दिया। इसे तैयार करने वाले पैनल को भी ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न हो इसके लिए आयोग ने सख्त कदम उठाए हैैं। इन दिनों चल रही प्रोवेंसियल सिविल सर्विसेज(पीसीएस) परीक्षा-2006 की मुख्य परीक्षा में इसी 17 जून को सामाजिक कार्य विषय का पुराना प्रश्नपत्र रिपीट कर दिया गया था। दैनिक जागरण ने 20 जून के संस्करण में इस गड़बड़ी को प्रमुखता से उजागर किया था। पहले तो आयोग पल्ला झााडऩे के मूड में दिखा, लेकिन बाद में गंभीरता समझा में आने पर मंगलवार को इस मसले पर आयोग की बैठक बुलाई गई। आयोग मुख्यालय में हुई बैठक में इस साल की सामाजिक कार्य विषय की परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया गया। अब यह परीक्षा 26 जुलाई को होगी। पूर्व में सामाजिक कार्य का प्रश्नपत्र तैयार करने वाले पैनल को भी आयोग ने डीबार कर दिया है। आयोग के सचिव चंद्रशेखर भट्ट ने स्पष्ट किया कि तय हुआ कि भविष्य में उक्त पैनल को आयोग की किसी भी परीक्षा के कार्यों में शामिल नहीं किया जाएगा। इस प्रकार की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आयोग ने अन्य विषयों के प्रश्नपत्र तैयार करने वाले पैनल्स को भी सख्त निर्देश जारी किए हैैं। आयोग की बैठक में सामान्य अध्ययन विषय के प्रश्नपत्र में दिए गए सवालों के गलत विकल्पों के मामले में (इस समाचार को भी दैनिक जागरण ने 23 जून को प्रकाशित किया था) भी निर्णय लिया गया। श्री भट्ट ने बताया कि परीक्षा के संपन्न होने के बाद छात्रों से आपत्तियां मांगी जाएंगी। परीक्षण के बाद गलत सवालों को प्रश्नपत्र में शामिल नहीं माना जाएगा। बैठक में आयोग के अध्यक्ष एसके दास, सचिव चंद्रशेखर भट्ट और सदस्य डा. डापी जोशी व डा. मंजूला जोशी मौजूद थे। --- कापी लेकर भागने वाले छात्र पर भी हुई कार्रवाई सामान्य अध्ययन की परीक्षा में परीक्षा केंद्र से कापी लेकर भागने वाले छात्र पर कार्रवाई का निर्णय भी बैठक में लिया गया। सचिव चंद्रशेखर भट्ट ने बताया कि राजकीय कन्या इंटर कालेज, ज्वालापुर (हरिद्वार) स्थित परीक्षा केंद्र से कापी लेकर एक-डेढ़ घंटे के लिए फरार होने वाले छात्र रमेश चंद्र शुक्ला को आगामी एक वर्ष तक के लिए आयोग की किसी भी परीक्षा में शामिल नहीं किया जाएगा।

Tuesday, 23 June 2009

- अभिशप्त लैंटाना बन रहा कमाई का जरिया

ऐरोमाथेरैपी में हो रहा है लैंटाना ऑयल का इस्तेमाल कोशिशें रंग लाई तो अमेरिका व यूरोप भी पहुंचेगा उत्तराखंड में 15 हजार से ज्यादा हेक्टेयर क्षेत्र में पैर पसार चुका है लैंटाना उत्तराखंड में चप्पे-चप्पे पर पसर चुकी लैंटाना वनस्पति ने भले ही तमाम मुसीबतें खड़ी कर दी हों, मगर अब यह अभिशाप से वरदान साबित हो सकती है। इसकी पत्तियों से तैयार लैंटाना ऑयल औषधीय गुणों से युक्त है और ऐरोमाथेरैपी में इसका प्रयोग भी होने लगा है। कोशिशें रंग लाईं तो आने वाले दिनों में लैंटाना आयल का राज्य में वृहद पैमाने पर उत्पादन होने के साथ ही यह अमेरिका और यूरोप भी पहुंचेगा। इसके लिए कवायद प्रारंभ हो गई है। देश के अन्य हिस्सों की भांति उत्तराखंड में भी लैंटाना बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। शायद ही कोई ऐसा कोना होगा, जहां लैंटाना न पसरी हो। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में करीब 15 हजार हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर लैंटाना फैल चुकी है। अपने इर्द-गिर्द किसी अन्य वनस्पति को न पनपने देने के साथ ही यह भूमि की उर्वरा शक्ति भी लील रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में तो यह गुलदार जैसे हिंसक जीवों की शरणस्थली बन चुका है। लैंटाना की गहराती समस्या के मद्देनजर वर्ष 2005 में उत्तराखंड शासन के सगंध पौधा केंद्र सेलाकुई (देहरादून) ने इसकी पत्तियों से तेल निकालने पर कार्य शुरू किया। कोशिशें रंग लाई और अब लैंटाना ऑयल को व्यावसायिक स्वरूप में पेश किया गया है। केंद्र किसानों से 150 रुपये प्रति कुंतल के हिसाब से पत्तियां खरीदता है और फिर इससे ऑयल निकाला जाता है। सगंध पौधा केंद्र के प्रभारी नृपेंद्र चौहान के मुताबिक लैंटाना ऑयल का इस्तेमाल अभी ऐरोमाथरैपी में हो रहा है। मसलपेेन, ज्वाइंट पेन, स्पोंडलाइटिस और साइटिका में इसे अन्य तेलों के साथ मिलाकर लगाया जा रहा है। मसाज करने में भी इसका प्रयोग हो रहा है। श्री चौहान के मुताबिक इस साल 25 किग्रा. तेल का उत्पादन हुआ। वृहद पैमाने पर उत्पादन को ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि राज्य के सोलह आसवन संयंत्रों में लोग इसकी पत्तियां बेच सकें। लैंटाना ऑयल को यूरोप व अमेरिका भेजने को निर्यातक कंपनियों से बातचीत जारी है। अभी लैंटाना ऑयल 11 हजार रुपये प्रति किग्रा के हिसाब से बिक रहा है। उधर, राज्य औषधीय पादप बोर्ड के उपाध्यक्ष डा.आदित्य कुमार का कहना है कि लैंटाना को वरदान बनाने के लिए प्रयास जारी हैं।

-दिल्ली को फूलों से महकाएगा देहरादून

राष्ट्रमंडल खेलों के लिए उपलब्ध कराने हैं एफआरआई ने पौधे दो लाख पौधों का चयन किया भारतीय वन अनुसंधान संस्थान ने राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान देश की राजधानी दिल्ली में चारों ओर फूल महक रहे होंगे और इसके पीछे हाथ होगा देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) का। जी हां, दिल्ली सरकार ने एफआरआई को ऐसे फूलों वाले पौधे उपलब्ध कराने को कहा है, जिनमें अक्टूबर, 2010 में दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान पूरी तरह फूल खिले हों। एफआरआई ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। एफआरआई के निदेशक डा.एसएस नेगी ने बताया कि एफआरआई ने ऐसी प्रजातियों के दो लाख पौधों का चयन शुरू कर दिया है, जो अक्टूबर में खिले रहें। एफआरआई की केेंद्रीय नर्सरी ने इस बाबत युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया है। जुलाई में यह काम और तेजी पकड़ लेगा। ऐसी प्रजाति वाले फूलों के पौधों के गमले भी तैयार किए जाएंगे और इस वर्ष दिल्ली की जलवायु के अनुरूप उनका परीक्षण भी किया जाएगा। यह पूछे जाने पर कि एफआराई कौन-कौन सी फूल प्रजाति के पौधे चुन रहा है? डा. नेगी ने बताया कि अभी चूंकि महज शुरुआत हुई है, इसलिए प्रजातियों के नाम बता पाना संभव नहीं। वैसे एक महीने में खिलने वाले पौधों का चयन आसान काम नहीं,लेकिन फूलों के लिए बसंत और शरद ऋतु में पडऩे वाला अक्टूबर माह काफी मुफीद है। दुनिया के ज्यादातर फूल इन्हीं दो ऋतुओं में खिलते हैं। डा. नेगी का कहना है कि एफआरआई को राष्ट्रमंडल खेलों के मौके पर वैसे भी दिल्ली को हरा-भरा रखने की जिम्मेदारी दी गई है। एफआरआई राजघाट में बांस वाटिका लगा ही रहा है। वह जैविक तरीके से यमुना को सीवर से प्रदूषण मुक्त करने का प्रयास कर रहा है और दिल्ली को सुंदर बनाने के लिए उसे हौजरानी या गढ़ीमांडू में बटरफ्लाई पार्क परियोजना तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। एफआरआई प्रगति मैदान व राष्ट्रपति भवन के पुराने पड़ चुके जामुन के बीमार पेड़ों का इलाज भी कर रहा है।

=पलायन की राह पर राज्य का फार्मा उद्योग

अब तक छोटे-बड़े चालीस उद्योग छोड़ चुके हैं उत्तराखंड केंद्र और राज्य दोनों की नीतियों की मार ने किया बेहाल देहरादून की सेलाकुई फार्मा सिटी, भगवानपुर औद्योगिक क्षेत्र हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जिले में रुद्रपुर एक समय देश भर के फार्मा उद्यमियों के लिए आशा की किरण थे पर आज यहां स्थापित उद्योग एक-एक कर पलायन कर रहे हैं। अब तक इन क्षेत्रों से छोटे-बड़े चालीस फार्मा उद्योग पलायन कर चुके हैं। कई उद्योगों ने अपना उत्पादन लगभग बंद कर दिया है और वे फिलहाल वेट एंड वाच की नीति पर चल रहे हैं। रुड़की की स्पीड लाइफ साइंसेज, हरिद्वार की साई राम और अमीदीप, सेलाकुई की मोडेक, रुद्रपुर की उत्तरांचल लाइफ साइंसेज और लाल तप्पड़ की भविष्य फार्मा जैसे कुछ बड़े फार्मा उद्योगों के साथ ही करीब चालीस से अधिक उद्योग उत्तराखंड के पलायन कर चुके हैं। कई उद्योग ऐसे हैं, जो रुककर हालात की टोह ले रहे हैं। उन्होंने अपना उत्पादन लगभग बंद कर दिया है, लेकिन उद्योग अभी समेटा नहीं है। ये हालात उनके भी पलायन की तैयारी की गवाही दे रहे हैं। उत्तराखंड औषधि निर्माण एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद कालानी कहते हैं कि औद्योगिक पैकेज प्रारंभ होने के बाद उत्तराखंड के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में करीब तीन सौ से अधिक फार्मा उद्योग स्थापित हुए थे। उनसे जुड़े सहायक पैकेजिंग तथा अन्य उद्योग मिलाकर इनकी संख्या पांच सौ के करीब बैठती है लेकिन अब इन उद्योगों के पलायन का दौर शुरू हो गया है। इसके लिए वे केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी नीति को जिम्मेदार मानते हैं। पहले देश भर में एक्साइज ड्यूटी 16 प्रतिशत थी और उत्तराखंड में उत्पादित माल के लिए यह शून्य थी। पहले केंद्र सरकार ने इसे घटाकर आठ प्रतिशत किया और अब यह मात्र चार प्रतिशत रह गई है। इससे उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को कठिन प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। राज्य में कच्चा माल भी बाहर से ही आता है, उस पर टैक्स देना पड़ता है, उत्पादित माल पर देश भर में टैक्स कम होने से उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को करीबी स्पर्धा से जूझाना पड़ रहा है। श्री कालानी का कहना है कि राज्य सरकार उद्योगों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। उद्यमी अपनी समस्या कहां रखें, कोई बताने वाला नहीं है।

हथियारबंद पुलिसकर्मी बोलेंगे 'मे आई हेल्प यू'

- पर्यटकों की मदद को अंग्रेजी जुबान व तनाव प्रबंधन में प्रशिक्षित पुलिस कर्मी तैनात हल्द्वानी: रायफलों से लैस पुलिस कर्मी अब पर्यटन के लिए नैनीताल आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा के साथ 'अतिथि देवो भव:' की तर्ज पर 'मे आई हेल्प यू' कहते नजर आएंगे। इसके लिए उन्हे विशेष कैप्सूल कोर्स का प्रशिक्षण दिया गया है। पर्यटकों की सुविधा व सुरक्षा के लिए जिले के सभी महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों पर अंग्रेजी जुबान बोलने वाले तथा तनाव प्रबंधन में विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है। यह प्रशिक्षण उनके लिये बॉडी लैंग्वेज बदलने में भी सहायक होगा। पर्यटन से सबसे पहले रूबरू होने वाली पुलिस को पूरी तरह टूरिस्ट फ्रेंडली बनाया गया है। व्यवस्थाओं की जानकारी देते हुए एसएसपी दीपम सेठ ने बताया कि जिले के सभी पर्यटन स्थलों पर पर्यटक पुलिस काम कर रही है। सुरक्षा के लिए जिम्मेदार कर्मियों को शाब्दिक-अशाब्दिक संचार व सामान्य तौर तरीकों के प्रशिक्षण के साथ अंग्रेजी बोलचाल के शब्दों का भी प्रशिक्षण दिया गया है। इन कर्मियों को तनाव से निपटने के लिए भी विशेष तौर पर प्रशिक्षित किया गया है। जिससे पर्यटकों की भारी भीड़ व यातायात के दौरान पुलिसकर्मी तनाव से बेहतर तरीके से निपट सकें। इसके तहत जिले के पर्यटन वाले चार थानों में 06 स्थानों पर 30 पर्यटक पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया था। इसमें 23 पुरुष आरक्षी व 7 महिला कर्मियों को लगाया गया। पर्यटक पुलिस नैनीताल के साथ ही जीआरपी काठगोदाम, रामनगर आदि जगहों पर लगायी गयी। उन्होंने बताया कि पर्यटक पुलिस के बूथों पर पर्यटन संबंधी सारी जानकारी उपलब्ध है। वहां प्राथमिक उपचार के लिए चिकित्सा किट भी मौजूद है। इन बूथों पर पर्यटक सुझााव व शिकायतें भी दर्ज करा सकते हैं। एसएसपी का कहना है कि इस पूरी कवायद का मकसद सिर्फ एक है कि बाहर से आने वाले पर्यटकों को पूरी जानकारी मिल सके व उनकी सुरक्षा भी पुख्ता बनी रहे।

Sunday, 21 June 2009

बीएड २००८-०९ में प्रवेश को काउंसिलिंग आज से

काउंसिलिंग में १६ सरकारी कालेज, ४३ प्राइवेट बीएड संस्थान शामिल श्रीनगर/देहरादून। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध ४३ निजी बीएड कालेजों और आठ सरकारी बीएड कालेजों की स्टेट कोटे की २००८-०९ की सीटों पर प्रवेश के लिए शनिवार से काउंसिलिंग शुरू होगी। इसके लिए शुक्रवार को २५७ अ5यर्थियों ने पंजीकरण कराया। विश्वविद्यालय के चौरास प्रेक्षागृह में सुबह १० बजे से काउंसिलिंग की प्रक्रिया शुरू होगी। काउंसिलिंग ३० जून तक चलेगी। काउंसिलिंग कमेटी के समन्वयक प्रो. जेपी पचौरी के मुताबिक पहले दिन पंजीकरण होगा और दूसरे दिन काउंसिलिंग। पंजीकरण के समय अ5यर्थी को अपने सारे ओरिजनल डा1यूमेंट्स लाने होंगे। पूर्व में जिन आठ राजकीय महाविद्यालयों के स्ववि8ा पोषित बीएड पाठ्यक्रम में प्रवेश दिए जा चुके हैं, उनमें रि1त सीटों भी काउंसिलिंग कराई जाएगी। इस काउंसिलिंग में राजकीय महाविद्यालय लोहाघाट और उ8ारकाशी की सीटें शामिल नहीं की गई हैं। इन्हें पिछले ह3ते ही एनसीटीई से एलओपी मिली है। अभी इनके बीएड पाठ्यक्रम को विवि से संबद्धता नहीं मिल सकी है। काउंसिलिंग शुरू होने से उन विद्यार्थियों को राहत मिली है, जो धन की कमी के कारण दूसरे प्रांतों में पढऩे नहीं गए और एक साल से यहीं बीएड में प्रवेश की बाट जोह रहे हैं। मालूम हो कि २००८-०९ की बीएड प्रवेश परीक्षा में तकरीबन ४०००० विद्यार्थी बैठे थे। इसमें दो तिहाई राज्य के विद्यार्थी हैं।

दून विवि के फार्म ४ जुलाई तक जमा होंगे

देहरादून। दून विश्वविद्यालय के प्रवेश फार्म की तिथि बढ़ाकर ४ जुलाई कर दी गई है। विवि के पहले सत्र में तीन पाठ्यक्रमों में प्रवेश शुरू किया जा रहा है, जिसकी प्रवेश परीक्षा १९ जुलाई को प्रस्तावित है।दून विश्वविद्यालय के वि8ा नियंत्रक और प्रभारी रजिस्ट्रार रमेश चंद्र अग्रवाल ने बताया कि इन दिनों कई प्रतियोगी परीक्षाएं हैं। ज्यादातर विद्यार्थी उनकी तैयारियों में व्यस्त हैं। ज्यादा से ज्यादा प्रवेश फार्म भर सके, इसके लिए ही आवेदन पत्रों को जमा करने की तिथि २२ जून से बढ़ा कर ५ जुलाई की जा रही है। आवेदन पत्र विवि कैंपस के अलावा डाक से, पंजाब नेशनल बैंक की देहरादून, एस्लेहाल, पंतनगर, श्रीनगर, अल्मोड़ा, नैनीताल, हल्द्वानी शाखाओं से या फिर विवि की वेबसाइट से डाउनलोड कर प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पहले सत्र में विवि स्कूल ऑफ एनवायरमेंट एंड नेचुरल रिसोर्सेस के एमएससी पर्यावरण अध्ययन (दो वर्ष) की २० सीट, एमएससी (दो वर्ष) प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन पाठ्यक्रम की २० सीट एवं स्कूल ऑफ क6यूनिकेशन के एमए (दो वर्ष) पाठ्यक्रम की ४० सीटों के लिए प्रवेश परीक्षा होगी। प्रत्येक पाठ्यक्रम की कुल सीट की ५० प्रतिशत उ8ाराखंड के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित रखी गई है।

राज्य आंदोलनकारियों को तीन हजार की पेंशन

नियमावली को मु2यमंत्री की मंजूरी, शासनादेश की तैयारी सरकार ने उन सभी आंदोलनकारियों को हर माह तीन हजार रुपये पेंशन देने का फैसला किया है, जिन्होंने सरकारी नौकरी ठुकरा दी या उम्र अधिक होने के कारण वे नौकरी करने में असमर्थ हो गए। मु2यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी ने संबंधित नियमावली को मंजूरी दे दी। जल्द ही इसका जीओ जारी हो जाएगा।प्रमुख सचिव (मु2यमंत्री और गृह) सुभाष कुमार ने बताया कि सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी की पेशकश की थी। ज्यादातर ने इसे स्वीकार कर नौकरी शुरू कर दी, पर कई ऐसे भी थे जिन्होंने नौकरी करना पसंद नहीं किया। ऐसे लोगों के लिए सरकार ने राहत के तौर पर पेंशन देने का फैसला किया है। आंदोलनकारियों की पहचान के लिए कट ऑफ इयर १९७९ तय की गई है। सरकार में भाजपा की सहयोगी यूकेडी का यह एक प्रकार से एजेंडा था। सरकार ने उन आंदोलनकारियों को भी मदद करने का फैसला किया है, जिन्हें कम दिखाई या सुनाई देता है या जो दांत खराब होने से परेशान हैं, को सरकार उचित इलाज मुहैया कराने के साथ ही जरूरी उपकरण भी मु3त देगी। सरकार ऐसे आंदोलनकारियों को भी चिह्नित करने में जुटी है, जो आंदोलन के दौरान जेल गए थे या पुलिस उत्पीडऩ को सहा, लेकिन उनका नाम रेकॉर्ड में दर्ज नहीं है। शासन ने जिलाधिकारियों से ऐसे लोगों की सूची तलब की है।

Saturday, 20 June 2009

श्रीनगर मेडिकल कालेज: नए सत्र की मान्यता नहीं

राज्य सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट श्रीनगर मेडिकल कालेज को इस बार मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) ने तगड़ा झटका दिया है। कालेज को नए सत्र के लिए मान्यता नहीं दी गई है। राज्य सरकार अब इस मामले में रिव्यू का अनुरोध करेगी। उधर, फारेस्ट हास्पिटल ट्रस्ट मेडिकल कालेज हल्द्वानी व दून के एसजीआरआर मेडिकल कालेज को एमसीआई ने हरी झंडी दिखा दी है। श्रीनगर में वीर चंद्र सिंह गढ़वाल आयुर्विज्ञान शोध संस्थान (मेडिकल कालेज) को दूसरे वर्ष मान्यता देने के लिए एमसीआई ने इसी माह के पहले हफ्ते दौरा किया था। सूत्रों के मुताबिक एमसीआई ने कालेज में 36 फीसदी डेफिसिएंसी पाई। कालेज में फैकल्टी के 13 पद रिक्त थे। सिर्फ 97 फैकल्टी ही जुटाई जा सकी। सीनियर रेजीडेंट के चार विशेषज्ञों के पद भी भरे नहीं जा सके। राज्य सरकार के मुताबिक डेफिसिएंसी सिर्फ 15 फीसदी है और दस फीसदी की छूट एमसीआई से मिलती है। सरकार व कालेज प्रशासन को लैटर आफ परमिशन तो हासिल नहीं हुआ, साथ ही इस मामले में रिव्यू की अवधि भी समाप्त हो चुकी है। रिव्यू की अवधि 15 जून थी। यह अवधि बीतने से राज्य की मुसीबत बढ़ गई है। राज्य के अनुरोध को एमसीआई ने दरकिनार किया तो उसे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ सकता है। एमसीआई के रुख से कालेज के समक्ष संकट खड़ा हो गया है। कालेज में प्रवेश प्रक्रिया बाधित हो गई है। संपर्क करने पर चिकित्सा शिक्षा अपर सचिव एनके जोशी ने कहा कि एमसीआई से श्रीनगर मेडिकल कालेज को एलओपी नहीं मिलने पर इस मसले को रिव्यू में डाला जाएगा। राज्य इस संबंध में केंद्र सरकार व एमसीआई से अनुरोध किया जाएगा। उधर, फारेस्ट हास्पिटल ट्रस्ट मेडिकल कालेज हल्द्वानी व दून के एसजीआरआर मेडिकल कालेज को एमसीआई ने हरी झंडी दिखा दी है। एसजीआरआर मेडिकल कालेज को चौथे वर्ष के लिए हरी झंडी मिली है।

-पोखू देवता के दर्शन से होता है अनिष्ट

उत्तराखंड के नैटवाड़ में न्याय के देवता पोखूवीर की ओर पीठ कर होती है पूजा न्यायकारी के रूप में है प्रसिद्ध देवताओं के दर्शन शुभ समझो जाते हैं, लेकिन उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के छोटे से कस्बेनुमा गांव नैटवाड़ में एक ऐसे देवता का मंदिर है जिसके दर्शन अशुभ माने जाते हैं। नैटवाड़ दिल्ली से करीब 450 किमी और देहरादून से करीब 200 किमी दूर पुरोला ब्लाक में मशहूर हरकी दून ट्रैक पर स्थित है। इस पूरे क्षेत्र में इस देवता पोखूवीर को उत्तराखंड के एक अन्य स्थानीय देवता गोलू या ग्वल्ल देवता (गुरील) की तरह ही न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध है। ढाटमीर गांव के जय सिंह रावत के मुताबिक मान्यता है कि पोखूवीर देवता के दर्शन से अनिष्ट होता है। इसलिए इस स्थानीय देवता की पूजा उनकी मूर्ति की ओर पीठ करके की जाती है। जय सिंह रावत कहते हैं कि जब लोगों को अदालतों या पंचायतों से न्याय नहीं मिलता तो वे पोखूवीर से गुहार लगाते हैं। माना जाता है कि जो अन्यायी या दोषी होता है, ऐसे में उसका तुरंत अनिष्ट हो जाता है। इस क्षेत्र पर अध्ययन करने वाले डीडी थपलियाल के मुताबिक पोखूवीर से जुड़ी कई दंतकथाएं हैं। एक कथा के मुताबिक प्राचीन काल में किरमिर दानव में पूरे क्षेत्र में उत्पात मचाया हुआ था। राजा दुर्योधन ने जनता को उसके अत्याचारों से बचाने के लिए उससे युद्ध किया और पराजित कर उसका सिर काट कर टौंस नदी में फेेंक दिया। किरमिर दानव का सिर नदी की दिशा में बहने के बजाय उलटा बहने लगा और रूपिन और सूपिन नदी के संगम नैटवाड़ में रुक गया। रूपिन नदी भराटसर (विराटसर) झाील से तो सूपिन स्वर्गारोहणी हिमशिखरों से निकलती है। राजा दुर्योधन ने किरमिर दानव के कटे सिर को नैटवाड़ में स्थापित कर वहां उसका मंदिर बना दिया। दूसरी दंतकथा के मुताबिक किरमिर (या किलबिल) दानव दरअसल महाभारत का वभु्रवाहन था, जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने चालाकी से वध कर दिया था। इस क्षेत्र की खासियत है कि एक इलाके में कौरव पूजे जाते हैं तो पब्बर घाटी में पांडवों की पूजा होती है। मसाली गांव में तो पांडवों के मंदिर हैं। नैटवाड़ से ही सड़क के दो किलोमीटर ऊपर देवरा गांव में राजा कर्ण का भी मंदिर है। नैटवाड़ से 14 किलोमीटर के ट्रैक पर सौड़ गांव में दुर्योधन का भी मंदिर है। सूपिन नदी के किनारे नैटवाड़ से 12 किमी की दूरी पर स्थित सांकरी गांव में लकड़ी का भैरव का मंदिर भी है।

-पोखू देवता के दर्शन से होता है अनिष्ट

उत्तराखंड के नैटवाड़ में न्याय के देवता पोखूवीर की ओर पीठ कर होती है पूजा न्यायकारी के रूप में है प्रसिद्ध देवताओं के दर्शन शुभ समझो जाते हैं, लेकिन उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के छोटे से कस्बेनुमा गांव नैटवाड़ में एक ऐसे देवता का मंदिर है जिसके दर्शन अशुभ माने जाते हैं। नैटवाड़ दिल्ली से करीब 450 किमी और देहरादून से करीब 200 किमी दूर पुरोला ब्लाक में मशहूर हरकी दून ट्रैक पर स्थित है। इस पूरे क्षेत्र में इस देवता पोखूवीर को उत्तराखंड के एक अन्य स्थानीय देवता गोलू या ग्वल्ल देवता (गुरील) की तरह ही न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध है। ढाटमीर गांव के जय सिंह रावत के मुताबिक मान्यता है कि पोखूवीर देवता के दर्शन से अनिष्ट होता है। इसलिए इस स्थानीय देवता की पूजा उनकी मूर्ति की ओर पीठ करके की जाती है। जय सिंह रावत कहते हैं कि जब लोगों को अदालतों या पंचायतों से न्याय नहीं मिलता तो वे पोखूवीर से गुहार लगाते हैं। माना जाता है कि जो अन्यायी या दोषी होता है, ऐसे में उसका तुरंत अनिष्ट हो जाता है। इस क्षेत्र पर अध्ययन करने वाले डीडी थपलियाल के मुताबिक पोखूवीर से जुड़ी कई दंतकथाएं हैं। एक कथा के मुताबिक प्राचीन काल में किरमिर दानव में पूरे क्षेत्र में उत्पात मचाया हुआ था। राजा दुर्योधन ने जनता को उसके अत्याचारों से बचाने के लिए उससे युद्ध किया और पराजित कर उसका सिर काट कर टौंस नदी में फेेंक दिया। किरमिर दानव का सिर नदी की दिशा में बहने के बजाय उलटा बहने लगा और रूपिन और सूपिन नदी के संगम नैटवाड़ में रुक गया। रूपिन नदी भराटसर (विराटसर) झाील से तो सूपिन स्वर्गारोहणी हिमशिखरों से निकलती है। राजा दुर्योधन ने किरमिर दानव के कटे सिर को नैटवाड़ में स्थापित कर वहां उसका मंदिर बना दिया। दूसरी दंतकथा के मुताबिक किरमिर (या किलबिल) दानव दरअसल महाभारत का वभु्रवाहन था, जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने चालाकी से वध कर दिया था। इस क्षेत्र की खासियत है कि एक इलाके में कौरव पूजे जाते हैं तो पब्बर घाटी में पांडवों की पूजा होती है। मसाली गांव में तो पांडवों के मंदिर हैं। नैटवाड़ से ही सड़क के दो किलोमीटर ऊपर देवरा गांव में राजा कर्ण का भी मंदिर है। नैटवाड़ से 14 किलोमीटर के ट्रैक पर सौड़ गांव में दुर्योधन का भी मंदिर है। सूपिन नदी के किनारे नैटवाड़ से 12 किमी की दूरी पर स्थित सांकरी गांव में लकड़ी का भैरव का मंदिर भी है।

Thursday, 18 June 2009

भगत सिंह कोश्यारी भी कोप भवन में

नई दिल्ली लोकसभा चुनाव में हार की हताशा और वर्चस्व की जंग से जूझ रही भाजपा को अब उत्तराखंड से करारा झटका लगा है। राज्य में कई महीनों से चल रहे असंतोष पर केंद्रीय नेतृत्व के शुतुरमुर्गी रवैये से खफा भगतसिंह कोश्यारी ने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर पार्टी के अंदरूनी संकट को और गहरा दिया है। पार्टी नेतृत्व ने कोश्यारी के इस कदम को गंभीरता से लिया है। हालांकि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के मामले पर फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद ही होगा। भाजपा में उत्तराखंड का असंतोष फिर उबाल पर है। खंडूड़ी विरोधी माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर पार्टी नेतृत्व पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोश्यारी ने केंद्रीय नेतृत्व द्वारा निर्णय लेने में की जा रही देरी को देखते हुए नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए यह निर्णय लिया है। उन्होंने अपने निर्णय से केंद्रीय नेतृत्व को अवगत करा दिया था। हालांकि कोश्यारी को ऐसा न करने और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तक इंतजार करने को कहा गया था। आलाकमान कार्यकारिणी में लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा के बाद ही जरूरी बदलाव करने के पक्ष में है। उत्तराखंड पर तो उसने परिवर्तन की रूपरेखा भी तैयार कर रखी है। सूत्रों के अनुसार कोश्यारी के इस कदम से पार्टी नेतृत्व ख्रुश नहीं है। वह इसे जल्दबाजी में उठाया कदम मानता है। कोश्यारी के तेवर इस बार तीखे हैं। उन्होंने राज्यसभा सदस्यता छोड़ कर साफ कर दिया है उनकी दिल्ली के बजाए उत्तराखंड को ज्यादा जरूरत है। उनके इस्तीफे के बाद भाजपा विधायकों में खलबली मच गई और उन्होंने आनन-फानन में दिल्ली कूच करना शुरू कर दिया। सूत्रों के अनुसार देर रात तक राज्य के डेढ़ दर्जन विधायक दिल्ली पहुंच गए। कोश्यारी ने कहा कि वे राज्य में जनता के बीच जाकर वहां पर लोकसभा चुनावों में हार से कमजोर हुई पार्टी को फिर से खड़ा करने में जुटेंगे। इस पूरे घटनाक्रम पर मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मुलाकात करेंगे।

-सूबे में बारहवीं तक सभी को मुफ्त शिक्षा

सियासी उठापठक से बेखबर 'जनरल' ने की छह कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा मुख्यमंत्री मेजर जनरल (से.नि.) भुवन चंद्र खंडूड़ी ने आज सूबे के छात्रों को एक बड़ा तोहफा देते हुए बारहवीं तक मुफ्त शिक्षा की घोषणा की। इसके अलावा सीएम ने आज आमजनों के कल्याण को कई नई योजनाएं शुरू करने का भी ऐलान किया। सूबे की सियायत में इस समय उठापठक का दौर चल रहा है। ऐसे में सीएम की प्रेस कांफ्रेंस की सूचना से सियासी गलियारों में चर्चाएं सुबह से ही तेज हो गईं थी। फिर सचिवालय में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान सीएम ने अपनी बात कहनी शुरू की तो कहीं महसूस ही नहीं हुआ कि उन्हें किन्हीं सियासी गतिविधियों की परवाह है। सीएम ने कहा कि सरकारी व सहायताप्राप्त स्कूलों में अभी आठवीं तक सभी छात्र-छात्राओं और आठवीं से बारहवीं तक छात्राओं को मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था है। अब सरकार ने तय किया है कि सूबे में बारहवीं तक सभी को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी। उन्होंने बताया कि इससे सरकार पर सालाना चार करोड़ का अतिरिक्त बोझा आएगा। सीएम ने कहा कि सूबे के व्यावसायिक संस्थानों में पढऩे वाले अल्प आय वर्ग के छात्र-छात्राओं को योग्यता व आय आधारित (मेरिट कम मीन्स) छात्रवृत्ति दी जाएगी। 'जनरल' ने कहा कि केंद्र की नरेगा योजना में साठ फीसदी धन मजदूरी और चालीस फीसदी सामिग्र्री पर व्यय किया जाता है। सामिग्र्री मद में पैसा कम होने से लोगों को योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। अब राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री राज्य रोजगार पूरक योजना शुरू की है। इसके जरिए सामिग्र्री अंश धन कम होने पर राज्य सरकार पैसा देगी। इससे जल व भूमि संरक्षण, बाढ़ सुरक्षा, वनीकरण आदि के काम कराए जाएंगे। सीएम ने कहा कि ग्र्रामीण इलाकों में आवागमन की सुविधा बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री लघु सेतु (पुलिया) निर्माण योजना शुरू की गई है। इसके जरिए छह मीटर तक की पुलियों का निर्माण कराया जाएगा। सीएम ने सूबे में पर्यटन विकास और ग्र्रामीणों को रोजगार देने के लिए होम स्टे विकास योजना शुरू की है। इसके जरिए उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रेकिंग रूट पर बसे गांवों में 'होम स्टे' विकसित किए जाएंगे। इसके लिए ग्र्रामीणों को अपने मकान के निर्माण को बैैंक से लोन दिलाया जाएगा। सरकार इस लोन पर अनुदान देगी।

सुविधाएं मिले तो चमकेंगे सितारे

अंतर्राष्ट्रीय धावक सुरेंद्र भंडारी से बातचीत -लंबी व मध्यम दूरी में उत्तराखंड के युवाओं का भविष्य उज्जवल 'उत्तराखंड एक्सप्रेस' के नाम से मशहूर अंतर्राष्ट्रीय धावक सुरेंद्र भंडारी सूबे में प्रतिभाओं के आगे न आने पर चिंतित हैं। उनका मानना है कि उत्तराखंड के युवाओं की कद काठी लंबी व मध्यम दूरी के धावक बनने के लिए बिल्कुल मुफीद हैं। लेकिन जरूरत है उन्हें निखारने और मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की। यहां के युवाओं को अगर ये सुविधाएं मिल जाएं तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड के युवा अंतर्राष्ट्रीय फलक पर अपनी चमक बिखेरने में कामयाब होंगे। राष्ट्रीय रिकार्डधारी सुरेंद्र को राज्य सरकार से सम्मान मिलने पर संतोष तो है, लेकिन अन्य प्रदेशों की तुलना में देर से सम्मान मिलने की टीस भी है। उत्तराखंड के चमोली जिले के गैरसैंण में जन्में सुरेंद्र मंगलवार को राजधानी में आयोजित सम्मान समारोह में शिरकत करने पहुंचे। इस दौरान अनौपचारिक बातचीत में सुरेंद्र ने कहा कि सूबे के ग्रामीण अंचलों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां के बच्चों का कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम लंबी व मध्यम दूरी के धावकों के लिए मुफीद है। सुरेंद्र का मानना है कि उत्तराखंड में काफी प्रतिभाएं हैं, लेकिन सुविधाओं की कमी के चलते वे आगे नहीं आ पाती। सूबे में अभी तक एक भी चार सौ मीटर का ट्रैक नहीं बनाया जा सका है। एथलैटिक्स में अफ्रीकी देशों के आगे रहने के सवाल पर उनका कहना है अफ्रीकी धावक जेनिटिकली काफी मजबूत होते है, जिसके चलते लंबी व मध्यम दूरी में उनका दबदबा रहता है। सूबे में प्रशिक्षकों की कमी को लेकर भी सुरेंद्र काफी खफा दिखे। राज्य सरकार की ओर से देर से सम्मानित किए जाने पर उनका कहना है कि सरकार ने उन्हें यह सम्मान थोड़े पहले दिया होता तो ज्यादा अच्छा होता। क्योंकि इस प्रकार के सम्मान से खिलाडिय़ों का मनोबल बढ़ता है। कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी में जुटे सुरेंद्र का अगला लक्ष्य 2012 में होने वाले लंदन ओलंपिक में देश को पदक दिलाना है।

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Tuesday, 16 June 2009

कला प्रेमियों ने जिंदा रखीं उम्मीदें

दुनिया की जिन भाषा-बोलियों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है, उनमें उत्तराखंड की गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी बोलियां भी शामिल हैं। बदलते दौर में इन बोलियों को बोलने-समझने वालों की तादाद लगातार कम हो रही है। ऐसे में लोक कलाकार ही हैं, जो इन्हें जिंदा रखे हुए हैं। आमतौर पर कलाकारों से अभिप्राय मनोरंजन करने वालों से लिया जाता है, लेकिन उत्तराखंड में यही कलाकार यहां की भाषा-संस्कृति को संजीवनी दे रहे हैं। सदियों से पहाड़ के लोकगीतों, थडि़या, चौंफला, बाजूबंद, जागर, छपेली, छोलिया, रवांई, तांदी आदि नृत्यों को जिन्होंने जिंदा रखा है, ये वही लोग हैं। शादी-ब्याह, कौथीग आदि मौकों पर कला प्रेमियों की टोलियां यदि हमारी इस अनूठी संस्कृति को आगे न बढ़ातीं तो शायद हम अपनी पहचान कायम नहीं रख पाते। कलाकारों के यही प्रयास वर्तमान में स्थानीय बोलियों के प्रसार का माध्यम बने हुए हैं। उत्तराखंड राज्य को बने नौ साल होने को हैं। इस दौरान सरकारों के स्तर से स्थानीय बोलियों के संरक्षण को कोई प्रयास नहीं हुए, जिससे धीरे-धीरे लोग इनसे कटते चले जा रहे हैं। प्रवासी उत्तराखंडियों की नई पीढ़ी तो अपनी बोलियों को समझती भी नहीं और उत्तराखंड में रह रहे लोग भी इन्हें खास तवज्जो नहीं देते। हाल ही में यूनेस्को द्वारा जारी एटलस ऑफ दि वल्‌र्ड्स लैंग्यूएजेज इन डेंजर में उत्तराखंड की इन बोलियों को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। इस सबके बीच लोक कलाकारों के प्रयासों ने उम्मीद की किरण जगाई है। गढ़वाली फिल्म निर्देशक अनुज जोशी बताते हैं कि राज्य गठन के बाद कलाकारों के स्व प्रयासों से उत्तराखंड में क्षेत्रीय फिल्म उद्योग को बढ़ावा मिला है। इससे जुड़े हजारों नौजवान आज उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं को देश-दुनिया से परिचित करा रहे हैं। इन्हीं कलाकारों की देन है कि प्रवासी भी भावनात्मक रूप में अपनी माटी से जुड़े हैं। लोकगायक मंगलेश डंगवाल कहते हैं कि उत्तराखंड हमेशा से ही कला-संस्कृति का स्रोत रहा है। यहां की नैसर्गिक सुंदरता, रीति-रिवाज, बोली-भाषा, धार्मिक मान्यताएं अद्वितीय हैं। कलाकार लोक के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बोली-भाषा के प्रसार में योगदान कर रहे हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर उन्हें न तो अच्छा मानदेय मिलता है और न प्रोत्साहन ही। गढ़वाली साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल कहते हैं कि उत्तराखंडियों का अपनी बोली-भाषा से मोहभंग होने की मुख्य वजह इनके संरक्षण को सरकारी स्तर से कोई प्रयास न होना है। वह भी मानते हैं आज बोली-भाषा का जो कुछ आकर्षण है, वह कला प्रेमियों की वजह से ही है।

गढ़वाली-कुमाऊंनी क्यों नहीं?

किसी भी क्षेत्र की समृद्धि में वहां की भाषा-संस्कृति अहम भूमिका निभाती है। इसीलिए संविधान में भाषा के साथ उसकी सांस्कृतिक थाती को भी संरक्षण प्रदान किया गया है, लेकिन उत्तराखंड में राज्य गठन के आठ साल बाद भी इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुआ। यहां की सरकारों ने कभी भी ऐसी पहल नहीं की कि इन बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान मिले। अब अखिल गढ़वाल सभा देहरादून समेत विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं ने यह बीड़ा उठाया है। प्रयास है कि 2011 में होने वाली जनगणना के दौरान उत्तराखंडी संबंधित प्रपत्र में यह भी दर्ज किया जाए कि उनकी मात्रभाषा (बोली)गढ़वाली अथवा कुमाऊंनी है। जनगणना आंकड़ों के अनुसार देश में 114 भाषाएं और 216 बोलियां हैं। इनमें 22 भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। भारतीय आर्य परिवार की कुल 20 भाषाओं में से 15, द्रविड़ परिवार की 17 में से चार, आस्ट्रो-एशियाई परिवार की 14 में से एक (संथाली) और तिब्बती-वर्मी परिवार की 62 भाषाओं में से दो (मणिपुरी व बोडो) को 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए 36 भाषाओं की मांग अभी भी सरकार के पास लंबित है। इनमें गढ़वाली-कुमाऊंनी भी हैं। भाषा विकास पर कार्य कर रहे साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल बताते हैं कि अब तक जो भी भाषाएं 8वीं अनुसूची में दर्ज हुई, उनके पीछे सिर्फ राजनीतिक आधार ही रहा है। वे बताते हैं कि उत्तराखंड में मुख्य रूप से गढ़वाली-कुमाऊंनी के अलावा पंजाबी व उर्दू बोली जाती है। पंजाबी व उर्दू को तो वर्षो पूर्व 8वीं अनुसूची में जगह भी मिल गई। साथ ही उनकी देश में साहित्य व ललित कला अकादमियां भी हैं, लेकिन गढ़वाली-कुमाऊंनी के मामले में ऐसा नहीं हुआ। साहित्यकार नौटियाल ने बताया कि अब अखिल गढ़वाल सभा ने बीड़ा उठाया है कि सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया जाए। इसके तहत विभिन्न माध्यमों से उत्तराखंडियों से अपील की जा रही है कि वे वर्ष 2011 में होने वाली जनगणना में अपनी मातृभाषा गढ़वाली-कुमाऊंनी लिखवाएं, ताकि इन्हें 8वीं अनुसूची में स्थान दिलाने को हम अपना दावा मुकम्मल तौर पर पेश कर सकें। लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक मंच कोटद्वार, उदंकार भारती जैसी सांस्कृतिक संस्थाएं भी इस पहल को आगे बढ़ा रही हैं।

Thursday, 11 June 2009

-पहाड़ी क्षेत्रों को नहीं पैकेज का लाभ

उत्तराखंड के मैदानी हिस्सों तक ही सिमटा औद्योगिक विकास केंद्र सरकार के विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज से उत्तराखंड भले ही एक औद्योगिक राज्य की श्रेणी में आ गया है पर इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि औद्योगिकीकरण का यह लाभ पूरे राज्य को समान रूप से नहीं मिल सका। यह विकास सिर्फ मैदानी हिस्से तक ही सिमट गया। राज्य गठन से पहले उद्योग विभाग तथा यूपीएसआईडीसी ने 2118.08 एकड़ क्षेत्र में 47 वृहद तथा मिनी औद्योगिक आस्थान स्थापित किए पर यहां सिर्फ कहने को ही औद्योगिक इकाइयां स्थापित हो सकी थी। राज्य गठन के बाद सिडकुल ने 10389.569 एकड़ क्षेत्र में 65 औद्योगिक आस्थान स्थापित किए। उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को गति देने के लिए केंद्र ने एक विशेष पैकेज दिया पर इसका लाभ पर्वतीय जनपदों तक नहीं पहुंच सका। इस राज्य के हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर के अलावा नैनीताल व देहरादून जनपद के मैदानी हिस्सों तक ही सीमित रहा। इसके बाद सूबे की सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों के लिए विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति-2008 लागू की है। इसके तहत सीमांत जनपदों पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, चंपावत और रुद्रप्रयाग को श्रेणी-ए में रखा गया है। पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर और नैनीताल तथा देहरादून के पर्वतीय क्षेत्रों को बी श्रेणी में रखा है। इसके बावजूद पर्वतीय क्षेत्र में उद्योग स्थापित करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इंसेट जनपद उद्योग निवेश रोजगार नैनीताल 5 1234.11 3186 यूएस नगर 94 4459.21 25440 देहरादून 12 256.44 3309 पौड़ी 1 48.94 663 हरिद्वार 34 5668.23 26164 बागेश्वर 1 10.15 460 योग 147 11677.11 59222 (निवेश लाख रुपयों में)

ऐसा लगा कि बस चांद को छू लूं

21 मई को एवरेस्ट किया था फतेह सपनों की दुनिया में तो इंसान चांद-तारों को खिलौना बनाकर उनके साथ खेलता है। सपना जब हकीकत बन कर सामने आता है तो फिर इंसान निशब्द हो जाता है। दूनवासी कविता बुढाथोकी के सपने भी उस वक्त सच होते लगे जब भोर के हल्के अंधेरे में उन्होंने चांद को देखा। उनके शब्दों में कहें तो 'एवरेस्ट और चांद एक समान उंचाई पर दिख रहे थे। एक पल को ऐसा लगा कि कब हाथों से चांद को छू लूं'। हिमालयी की सर्वोच्च चोटी पर फतेह पाना कोई हंसी खेल नहीं है। लेकिन अगर मन में जज्बा और चट्टानों से टकराने का हौसला हो तो फिर कोई चुनौती सामने नहीं टिकती। दून में पढ़ी-बढ़ी कविता बुढाथोकी को शुरू से ही पर्वतों से अठखेलियां करने का शौक था। यह शौक कब जुनून नब गया पता ही नहीं चला। एमकेपी से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक-एक कर कई चोटियों पर फतेह पाई। तमन्ना रह गई थी तो एवरेस्ट को छूने की। बड़े भाई आनंद सिंह बुढाथोकी ने भी इसमें उनका पूरा साथ दिया। कुछ महीनों पहले जब नेशनल इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग से एवरेस्ट अभियान के लिए आवेदन मांगे गए तो 24 वर्षीय कविता ने इसके लिए अपना आवेदन जमा किया। यहां उन्होंने बेहतर प्रदर्शन कर अपने को अभियान दल में शामिल करने के लिए योग्य साबित किया। कविता कहती हैं कि अभियान दल चार बजे एवरेस्ट के करीब पहुंच गया था, लेकिन अंधेरा होने के चलते वह तकरीबन एक घंटे तक एक चट्टान के करीब रूके रहे। पौं फटने के बाद उन्होंने एवरेस्ट पर फतह पाई। इस समय उन्होंने जो खुशी हुई वह वो बयां नहीं कर सकती। वापस आते हुए वह अपनी जिंदगी के सबसे डरावने झाण से भी रूबरू हुई। सुबह दस बजे अचानक ही एवलांच आ गया। एवलांच आते ही अफरातफरी मच गई। कविता ने बामुश्किल एक चट्टान की आड़ लेकर खुद को बचाया। एक विदेशी दंपत्ति और एक पोर्टर भी इसकी चपेट में आया। दंपत्ति को तो बचा लिया गया लेकिन पोर्टर वहीं दम तोड़ गया। उनके साथ अभियान में शामिल पिथौरागढ़ निवासी व बीएसएफ में कार्यरत लवराज सिंह धर्मसत्तू ने तीसरी बार एवरेस्ट फतेह किया है। वह बताते हैं कि अभियान में नौ उत्तराखंडी शामिल थे। जिसमें छह फौजी और चार सिविलियन हैं। इनमें से एक हिमाचल निवासी हैं। वह कहते हैं कि किसी भी राज्य से इतने ज्यादा लोगों का एवरेस्ट फतेह करना अपने में एक रिकार्ड है।

शिक्षा मित्रों के प्रशिक्षण संबंधी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती

नैनीताल: राज्य सरकार के शिक्षा मित्रों को दो वर्ष के प्रशिक्षण देने के आदेश को हाईकोर्ट में एक याचिका के जरिए चुनौती दी गयी है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार का जवाब तलब किया है। जगदीश चंद्र तिवारी द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि एक मार्च 09 के शासनादेश में बीएड डिग्रीधारी शिक्षा मित्रों को दो वर्ष का प्रशिक्षण प्रदान करने के बाद विभाग में नियुक्ति देने के आदेश जारी किए गए हैं। याची का कहना है कि उक्त शासनादेश से 2168 स्नातक व 807 स्नातकोत्तर शिक्षा मित्रों को दो वर्षीय प्रशिक्षण लेना पड़ेगा। याचिका कर्ता का यह भी तर्क था कि एक ओर सरकार बीएड प्रशिक्षितों को छह माह का विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण देकर शिक्षक के रूप में नियुक्ति दे रही है, जबकि दूसरी ओर शिक्षा मित्रों के मामले में प्रशिक्षण अवधि दो वर्ष रखी गई है जो कि समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद मामले में सरकार व शिक्षा विभाग को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की एकलपीठ में हुई।

उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं को देश-दुनिया से परिचित

कलाकार करवा रहे उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं को देश-दुनिया से परिचित प्रवासियों को भावनात्मक रूप से अपनी माटी से जोडऩे में कलाकारों के प्रयास अहम सरकारी स्तर पर नहीं हुए स्थानीय बोलियों के संरक्षण को कोई प्रयास देहरादून: दुनिया की जिन भाषा-बोलियों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है, उनमें उत्तराखंड की गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी बोलियां भी शामिल हैं। बदलते दौर में इन बोलियों को बोलने-समझाने वालों की तादाद लगातार कम हो रही है। ऐसे में लोक कलाकार ही हैं, जो इन्हें जिंदा रखे हुए हैं। आमतौर पर कलाकारों से अभिप्राय मनोरंजन करने वालों से लिया जाता है, लेकिन उत्तराखंड में यही कलाकार यहां की भाषा-संस्कृति को संजीवनी दे रहे हैं। सदियों से पहाड़ के लोकगीतों थडिय़ा, चौंफला, बाजूबंद, जागर, छपेली, छोलिया, रवांई, तांदी आदि नृत्यों को जिन्होंने जिंदा रखा है, ये वही लोग हैं। शादी-ब्याह, कौथीग (मेले) आदि मौकों पर कला प्रेमियों की टोलियां यदि इस अनूठी संस्कृति को आगे न बढ़ातीं तो शायद यहां के बाशिंदे अपनी पहचान कायम नहीं रख पाते। कलाकारों के यही प्रयास वर्तमान में स्थानीय बोलियों के प्रसार का माध्यम बने हुए हैं। उत्तराखंड राज्य को बने नौ साल होने को हैं। इस दौरान सरकारों के स्तर से स्थानीय बोलियों के संरक्षण को कोई प्रयास नहीं हुए, जिससे धीरे-धीरे लोग इनसे कटते चले जा रहे हैं। प्रवासी उत्तराखंडियों की नई पीढ़ी तो अपनी बोलियों को समझाती भी नहीं और उत्तराखंड में रह रहे लोग भी इन्हें खास तवज्जो नहीं देते। हाल ही में यूनेस्को द्वारा जारी 'एटलस ऑफ दि वल्ड््र्स लैंग्यूएजेज इन डेंजर' में उत्तराखंड की इन बोलियों को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। इस सबके बीच लोक कलाकारों के प्रयासों ने उम्मीद की किरण जगाई है। गढ़वाली फिल्म निर्देशक अनुज जोशी बताते हैं कि राज्य गठन के बाद कलाकारों के स्व प्रयासों से उत्तराखंड में क्षेत्रीय फिल्म उद्योग को बढ़ावा मिला है। इससे जुड़े हजारों नौजवान आज उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं को देश-दुनिया से परिचित करा रहे हैं। इन्हीं कलाकारों की देन है कि प्रवासी भी भावनात्मक रूप में अपनी माटी से जुड़े हैं। लोकगायक मंगलेश डंगवाल कहते हैं कि उत्तराखंड हमेशा से ही कला-संस्कृति का स्रोत रहा है। यहां की नैसर्गिक सुंदरता, रीति-रिवाज, बोली-भाषा, धार्मिक मान्यताएं अद्वितीय हैं। कलाकार लोक के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझाते हुए बोली-भाषा के प्रसार में योगदान कर रहे हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर उन्हें न तो अच्छा मानदेय मिलता है और न प्रोत्साहन ही। गढ़वाली साहित्यकार भगवती प्रसाद नौटियाल कहते हैं कि उत्तराखंडियों का अपनी बोली-भाषा से मोहभंग होने की मुख्य वजह इनके संरक्षण को सरकारी स्तर से कोई प्रयास न होना है। वह भी मानते हैं आज बोली-भाषा का जो कुछ आकर्षण है, वह कला प्रेमियों की वजह से ही है।

उत्तराखंड में राज्यधीन सेवाएं सेवाएं हुईं 'ओपन'

चतुर्थ श्रेणी पद के लिए भी देश का कोई नागरिक कर सकेगा आवेदन उत्तराखंड में राज्यधीन सेवाएं अब पूरे देश के लिए खोल दी गई हैं। चतुर्थ वर्ग के अनारक्षित श्रेणी के पद के लिए भी देश के किसी हिस्से में रहने वाला व्यक्ति आवेदन कर सकता है। अब मूल निवास व स्थायी निवास प्रमाण पत्र की बाध्यता सिर्फ आरक्षित पदों के लिए ही होगी। ऐसे में उत्तराखंड के निवासियों को लिपिक, जेई, चालक समेत चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा में भाग लेना पड़ेगा। सूबे के कार्मिक विभाग ने एक आदेश में यह व्यवस्था की है। आदेश के मुताबिक राज्याधीन सेवाओं में सीधी भर्ती द्वारा नियुक्ति के लिए लंबवत एवं क्षैतिज आरक्षण का लाभ केवल उत्तराखंड के मूल निवासियों को ही मिलेगा। शासन के संज्ञान में आया है कि कतिपय विभागों में सीधी भर्ती के लिए प्रकाशित होने वाले विज्ञप्तियों में सामान्य श्रेणी के लिए भी मूल निवास तथा स्थायी निवास प्रमाण पत्र की अनिवार्यता की शर्त लगाई जा रही है। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि सीधी भर्ती के संबंध में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिए मूल निवास तथा स्थायी निवास प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होगी। यह आदेश सभी प्रमुख सचिवों, सचिवों, विभागाध्यक्षों, समस्त जिलाधिकारियों तथा सचिव लोक सेवा आयोग को संबोधित किया गया है। इस आदेश के बाद अब राज्य के अधीन किसी भी सेवा चाहे वह चतुर्थ श्रेणी की ही क्यों न हो, पूरे देश के निवासियों के लिए आवेदन की खुली छूट होगी। मतलब यह हुआ कि चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए भी यहां के लोगों को अब राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार रहना होगा। ऐसे में नई व्यवस्था से स्थानीय एवं जिला स्तर पर विभागों में स्थानीय निवासियों को नौकरी की संभावनाएं बेहद कम हो गईं हैैं।

Tuesday, 9 June 2009

ADMISSION NOTICE FOR HNBGU SRINAGAR (GARHWAL)

Assistant civil engineer in the Department of Uttarakhand Loknirman recruiting

-एक करोड़ की स्कालरशिप देगा गुरुकुल ट्रस्ट

-आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्रों को मिलेगी मदद गुरुकुल रिसर्च ऐंड टेक्नोलॉजी पार्क ट्रस्ट (जीआरटीपी) उच्च शिक्षा हासिल करने के इच्छुक गरीब मेधावी विद्यार्थियों को एक करोड़ रुपये की स्कॉलर शिप देगा। सोमवार को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में जीआरटीपी ट्रस्ट, चंडीगढ़ के निदेशक देशराज ठकराल ने बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों की उच्च तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने में मदद के लिए संस्थान ने टैलेंट हंट कार्यक्रम की शुरुआत की है। संस्थान में कुल 800 सीटें है, जिनमें से 150 टैलेंट हंट के जरिए भरी जाएंगी। इनमें से 25 सीट पंजाब के गरीब बच्चों, लड़कियों, विकलांग, खिलाड़ी, स्वतंत्रता सेनानी व पूर्व सैनिकों के बच्चों के लिए हैैं। शेष 125 सीटें पूरे देश के विद्यार्थियों के लिए है। टैलेंट हंट के लिए प्रवेश परीक्षा 14 जून को चंडीगढ़ के सेक्टर 15 के डीएवी स्कूल में दो से चार बजे तक होगी। परीक्षा में विद्यार्थियों के मेंटल एबिलिटी, एप्टीट्यूड व तकनीकी ज्ञान की परीक्षा ली जाएगी। टेस्ट के लिए कोई फीस नहीं ली जाएगी और फार्म गुरुकुल डॉट सीसी वेबसाइट से डाउनलोड किए जा सकते हैैं। वजीफा पाने के लिए 50 प्रतिशत अंक पाने जरूरी हैैं। उन्होंने बताया कि बीटेक के लिए 68, एमबीए के लिए 12, बीबीए के लिए आठ, बीसीए के लिए पांच, बीएससी (एमईएफटी) के लिए छह, एमएससी-आईटी के लिए दो लाख रुपये की स्कॉलरशिप दी जाएगी। चयनित विद्यार्थियों को सात विभिन्न संस्थानों में दाखिला दिया जाएगा।

Monday, 8 June 2009

बीटीसी प्रवेश परीक्षा होगी दो अगस्त को

पूर्व में अभ्यर्थियों को समय पर प्रवेशपत्र न मिलने के कारण निरस्त हुई बीटीसी प्रवेश परीक्षा अब 2 अगस्त को संपन्न कराई जाएगी। इससे बेरोजगार युवाओं की उम्मीद जगी है।राज्य गठन के बाद पहली बार फरवरी 2006 में बीटीसी प्रवेश परीक्षा कराने का निर्णय लिया गया था। परीक्षा आयोजन का जिम्मा संभाल रहे भारत सरकार के उपक्रम एडसिल द्वारा समय पर अभ्यर्थियों को प्रवेशपत्र न पहुंचाए जाने के कारण उपजे विरोध को देखते हुए परीक्षा निरस्त कर एडसिल के खिलाफ जांच बिठाई गई थी। सूत्रों के मुताबिक जांच में एडसिल को दोषी पाया गया। 22 मई 2007 को शिक्षा विभाग के माध्यम से शासन को पत्र भेजकर बीटीसी प्रवेश परीक्षा विभागीय स्तर पर कराने की बात कही गई। अब जाकर 2 अगस्त को पुनः बीटीसी प्रवेश परीक्षा की तिथि नियत की गई है। डायट बड़कोट के प्राचार्य विरेंद्र बहादुर सिंह ने बताया कि उक्त परीक्षा में पूर्व में आवेदन करने वाले अभ्यर्थी ही शामिल होंगे, नए सिरे से आवेदन की प्रक्रिया नहीं होगी। अकेले उत्तरकाशी जिले से पूर्व में आवेदन करने वाले 4,641 अभ्यर्थी बीटीसी परीक्षा में बैठेंगे। परीक्षा के लिए गंगा और यमुना घाटी में 6-6 परीक्षा केंद्र नियत किए गए हैं।

Sunday, 7 June 2009

jobs-Kumaon Engineering College

Kumaon Engineering College (KECUA) jobs (An Autonomous College of Govt. of Uttarakhand) Dwarahat (Almora) – 263653, Uttarakhand Applications are invited from the deserving candidates all over the country faculty posts on prescribed Performain following Departments : Electronics & Comm. Engineering : 01 post (Professor-1) Computer Sc. & Engineering : 06 posts (Professor-1, Assistant Professor-3, Lecturer-2 (one more leave vacancy) Mechanical Engineering : 04 posts (Professor-1, Assistant Professor-1, Lecturer-2) Bio-Chemical Engineering : 06 posts (Professor-1, Assistant Professor-2, Lecturer-3) MCA : 04 posts (Professor-1, Assistant Professor-1, Lecturer-2) Physics ; 01 post (Lecturer-1) Pay Scales : Professor: Rs 16400-22400, Astt. Prof.: Rs12000-18300, Lecturer: Rs. 8000-13500 Application Fee : Application fee of Rs 500 (Rs. 250 for SC / ST Candidates) through crossed bank draft drawn in favour of Principal, Kumaon Engineering College, Dwarahat, payable at State Bank of India, KEC Dwarahat Branch (Code No 10584) How to Apply : Applications in prescribed format should reach to the Principal Kumaon Engineering College, Dwarahat, 263653, Distt- Almora (Uttaranchal) latest by 22/06/2009 Kindly visit http://www.kecua.in for details and application form

Saturday, 6 June 2009

देवभूमि में 'भगवान भरोसे' भगवान

उत्तराखंड में बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री में महज औपचारिक इंतजाम के भरोसे सुरक्षा सीसीटीवी कैमरे व मेटल डिटेक्टर्स तो हैं मगर नामालूम कब फंक्शन करते हैं और कब रहते हैं खामोश भगवान न करे ऐसा हो कि उसके ही घर पर किसी की कुदृष्टि पड़े लेकिन यह हकीकत है कि देवभूमि उत्तराखंड में विश्वविख्यात तीर्थस्थलों और मंदिरों की सुरक्षा व्यवस्था लगभग भगवान भरोसे ही है। 'लगभग' इसलिए, क्योंकि पुलिस-प्रशासन के भारी भरकम दावे अपनी जगह कायम हैं और सुरक्षा से जुड़ा सच अपनी जगह। सुरक्षा कर्मी हैं मगर महज व्यवस्था बनाने को न कि सिक्योरिटी के लिए। मेटल डिटेक्टर भी हैं लेकिन मालूम नहीं कब फंक्शन करते हैं और कब खामोश हो जाते हैं। वह तो अब तक पहाड़ को देश के कुछ हिस्सों की तरह किसी आतंकी घटना से रूबरू नहीं होना पड़ा है, अन्यथा जिस तरह कोई भी बगैर ज्यादा जांच-परख और रोक-टोक के बदरी-केदार जैसे महत्वपूर्ण मंदिरों में प्रवेश पा जाता है, वह स्वयं में गंभीर चिंता का विषय है। चार धाम यात्रा में हर साल उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़ से प्रदेश सरकार और स्थानीय व्यापारी उत्साहित हैं लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि इस वजह से सुरक्षा को लेकर उपजी चिंताएं भी बढ़ रही हैं। हालांकि प्रशासन का दावा है कि सुरक्षा में कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन हकीकत पर नजर दौड़ाएं तो स्थिति अलग है। सुरक्षा के व्यापक इंतजामों के बावजूद बदरीनाथ में प्रवेश के दौरान खामियां बरकरार हैं, वही गंगोत्री-यमुनोत्री में साधुओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, जो चौंकाती है। देशभर में धार्मिक स्थलों के आतंकी निशाने पर आने के बाद से तीर्थस्थलों की सुरक्षा एक अहम बड़ा सवाल बन गई है। ऐसे में उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की संवेदनशीलता को समझाा जा सकता है। गुजरे समय में अक्षरधाम, संकटमोचक मंदिर और मुंबई पर आतंकी हमलों ने इन सवालों को और भी अहम बना दिया है। देवभूमि उत्तराखंड में स्थित करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र बदरीनाथ धाम पर नजर डालें तो यहां एक प्लाटून पीएसी और पुलिस के कंधों पर ही सुरक्षा का बोझा है। हालांकि मंदिर के आसपास के परिसर में अत्याधुनिक कैमरों से नजर रखी जा रही है और मेटल डिटेक्टर्स भी लगे हैं लेकिन इनकी परीक्षा की घड़ी अब तक नहीं आई है लिहाजा ये इंतजामात कितने दुरुस्त हैं, निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। अलबत्ता, चमोली जनपद के एसपी विम्मी सचदेवा इंतजामों से पूरी तरह संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि पुलिस समय-समय पर चेकिंग अभियान चलाती रहती है। किसी भी चूक से बचने के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी प्रवेश चंद्र डंडरियाल का कहना है कि सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण छह स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं। बावजूद सुरक्षा इंतजामों को फुलप्रूफ नहीं कहा जा सकता। मंदिर में प्रवेश को लेकर सुरक्षा की दृष्टि से कई खामियां बरकरार हैं, जिन्हें दूर किए जाने की जरूरत है। इसी तर्ज पर केदारनाथ धाम की सुरक्षा को लेकर भी पुलिस पूरी तरह संतुष्ट है। मंदिर परिसर में क्लोज सर्किट कैमरों से संदिग्धों पर नजर रखने के साथ ही अत्याधुनिक उपकरणों से तलाशी भी ली जा रही है। रुद्रप्रयाग जिले के अपर पुलिस अधीक्षक एचस खाती ने बताया कि वर्तमान में फोर्स की कोई कमी नहीं है और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह संतोषजनक हैं। गंगोत्री-यमुनोत्री में भले ही सुरक्षा व्यवस्थाओं को लेकर पुलिस निश्चिंत दिखायी दे रही हो, लेकिन स्थिति उतनी बेहतर नहीं है। यहां जो खास बात देखने में आ रही है, वह थोड़ा चौंकाने वाली है। पिछले सालों की अपेक्षा गंगोत्री धाम में साधुओं और भिखारियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। साधुओं और भिखारियों की संख्या में हुआ यह इजाफा निश्चित ही पुलिस और प्रशासन के लिए चिंता का विषय है। हालांकि पुलिस का दावा है कि सुरक्षा में कहीं कोई सुराख नहीं है। उत्तरकाशी के एसपी मुख्तार मोहसिन ने बताया कि गंगोत्री और यमुनोत्री की सुरक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही। गंगोत्री की सुरक्षा के लिए 120 सिपाही तैनात हैं। पुलिस कप्तान ने बताया कि यात्रा शुरू होने के बाद सत्यापन अभियान तेज किए गए हैं। सुरक्षा की यही व्यवस्था यमुनोत्री के लिए भी की गई है। पुलिस भले ही सुरक्षा व्यवस्था चौकस होने का दावा कर रही हो, लेकिन सच्चाई यही है लाखों की संख्या में आ रहे श्रद्धालुओं पर नजर रखना आसान काम नहीं। पुलिस के पास स्टाफ और उपकरणों की कमी ने समस्या को और भी दुरुह बनाया है। --- सुरक्षा के हैं पुख्ता इंतजाम: सुभाष कुमार देहरादून: प्रमुख सचिव (गृह) सुभाष कुमार के मुताबिक देवभूमि स्थित चार धामों की सुरक्षा को पुख्ता बंदोबस्त किए गए हैैं। श्री कुमार ने बताया कि पर्वतीय अंचल में स्थित भगवान बदरीनाथ, भगवान केदारनाथ के साथ ही गंगोत्री एवं यमुनोत्री धामों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की गई है। सभी देवस्थलों पर पुलिस के साथ ही पीएसी के जवानों को भी तैनात किया गया है। प्रवेश द्वारों पर मेटल डिटेक्टर लगाए गए हैैं तो सुरक्षा कर्मियों के पास मेटल डिटेक्टर भी उपलब्ध है। कई स्थानों पर सीसी टीवी की व्यवस्था भी कई है। प्रमुख सचिव ने बताया कि हरिद्वार स्थित हरकी पैड़ी पर भी सुरक्षा के जरूरी इंतजामात किए गए हैैं।

Friday, 5 June 2009

फिजोथैरपिस्ट की नियुक्ति - महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ एवं परिवार कल्याण देहरादून उत्तराखंड

यहां हौसले पाते हैं पहाड़ सी बुलंदी

पर्वतारोहण में उत्तराखंड स्थित नेहरू माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट का दबदबा एवरेस्ट समेत 37 चोटियों पर तिरंगा फहरा चुके हैं यहां के पर्वतारोही उत्तरकाशी: एडवेंचर की ओर रुझाान हो, कुछ कर दिखाने का जज्बा हो, ट्रैकिंग का शौक हो और एवरेस्ट को फतह करने की चाहत भी, तो रुख कीजिए उत्तराखंड में स्थित नेहरू माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट का। उत्तरकाशी स्थित यह संस्थान वह पाठशाला है, जहां कुशल प्रशिक्षकों की देखरेख में हौसलों को पहाड़ सी बुलंदी मिलती है। शायद यही वजह है कि स्थापना के 44 साल बाद भी एनआईएम का स्थान कोई दूसरा संस्थान नहीं ले सका है। जहां तक उपलब्धि का सवाल है, तो अब तक संस्थान दुष्कर समझो जाने वाले माउंट एवरेस्ट समेत कुल 37 बेहद कठिन चोटियों पर तिरंगा फहरा चुका है। एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल भी इसी संस्थान की विद्यार्थी रही हैैं। भागीरथी के तट पर बसी शिवनगरी उत्तरकाशी को वर्ष 1965 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अनमोल सौगात दी है। 14 नवंबर 1965 को यहां स्थापित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान अब तक 170 एडवेंचर, 208 बेसिक माउंटेनियरिंग, 132 एडवांस माउंटेनियरिंग, 21 सर्च एंड रेस्क्यू व 15 मैथड ऑफ इंस्ट्रक्शन कोर्स पूरे करा चुका है। भारत के विभिन्न हिस्सों से सैकड़ों विद्यार्थी यहां आकर पर्वतारोहण के गुर सीखते हैं। संस्थान के छात्रों में बछेंद्री पाल, सुमन कुटियाल, संतोष यादव, सतल सिंह, प्रताप बिष्ट, दिनेश रावत, कुशाल सिंह, दशरथ सिंह, विश्वेश्वर सेमवाल, विनोद गुसाईं व कविता बुड़ाकोटी ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई छूने में कामयाबी हासिल की है। संस्थान की बदौलत ही बछेंद्री पाल पहली भारतीय महिला बनी जिसने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाईयां छूने में कामयाबी हासिल की। इसके अलावा हर्षा रावत, चंद्रप्रभा एतवाल व डा. हर्षवंती बिष्ट भी एवरेस्ट के बेस कैंप तक पहुंची, लेकिन वे चोटी फतह नहीं कर सकीं। अर्जुन पुरस्कार विजेता डा. हर्षवंती बिष्ट को तो आज भी इसका दु:ख है कि वह एवरेस्ट पर नहीं चढ़ सकीं। एनआईएम अब राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी शिरकत करने लगा है। संस्थान में नवंबर 2004 में रॉक क्लाइंबिंग का एशिया कप और 2007 में 13वां नेशनल वॉल क्लाइंबिंग स्पर्धा आयोजित की गई। इन स्पर्धाओं से एनआईएम ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की। पिछले दिनों एनआईएम ने माउंट एवरेस्ट को चुनौती दी और 28 मई की सुबह एनआईएम के दस सदस्यों ने एवरेस्ट पर पताका फहरा कर देश का नाम रोशन किया है। संस्थान के प्राचार्य कर्नल ईश्वर सिंह थापा कहते हैं कि एनआईएम में कोर्स के लिए बड़ी संख्या में आवेदन पत्र जमा हो रहे हैं। कर्नल थापा बताते हैं कि संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उनके विद्यार्थी विभिन्न पर्वतारोही दलों में शामिल हो जाते हैं। एनआईएम विशेष मौकों पर ही पर्वतारोहण अभियान शुरू करता है। उन्होंने बताया कि फिलहाल संस्थान की प्राथमिकता माउंट एवरेस्ट अभियान 2009 को सफल बनाने की है। इसके अलावा अभी कोई और योजना नहीं है। संस्थान में संचालित कोर्स: 1. एडवेंचर कोर्स: इस कोर्स में 14 से 18 वर्ष तक के छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण दिया जाता है। 2. बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स: यह पर्वतारोहण के क्षेत्र में पहला कदम है। इस कोर्स के बाद प्रशिक्षणाथी एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स में प्रवेश के योग्य हो जाता है। 3. एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स: इस कोर्स को पूर्ण करने वाला व्यक्ति भारतीय पर्वतारोहण दलों का सदस्य बनने में सक्षम हो जाता है। 4. सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स: यह कोर्स बेहद महत्वपूर्ण है। पर्वतारोहण के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं में यह कोर्स बहुत काम आता है। 5. मैथड आफ इंस्ट्रक्शन कोर्स: इस कोर्स की योग्यता प्राप्त कर व्यक्ति विभिन्न सरकार व गैर सरकारी संस्थाओं में प्रशिक्षक नियुक्त होने के लिए पात्र हो जाता है। एनआईएम के विद्यार्थियों ने अब तक 37 चोटियों के शिखर पर फहराया तिरंगा। चोटी का नाम ऊंचाई मी. वर्ष 1. माउंट एवरेस्ट 8,848 2009 2. अनाम चोटी 6,161 1967 3. भागीरथी द्वितीय 6,512 1968 4. अनाम चोटी 5,995 1968 5.गंगोत्री द्वितीय 6,577 1969 6.अनाम चोटी 6,114 1970 7. जोगिन प्रथम 6,465 1970 8. जोगिन तृतीय 6,116 1970 9. अनाम चोटी 6,189 1970 10. कोटेश्वर 6,035 1971 11.साइफ 6,161 1971 12. केदारनाथडोम 6,831 1972 13.अनाम चोटी 5,600 1973 14. अनाम चोटी 5,800 1973 15. शिवलिंग 6,543 1973 16. बंदरपूंछ 6,316 1975 17. गंगोत्री द्वितीय 6590 1976 18. रुद्रगैरा 5,818 1976 19. अनाम चोटी 6,181 1978 20. काली चोटी 6,387 1980 21. जोनाली 6,632 1980 22. अनाम चोटी 5,853 1981 23. द्रौपदी का डांडा 5,716 1983 24. चौखम्बा प्रथम 7,138 1995 25.चौखम्बा द्वितीय 7,068 1995 26. अनाम चोटी 6,760 1995 27. अनाम चोटी 5,312 1997 28. दूधना 5,701 1985 29. स्वर्गारोहिणी 6,252 1990 30. थैइलू 6,000 1990 31.अनाम चोटी 5,610 1991 32. सतोपंथ 7,075 1997 33. सुदर्शन 6,507 1998 34. मुक्त प्रभात पूर्व 7,130 1999 35. केदार डोम 6,832 2001 36. त्रिशूली पश्चिम 7,075 2001 37.शीश पांगमा 8,012 2005

Monday, 1 June 2009

भाजपा के गढिय़ा ने जीता कपकोट उपचुनाव

सात हजार मतों से मारा मैदान,कांग्रेस तीसरे स्थान पर लुढ़की बागेश्वर: कपकोट उपचुनाव भाजपा ने सात हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत लिया है। भाजपा के शेर सिंह गढिय़ा ने एनसीपी प्रत्याशी कुंती परिहार को सात हजार से भी अधिक मतों से पराजित किया। कांग्रेस को तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा। कपकोट उपचुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था। भाजपा कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर प्रयास किया तथा उपचुनाव जीतने में कामयाबी हासिल कर ली। भाजपा के शेर सिंह गढिय़ा ने एनसीपी प्रत्याशी कुंती परिहार को 7167 मतों से पराजित किया। शेर सिंह ने 13823 मत हासिल किये। एनसीपी प्रत्याशी कुंती परिहार को 6656 मत मिले। कांगे्रस अप्रत्याशित तरीके से तीसरे स्थान पर रही। कांगे्रस प्रत्याशी चामू सिंह गस्याल को 6413 मत मिले। उत्तराखंड क्रांति दल प्रत्याशी हरीश पाठक को 1247, निर्दलीय कुंदन कोरंगा को 683, सपा के उमेश राठौर को 590, निर्दलीय रमेश कृषक को 570 तथा किशन राम को 297 मत मिले। मात्र दो मतदाताओं ने पोस्टल मत का प्रयोग किया। एक-एक मत भाजपा व उक्रांद ने प्राप्त किया। चुनाव आयोग के प्रेक्षक पीएन श्री निवासाचारी, रिटर्निंग आफीसर शिवचरण द्विवेदी, जिलाधिकारी डीएस गब्र्याल, सहायक निर्वाचन अधिकारी हरबीर सिंह ने विजेता प्रत्याशी को जीत का प्रमाण पत्र सौंपा। जीत की खुशी में भाजपा कार्यकर्ताओं ने बैंड बाजे के साथ जिला मुख्यालय तथा कपकोट तहसील मुख्यालय में विजय जुलूस निकाला। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने एक फैक्स संदेश में भाजपा की जीत को कपकोट वासियों की जीत करार दिया है। उन्होंने कहा कपकोट से उनका भावनात्मक लगाव रहा है। चुनाव परिणाम से स्पष्ट से है कि वहां के लोग आज भी उन्हें अपना मानते ह