Wednesday, 10 August 2011

कुमाऊं उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन संशोधन कानून वैध

नई दिल्ली, -: सुप्रीम कोर्ट ने जंगल की जमीन, राज्य सरकार में निहित करने वाले कुमाऊं उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार संशोधन कानून (कुजलर एक्ट) को संवैधानिक ठहराया है। हालांकि पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने कानून को वैध ठहराने के साथ ही कहा है कि कानून के बाद सरकार में निहित जंगल की जमीन से कोई आय न होने पर भी भूमालिक को मुआवजा दिया जाएगा।





ये महत्वपूर्ण फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 300ए में एक व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है। लेकिन ऐसा सिर्फ निष्पक्ष और तार्किक कानूनी आधार पर ही हो सकता है। जनहित के नाम पर अधिग्रहीत की गई किसी की निजी संपत्ति के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा, जैसा कि इस मामले में हुआ है। जबकि राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव की दलील थी कि कानून में जमीन से आय न होने के मामलों में मुआवजा दिए जाने की बात नहीं कही गई है। पीठ ने कहा कि इस मामले में जो जमीन कानून के बाद राज्य सरकार में निहित हुई है, उसे गैर उत्पादक नहीं माना जा सकता। निश्चित तौर पर सरकार में निहित संपत्ति उत्पादक संपत्ति है। इसलिए संपत्ति की संभावित आय का आकलन कर मुआवजा दिया जाना चाहिए। कुजलर कानून में भी सरकार में निहित प्राइवेट जंगल का मुआवजा दिये जाने की बात कही गयी है।
संविधान पीठ ने कुजलर कानून की धारा 4ए, 18(1)(सीसी) और 19 (1)(बी) को वैध ठहराते हुए असिस्टेंट कलेक्टर को याचिकाकर्ता राजीव सरीन को उचित मुआवजा अदा करने का निर्देश दिया है।



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