देहरादून- केंद्र सरकार भले ही लाख कोसती रही हो, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो उसे उत्तराखंड से ही मुंह की खानी पड़ी है।
बाघ संरक्षण के मामले में परिदृश्य कुछ ऐसा ही है। केंद्र लगातार उत्तराखंड में बाघ संरक्षण को लेकर चिंता जताता रहा और इस सिलसिले में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री ने पचास से ज्यादा पत्र भी राज्य सरकार को भेजे, लेकिन नतीजे सामने आए तो साफ हुआ कि यह चिंता ही बेजा थी। बाघों के घनत्व के मामले में उत्तराखंड का कार्बेट नेशनल पार्क अव्वल निकला। इसे देखते हुए अब राज्य सरकार ने भी मांग रख दी है कि वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन के बेहतरीन प्रयासों को देखते हुए इसके लिए केंद्र अलग से बजट मुहैया कराए। कार्बेट नेशनल पार्क यानी बाघों का घर। बीते डेढ़ सालों से यही पार्क केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की चिंता में शुमार था। चिंता यह थी कि बाघों के संरक्षण के मामले में उत्तराखंड सरकार संजीदा नहीं है। यूं कहें कि तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के एजेंडे में यह पहली पायदान पर था और उनकी ओर से पचास से ज्यादा पत्र उत्तराखंड सरकार को भेजे गए। उनकी यह चिंता तब निर्मूल साबित हुई, जब यह खुलासा हुआ कि बाघ संरक्षण के मामले में उत्तराखंड पहले नंबर पर है। पार्क में प्रति 100 वर्ग किमी क्षेत्र में 18 बाघ हैं और ऐसा घनत्व देश में कहीं नहीं है। काजीरंगा भी इस मामले में 6 बाघ पीछे ल्ल शेष पृष्ठ है। अब तो खुद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी उत्तराखंड में बाघ संरक्षण के प्रयासों को सराहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि यदि केंद्र की नजर में कार्बेट में स्थिति चिंताजनक थी तो वह नंबर-वन कैसे बना। खैर, अब उत्तराखंड सरकार ने भी दांव चला है। राज्य वन एवं पर्यावरण सलाहकार अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी के मुताबिक उत्तराखंड सरकार के प्रयास और कार्बेट के नजदीकी पौड़ी व नैनीताल जनपदों के निवासियों के त्याग के बूते ही उत्तराखंड बाघों का सरताज बना है।
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