Friday, 12 August 2011

मूल और स्थायी निवास प्रमाण पत्र पर चढ़ा पारा

देहरादून, प्रमुख संवाददाता। मूल निवास और स्थायी निवास प्रमाण पत्र को लेकर सियासी पारा चढ़ने लगा है। उक्रांद(पंवार गुट) इस मुद्दे पर सोमवार से विधानसभा पर धरना शुरू करने जा रहा है।
तर्क यह है कि सरकारी सेवाओं और अन्य सुविधाओं में यदि मूल निवास प्रमाण के स्थान पर स्थायी प्रमाण पत्र को तरजीह दी जाने लगेगी तो फिर पहाड़ के मूल लोगों के हित सीधे-सीधे प्रभावित होंगे।
उक्रांद-पंवार के कार्यकारी अध्यक्ष एपी जुयाल के मुताबिक, इस मुद्दे पर जिस प्रकार सरकार ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है, उसे जल्द से जल्द साफ किया जाना चाहिए।मालूम हो कि, राज्य के गठन से पहले पर्वतीय जिलों के लोगों के लिए विभिन्न सेवाओं में मूल निवास प्रमाण पत्र ही अनिवार्य होता था। राज्य गठन के बाद मैदानी जिलों के भी राज्य में शामिल होने से पूरे प्रदेश के लोगों को लाभ देने केलिए स्थायी प्रमाण पत्र की व्यवस्था की गई।

इसके लिए पंद्रह साल से राज्य में स्थायी निवास होना अहम शर्त है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य के गठन के बाद सभी नागरिकों को समान रूप से सुविधाए देने की मंशा से स्थायी प्रमाण पत्र को भी मजबूत करने पर विचार किया जा रहा है। इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है।दूसरी तरफ, उक्रांद का कहना है कि, मूल निवास प्रमाण की जगह स्थायी निवास प्रमाण को प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है। यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। इसका विरोध किया जाएगा। जुयाल के मुताबिक, यदि सरकार वस्तुस्थिति स्पष्ट नहीं करती तो सोमवार से विधानसभा के समक्ष धरना शुरू कर दिया जाएगा। यदि इस व्यवस्था को लागू किया गया तो प्रदेश स्तर पर विरोध किया जाएगा।


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