Wednesday, 24 June 2009
='जख्म' को हाईकमान ने ही बनाया 'नासूर'
उत्तराखंड: भाजपा नेतृत्व की टालमटोल नीति से ही सूबे में अस्थिरता का माहौल
नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी दिया गया खासा महत्व
देवभूमि की जनता को भुगतना पड़ रहा खामियाजा
प्रदेश भाजपा में उपजे विवाद के 'जख्म' को पार्टी हाईकमान ने हमेशा ही 'नासूर' बनने की हद तक पकने दिया। हालात इतने बिगड़े कि अब पार्टी 'सेप्टिक' की स्थिति में है। नेतृत्व भले ही इसके उपचार में सफल हो जाए पर इससे देवभूमि में माहौल पूरी तरह से अस्थिर हैै और आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
सत्ता संभालने के बाद से मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी को 'अपनों' के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। आज हालात उनके इस्तीफे की नौबत तक आ गए। खास बात यह है कि भाजपा हाईकमान ने यहां उपजे विवाद को थामने में जो रणनीति अपनाई उस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैैं। माना जा रहा है कि या तो नेतृत्व इस सूबे के सियासी हालात को समझाने में असफल रहा या फिर 'जख्म के नासूर बनने के बाद ही इलाज' की दिशा में काम शुरू किया गया।
यूं तो सरकार विरोधी स्वर कई बार उठे पर आवाज दिल्ली तक नहीं गई। छह माह पहले 17 विधायकों ने एक साथ दिल्ली जाकर नेतृत्व परिवर्तन की मांग की। नेतृत्व ने लगभग एक सप्ताह तक मौन रहकर मानों इस विवाद को हवा ही दी। ज्यादा फजीहत होने के बाद ही हाईकमान ने कड़ी फटकार लगाकर विधायकों को उत्तराखंड रवानगी की नसीहत दी। बाद में कई बार लगा कि सत्ता संघर्ष जारी है पर नेतृत्व मौन रहकर तमाशा देखता रहा।
लोससभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के हाथ से पांचों सीटें फिसलने के बाद सीएम विरोधी खेमे को एक बार फिर मौका मिला। सूबे में नेतृत्व परिवर्तन की मांग फिर से उठी। खास बात यह रही कि दिल्ली में तमाम झांझाावात झोल रहे पार्टी हाईकमान ने यहां के असंतोष को थामने की बजाय यहां दो पर्यवेक्षक भेजकर 'चिंगारी' को 'शोला' बना दिया और विधायकों की महत्वकांक्षाएं फिर से जाग्र्रत हो गईं। दिल्ली में हाईकमान ने रिपोर्ट पर चर्चा न हो पाने की बात करके तो मानो विरोधी खेमे को संजीवनी दे दी गई। बात आगे बढ़ी तो हर किसी को सीएम की कुर्सी नजर आने लगी।
अब भाजपा ने नासूर बन चुके जख्म का इलाज शुरू किया तो पता चला कि इसमें जहर फैल चुका है। एक तरफ खाई है तो दूसरी तरफ कुआं। अब भाजपा के सामने इस सूबे में स्पष्ट बहुमत वाली सरकार को बचाने की चिंता सताने लगी है। देखना है पार्टी हाईकमान के इस टालमटोल वाले रुख का नतीजा किस करवट जाता है।
हो सकता है कि भाजपा अपने नासूर का इलाज करने में सफल हो जाए पर इसके चलते सूबे में फैली अस्थिरता के लिए आखिर किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा। पहले वाले घटनाक्रम की तरह इस बार भी बीते छह रोज से राजधानी में न तो कोई विधायक दिख रहा है और न ही कोई मंत्री। खुद सीएम भी दिल्ली में ही जमे हैैं। सचिवालय में सन्नाटा है और सरकारी दफ्तरों में कोई काम नहीं हो रहा है। आम लोग भटक रहे हैैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। वक्त आने पर जनता भाजपा इस स्थिति पर जवाब जरूर मांगेगी।
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