उत्तराखंड में अब राजस्व रिकार्ड ऑनलाइन होने जा रहे हैं। यानि, नागरिकों को भूमि विवाद, संपत्ति के रखरखाव, खरीद-फरोख्त और उसके मालिकाना हक के
निर्धारण के लिए कोई भी जानकारी चाहिए, वह ऑनलाइन हासिल हो जाएगी। राजस्व न्यायालयों में चल रहे मामलों के समाधान में भी इससे मदद मिलेगी। दरअसल, यह संभव होगा राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के उत्तराखंड में भी लागू होने से। समझा जा रहा है कि मंगलवार को होने जा रही कैबिनेट बैठक में इस पर मुहर लग सकती है।
राज्य में राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के अमल में आने से जमीन संबंधी सभी रिकार्ड, नक्शे व बंदोबस्त का डिजिटलाइजेशन तो होगा ही, साथ ही रजिस्ट्री के लिए सिंगल विंडो सिस्टम भी उपलब्ध हो जाएगा। कार्यक्रम के तहत सभी टैक्सचुअल यानि खसरा, खतौनी और स्पेशल, यानि नक्शे आदि भूमि अभिलेखों के साथ नॉन जेड ए खतौनियों का भी कंप्यूटरीकरण किया जाएगा। साथ ही कंप्यूटराइज्ड खतौनी के लिए कट ऑफ डेट का निर्धारण, पटवारी कानूनगो और तहसीलदार द्वारा भूमि अभिलेखों की जांच व वैधता के लिए जिम्मेदारी का निर्धारण तथा डेटा डिसप्ले के लिए यूनीकोड व्यवस्था व क्षेत्रीय भाषा का उपयोग भी इस कार्यक्रम में सुनिश्चित किया जाएगा ताकि पूरे देश में एक समान व्यवस्था बन सके।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्यक्रम को लागू करने के लिए राजस्व महकमे के कई कार्यो की प्रकृति में भी बदलाव करना पड़ेगा। मसलन, भूमि अभिलेखों से संबंधित मैनुअल और प्रारूपों को सरलीकृत किया जाएगा, तो सभी कंप्यूटराइज्ड अभिलेखों को विधिक मान्यता देने के लिए सरकार को संबंधित एक्ट और नियमों में संशोधन भी करने पड़ेंगे। इससे राज्य में रजिस्ट्री प्रक्रिया भी कंप्यूटराइज्ड हो जाएगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य में यह राष्ट्रीय कार्यक्रम अरसा पहले भी लागू किया जा सकता था लेकिन राज्य सरकार ने इस पर आने वाले 200 करोड़ के खर्च का अधिकांश हिस्सा केंद्र से ही हासिल करने की कोशिश की। इसके लिए लगभग सवा साल पहले राज्य सरकार ने केंद्र से मांग की कि विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा होने के कारण इस कार्यक्रम में उत्तराखंड को 90:10 के अनुपात में धनराशि उपलब्ध कराई जाए लेकिन केंद्र ने इसे अस्वीकार कर दिया। शासन के सूत्रों के मुताबिक अब सरकार मंगलवार को होने जा रही कैबिनेट बैठक में इसे पेश करने की तैयारी में है।
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