Tuesday, 30 August 2011
EXAM DATE, UTTARAKHAND GROUP-C ( SAMUH 'G') - 4 September 2011
GROUP-code 5 (पद कोड 06,28,35,36,56,57,60) exam time (11.00 बजे से 1.00)
GROUP-code 8 (पद कोड़ 09,14,46) exam time (3.00 बजे से - 5.00)
Wednesday, 24 August 2011
Tuesday, 23 August 2011
Sunday, 21 August 2011
पहाड़ की बेटी ने झुका दिया आसमां
पेरिस में भारतीय फुटबाल टीम का नेतृत्व करेगी सोनम बर्लिन में हुई फुटबाल चैम्पियनशिप में धनाभाव के कारण नहीं ले सकी थी भाग प्रदेश के खेल विभाग की आर्थिक मदद की पेशकश ठुकराई
देहरादून -(-उत्तराखंड की बेटी सोनम नेगी शुक्रवार को भारतीय महिला फुटबाल टीम का नेतृत्व करने के लिए पेरिस रवाना हो गई। रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ प्रखंड के अंतर्गत ओरिंग गांव निवासी नारायण सिंह नेगी की 23 वर्षीय बेटी सोनम की इस उपलब्धि पर प्रदेश को नाज है। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी सोनम इस समय नागपुर के देशमुख शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय से एमपीएड की पढ़ाई कर रही है। रुद्रप्रयाग जिले के लिए गौरव की बात यह है कि यहां उसकी महाविद्यालय स्तर तक की पढ़ाई हुई। सोनम ने अगस्त्यमुनि के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई की। उस दौरान वह छात्र राजनीति में भी सक्रिय रही। बीते 26 जून से तीन जुलाई तक बर्लिन में हुई र्वल्ड डिस्कवर वूमैन फुटबाल चैम्पियनशिप में सोनम नेगी महज इसलिए भाग नहीं ले पाई थी, क्योंकि बर्लिन जाने के लिए 75 हजार रुपये का इंतजाम नहीं हो पाया था। तब उसे टीम सदस्य के रूप में शामिल होना था। सोनम को बर्लिन जाने के लिए कुल एक लाख 75 हजार रुपये की जरूरत थी। एक लाख रुपये महाराष्ट्र के एक एनजीओ ने देने की घोषणा की थी और बाकी 75 हजार रुपये सोनम को खुद जुटाने थे लेकिन धनराशि का इंतजाम न हो पाने के कारण उसकी हसरत तब अधूरी रह गई थी। पूर्व सांसद ले.जनरल टीपीएस रावत को इसका पता चला तो उन्होंने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण माना था। बाद में उन्होंने हंस फाउंडेशन के संस्थापक संत भोले जी महाराज से सोनम नेगी की मदद करने का आग्रह किया। विगत पांच अगस्त को सतपुली में आयोजित समारोह में हंस फाउंडेशन की ओर से माता मंगला देवी ने खुद अपने हाथों से सोनम नेगी की हौसलाअफजाई करते हुए उसे एक लाख रुपये का चेक प्रदान किया। ले. जनरल टीपीएस रावत ने भी सोनम नेगी का उत्साहवर्धन करते हुए कहा था कि पहाड़ की बेटी को मायूस नहीं होने दिया जाएगा। अभी हाल में प्रदेश के खेल विभाग की ओर से सोनम नेगी को आर्थिक सहायता की पेशकश की गई लेकिन स्वाभिमानी सोनम ने महज इसलिए ठुकरा दिया दिया कि उसकी जरूरत पूरी हो गई है। विगत 11 अगस्त को राज्य सरकार द्वारा आयोजित खेल प्रतिभाओं का अभिनंदन समारोह में भी सोनम नेगी शामिल नहीं हुई। बहरहाल सोनम नेगी पेरिस रवाना हो गई है, जहां वह नौवीं वि महिला फुटबाल चैम्पियनशिप में भारतीय टीम का नेतृत्व करेगी। यह चैम्पियनशिप 21 अगस्त से शुरू हो रही है।
देहरादून -(-उत्तराखंड की बेटी सोनम नेगी शुक्रवार को भारतीय महिला फुटबाल टीम का नेतृत्व करने के लिए पेरिस रवाना हो गई। रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ प्रखंड के अंतर्गत ओरिंग गांव निवासी नारायण सिंह नेगी की 23 वर्षीय बेटी सोनम की इस उपलब्धि पर प्रदेश को नाज है। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी सोनम इस समय नागपुर के देशमुख शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय से एमपीएड की पढ़ाई कर रही है। रुद्रप्रयाग जिले के लिए गौरव की बात यह है कि यहां उसकी महाविद्यालय स्तर तक की पढ़ाई हुई। सोनम ने अगस्त्यमुनि के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई की। उस दौरान वह छात्र राजनीति में भी सक्रिय रही। बीते 26 जून से तीन जुलाई तक बर्लिन में हुई र्वल्ड डिस्कवर वूमैन फुटबाल चैम्पियनशिप में सोनम नेगी महज इसलिए भाग नहीं ले पाई थी, क्योंकि बर्लिन जाने के लिए 75 हजार रुपये का इंतजाम नहीं हो पाया था। तब उसे टीम सदस्य के रूप में शामिल होना था। सोनम को बर्लिन जाने के लिए कुल एक लाख 75 हजार रुपये की जरूरत थी। एक लाख रुपये महाराष्ट्र के एक एनजीओ ने देने की घोषणा की थी और बाकी 75 हजार रुपये सोनम को खुद जुटाने थे लेकिन धनराशि का इंतजाम न हो पाने के कारण उसकी हसरत तब अधूरी रह गई थी। पूर्व सांसद ले.जनरल टीपीएस रावत को इसका पता चला तो उन्होंने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण माना था। बाद में उन्होंने हंस फाउंडेशन के संस्थापक संत भोले जी महाराज से सोनम नेगी की मदद करने का आग्रह किया। विगत पांच अगस्त को सतपुली में आयोजित समारोह में हंस फाउंडेशन की ओर से माता मंगला देवी ने खुद अपने हाथों से सोनम नेगी की हौसलाअफजाई करते हुए उसे एक लाख रुपये का चेक प्रदान किया। ले. जनरल टीपीएस रावत ने भी सोनम नेगी का उत्साहवर्धन करते हुए कहा था कि पहाड़ की बेटी को मायूस नहीं होने दिया जाएगा। अभी हाल में प्रदेश के खेल विभाग की ओर से सोनम नेगी को आर्थिक सहायता की पेशकश की गई लेकिन स्वाभिमानी सोनम ने महज इसलिए ठुकरा दिया दिया कि उसकी जरूरत पूरी हो गई है। विगत 11 अगस्त को राज्य सरकार द्वारा आयोजित खेल प्रतिभाओं का अभिनंदन समारोह में भी सोनम नेगी शामिल नहीं हुई। बहरहाल सोनम नेगी पेरिस रवाना हो गई है, जहां वह नौवीं वि महिला फुटबाल चैम्पियनशिप में भारतीय टीम का नेतृत्व करेगी। यह चैम्पियनशिप 21 अगस्त से शुरू हो रही है।
MPhil and PhD programmes through Distance education .अब मुक्त विवि से भी पीएचडी और एमफिल
देहरादून,- पीएचडी करने के इच्छुक राज्य के हजारों युवाओं का सपना अब उत्तराखंड मुक्त विवि व इग्नू सच करेंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने स्टैंडिंग कमेटी की सिफारिशों के बाद मुक्त विश्वविद्यालयों को पीएचडी व एमफिल संचालित करने की अनुमति प्रदान कर दी है। आयोग ने यूजीसी रेगुलेशन-09 के मानकों के पालन की शर्त पर यह अनिवार्यता प्रदान की है।
इस मामले में यूजीसी की आठ जुलाई को हुई बैठक में मुहर लग गई, इस फैसले से सभी मुक्त विश्वविद्यालयों को अवगत करा दिया गया है। अब यूओयू व इग्नू इसी सत्र से पंजीकरण शुरू करने की योजना बना रहे हैं। शोध का स्तर सुधारने के उद्देश्य से यूजीसी ने मिनिमम स्टैंडर्ड फॉर अवॉर्ड ऑफ पीएचडी-एमफिल रेगुलेशन-2009 लागू किया था। इसके कारण देशभर के मुक्त विश्वविद्यालयों से की जानी वाली पीएचडी व एमफिल पर रोक लगा दी गई थी। बीते माह यूजीसी की 479वीं बैठक में स्टैंडिंग कमेटी की सिफारिश पर गौर करते हुए यूजीसी ने दोबारा मुक्त विश्वविद्यालयों को पीएचडी व एमफिल संचालित करने की अनुमति प्रदान कर दी है। यह दोनों उपाधियां मुक्त विवि दूरस्थ शिक्षण माध्यम में शुरू कर पाएंगे। हालांकि इसके लिए यूजीसी ने सख्ती से यूजीसी रेगुलेशन-09 का पालन करने की शर्त भी रखी है। शोध कोर्सेज के लिए यूजीसी रेगुलेशन में 11 बिंदु तय किए गए हैं। आयोग ने कहा है कि पीएचडी व एमफिल में प्रवेश के लिए इन बिंदुओं का सख्ती से पालन किया जाए। साथ ही आयोग ने अपने फैसले में कहा कि पीएचडी व एमफिल संचालित करने के लिए मुक्त विश्वविद्यालयों को रेगुलेशन में दर्ज जरूरी ढांचा व सुविधाएं खुद विकसित करनी होगी।
साथ ही दूरस्थ माध्यम से पीएचडी के लिए मुख्य गाइड संबंधित विवि से ही होना चाहिए, हालांकि आयोग ने जरूरत के अनुसार बाहर के विवि से को-गाइड रखने की सुविधा दी है। मुक्त विश्वविद्यालयों को पीएचडी व एमफिल संचालित करने की अनुमति मिलने से राज्य के हजारों छात्रों का शोध करने का सपना सच हो सकेगा। एचएनबी गढ़वाल विवि के केंद्रीय विवि बनने के बाद अब तक केवल एक बार पीएचडी के लिए प्रवेश हो पाए हैं, हालांकि इन पर भी अब तक सुचारू रूप से काम शुरू नहीं हुआ है। वहीं अन्य विश्वविद्यालयों में शोध की तस्वीर बहुत बेहतर नहीं है। ऐसे में उत्तराखंड मुक्त विवि व इग्नू के माध्यम से शोध करना आसान होगा व इसके लिए दोनों विश्वविद्यालयों ने तैयारी भी शुरू कर दी है। प्रयास हैं कि इसी सत्र से पंजीकरण शुरू कर दिया जाए।
गढ़वाली-कुमाऊंनी को निजी विधेयक पेश
देहरादून,- गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज ने शुक्रवार को लोकसभा में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने संबंधी निजी विधेयक पेश किया।
सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि गढ़वाल क्षेत्र की प्राचीन भाषा वैदिकी थी। ऋषि-मुनियों ने इसी वैदिकी में संहिताएं लिखी हैं। करीब 500 ईसा पूर्व पणिनी ने इसका संस्कार किया और इसे व्याकरण के नियमों में बांधा। इसे वैदिक संस्कृति कहा गया। आगे चलकर वैदिक संस्कृत ने ही प्राकृत भाषा का रूप लिया। इसका प्रयोग कालिदास ने अपने नाटकों में किया। उन्होंने कहा कि द्वितीय प्राकृत भाषा के कई रूप शौरसेनी प्राकृत, पैशाची प्राकृत, महाराष्ट्री प्राकृत आदि बनीं। शौरसेनी अपभ्रंश से पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती एवं मध्यवर्ती पहाड़ी समूह की भाषाएं उत्पन्न हुई। इसी समूह में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं की उत्पत्ति हुई। इन्हीं के साथ पूर्वी पहाड़ी भाषा के रूप में नेपाली और पश्चिमी पहाड़ी के रूप में हिमाचली भाषा का जन्म हुआ। लौकिक संस्कृत पाली प्राकृत अपभ्रंश गढ़वाली के क्रम में गढ़वाली भाषा का विकास हुआ।
सांसद ने कहा कि पुराणों के अनुसाद स्वर और नाद का ज्ञान भगवान शिव के रुद्र रूप से देव ऋषि नारद को इसी देवभूमि में मिलने का वर्णन है। ढोलसागर में गुनीजन दास नाम औजी का बार-बार संबोधन होता है। जिसमें स्वर, ताल, लय, गमक का विस्तार से संवाद होता है। गुरु खेगदास का संबोधन आह्वान मंत्रोच्चारण में है। जागरों में अभीष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट निवारण के लिए देवता नाचने की प्रथा है। जागरों में ढोल दमौं, हुड़का, ढौंर, थाली वाद्य यंत्रों का विशेष महत्व है। उन्होंने उक्त दोनों लोक भाषाओं के पौराणिक-एतिहासिक महत्व को सामने रखा।
सांसद सतपाल महाराज ने कहा कि गढ़वाल क्षेत्र की प्राचीन भाषा वैदिकी थी। ऋषि-मुनियों ने इसी वैदिकी में संहिताएं लिखी हैं। करीब 500 ईसा पूर्व पणिनी ने इसका संस्कार किया और इसे व्याकरण के नियमों में बांधा। इसे वैदिक संस्कृति कहा गया। आगे चलकर वैदिक संस्कृत ने ही प्राकृत भाषा का रूप लिया। इसका प्रयोग कालिदास ने अपने नाटकों में किया। उन्होंने कहा कि द्वितीय प्राकृत भाषा के कई रूप शौरसेनी प्राकृत, पैशाची प्राकृत, महाराष्ट्री प्राकृत आदि बनीं। शौरसेनी अपभ्रंश से पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती एवं मध्यवर्ती पहाड़ी समूह की भाषाएं उत्पन्न हुई। इसी समूह में गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाओं की उत्पत्ति हुई। इन्हीं के साथ पूर्वी पहाड़ी भाषा के रूप में नेपाली और पश्चिमी पहाड़ी के रूप में हिमाचली भाषा का जन्म हुआ। लौकिक संस्कृत पाली प्राकृत अपभ्रंश गढ़वाली के क्रम में गढ़वाली भाषा का विकास हुआ।
सांसद ने कहा कि पुराणों के अनुसाद स्वर और नाद का ज्ञान भगवान शिव के रुद्र रूप से देव ऋषि नारद को इसी देवभूमि में मिलने का वर्णन है। ढोलसागर में गुनीजन दास नाम औजी का बार-बार संबोधन होता है। जिसमें स्वर, ताल, लय, गमक का विस्तार से संवाद होता है। गुरु खेगदास का संबोधन आह्वान मंत्रोच्चारण में है। जागरों में अभीष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट निवारण के लिए देवता नाचने की प्रथा है। जागरों में ढोल दमौं, हुड़का, ढौंर, थाली वाद्य यंत्रों का विशेष महत्व है। उन्होंने उक्त दोनों लोक भाषाओं के पौराणिक-एतिहासिक महत्व को सामने रखा।
Friday, 19 August 2011
सच हुआ वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का सपना
कोटद्वार आखिरकार कोटद्वार क्षेत्र की जनता पिछले कई वर्षो से देखा जा रहा सपना सच हो ही गया। पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का सपना भले
ही भरत नगर को जिला बनाने का रहा हो, लेकिन कोटद्वार को जिला घोषित कर प्रदेश सरकार ने भरतनगर के विकास की राह को आसान कर दिया है।
कोटद्वार क्षेत्र के जिला निर्माण की मांग सर्वप्रथम पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की ओर से उठी। हालांकि, स्व.गढ़वाली कोटद्वार से लगे घाड़ क्षेत्र में स्थित भरत नगर को जिला बनाने की मांग कर रहे थे। मकसद साफ था, जिला बनने के बाद न सिर्फ भरतनगर का विकास होता, बल्कि पूरे कोटद्वार क्षेत्र में विकास की नई किरण जगती। स्व.गढ़वाली के देहावसन के बाद जनता की मांग ठंडे बस्ते में पहुंच गई। अस्सी के दशक में अधिवक्ताओं व छात्रों ने एक बार फिर अलग जिले की मांग उठानी शुरू कर दी व इस मर्तबा मांग कोटद्वार को जिला बनाने की उठी। अस्सी के दशक से उठनी शुरू हुई यह मांग वर्ष 1997-98 में उस वक्त प्रबल हो गई, जब अधिवक्ताओं के साथ ही विभिन्न संगठनों से जुड़े लोगों ने तहसील परिसर में अनशन शुरू कर दिया। 68 दिनों तक चले इस अनशन कार्यक्रम का असर यह रहा कि उत्तर प्रदेश शासन ने इस अनशन की सुध लेते हुए तत्कालीन उपजिलाधिकारी कै.सुशील कुमार को कोटद्वार जिला का ब्लू प्रिंट तैयार करे के निर्देश दे दिए। शासन स्तर से जिले की घोषणा होती, इससे पूर्व ही उत्तराखंड राज्य का गठन हो गया।
राज्य गठन के बाद भी जिला निर्माण को लेकर आंदोलन जारी रहा व अधिवक्ताओं सहित विभिन्न संगठनों ने यहां तहसील परिसर में 56 दिनों का धरना दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से मिले आश्वासन के बाद आंदोलन समाप्त हो गया। वर्ष 2004 में छात्रों, अधिवक्ताओं सहित विभिन्न संगठनों ने अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद भी जिला निर्माण को लेकर लगातार जुलूस-प्रदर्शन, रैलियां आयोजित होती रही। पिछले करीब छह माह से अधिवक्ता भी जिला निर्माण की मांग को लेकर प्रत्येक शनिवार न्यायिक कार्यो से विरत रह रहे थे। आखिर जनप्रयास रंग लाए व प्रदेश के मुख्यमंत्री डा.रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कोटद्वार को नया जिला बनाने की घोषणा कर दी।
HNB BED ENTRENCE DATE 28 AUGUST .
मौसम की खराबी और रास्ते बंद होने के कारण HNB UNIVERSITY BED ENTRENCE सह्रश्वताह भर के
लिए स्थगित कर दी गई है। अब 21 अगस्त की बजाय यह परीक्षा 28 अगस्त को होगी।
लिए स्थगित कर दी गई है। अब 21 अगस्त की बजाय यह परीक्षा 28 अगस्त को होगी।
3600 पदों पर भर्ती जल्द
देहरादून, - समूह-ग के रिक्त पदों पर नियुक्तियों का इंतजार कर रहे बेरोजगार युवाओं के लिए खुशखबरी। 2300 पदों के लिए आवेदन कर चुके युवाओं को तकरीबन डेढ़ माह में 3600 पदों पर भाग्य आजमाने का मौका मिलेगा। चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। सरकार के सख्त निर्देशों के चलते प्राविधिक शिक्षा परिषद इसकी तैयारी में जुटा है। तमाम सरकारी महकमों में समूह-ग के रिक्त पदों पर भर्ती के लिए खुद सरकार को जमकर पसीना बहाना पड़ रहा है। मुख्य सचिव स्तर पर बार-बार मानीटरिंग के बाद नियमावली और कायदे-कानूनों का हवाला देते हुए भर्ती से हाथ खड़े करने वाले महकमों को आखिरकार हथियार डालने पड़े हैं। नतीजतन करीब 70 महकमे 5900 पदों पर भर्ती कराने को प्राविधिक शिक्षा परिषद में दस्तक दे चुके हैं। फिलहाल इनमें 2021 पदों के लिए आवेदन मंगाए जा चुके हैं, जबकि उत्तराखंड अधीनस्थ सिविल न्यायालय लिपिक संवर्गीय सेवा के रिक्त 279 पदों पर भर्ती को परीक्षा 28 अगस्त को होगी। 23 महकमों में रिक्त 2021 पदों की भर्ती परीक्षा के लिए परिषद को मशक्कत करनी पड़ रही है। दरअसल, उक्त पदों के लिए शैक्षिक योग्यता अलग होने के कारण विभागवार परीक्षा आयोजित की जाएगी। परीक्षार्थियों को 27 पेपर से जूझना पड़ेगा। इन पेपरों में तकरीबन 50 फीसदी सवाल तय शैक्षिक योग्यता के दायरे में पूछे जाने हैं। इन पेपरों के मुताबिक अलग-अलग परीक्षा तिथियां तय होंगी। इस पूरे तामझाम को देखते हुए परीक्षाएं अगले माह सितंबर के पहले हफ्ते से शुरू होकर तकरीबन नवंबर माह तक चलेंगी।
परिषद की रणनीति यह है कि बीच की इस अवधि में ही शेष 3600 रिक्त पदों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए। इस कड़ी में लिपिक और लेखाकार संवर्ग के 1315 पदों पर भर्ती आवेदन जल्द मांगे जाएंगे, जबकि इसके बाद वाहन चालकों के 215 पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी।
इसके बाद शेष दो हजार पदों पर नियुक्तियां होंगी। परिषद सचिव डा. मुकेश पांडेय के मुताबिक चुनाव आचार संहिता से पहले समूह-ग के उपलब्ध कराए गए सभी रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है।
यूटीईटी अब २७ को
रामनगर - मौसम की
खराबी और रास्ते बंद होने के
कारण उतराखंड अध्यापक पात्रता
परीक्षा (यूटीईटी) सह्रश्वताह भर के
लिए स्थगित कर दी गई है। अब
२१ अगस्त की बजाय यह परीक्षा
२७ अगस्त को होगी।
उत्तराखंड वानिकी एवं औद्यानिकी विश्र्वविद्यालय भरसार के पहले वीसी मैथ्यू (Uttarakhand's first VC forestry and horticulture Brsar University Matthew)
pahar1- उत्तराखंड वानिकी एवं औद्यानिकी विश्र्वविद्यालय भरसार, पौड़ी के पहले कुलपति प्रो. (डा.) मैथ्यू प्रसाद नियुक्त किए गए हैं। औद्यानिकी विशेषज्ञ डा. प्रसाद मूल रूप से दून (उत्तराखंड) के निवासी हैं।
कुलपति पद पर उनकी तैनाती तीन वर्ष के लिए की गई है। उन्होंने प्रदेश में वन उत्पादकता बढ़ाने और औद्यानिकी में रोजगार की नई संभावनाएं पैदा करने को अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में शुमार किया। प्रो. प्रसाद ने औद्यानिकी विशेषज्ञ के तौर विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं और वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट समेत विभिन्न संस्थानों में 30 वर्ष तक अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने आइआइटी खड़गपुर से फूड प्रोसेसिंग में पोस्ट ग्रेजुएट और डाक्टरेट की डिग्री लीं और इलाहाबाद विश्र्वविद्यालय से एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। दून में जन्मे प्रो. प्रसाद को उनके रिसर्च कार्यो के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होंने इस्राइल में वोलकानी रिसर्च इंस्टीट्यूट से पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलाजी में एडवांस ट्रेनिंग ली। 14 साल से अधिक समय तक उन्होंने जम्मू-कश्मीर कृषि विवि में औद्यानिकी पर कार्य किया।
वह ग्रीन बोनस के परिप्रेक्ष्य में वन उत्पादों की प्रोसेसिंग और मूल्य वृद्धि के गहन अध्येता रहे। प्रदेश सरकार ने डा मैथ्यू को भरसार विवि के कुलपति की कमान सौंपी है। गौरतलब है कि सरकार की ओर से विवि में कुलपति के साथ ही फाइनेंस कंट्रोलर और रजिस्ट्रार के पद सृजित किए गए हैं।
कुलपति पद पर उनकी तैनाती तीन वर्ष के लिए की गई है। उन्होंने प्रदेश में वन उत्पादकता बढ़ाने और औद्यानिकी में रोजगार की नई संभावनाएं पैदा करने को अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में शुमार किया। प्रो. प्रसाद ने औद्यानिकी विशेषज्ञ के तौर विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं और वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट समेत विभिन्न संस्थानों में 30 वर्ष तक अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने आइआइटी खड़गपुर से फूड प्रोसेसिंग में पोस्ट ग्रेजुएट और डाक्टरेट की डिग्री लीं और इलाहाबाद विश्र्वविद्यालय से एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। दून में जन्मे प्रो. प्रसाद को उनके रिसर्च कार्यो के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होंने इस्राइल में वोलकानी रिसर्च इंस्टीट्यूट से पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलाजी में एडवांस ट्रेनिंग ली। 14 साल से अधिक समय तक उन्होंने जम्मू-कश्मीर कृषि विवि में औद्यानिकी पर कार्य किया।
वह ग्रीन बोनस के परिप्रेक्ष्य में वन उत्पादों की प्रोसेसिंग और मूल्य वृद्धि के गहन अध्येता रहे। प्रदेश सरकार ने डा मैथ्यू को भरसार विवि के कुलपति की कमान सौंपी है। गौरतलब है कि सरकार की ओर से विवि में कुलपति के साथ ही फाइनेंस कंट्रोलर और रजिस्ट्रार के पद सृजित किए गए हैं।
Thursday, 18 August 2011
Wednesday, 17 August 2011
सैनिकों और पूर्व सैनिकों पर सरकार एक बार फिर मेहरबान
pahar1- सूबे के सैनिकों और पूर्व सैनिकों की बल्ले-बल्ले हो गई है। वे लग्जरी कारें भी खरीद सकेंगे। सरकार ने संशोधित आदेश जारी कर 12 लाख की राशि तक फोर व्हीलर खरीदने पर वैट माफ किया है। इससे पहले यह सीमा पांच लाख रुपये थी। टू व्हीलर के लिए भी यह सीमा 70 हजार से बढ़ाकर एक लाख रुपये की गई है।
सूबे के सैनिकों और पूर्व सैनिकों पर सरकार एक बार फिर मेहरबान हुई है। उन्हें कैंटीन से अब ज्यादा फोर व्हीलर और टू व्हीलर पर 13.5 फीसदी वैट से राहत रहेगी। साथ में वाहन खरीद सीमा भी बढ़ाई गई है। इससे सैनिक और पूर्व सैनिक अब एयर कंडीशन लग्जरी कारें खरीद सकेंगे। इसके लिए संशोधित शासनादेश जारी किया गया है। इसके मुताबिक अब खरीद सीमा पांच लाख से बढ़ाकर 12 लाख की गई है। कैंटीन से उक्त राशि तक फोर व्हीलर खरीद पर अब 13.5 फीसदी वैट नहीं लगेगा। वाहनों की संख्या भी बढ़ाई गई है। सालभर में 150 फोर व्हीलर खरीदे जा सकेंगे।
टू-व्हीलर खरीदने की मंशा रखने वालों को भी बड़ी राहत दी गई है। अब टू व्हीलर खरीदने की सीमा भी 70 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये की गई है। इस राशि तक 13.5 फीसदी वैट माफ रहेगा। टू व्हीलर भी सालभर में अब 350 के बजाए 750 तक खरीदे जा सकेंगे। यही नहीं एक अन्य शर्त पर भी सरकार ने ढील दी है। वाहन खरीदने के बाद दस साल तक उसकी बिक्री पर प्रतिबंध में ढील देते हुए यह सीमा घटाकर दो साल की गई है।
Tuesday, 16 August 2011
किसानों के करीब अपणु बाजार
देहरादून,-आंध्र प्रदेश का रायतू बाजार हो या कर्नाटक का रैयथात सैंथागलू, तमिलनाडु का उलूवार संथाई हो अथवा पंजाब की अपनी मंडी, मंशा सबकी यही है कि छोटी जोत वाले किसान लाभान्वित हों। साथ ही उपभोक्ताओं को उच्चगुणवत्ता वाले उत्पाद मिल सकें। चारों राज्यों में सफल इस कांसेप्ट को अब उत्तराखंड में भी अपनाया जा रहा है।
नाम दिया गया है अपणु बाजार। इसके जरिए किसान सीधे उपभोक्ताओं तक उत्पाद पहंुचा सकेंगे। सरकार का भी इसे अनुमोदन मिल गया है और इसकी शुरुआत होगी देहरादून जिले से।
लघु एवं सीमांत किसानों को उत्पाद का उचित लाभ न मिल पाना उत्तराखंड में भी एक बड़ी समस्या है। वजह, विपणन की व्यवस्था का अभाव। ऐसे में बडे़ किसान तो मंडियों तक उत्पाद ले जाते हैं, लेकिन छोटी जोत वाले कृषकों के लिए यह संभव नहीं हो पाता और बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर उत्पाद बेचना मजबूरी बन जाती है। कई मर्तबा तो उत्पाद खेतों में ही सड़ जाते हैं। इसको देखते हुए हाल ही में शासन ने एक दल को अध्ययन के लिए कर्नाटक व आंध्र प्रदेश भेजा। वहां से कांसेप्ट मिला तो अब इसे कुछ संशोधनों के साथ उत्तराखंड में भी लागू करने की योजना बनाई गई। अपणु बाजार को धरातल पर उतारने को सरकार ने हरी झंडी दे दी है। इसके तहत गांवों के नजदीकी कस्बों व शहरों में टिन शेड बनाकर बैठने को चबूतरे बनाए जाएंगे, जिनका किसानों के स्वयं सहायता समूहों को पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर आवंटन होगा। इससे विपणन की दिक्कत तो दूर होगी ही, लोगों को ताजी सब्जियां समेत अन्य उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पाद वाजिब दामों पर मिल सकेंगे।
उत्तराखंड में बनेंगे चार नये जिले
उत्तराखंड में नए ज़िले
मुख्मंत्री निशंक ने चार नए ज़ले बनाए जाने की घोषणा की
अब 17 ज़िले
निशंक की इस घोषणा के बाद अब उत्तराखंड में नये जिलों की संख्या 13 से बढ़कर 17 हो जायेगी. नये जिलों को कोटद्वार को पौड़ी से काटकर, यमुनोत्री को उत्तरकाशी से, डीडीहाट को पिथौरागढ और रानीखेत को अल्मोडा से काटकर बनाया जायेगा.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राज्य में चार नये जिलों के गठन की घोषणा की.साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नया कानून लाने का आश्वासन भी दिया.
आजादी की 65वीं वषर्गांठ पर स्थानीय परेड ग्राउंड में सोमवार को तिरंगा फहराने के बाद अपने उद्बोधन में निशंक ने कहा कि राज्य में यमुनोत्री, कोटद्वार, डीडीहाट तथा रानीखेत नाम से चार नए जिले बनाये जायेंगे ताकि प्रशासन का कार्य बेहतर और अधिक सुचारू रूप से हो सके.
निशंक ने कहा कि प्रशासनिक चुस्ती के लिये छोटी प्रशासनिक इकाइयां अधिक बेहतर होती हैं इससे इलाके का विकास होता है तथा प्रशासन तक लोगों की पहुंच आसान होती है.उन्होंने कहा कि नये जिले बनाने का कार्य यहीं खत्म नहीं होगा. ज़रूरत पड़ने पर और नये जिलों का गठन किया जा सकता है.मुख्यमंत्री निशंक ने कहा कि उनकी सरकार राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नया कानून बनायेगी. इसके लिये जल्द ही विधान सभा में विधेयक पेश किया जायेगा.
निशंक ने इस अवसर पर स्वतंत्रता सेनानियों के पेंशन को वर्तमान 6000 रूपये बढाकर 11 हजार एक सौ रूपये करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि राज्य के सभी लोगों का अटल स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत बीमा कराया जायेगा.
Sunday, 14 August 2011
टिहरी: आजादी को लडऩा पड़ा अपनों से
-अंग्रेजी हुकूमत तो थी ही, राजशाही के भी सहे जुल्म -अंग्रेजों व राजशाही के खिलाफ एक साथ लगते थे नारे -देश की आजादी के करीब पांच माह बाद आजाद हुआ था टिहरी , नई टिहरी: 15 अगस्त, भले ही देश भर में यह दिन आजादी के दिन के रूप में जाना जाता है, लेकिन गढ़वाल का टिहरी ऐसा इलाका है, जहां 15 अगस्त को आजादी का जश्न मनाने वाले लोगों को जेलों में ठूंसा जा रहा था। दरअसल, उस समय टिहरी रियासत हुआ करती थी। ऐसे में यहां अंग्रेजों के साथ राजसत्ता का भी प्रभाव था। इसके चलते यहां के बाशिंदों को आजादी के लिए दोहरी लड़ाई लडऩी पड़ी।
यही वजह है कि बाकी देश के करीब छह माह बाद टिहरी में आजादी की किरन पहुंच सकी। सर्वविदित है कि स्वतंत्रता के पूर्व देश सैकड़ों छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। इन्हीं में से एक थी टिहरी रियासत। यहां के बाशिंदे को एक ओर तो अंग्रेजी दासता की बेडिय़ों में जकड़े हुए थे, वहीं रियासत की ओर से लागू किए गए नियम, कायदे और प्रतिबंधों का पालन करने को भी वे मजबूर थे। यही वजह थी कि यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के साथ राजसत्ता से भी संघर्ष करना पड़ा। टिहरी के 244 लोग स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बाद टिहरी रिसासत के राजा ने अपना शासन जारी रखने की घोषणा की थी। इस दौरान जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने परिपूर्णानंद पैन्यूली के नेतृत्व में आजादी का जश्न मनाते हुए टिहरी बाजार में जुलूस निकाला, तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। दर्जनों सत्याग्रहियों को जेल में बंद करने से आम जनता का आक्रोश फूट पड़ा और राजशाही के खिलाफ आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। राजशाही के खात्मे के लिए दादा दौलतराम, नागेंद्र सकलानी, वीरेंद्र दत्त सकलानी व परिपूर्णानंद पैन्यूली ने नेतृत्व संभाला। सिंतबर-अक्टूबर 1947 में आंदोलनकारियों ने सकलाना क्षेत्र को आजाद घोषित कर पंचायत शासन स्थापित कर दिया। इसी बीच कीर्तिनगर के कड़ाकोट क्षेत्र में आंदोलन के नेता नागेंद्र सकलानी व मोलू भरदारी 11 जनवरी 1948 को राजशाही पुलिस की ओर से हुई गोलीबारी में शहीद हो गए, जबकि एक सत्याग्रही तेगा सिंह घायल हुए। इस गोली कांड के विरोध में पूरी रियासत (टिहरी-उत्तरकाशी) में अभूतपूर्व विद्रोह शुरू हो गया। टिहरी में हजारों लोग उमड़ पड़े, जनता ने पुलिस अधिकारियों को जेल में डाल दिया और राजा को टिहरी से खदेड़ दिया गया। इसके बाद 14 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत की आजादी की घोषणा की गई। इस प्रकार देश की आजादी के पूरे पांच माह बाद टिहरी के लोग आजाद हो पाए। उल्लेखनीय है कि टिहरी पर पंवार वंश के राजाओं का शासन सदियों से था। राजा के ऊपर पहले इस्ट इंडिया कंपनी और फिर सीधे तौर पर ब्रिटिश सरकार का हस्तक्षेप रहा। ब्रिटिश सरकार की इच्छा के बिना राजा कोई भी कदम नहीं उठाता था। यही वजह थी कि रियासत में अंग्रेजों के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को राजशाही दमनपूर्वक दबा देती थी। --------- एजेंसी चौक गवाह है अमानवीय प्रथा के अंत का -पौड़ी स्थित एजेंसी चौक में खत्म हुई थी कुली बेगार प्रथा -अंग्रेजी अधिकारी बरपाते थे भोली-भाली जनता पर कहर -बगैर मेहनताना जबर्दस्ती कराई जाती थी मजदूरी, विरोध पर मिलता था दंड पौड़ी: पौड़ी का एजेंसी चौक आज नगर के सुंदरतम चौराहों में गिना जाता है, लेकिन इसकी पहचान सिर्फ यही नहीं है। यह चौराहा खास ऐतिहासिक पहचान भी रखता है। वर्ष 1908 में यह चौराहा अंग्रेजी हुकूमत की एक अमानवीय प्रथा 'कुली-बेगार' के खात्मे का गवाह बना था। यहीं से जिले में आजादी की लड़ाई की शुरुआत भी हुई थी। मंडल मुख्यालय स्थित एजेंसी चौक पर वर्ष 1908 में अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी का अंत हुआ था। गढ़वाल में कुली बेगार प्रथा यहीं पर समाप्त हुई थी। तब यह स्थल गढ़वाल के कामगारों की शरण स्थली था। इस कारण इसे कुली चौक भी कहा जाता था। अंग्रेजों के शासनकाल में कुली बेगार प्रथा उन दिनों प्रचलित थी। इसके तहत अंग्रेज अफसरों की सेवा में कुलियों, मजदूरों को नि:शुल्क उपयोग में लाया जाता था। अंग्रेज अफसर लाव-लश्कर के साथ जब यहां भ्रमण पर आते थे, तो आवागमन के साधन न होने के कारण उनके सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोने का काम कूली करते थे। इसके लिए स्थानीय अधिकारी कुलियों की सूची बना लेते थे। खास बात यह कि इन कुलियों के ऊपर 'हुक्मरानों' की आवाभगत की जिम्मेदारी भी रहती थी, लेकिन कई दिन तक साथ रखने के बाद भी इन लोगों को कोई मेहनताना नहीं दिया जाता था। ऐसे में बेहद गरीब ये लोग दोहरे शोषण से दाने-दाने को मोहताज हो जाते थे। जब शोषण की इंतहा हो गई, तो जनता ने इस अमानवीय प्रथा का विरोध करना शुरू कर दिया। इसके चलते कई कुलियों को अंग्रेजों के अत्याचार भी सहने पड़े। वर्ष 1905 आते-आते इस प्रथा के विरोध में गढ़वाल में जगह-जगह छुटपुट आंदोलन होने लगे। इस समय तक देश के अन्य हिस्सों में भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। कुली बेगार प्रथा के खिलाफ लोगों के लामबंद होने और चिंगारी के भड़कने की आशंकाएं भांप वर्ष 1908 में पौड़ी के तत्कालीन तहसीलदार जोत सिंह नेगी ने अंग्रेजों को जनता के आक्रोश से वाकिफ कराया और इस प्रथा के खात्मे की पहल की। उन्होंने जनता के रुख को जिले के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर पीसी स्टोवल के सम्मुख रखा। इसके बाद 1908 में ही पौड़ी में कुली एजेंसी की स्थापना की गई। यहां जरूरतमंद लोग अपना पंजीकरण करवाते थे, बाद में अंग्रेज अफसर इन पंजीकृत लोगों की सेवाएं ही ले सकते थे। हालांकि, अंग्रेजों ने यहां भी दोहरी चाल चली और इस व्यवस्था को लागू करने के लिए आम लोगों पर अतिरिक्त टैक्स लगा दिया गया, लेकिन यह व्यवस्था भी अंग्रेजों के लिए मुसीबत का सबब बन गई। कुली ही आजादी में लड़ाई में कूद पड़े। धीरे-धीरे आग पूरे पहाड़ में फैल गई और अंग्रेजों को आखिरकार बेगार प्रथा को बंद करना पड़ा। ऐतिहासिक महत्व होने के बावजूद आज एजेंसी चौक शासन, प्रशासन और नगर पालिका परिषद की घोर उपेक्षा से वीरान पड़ा हुआ है। उप्र के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत की वर्षों पूर्व यहां स्थापित की गई आदमकद मूर्ति का आज तक अनावरण नहीं किया जा सका है। इसके अलावा यहां पार्क व लाइब्रेरी बनाने के प्रस्ताव भी कहीं फाइलों की धूल फांक रहे हैं।
यही वजह है कि बाकी देश के करीब छह माह बाद टिहरी में आजादी की किरन पहुंच सकी। सर्वविदित है कि स्वतंत्रता के पूर्व देश सैकड़ों छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। इन्हीं में से एक थी टिहरी रियासत। यहां के बाशिंदे को एक ओर तो अंग्रेजी दासता की बेडिय़ों में जकड़े हुए थे, वहीं रियासत की ओर से लागू किए गए नियम, कायदे और प्रतिबंधों का पालन करने को भी वे मजबूर थे। यही वजह थी कि यहां के लोगों को आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के साथ राजसत्ता से भी संघर्ष करना पड़ा। टिहरी के 244 लोग स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बाद टिहरी रिसासत के राजा ने अपना शासन जारी रखने की घोषणा की थी। इस दौरान जब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने परिपूर्णानंद पैन्यूली के नेतृत्व में आजादी का जश्न मनाते हुए टिहरी बाजार में जुलूस निकाला, तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। दर्जनों सत्याग्रहियों को जेल में बंद करने से आम जनता का आक्रोश फूट पड़ा और राजशाही के खिलाफ आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। राजशाही के खात्मे के लिए दादा दौलतराम, नागेंद्र सकलानी, वीरेंद्र दत्त सकलानी व परिपूर्णानंद पैन्यूली ने नेतृत्व संभाला। सिंतबर-अक्टूबर 1947 में आंदोलनकारियों ने सकलाना क्षेत्र को आजाद घोषित कर पंचायत शासन स्थापित कर दिया। इसी बीच कीर्तिनगर के कड़ाकोट क्षेत्र में आंदोलन के नेता नागेंद्र सकलानी व मोलू भरदारी 11 जनवरी 1948 को राजशाही पुलिस की ओर से हुई गोलीबारी में शहीद हो गए, जबकि एक सत्याग्रही तेगा सिंह घायल हुए। इस गोली कांड के विरोध में पूरी रियासत (टिहरी-उत्तरकाशी) में अभूतपूर्व विद्रोह शुरू हो गया। टिहरी में हजारों लोग उमड़ पड़े, जनता ने पुलिस अधिकारियों को जेल में डाल दिया और राजा को टिहरी से खदेड़ दिया गया। इसके बाद 14 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत की आजादी की घोषणा की गई। इस प्रकार देश की आजादी के पूरे पांच माह बाद टिहरी के लोग आजाद हो पाए। उल्लेखनीय है कि टिहरी पर पंवार वंश के राजाओं का शासन सदियों से था। राजा के ऊपर पहले इस्ट इंडिया कंपनी और फिर सीधे तौर पर ब्रिटिश सरकार का हस्तक्षेप रहा। ब्रिटिश सरकार की इच्छा के बिना राजा कोई भी कदम नहीं उठाता था। यही वजह थी कि रियासत में अंग्रेजों के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को राजशाही दमनपूर्वक दबा देती थी। --------- एजेंसी चौक गवाह है अमानवीय प्रथा के अंत का -पौड़ी स्थित एजेंसी चौक में खत्म हुई थी कुली बेगार प्रथा -अंग्रेजी अधिकारी बरपाते थे भोली-भाली जनता पर कहर -बगैर मेहनताना जबर्दस्ती कराई जाती थी मजदूरी, विरोध पर मिलता था दंड पौड़ी: पौड़ी का एजेंसी चौक आज नगर के सुंदरतम चौराहों में गिना जाता है, लेकिन इसकी पहचान सिर्फ यही नहीं है। यह चौराहा खास ऐतिहासिक पहचान भी रखता है। वर्ष 1908 में यह चौराहा अंग्रेजी हुकूमत की एक अमानवीय प्रथा 'कुली-बेगार' के खात्मे का गवाह बना था। यहीं से जिले में आजादी की लड़ाई की शुरुआत भी हुई थी। मंडल मुख्यालय स्थित एजेंसी चौक पर वर्ष 1908 में अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी का अंत हुआ था। गढ़वाल में कुली बेगार प्रथा यहीं पर समाप्त हुई थी। तब यह स्थल गढ़वाल के कामगारों की शरण स्थली था। इस कारण इसे कुली चौक भी कहा जाता था। अंग्रेजों के शासनकाल में कुली बेगार प्रथा उन दिनों प्रचलित थी। इसके तहत अंग्रेज अफसरों की सेवा में कुलियों, मजदूरों को नि:शुल्क उपयोग में लाया जाता था। अंग्रेज अफसर लाव-लश्कर के साथ जब यहां भ्रमण पर आते थे, तो आवागमन के साधन न होने के कारण उनके सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोने का काम कूली करते थे। इसके लिए स्थानीय अधिकारी कुलियों की सूची बना लेते थे। खास बात यह कि इन कुलियों के ऊपर 'हुक्मरानों' की आवाभगत की जिम्मेदारी भी रहती थी, लेकिन कई दिन तक साथ रखने के बाद भी इन लोगों को कोई मेहनताना नहीं दिया जाता था। ऐसे में बेहद गरीब ये लोग दोहरे शोषण से दाने-दाने को मोहताज हो जाते थे। जब शोषण की इंतहा हो गई, तो जनता ने इस अमानवीय प्रथा का विरोध करना शुरू कर दिया। इसके चलते कई कुलियों को अंग्रेजों के अत्याचार भी सहने पड़े। वर्ष 1905 आते-आते इस प्रथा के विरोध में गढ़वाल में जगह-जगह छुटपुट आंदोलन होने लगे। इस समय तक देश के अन्य हिस्सों में भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। कुली बेगार प्रथा के खिलाफ लोगों के लामबंद होने और चिंगारी के भड़कने की आशंकाएं भांप वर्ष 1908 में पौड़ी के तत्कालीन तहसीलदार जोत सिंह नेगी ने अंग्रेजों को जनता के आक्रोश से वाकिफ कराया और इस प्रथा के खात्मे की पहल की। उन्होंने जनता के रुख को जिले के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर पीसी स्टोवल के सम्मुख रखा। इसके बाद 1908 में ही पौड़ी में कुली एजेंसी की स्थापना की गई। यहां जरूरतमंद लोग अपना पंजीकरण करवाते थे, बाद में अंग्रेज अफसर इन पंजीकृत लोगों की सेवाएं ही ले सकते थे। हालांकि, अंग्रेजों ने यहां भी दोहरी चाल चली और इस व्यवस्था को लागू करने के लिए आम लोगों पर अतिरिक्त टैक्स लगा दिया गया, लेकिन यह व्यवस्था भी अंग्रेजों के लिए मुसीबत का सबब बन गई। कुली ही आजादी में लड़ाई में कूद पड़े। धीरे-धीरे आग पूरे पहाड़ में फैल गई और अंग्रेजों को आखिरकार बेगार प्रथा को बंद करना पड़ा। ऐतिहासिक महत्व होने के बावजूद आज एजेंसी चौक शासन, प्रशासन और नगर पालिका परिषद की घोर उपेक्षा से वीरान पड़ा हुआ है। उप्र के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत की वर्षों पूर्व यहां स्थापित की गई आदमकद मूर्ति का आज तक अनावरण नहीं किया जा सका है। इसके अलावा यहां पार्क व लाइब्रेरी बनाने के प्रस्ताव भी कहीं फाइलों की धूल फांक रहे हैं।
देवीधुरा में आस्था के संग पत्थरों की जंग
रामनगर। परम्पराओं और संस्कृति के धनी उत्तराखंड में पत्थर युद्ध ‘बग्वाल’ अपनी अलग विशेषता रखता है। दलों में बंटे लोगों के बीच आपस में पत्थर से खूनी संघर्ष का यह खेल आज के युग में पूरे वि के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। इसके कारण इस दिन देश ही नहीं विदेशों से लोग इस खेल को देखने के लिए खिंचे आते हैं।
आकषर्ण का केंद्र बने बग्वाल में पूर्व में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए नरबलि देने की परम्परा थी। रक्षाबंधन के दिन कुमाऊं मंडल के चंपावत जिले में समुद्र सतह से करीब 7000 फुट की ऊंचाई पर लोहाघाट से 45 किमी. दूर पर मां बाराही धाम देवीधुरा में हर साल आयोजित होने वाला पत्थर युद्ध ‘बग्वाल’ अपने आप में अनेक धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक गाथाओं को संजोये हुए है। बाराही मंदिर में देवी पूजन के बाद मंदिर प्रांगण में ही आसपास के अनेक गांवों से आये लोगों की भीड़ चार समूहों में बंटकर एकदू सरे समूह पर पत्थर बरसाते हैं, जिसे बग्वाल कहा जाता है। इस दौरान पत्थर की मार से बचने के लिए घास व पत्ते से बने हुए बड़े-बड़े ‘छत्यूरों’
का प्रयोग किया जाता है। बाद में मैदान में एक व्यक्ति के बराबर रक्त बह जाने पर मंदिर का पुजारी संकेत करता है। इसके बाद युद्ध समाप्त करके सभी लोग एकदू सरे के गले मिलते हैं। मान्यता है कि पूर्व में कि चम्याल खाल, वालिंग खाम, गहड़वाल खाम व लमगड़िया खाम के लोगों में से प्रति वर्ष एक व्यक्ति की बलि देवी को प्रसन्न करने के लिए दी जाती थी। एक बार चम्याल खाम की वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बारी आई तो वृद्धा ने देवी मां बाराही की तपस्या कर नरबलि का विकल्प मांगा था, जिसमें तय किया गया कि चारों खाम के लोग अपने-अपने दल बनाकर आपस में युद्ध करें और जब इस युद्ध के दौरान मैदान में एक व्यक्ति के बराबर रक्त बह जाए तो उसे देवी मां की बलि मानकर युद्ध समाप्त कर दिया जाए। बस यहीं से नरबलि के स्थान पर देवीधूरा के प्रसिद्ध पत्थर युद्ध बग्वाल का जन्म हुआ जो आज मिसाइल युग में लिए शेष वि के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। देवीधूरा के इस प्रसिद्ध मेले में बकरों व भैंसों की अठवार बलि की परम्परा भी कायम है। पशु प्रेमी संस्थाओं के विरोध के चलते बलि की प्रथा में कमी आयी है। साथ ही जागरूकता के चलते अब बलि को प्रतीकात्मक रूप देने के सुर भी उठने लगे हैं। अठवार की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दूसरे दिन देवी मां का डोला उठने के तीन दिन तक यह मेला चलता है। मां का डोला उठने की प्रक्रिया भी अलग है। सदैव आवरण में ढकी मां की प्रतिमा को संदूक में रखा जाता है। श्रावण पूर्णिमा को पुजारी अंधेरे में वस्त्रों में लपेटकर बक्से से बाहर निकालते हैं और आंखों पर पट्टी बांधकर प्रतिमा को स्नान कराने के बाद डोले को मचवाल नामक स्थान पर ले जाकर वापस उसी संदूक मे रखा जाता है। वस्त्रों से आवृत प्रतिमा कैसी है कोई नहीं जानता। कहा जाता है कि प्रतिमा को निर्वस्त्र देखने वाला व्यक्ति अंधा हो जाएगा। मां बाराही देवी के 1500 हजार वर्ष पुराने मंदिर के आस-पास कणाम के विशालकाय शिलाखंडों का यह समग्र क्षेत्र महापाषाणकालीन अवशेषों को भी अपने गर्भ में समेटे हुये है जिस कारण मंदिर व पत्थरमार की इस परम्परा को कुछ लोग पाषाणयुगीन सभ्यता का चिह्न भी मानते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके अस्तित्व की संकल्पना आज भी शोधकर्ताओं के लिए चुनौती बनी हुई है।
बग्वाल पर विशेष आज होगी रोमांचक ‘स्टोन फाइट’ लोहाघाट के मां बाराही धाम देवीधुरा मंदिर में रक्षाबंधन को लगता है मेला
आकषर्ण का केंद्र बने बग्वाल में पूर्व में देवी मां को प्रसन्न करने के लिए नरबलि देने की परम्परा थी। रक्षाबंधन के दिन कुमाऊं मंडल के चंपावत जिले में समुद्र सतह से करीब 7000 फुट की ऊंचाई पर लोहाघाट से 45 किमी. दूर पर मां बाराही धाम देवीधुरा में हर साल आयोजित होने वाला पत्थर युद्ध ‘बग्वाल’ अपने आप में अनेक धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक गाथाओं को संजोये हुए है। बाराही मंदिर में देवी पूजन के बाद मंदिर प्रांगण में ही आसपास के अनेक गांवों से आये लोगों की भीड़ चार समूहों में बंटकर एकदू सरे समूह पर पत्थर बरसाते हैं, जिसे बग्वाल कहा जाता है। इस दौरान पत्थर की मार से बचने के लिए घास व पत्ते से बने हुए बड़े-बड़े ‘छत्यूरों’
का प्रयोग किया जाता है। बाद में मैदान में एक व्यक्ति के बराबर रक्त बह जाने पर मंदिर का पुजारी संकेत करता है। इसके बाद युद्ध समाप्त करके सभी लोग एकदू सरे के गले मिलते हैं। मान्यता है कि पूर्व में कि चम्याल खाल, वालिंग खाम, गहड़वाल खाम व लमगड़िया खाम के लोगों में से प्रति वर्ष एक व्यक्ति की बलि देवी को प्रसन्न करने के लिए दी जाती थी। एक बार चम्याल खाम की वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बारी आई तो वृद्धा ने देवी मां बाराही की तपस्या कर नरबलि का विकल्प मांगा था, जिसमें तय किया गया कि चारों खाम के लोग अपने-अपने दल बनाकर आपस में युद्ध करें और जब इस युद्ध के दौरान मैदान में एक व्यक्ति के बराबर रक्त बह जाए तो उसे देवी मां की बलि मानकर युद्ध समाप्त कर दिया जाए। बस यहीं से नरबलि के स्थान पर देवीधूरा के प्रसिद्ध पत्थर युद्ध बग्वाल का जन्म हुआ जो आज मिसाइल युग में लिए शेष वि के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। देवीधूरा के इस प्रसिद्ध मेले में बकरों व भैंसों की अठवार बलि की परम्परा भी कायम है। पशु प्रेमी संस्थाओं के विरोध के चलते बलि की प्रथा में कमी आयी है। साथ ही जागरूकता के चलते अब बलि को प्रतीकात्मक रूप देने के सुर भी उठने लगे हैं। अठवार की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दूसरे दिन देवी मां का डोला उठने के तीन दिन तक यह मेला चलता है। मां का डोला उठने की प्रक्रिया भी अलग है। सदैव आवरण में ढकी मां की प्रतिमा को संदूक में रखा जाता है। श्रावण पूर्णिमा को पुजारी अंधेरे में वस्त्रों में लपेटकर बक्से से बाहर निकालते हैं और आंखों पर पट्टी बांधकर प्रतिमा को स्नान कराने के बाद डोले को मचवाल नामक स्थान पर ले जाकर वापस उसी संदूक मे रखा जाता है। वस्त्रों से आवृत प्रतिमा कैसी है कोई नहीं जानता। कहा जाता है कि प्रतिमा को निर्वस्त्र देखने वाला व्यक्ति अंधा हो जाएगा। मां बाराही देवी के 1500 हजार वर्ष पुराने मंदिर के आस-पास कणाम के विशालकाय शिलाखंडों का यह समग्र क्षेत्र महापाषाणकालीन अवशेषों को भी अपने गर्भ में समेटे हुये है जिस कारण मंदिर व पत्थरमार की इस परम्परा को कुछ लोग पाषाणयुगीन सभ्यता का चिह्न भी मानते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके अस्तित्व की संकल्पना आज भी शोधकर्ताओं के लिए चुनौती बनी हुई है।
बग्वाल पर विशेष आज होगी रोमांचक ‘स्टोन फाइट’ लोहाघाट के मां बाराही धाम देवीधुरा मंदिर में रक्षाबंधन को लगता है मेला
Friday, 12 August 2011
मूल और स्थायी निवास प्रमाण पत्र पर चढ़ा पारा
देहरादून, प्रमुख संवाददाता। मूल निवास और स्थायी निवास प्रमाण पत्र को लेकर सियासी पारा चढ़ने लगा है। उक्रांद(पंवार गुट) इस मुद्दे पर सोमवार से विधानसभा पर धरना शुरू करने जा रहा है।
तर्क यह है कि सरकारी सेवाओं और अन्य सुविधाओं में यदि मूल निवास प्रमाण के स्थान पर स्थायी प्रमाण पत्र को तरजीह दी जाने लगेगी तो फिर पहाड़ के मूल लोगों के हित सीधे-सीधे प्रभावित होंगे।
उक्रांद-पंवार के कार्यकारी अध्यक्ष एपी जुयाल के मुताबिक, इस मुद्दे पर जिस प्रकार सरकार ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है, उसे जल्द से जल्द साफ किया जाना चाहिए।मालूम हो कि, राज्य के गठन से पहले पर्वतीय जिलों के लोगों के लिए विभिन्न सेवाओं में मूल निवास प्रमाण पत्र ही अनिवार्य होता था। राज्य गठन के बाद मैदानी जिलों के भी राज्य में शामिल होने से पूरे प्रदेश के लोगों को लाभ देने केलिए स्थायी प्रमाण पत्र की व्यवस्था की गई।
इसके लिए पंद्रह साल से राज्य में स्थायी निवास होना अहम शर्त है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य के गठन के बाद सभी नागरिकों को समान रूप से सुविधाए देने की मंशा से स्थायी प्रमाण पत्र को भी मजबूत करने पर विचार किया जा रहा है। इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है।दूसरी तरफ, उक्रांद का कहना है कि, मूल निवास प्रमाण की जगह स्थायी निवास प्रमाण को प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है। यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। इसका विरोध किया जाएगा। जुयाल के मुताबिक, यदि सरकार वस्तुस्थिति स्पष्ट नहीं करती तो सोमवार से विधानसभा के समक्ष धरना शुरू कर दिया जाएगा। यदि इस व्यवस्था को लागू किया गया तो प्रदेश स्तर पर विरोध किया जाएगा।
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तर्क यह है कि सरकारी सेवाओं और अन्य सुविधाओं में यदि मूल निवास प्रमाण के स्थान पर स्थायी प्रमाण पत्र को तरजीह दी जाने लगेगी तो फिर पहाड़ के मूल लोगों के हित सीधे-सीधे प्रभावित होंगे।
उक्रांद-पंवार के कार्यकारी अध्यक्ष एपी जुयाल के मुताबिक, इस मुद्दे पर जिस प्रकार सरकार ने भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है, उसे जल्द से जल्द साफ किया जाना चाहिए।मालूम हो कि, राज्य के गठन से पहले पर्वतीय जिलों के लोगों के लिए विभिन्न सेवाओं में मूल निवास प्रमाण पत्र ही अनिवार्य होता था। राज्य गठन के बाद मैदानी जिलों के भी राज्य में शामिल होने से पूरे प्रदेश के लोगों को लाभ देने केलिए स्थायी प्रमाण पत्र की व्यवस्था की गई।
इसके लिए पंद्रह साल से राज्य में स्थायी निवास होना अहम शर्त है। सूत्रों के मुताबिक, राज्य के गठन के बाद सभी नागरिकों को समान रूप से सुविधाए देने की मंशा से स्थायी प्रमाण पत्र को भी मजबूत करने पर विचार किया जा रहा है। इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं है।दूसरी तरफ, उक्रांद का कहना है कि, मूल निवास प्रमाण की जगह स्थायी निवास प्रमाण को प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है। यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। इसका विरोध किया जाएगा। जुयाल के मुताबिक, यदि सरकार वस्तुस्थिति स्पष्ट नहीं करती तो सोमवार से विधानसभा के समक्ष धरना शुरू कर दिया जाएगा। यदि इस व्यवस्था को लागू किया गया तो प्रदेश स्तर पर विरोध किया जाएगा।
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ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन का सर्वे शुरू
देहरादून। - ऋषिकेश-कर्णप्रयाग तक रेलगाड़ी से सफर करने का ख्वाब धरातल पर साकार होने की उम्मीद और मजबूत हुई है। रेल मंत्रालय ने उत्तराखंड के इस महत्वाकांक्षी रेल प्रोजेक्ट की खातिर भू विज्ञान-तकनीकि जांच और रेलवे लाइन के लिए स्थान के चयन के लिए सर्वेक्षण शुरू कर दिया है।
इस प्रोजेक्ट को वर्ष 2010-11 के बजट में शामिल किया जा चुका है।
रेलवे लाइन का निर्माण भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट और भूमि की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। राज्यसभा में सांसद भगत सिंह कोश्यारी के सवाल के जवाब में केंद्रीय रेल राज्य मंत्री भरत सिंह सोलंकी ने यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग के साथ ही टनकपुर-बागेश्वर रेल प्रोजेक्ट का सर्वे भी पूरा किया जा चुका है, लेकिन स्वीकृति अभी केवल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग को ही मिली है। 4295.30 करोड़ रुपये की प्रत्याशित लागत पर इसे बजट में शामिल किया जा चुका है।
रेल राज्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग मार्ग पर निर्माण तभी शुरू हो पाएगा, जब भू-वैज्ञानिक व स्थल चयन की प्रारंभिक गतिविधियां पूरी हो जाएगी और इसका विस्तृत अनुमान की स्वीकृति मिल जाएगी।
कोश्यारी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से हिमाचल, उत्तराखंड, अरुणाच, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम के सीमावर्ती क्षेत्रों में रेल नेटवर्क विकसित करने की जरूरत पर बल दिया। कोश्यारी ने कहा कि, जिस प्रकार चीन की गतिविधियां सीमावर्ती इलाकों में बढ़ती जा रही है, इस लिहाज से रेल नेटवर्क का विकास त्वरित गति से किया जाना ही उचित होगा।
राष्ट्रीय परियोजना घोषित हों रेल प्रोजेक्ट
सासद भगत सिंह कोश्यारी ने जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर रेल परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर निर्माण करने की जरूरत जाहिर की। रेल राज्यमंत्री की ओर से रेलवे प्रोजेक्ट की समय सीमा पर टिप्पणी न करने से असंतुष्ट कोश्यारी ने कहा कि राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर ही इन प्रोजेक्ट को बनाया जा सकता है। इस विषय की राज्य सभा की याचिका समिति में सुनवाई चल रही है।
इस प्रोजेक्ट को वर्ष 2010-11 के बजट में शामिल किया जा चुका है।
रेलवे लाइन का निर्माण भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट और भूमि की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। राज्यसभा में सांसद भगत सिंह कोश्यारी के सवाल के जवाब में केंद्रीय रेल राज्य मंत्री भरत सिंह सोलंकी ने यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग के साथ ही टनकपुर-बागेश्वर रेल प्रोजेक्ट का सर्वे भी पूरा किया जा चुका है, लेकिन स्वीकृति अभी केवल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग को ही मिली है। 4295.30 करोड़ रुपये की प्रत्याशित लागत पर इसे बजट में शामिल किया जा चुका है।
रेल राज्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग मार्ग पर निर्माण तभी शुरू हो पाएगा, जब भू-वैज्ञानिक व स्थल चयन की प्रारंभिक गतिविधियां पूरी हो जाएगी और इसका विस्तृत अनुमान की स्वीकृति मिल जाएगी।
कोश्यारी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से हिमाचल, उत्तराखंड, अरुणाच, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम के सीमावर्ती क्षेत्रों में रेल नेटवर्क विकसित करने की जरूरत पर बल दिया। कोश्यारी ने कहा कि, जिस प्रकार चीन की गतिविधियां सीमावर्ती इलाकों में बढ़ती जा रही है, इस लिहाज से रेल नेटवर्क का विकास त्वरित गति से किया जाना ही उचित होगा।
राष्ट्रीय परियोजना घोषित हों रेल प्रोजेक्ट
सासद भगत सिंह कोश्यारी ने जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर रेल परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर निर्माण करने की जरूरत जाहिर की। रेल राज्यमंत्री की ओर से रेलवे प्रोजेक्ट की समय सीमा पर टिप्पणी न करने से असंतुष्ट कोश्यारी ने कहा कि राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर ही इन प्रोजेक्ट को बनाया जा सकता है। इस विषय की राज्य सभा की याचिका समिति में सुनवाई चल रही है।
फुटबाल होगा उत्तराखंड का राज्य खेल
उत्तराखंड में खेलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने कई बडे़ कदम उठाते हुए फुटबाल को राज्य का प्रतीक खेल बनाने का फैसला किया है। साथ ही उत्कृष्ट खिलाडियों को खेल रत्न पुरस्कार तथा प्रशिक्षणों के लिए द्रोणाचार्य पुरस्कारों की भी शुरूआत की जाएगी।
पर्यटन एवं खेल सचिव राकेश शर्मा ने बताया कि प्रत्येक राज्य का अपना खेल होता है। जिसे राज्य के खेल के रूप में मान्यता दी जाती है। क्योंकि उत्तराखंड में फुटबाल अधिक खेला जाता है इसलिए इस खेल को राज्य के खेल के रूप में मान्यता देने का निर्णय किया गया है।
खेल मंत्री खजान दास की अध्यक्षता में संपन्न हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार राज्य में अच्छे खिलाडियों तथा उत्कृष्ट प्रदर्शन कर राज्य का नाम रोशन करने वाले खिलाडियों एवं प्रशिक्षकों को उत्तराखंड खेल रत्न तथा उत्तराखंड द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इसके लिए क्रमश पांच एवं तीन लाख रूपए नकद प्रदान किए जाएंगे।
खजान दास ने बताया कि राज्य में पचास करोड़ की लागत से लगभग 25 एकड़ में अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम भी बनाया जाएगा जिसके लिए भूमि को चिन्हित भी कर लिया गया है।
उन्होंने बताया कि राज्य में क्रिकेट संघ का भी गठन करने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए विभिन्न क्रिकेट संघो को मिलाकर एक संघ बनाया जाएगा जो बीसीसीआई से तालमेल बनाकर उत्तराखंड राज्य संघ की मान्यता के लिए कदम उठाएगा। मुख्यमंत्री संघ के पदेन संरक्षक एवं खेल मंत्री पदेन अध्यक्ष होंगे।
इसके अलावा प्रतिभावान खिलाडि़यों को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए नकद सहायता राशि भी उपलब्ध कराने का फैसला किया है।
Thursday, 11 August 2011
दून, अल्मोड़ा में बनेंगे गढ़वाली व कुमाऊंनी साहित्य के संग्रहालय
देहरादून- सरकार गढ़वाली व कुमाऊंनी साहित्य के संरक्षण के लिए दो संग्रहालय बनाएगी। गढ़वाली साहित्य के संरक्षण का केंद्र देहरादून व कुमाऊंनी साहित्य के लिए अल्मोड़ा में केंद्र स्थापित किया जाएगा।
इसके अलावा भाषा विकास समितियों का गठन किया जाएगा। मंगलवार को सिंचाई, समाज कल्याण व भाषा विभाग के मंत्री मातबर सिंह कंडारी की अध्यक्षता में विधानसभा में बैठक आहूत की गई। बैठक में कुमाऊंनी व गढ़वाली भाषा के विकास से जुड़े तमाम मुद्दों पर विस्तृत बातचीत हुई। विभागीय मंत्री कंडारी ने कहा कि गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषा के विकास के लिए सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है। दोनों भाषाओं के मानकीकरण की दिशा में ठोस पहल की जाए। इन बोलियों को बोलने वालों के बीच सव्रेक्षण कर इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के प्रयास किए जाएं। उन्होेंने कहा कि दोनों भाषाओं के साहित्य सरंक्षण के लिए संग्रहालय बनाया जाना जरूरी है। गढ़वाली भाषा का केंद्र देहरादून व कुमाऊंनी भाषा का केंद्र अल्मोड़ा स्थापित किया जाएगा। कंडारी ने निदेशक भाषा डा. सविता मोहन को निर्देश दिए कि प्रत्येक जनपद में गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषा के विकास के लिए समितियों का गठन कर भाषा के जानकारों की एक सूची बनायी जाए। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी ने इन दोनों भाषाओं को मान्यता दे दी है। इसी क्रम में राज्य स्तर पर भी प्रस्ताव बनाया जाए। जौनपुरी, जौनसारी, भोटिया, मलारी आदि भाषाओं के जानकारों को भी चर्चा में शामिल किया जाए। दोनों भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रस्ताव तैयार किया जाए और प्रस्ताव बनाने के लिए विद्वानों की बैठक में आमंत्रित किया जाए। इस मौके पर निर्णय लिया गया कि कुमाऊंनी भाषा के विकास के लिए 18 अगस्त को अल्मोड़ा में भाषा मंत्री की अध्यक्षता में बैठक आहूत की गई है। भाषा विकास समितियों का गठन होगा भाषा के जानकारों की सूची बनायी जाएगी
बच्ची को गोद लेने की अनुमति दी कोर्ट ने
नए कानून के तहत प्रदेश की राजधानी में पहला फैसला
देहरादून -। गोद लेने के नए कानून के तहत देहरादून की अदालत ने पहला फैसला दिया है। कोर्ट ने दिल्ली की दंपती को बच्ची गोद लेने की अनुमति दे दी है। राजकीय शिशु सदन की तरफ से इस मामले में आवेदन किया गया था। राज्य में अन्य गैरसरकारी शिशु सदन है, मगर सरकारी महकमे के मामले में देहरादून का यह पहला मामला है।
वकील पृथ्वी सिंह नेगी ने बताया कि देहरादून के राजकीय शिशु सदन बनाम रवि शर्मा मामले में अपर जिला जज केके शुक्ला की अदालत ने सोमवार को इसकी अनुमति प्रदान की। राजकीय शिशु सदन की तरफ से अधीक्षिका अंजना गुप्ता ने कोर्ट में आवेदन किया गया था। अधीक्षिका ने कोर्ट को बताया कि उत्तराखंड शासन के आदेश के मुताबिक उनकी संस्था को दत्तक ग्रहण के लिए मान्यता दी गई है। उक्त संस्था ने बच्चे को गोद देने के मामले में सभी औपचारिकता पूरी की हैं। बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन करने वाले रवि शर्मा व उनकी पत्नी सोनू शर्मा की पूरी जांच की गई है। दोनों के मेडिकल, शैक्षिक, आर्थिक तथा नैतिक स्थिति की जांच की गई है। इस मामले में दैनिक समाचार पत्र में विज्ञापन भी दिया गया था। दिल्ली निवासी रवि शर्मा व उनकी पत्नी ने बच्ची को गोद लेने का आवेदन किया। रवि शर्मा व बच्ची की उम्र में 21 साल से ज्यादा का फर्क है। इसलिए भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के मुताबिक आवेदक मापदंड को पूरा करता है। इसके बाद अर्पिता उर्फ आरोही को कोर्ट ने रवि शर्मा व उनकी पत्नी को सौंपने की अनुमति दे दी। फैसले में कहा गया है कि गोद लेने वाले दंपति को अगर भविष्य में कोई और संतान पैदा होती है तो बच्ची के कानूनी अधिकारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। आवेदन करने वाले दंपति को बेटा है, मगर उनकी कोई बेटी नहीं है। इसके चलते उसने बेटी गोद लेने के लिए आवेदन किया है।
केंद्र सरकार के निर्देशों के मुताबिक शर्तो को पूरा करता है आवेदक
देहरादून -। गोद लेने के नए कानून के तहत देहरादून की अदालत ने पहला फैसला दिया है। कोर्ट ने दिल्ली की दंपती को बच्ची गोद लेने की अनुमति दे दी है। राजकीय शिशु सदन की तरफ से इस मामले में आवेदन किया गया था। राज्य में अन्य गैरसरकारी शिशु सदन है, मगर सरकारी महकमे के मामले में देहरादून का यह पहला मामला है।
वकील पृथ्वी सिंह नेगी ने बताया कि देहरादून के राजकीय शिशु सदन बनाम रवि शर्मा मामले में अपर जिला जज केके शुक्ला की अदालत ने सोमवार को इसकी अनुमति प्रदान की। राजकीय शिशु सदन की तरफ से अधीक्षिका अंजना गुप्ता ने कोर्ट में आवेदन किया गया था। अधीक्षिका ने कोर्ट को बताया कि उत्तराखंड शासन के आदेश के मुताबिक उनकी संस्था को दत्तक ग्रहण के लिए मान्यता दी गई है। उक्त संस्था ने बच्चे को गोद देने के मामले में सभी औपचारिकता पूरी की हैं। बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन करने वाले रवि शर्मा व उनकी पत्नी सोनू शर्मा की पूरी जांच की गई है। दोनों के मेडिकल, शैक्षिक, आर्थिक तथा नैतिक स्थिति की जांच की गई है। इस मामले में दैनिक समाचार पत्र में विज्ञापन भी दिया गया था। दिल्ली निवासी रवि शर्मा व उनकी पत्नी ने बच्ची को गोद लेने का आवेदन किया। रवि शर्मा व बच्ची की उम्र में 21 साल से ज्यादा का फर्क है। इसलिए भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के मुताबिक आवेदक मापदंड को पूरा करता है। इसके बाद अर्पिता उर्फ आरोही को कोर्ट ने रवि शर्मा व उनकी पत्नी को सौंपने की अनुमति दे दी। फैसले में कहा गया है कि गोद लेने वाले दंपति को अगर भविष्य में कोई और संतान पैदा होती है तो बच्ची के कानूनी अधिकारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। आवेदन करने वाले दंपति को बेटा है, मगर उनकी कोई बेटी नहीं है। इसके चलते उसने बेटी गोद लेने के लिए आवेदन किया है।
केंद्र सरकार के निर्देशों के मुताबिक शर्तो को पूरा करता है आवेदक
भारतीयों से जंग के गुर सीख रही अफगान सेना
तालिबान का मुकाबला करने में होगी अफगान फौज को आसानी सामरिक नीति के तहत बढ़ रहे हैं पड़ोसी देश से रिश्ते
देहरादून- तालिबान व अलकायदा जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों से दो-दो हाथ कर रही अफगान सेना को व्यवस्थित सैन्य ढांचे का प्रशिक्षण भारतीय सेना देने जा रही है।
दुनिया के श्रेष्ठतम सैन्य बलों में से एक भारतीय सेना उन्हें युद्धक पण्राली तो बता ही रही है साथ में सैन्य टुकड़ियों के निचले स्तर पर काम करने वाली अनुशासित परंपरा की जानकारी भी दे रही है। अफगान सेना के साथ सैन्य दीक्षा का आदान-प्रदान देश की सामरिक नीति के तहत हो रहा है। अफगान सेना की एक टुकड़ी कुमाऊं रेजिमेंल सेंटर रानीखेत में प्रशिक्षण पूरा कर चुकी है। जल्दी ही एक अन्य टुकड़ी गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर लैंसडौन में आने वाली है। सैन्य सूत्रों का कहना है कि इसी सप्ताह यह टुकड़ी लैंसडौन पहुंच जाएगी। करीब डेढ़ महीने के प्रशिक्षण में अफगान सैनिकों को प्लाटून कमांडर व सेक्शन कमांडर के स्तर पर सैन्य टुकड़ियों का ढांचा, उनके डिप्लायमेंट का तरीका, युद्ध के दौरान व शांति के उनकी सामान्य दिनचर्या से अवगत कराया जाएगा। रेजिमेंटल सेंटर में दिया जाने वाला यह प्रशिक्षण अफगान सेना के लिए महत्वपूर्ण है। कई दशकों से अशांत रहे अफगानिस्तान का सैन्य बल अपने सैन्य ढांचे पर ध्यान नहीं दे पा रहा है। लगातार आपरेशनों से जूझते रहने से वहां ट्रेनिंग का सिस्टम भी उतना मजबूत नहीं बन पाया, जितनी जरूरत सेना को होती है। हाल में ही अफगानिस्तान में चल रहे सैन्य अभियानों ने वहां की सेना के लिए प्रशिक्षण की अहमियत को और बढ़ा दिया है। किन्हीं दो देशों के बीच सैन्य आदान-प्रदान सामान्य तौर पर होता रहता है, पर अफगानिस्तान के साथ बढ़ रहे सैन्य संबंध कई मायनों में अलग हैं। देश के सभी बड़े आपरेशनों में हिस्सा ले चुके गढ़वाल व कुमाऊं रेजिमेंटों के साथ तालमेल से अफगानिस्तान को अच्छे लड़ाके तैयार करने में भी मदद मिलेगी। अफगानिस्तान से हो रहा तालमेल भारत को भी चारों ओर चीन की बढ़ती घेराबंदी से कुछ हद तक राहत दे सकता है। गढ़वाल राइफल्स के कर्नल ऑफ रेजिमेंट रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) एमसी भंडारी अफगानिस्तान के साथ बढ़ रहे सैन्य संबंधों को अच्छी कवायद बताते हैं। उनका कहना है कि इससे अफगास्तिान में सैन्य ढांचे के साथ ही रिक्रूट की ट्रेनिंग को बेहतर किया जा सकेगा। उनका कहना है कि आज भारत चारों ओर से चीन से घिरता जा रहा है। ऐसे में चीन की ‘स्टिंग ऑफ पल्र्स पालिसी से मुकाबला करने के लिए अफगानिस्तान जैसे नये दोस्त को भी मजबूत करना होगा। उत्तराखंड में चीनी सीमा के विवाद को देखते हुए यहां अफगान सेना का प्रशिक्षण काफी महत्व रखता है।
स्वतंत्रता दिवस पर 38 पुलिसकर्मी होंगे सम्मानित
तीन को सराहनीय सेवा पदक पांच को उत्कृष्ट सेवा सम्मान 18 को सराहनीय से वा सम्मान और 12 को विशिष्ट कार्य के लिए सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न मिलेगा
देहरादून -पुलिस महानिदेशक ज्योति स्वरूप पांडे ने स्वतंत्रता दिवस पर 38 पुलिसकर्मियों को सराहनीय सेवा पदक, उत्कृष्ट सेवा सम्मान, सराहनीय सेवा सम्मान और विशिष्ट कार्य के लिए सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न से सम्मानित करने की घोषणा की है। पुलिस महानिदेशक ने बताया कि मुख्यमंत्री सराहनीय सेवा पदक से सम्मानित होने वाले तीन पुलिस कर्मियों को परेड मैदान में आयोजित होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाएगा। इसके अलावा अन्य पुलिस कर्मी अपने तैनाती स्थलों पर सर्वोच्च पुलिस अधिकारी के हाथों सम्मानित होंगे। पुलिस महानिदेशक ने बताया कि सराहनीय सेवा के लिए मुख्यमंत्री सराहनीय सेवा पदक उत्तम सिंह जिमिवाल, निरीक्षक ऊधमसिंह नगर, जगत सिंह सामंत, उप-निरीक्षक 46वीं वाहिनी पीएसी रुद्रपुर और, जनार्दन प्रसाद उनियाल मुख्य आरक्षी पुलिस मुख्यालय को सम्मानित किया जाएगा। उत्कृष्ट सेवा सम्मान चिह्न से सम्मानित होने वालों में गिरीश चन्द्र टम्टा पुलिस उपाधीक्षक, गणोश प्रसाद बौठियाल निरीक्षक ऊधमसिंहनगर, किशन सिंह रावत प्रतिसार निरीक्षक, पुलिस मुख्यालय, प्रेम सिंह रावत निरीक्षक पुलिस मुख्यालय और रमेश चंद्र जोशी उप-निरीक्षक सीआईडी सेक्टर हल्द्वानी शामिल हैं। इसके अलावा सराहनीय सेवा के लिए सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न नवीन चन्द्र त्रिपाठी पुलिस उपाधीक्षक, अभिसूचना मुख्यालय, उम्मेद सिंह बिष्ट पुलिस उपाधीक्षक व मण्डलाधिकारी, देहरादून, दीवानी राम आर्य पुलिस उपाधीक्षक, नैनीताल, धनीराम, पुलिस उपाधीक्षक, चम्पावत, पूरण सिंह शाह, मुख्य अग्निशमन अधिकारी हरिद्वार, गोपाल सिंह दसौनी, निरीक्षक पुलिस मुख्यालय, राजेन्द्र दास, दलनायक, 40 पीएसी हरिद्वार, दानीराम, अग्निशमन अधिकारी, देहरादून, उषा किरन बलूदी, सहायक उपनि रीक्षक सीआईडी सेक्टर देहरादून, उमेश चन्द्र काण्डपाल, प्रधान परिचालक संचार मुख्यालय, मोहन चन्द्र जोशी, उप-निरीक्षक बागेवर, श्याम लाल, उप-निरीक्षक पिथौरागढ़, प्राणी दत्त पुरोहित, मुख्य आरक्षी सतर्कता मुख्यालय, हरदयाल सिंह, मुख्य आरक्षी सीआईडी सेक्टर देहरादून, कमान राम, 31वीं वाहिनी पीएसी रुद्रपुर, दान सिंह खेर, लीडिंग फायरमैन, अल्मोड़ा, सोबन सिंह, मुख्य आरक्षी 46वीं वाहिनी पीएसी रूद्रपुर, होशियार सिंह, मुख्य आरक्षी पीएसी रुद्रपुर के नाम शामिल हैं। विशिष्ट कार्य के लिये सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न से सम्मानित होने वालों में अरविन्द सिंह रावत, निरीक्षक, शिव प्रसाद डबराल, उपनि रीक्षक, बलबीर सिंह, उप-निरीक्षक, दिग्पाल सिंह कोहली, उप-निरीक्षक , कुशलपाल सिंह, चमन कुमार, आरक्षी प्रतीक कुमार, आरक्षी, विपुल कुमार,आरक्षी, सोहन लाल, आरक्षी, सभी जनपद देहरादून, रितेश कुमार व अमित कुमार आरक्षी जनपद पौड़ी गढ़वाल के साथ ही आदित्य कुमार और आरक्षी जनपद ऊधमसिंहनगर का नाम शामिल है।
देहरादून -पुलिस महानिदेशक ज्योति स्वरूप पांडे ने स्वतंत्रता दिवस पर 38 पुलिसकर्मियों को सराहनीय सेवा पदक, उत्कृष्ट सेवा सम्मान, सराहनीय सेवा सम्मान और विशिष्ट कार्य के लिए सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न से सम्मानित करने की घोषणा की है। पुलिस महानिदेशक ने बताया कि मुख्यमंत्री सराहनीय सेवा पदक से सम्मानित होने वाले तीन पुलिस कर्मियों को परेड मैदान में आयोजित होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया जाएगा। इसके अलावा अन्य पुलिस कर्मी अपने तैनाती स्थलों पर सर्वोच्च पुलिस अधिकारी के हाथों सम्मानित होंगे। पुलिस महानिदेशक ने बताया कि सराहनीय सेवा के लिए मुख्यमंत्री सराहनीय सेवा पदक उत्तम सिंह जिमिवाल, निरीक्षक ऊधमसिंह नगर, जगत सिंह सामंत, उप-निरीक्षक 46वीं वाहिनी पीएसी रुद्रपुर और, जनार्दन प्रसाद उनियाल मुख्य आरक्षी पुलिस मुख्यालय को सम्मानित किया जाएगा। उत्कृष्ट सेवा सम्मान चिह्न से सम्मानित होने वालों में गिरीश चन्द्र टम्टा पुलिस उपाधीक्षक, गणोश प्रसाद बौठियाल निरीक्षक ऊधमसिंहनगर, किशन सिंह रावत प्रतिसार निरीक्षक, पुलिस मुख्यालय, प्रेम सिंह रावत निरीक्षक पुलिस मुख्यालय और रमेश चंद्र जोशी उप-निरीक्षक सीआईडी सेक्टर हल्द्वानी शामिल हैं। इसके अलावा सराहनीय सेवा के लिए सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न नवीन चन्द्र त्रिपाठी पुलिस उपाधीक्षक, अभिसूचना मुख्यालय, उम्मेद सिंह बिष्ट पुलिस उपाधीक्षक व मण्डलाधिकारी, देहरादून, दीवानी राम आर्य पुलिस उपाधीक्षक, नैनीताल, धनीराम, पुलिस उपाधीक्षक, चम्पावत, पूरण सिंह शाह, मुख्य अग्निशमन अधिकारी हरिद्वार, गोपाल सिंह दसौनी, निरीक्षक पुलिस मुख्यालय, राजेन्द्र दास, दलनायक, 40 पीएसी हरिद्वार, दानीराम, अग्निशमन अधिकारी, देहरादून, उषा किरन बलूदी, सहायक उपनि रीक्षक सीआईडी सेक्टर देहरादून, उमेश चन्द्र काण्डपाल, प्रधान परिचालक संचार मुख्यालय, मोहन चन्द्र जोशी, उप-निरीक्षक बागेवर, श्याम लाल, उप-निरीक्षक पिथौरागढ़, प्राणी दत्त पुरोहित, मुख्य आरक्षी सतर्कता मुख्यालय, हरदयाल सिंह, मुख्य आरक्षी सीआईडी सेक्टर देहरादून, कमान राम, 31वीं वाहिनी पीएसी रुद्रपुर, दान सिंह खेर, लीडिंग फायरमैन, अल्मोड़ा, सोबन सिंह, मुख्य आरक्षी 46वीं वाहिनी पीएसी रूद्रपुर, होशियार सिंह, मुख्य आरक्षी पीएसी रुद्रपुर के नाम शामिल हैं। विशिष्ट कार्य के लिये सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न से सम्मानित होने वालों में अरविन्द सिंह रावत, निरीक्षक, शिव प्रसाद डबराल, उपनि रीक्षक, बलबीर सिंह, उप-निरीक्षक, दिग्पाल सिंह कोहली, उप-निरीक्षक , कुशलपाल सिंह, चमन कुमार, आरक्षी प्रतीक कुमार, आरक्षी, विपुल कुमार,आरक्षी, सोहन लाल, आरक्षी, सभी जनपद देहरादून, रितेश कुमार व अमित कुमार आरक्षी जनपद पौड़ी गढ़वाल के साथ ही आदित्य कुमार और आरक्षी जनपद ऊधमसिंहनगर का नाम शामिल है।
एनआइटी को नहीं मिल रहे छात्र
, श्रीनगर- श्रीनगर एनआइटी छात्रों के प्रवेश के लिए तरस रहा है। सूबे के एकमात्र एनआइटी में प्रवेश लेने के लिए छात्र दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इस साल प्रवेश के लिए पांच बार काउंसिलिंग होने के बाद भी निर्धारित सीटों के सापेक्ष आधी सीटें ही भरी जा सकी हैं।
एनआइटी की व्यवस्थाओं को देख अभी तक नौ छात्र अपना प्रवेश निरस्त करा चुके हैं।
श्रीनगर स्थित राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान (एनआइटी) का अपना भवन व परिसर न होने से यहां के छात्रों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार से 30 अक्टूबर 2009 को स्वीकृति मिलने के बाद 21 जुलाई 2010 से अस्थाई रूप से श्रीनगर पॉलीटेक्निक के परिसर में चल रहा है। एनआइटी के लिए चयनित भूमि सुमाड़ी में अभी तक वन विभाग से भूमि के लिए स्वीकृति नहीं मिल पाई है। इससे अभी तक संस्थान के स्थायी परिसर का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। एनआइटी श्रीनगर में वर्तमान में इलेक्ट्रीकल, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन व कम्प्यूटर साइंस समेत तीन ट्रेडों की पढ़ाई चल रही है। तीनों ट्रेडों में तीस-तीस सीटें यानि 90 सीटें उपलब्ध हैं। सत्र 2010-11 में इन तीनों ट्रेडों में कुल 76 छात्रों ने प्रवेश लिया। यहां की व्यवस्थाओं को देख कुछ समय बाद 13 छात्रों ने अपने प्रवेश वापस ले लिए थे। सत्र 2011-12 में तो पांच बार काउंसिलिंग कराने के बावजूद 40 छात्रों ने ही प्रवेश लिया है। 9 छात्रों ने तो प्रवेश लेने के कुछ ही दिन बाद अपने प्रवेश वापस ले लिए थे। छात्र मुख्य रूप से छात्रावास, प्रयोगशाला व अनुभवी फैकल्टी के न होने से यहां प्रवेश नहीं ले रहे हैं। सूत्रों की मानें तो मार्च में प्रदेश सरकार से एनआइटी ने छात्रावास उपलब्ध कराने की मांग की थी, लेकिन प्रदेश सरकार ने मामले में कोई ठोस पहल न करने से इसका खामियाजा अब छात्रों व एनआइटी को भुगतना पड़ रहा है।
डायल 104, पाइए फ्री एडवाइस
देहरादून- आपकी तबियत खराब है, चाहकर भी आप डॉक्टर के पास फौरन पहुंचने की स्थिति में नहीं हैं, तो घबराने की जरूरत नहीं। आपको बस एक नंबर डायल करना होगा, फोन पर ही स्वास्थ्य संबंधी मशविरा मिल जाएगा।
मसलन, आप कौन सी दवा तुरंत लें, इलाज के लिए कौन अस्पताल उपयुक्त होगा, वहां किस डॉक्टर से मिलना होगा। यही नहीं, एड्स पीड़ित, डिप्रेशन के शिकार व नशे से मुक्ति चाहने वालों की काउंसलिंग तथा सरकार द्वारा संचालित सुवधिाओं की जानकारी भी फोन पर ही मिल जाएगी।
यह सब संभव होगा स्वास्थ्य विभाग की 104 सेवा से। इसे लेकर सूबे में होमवर्क तेज हो गया है। विभाग की कोशिश साल के अंत तक इसे शुरू करने की है। सूबे की विषम भौगोलिक परिस्थितियों में तुरंत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। अक्सर देखा गया है कि अस्पताल के दूर होने या वहां सुविधाओं के पर्याप्त नहीं होने से जरूरतमंद को समय पर इलाज नहीं मिल पाता और उसकी मुसीबत बढ़ जाती है। यहां तक कि मरीज की मौत भी हो जाती है लेकिन 104 सेवा के जरिए ऐसे लोगों को जरूरत की सभी जानकारी फोन पर ही मिल जाएंगी और जरूरत के हिसाब से उसे उपयुक्त अस्पताल पहुंचाया जा सकेगा। यही नहीं, डिप्र्रेशन के शिकार, नशे से मुक्ति चाहने वाले व एचआइवी एड्स पीड़ितों की काउंसलिंग भी इसी सेवा के जरिए कराए जाने का प्रस्ताव है। इस सेवा के लिए कॉल सेंटर स्थापित किया जाएगा, जरूरतमंद अपने टेलीफोन या मोबाइल से 104 नंबर डायल करेगा। कॉल सेंटर में मौजूद कर्मचारी संबंधित डॉक्टर, विशेषज्ञ या मनोवैज्ञानिक को नंबर ट्रांसफर करेगा, जहां से उसे जरूरी परामर्श मिल जाएगी। खास बात यह है कि नंबर टोलफ्री होगा। लिहाजा जरूरतमंद को मशविरा मुफ्त में मिलेगा। सचिव स्वतंत्र प्रभार डा.अजय प्रद्योत के मुताबिक योजना पर तेजी से काम चल रहा है।
Wednesday, 10 August 2011
एक को रेगुलर नियुक्ति कई की किस्मत खुलेगी
देहरादून: डीएवीपीजी कालेज में गणित की एक तदर्थ प्रवक्ता की रेगुलर नियुक्ति देने के आदेश सरकार ने दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यह कार्रवाई की गई।
शासन के इस कदम से कालेज में 22 तदर्थ प्रवक्ताओं को भी स्थायी नियुक्ति मिलने की आस बंधी है।
कालेज में 22 तदर्थ प्रवक्ता लंबे समय से कार्यरत हैं। अदालत के आदेश पर ही उक्त प्रवक्ताओं को निर्धारित वेतनमान के मुताबिक वेतन भुगतान सरकार ने किया था। हालांकि उन्हें अभी तक स्थायी नहीं किया गया है। दरअसल, अशासकीय सहायताप्राप्त डिग्री कालेजों में तदर्थ प्रवक्ता पद के विनियमितीकरण के लिए प्रदेश में नीति नहीं है। इस संबंध में उत्तर प्रदेश का अधिनियम उत्तराखंड में लागू नहीं है। इस मसले पर कालेज में गणित विभाग में कार्यरत तदर्थ प्रवक्ता श्रीमती रश्मिता शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट के आदेश पर शासन ने उक्त शिक्षिका के वेतन भुगतान और उन्हें विनियमित करने के आदेश जारी किए। शासनादेश के मुताबिक इनके विनियमितीकरण को भविष्य में नजीर नहीं माना जाएगा। उच्च शिक्षा सचिव ने कालेज प्रबंध तंत्र को आरक्षण कोटा भविष्य में पूरा करने और उक्त शिक्षिका की ज्येष्ठता अलग से तय करने के निर्देश दिए हैं। उधर, शासन के इस कदम से कालेज के 22 तदर्थ प्रवक्ताओं के स्थायीकरण की उम्मीद जगी हैं।
शासन के इस कदम से कालेज में 22 तदर्थ प्रवक्ताओं को भी स्थायी नियुक्ति मिलने की आस बंधी है।
कालेज में 22 तदर्थ प्रवक्ता लंबे समय से कार्यरत हैं। अदालत के आदेश पर ही उक्त प्रवक्ताओं को निर्धारित वेतनमान के मुताबिक वेतन भुगतान सरकार ने किया था। हालांकि उन्हें अभी तक स्थायी नहीं किया गया है। दरअसल, अशासकीय सहायताप्राप्त डिग्री कालेजों में तदर्थ प्रवक्ता पद के विनियमितीकरण के लिए प्रदेश में नीति नहीं है। इस संबंध में उत्तर प्रदेश का अधिनियम उत्तराखंड में लागू नहीं है। इस मसले पर कालेज में गणित विभाग में कार्यरत तदर्थ प्रवक्ता श्रीमती रश्मिता शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट के आदेश पर शासन ने उक्त शिक्षिका के वेतन भुगतान और उन्हें विनियमित करने के आदेश जारी किए। शासनादेश के मुताबिक इनके विनियमितीकरण को भविष्य में नजीर नहीं माना जाएगा। उच्च शिक्षा सचिव ने कालेज प्रबंध तंत्र को आरक्षण कोटा भविष्य में पूरा करने और उक्त शिक्षिका की ज्येष्ठता अलग से तय करने के निर्देश दिए हैं। उधर, शासन के इस कदम से कालेज के 22 तदर्थ प्रवक्ताओं के स्थायीकरण की उम्मीद जगी हैं।
पुलिस विभाग में रिक्त हैं कांस्टेबलों के 2100 पद- police constables in 2100 posts are vacant
देहरादून, - पुलिस विभाग में काफी समय से कांस्टेबल के 2100 पद रिक्त पड़े हुए हैं। इसके लिए मुख्यालय की ओर से इन पदों को भरने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है।
अब इस पर शासन की सहमति का इंतजार है। इसके अलावा विभाग में हेड कांस्टेबल के 136 पद रिक्त हैं। इन्हें विभागीय प्रोन्नति से भरा जाना है। इसके लिए शीघ्र ही प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
हाल ही में शासन की ओर से सभी विभागों को विभागीय रिक्तियों की जानकारी के आदेश दिए गए थे। इसके तहत सभी विभागों से समूह क, ख, ग और घ के रिक्त पदों के विषय में जानकारी मांगी गई थी। इन पदों को सितंबर तक भरने की बात कही गई। ऐसे में पुलिस मुख्यालय ने भी विभाग में रिक्त पदों की सूची तैयार की। इसके बाद मुख्यालय की ओर से इन 21 सौ पदों को भरने का प्रस्ताव शासन को भेज दिया गया है। इसके अलावा विभाग में हेड कांस्टेबल के 136 पद रिक्त हैं। यह सारे पद विभागीय प्रोन्नति के जरिए भरे जाने हैं। इसके लिए भी विभाग में प्रक्रिया शुरू हो गई है। इन पदों पर विज्ञप्ति निकालने की तैयारी चल रही है। विभागीय आवेदन आने के बाद नियमानुसार इन पदों को भर दिया जाएगा। आइजी मुख्यालय जीसी पांडे ने बताया कि कांस्टेबल के पदों के संबंध में शासन को प्रस्ताव भेज दिया गया है जबकि हेड कांस्टेबलों के पदों पर विभागीय प्रोन्नति की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
कुमाऊं उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन संशोधन कानून वैध
नई दिल्ली, -: सुप्रीम कोर्ट ने जंगल की जमीन, राज्य सरकार में निहित करने वाले कुमाऊं उत्तराखंड जमींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार संशोधन कानून (कुजलर एक्ट) को संवैधानिक ठहराया है। हालांकि पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने कानून को वैध ठहराने के साथ ही कहा है कि कानून के बाद सरकार में निहित जंगल की जमीन से कोई आय न होने पर भी भूमालिक को मुआवजा दिया जाएगा।
ये महत्वपूर्ण फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 300ए में एक व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है। लेकिन ऐसा सिर्फ निष्पक्ष और तार्किक कानूनी आधार पर ही हो सकता है। जनहित के नाम पर अधिग्रहीत की गई किसी की निजी संपत्ति के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा, जैसा कि इस मामले में हुआ है। जबकि राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव की दलील थी कि कानून में जमीन से आय न होने के मामलों में मुआवजा दिए जाने की बात नहीं कही गई है। पीठ ने कहा कि इस मामले में जो जमीन कानून के बाद राज्य सरकार में निहित हुई है, उसे गैर उत्पादक नहीं माना जा सकता। निश्चित तौर पर सरकार में निहित संपत्ति उत्पादक संपत्ति है। इसलिए संपत्ति की संभावित आय का आकलन कर मुआवजा दिया जाना चाहिए। कुजलर कानून में भी सरकार में निहित प्राइवेट जंगल का मुआवजा दिये जाने की बात कही गयी है।
संविधान पीठ ने कुजलर कानून की धारा 4ए, 18(1)(सीसी) और 19 (1)(बी) को वैध ठहराते हुए असिस्टेंट कलेक्टर को याचिकाकर्ता राजीव सरीन को उचित मुआवजा अदा करने का निर्देश दिया है।
ये महत्वपूर्ण फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ ने सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के अधिकार की व्याख्या करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 300ए में एक व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित किया जा सकता है। लेकिन ऐसा सिर्फ निष्पक्ष और तार्किक कानूनी आधार पर ही हो सकता है। जनहित के नाम पर अधिग्रहीत की गई किसी की निजी संपत्ति के मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि कोई मुआवजा नहीं मिलेगा, जैसा कि इस मामले में हुआ है। जबकि राज्य सरकार की वकील रचना श्रीवास्तव की दलील थी कि कानून में जमीन से आय न होने के मामलों में मुआवजा दिए जाने की बात नहीं कही गई है। पीठ ने कहा कि इस मामले में जो जमीन कानून के बाद राज्य सरकार में निहित हुई है, उसे गैर उत्पादक नहीं माना जा सकता। निश्चित तौर पर सरकार में निहित संपत्ति उत्पादक संपत्ति है। इसलिए संपत्ति की संभावित आय का आकलन कर मुआवजा दिया जाना चाहिए। कुजलर कानून में भी सरकार में निहित प्राइवेट जंगल का मुआवजा दिये जाने की बात कही गयी है।
संविधान पीठ ने कुजलर कानून की धारा 4ए, 18(1)(सीसी) और 19 (1)(बी) को वैध ठहराते हुए असिस्टेंट कलेक्टर को याचिकाकर्ता राजीव सरीन को उचित मुआवजा अदा करने का निर्देश दिया है।
Tuesday, 9 August 2011
टीईटी परीक्षा 21 August 2011
उत्तराखंड की टीईटी परीक्षा की तिथि घोषित कर दी गई है । परिक्षा 21 August 2011 को राज्य के विभिन्न सेंटर पर होगी प्रवेश परीक्षा के प्रवेश पत्रों को ड़ाक से भेजना शुरु कर दिया गया है
Sunday, 7 August 2011
राज्य की आरक्षण नीति पर उठे सवाल
उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार से छह माह में आरक्षण नीति की समीक्षा करने को कहा कोर्ट के आदेश के बाद मुख्य सचिव ने की बैठक उत्तराखंड में 11 साल से नहीं किया गया है आरक्षण के रोस्टर में कोई परिवर्तन
देहरादून। नैनीताल उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार की आरक्षण नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से अपनी आरक्षण नीति की छह माह में समीक्षा करने को कहा है। अदालत ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार स्पष्ट आरक्षण नीति बनाकर इस बारे में उसे अवगत कराए। न्यायालय के इस आदेश से प्रदेश सरकार के अधिकारियों में खलबली मच गई। आनन- फानन में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक बुलाई गई। बैठक में इससे जुड़े बिदुंओं पर विचार-विमर्श किया गया। उच्च न्यायालय ने यह फैसला सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता विनोद कुमार नौटियाल की याचिका पर दिया। अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश में आरक्षण नीति की समीक्षा की जरूरत बताई है। श्री नौटियाल ने राज्याधीन सेवाओं में आरक्षित कोटे के पदों पर पदोन्नति के बारे में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उन्होंने प्रदेश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ओबीसी के लिए आरक्षण अधिनियम 1994 के अनुरूप पदोन्नति में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने के प्रावधान को चुनौती दी थी। उन्होंने मांग की थी कि उक्त जातियों को तथ्यात्मक आंकड़ों के अभाव में पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इस याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा क्रीमीलेयर की आय का निर्धारण केवल अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में किया गया है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में क्रीमीलेयर की आय के निर्धारण की व्यवस्था नहीं है। इन जातियों को आरक्षण 1991 की जनगणना के प्रतिशत तथा अन्य रैपिड सव्रे के आंकड़ों के आधार पर एक प्रतिशत की वृद्धि करते हुए दी गई है। यह 2001 की जनगणना के आंकड़ों के समतुल्य है। उच्च न्यायालय ने सहायक अभियंता की पदोन्नति हेतु डीपीसी की संस्तुतियों को अग्रिम आदेश तक लागू न किए जाने का निर्णय दिया। वहीं राज्य सरकार को सभी विभागों के संदर्भ में न्याय विभाग से परामर्श लेकर आरक्षण की स्पष्ट नीति निर्धारित करके छह माह में न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। न्यायालय के इस आदेश से प्रदेश सरकार के अधिकारियों में खलबली मच गई। आनन-फानन में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक बुलाई गई। इसमें कोर्ट के अंतरिम आदेश का अनुपालन करने या आदेश के विरुद्ध अपील करने पर विचार-विमर्श हुआ। इसके अलावा इन वगरे को आरक्षण देने के लिए इनके आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन के मानकों को तय करने के लिए सव्रे कराने, न्यायालय के आदेश के सापेक्ष विकल्पों पर विचार करने पर भी सहमति बनी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संदर्भ में क्रीमीलेयर की व्यवस्था लागू करने पर भी विचार हुआ। अन्य पिछड़ा वर्ग को लेकर लागू क्रीमीलेयर की आय सीमा का निर्धारण पर भी विचार किया गया। इस प्रकरण से प्रदेश सरकार असमंजस में है। आरक्षण नीति के तहत पूर्व में दी गई पदोन्नतियां भी इस आदेश के दायरे से बाहर हैं। प्रदेश सरकार ने आरक्षण नीति के तहत जनगणना के किन आंकड़ों पर आरक्षण नीति तय की है यह भी संदेहास्पद है कि प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण किस आधार पर दिया गया है। कार्मिकों ने इसके विरुद्ध कई बार विरोध दर्ज कराया परंतु उनकी सुनी ही नहीं गई। प्रदेश सरकार की नीति के हिसाब से ओबीसी में 14 प्रतिशत, एससी में 19 प्रतिशत व एसटी में चार फीसद आरक्षण दिया गया है। राज्य में आरक्षण की स्पष्ट नीति न होने से अधिकारी इससे खिलवाड़ करते रहे हैं। कर्मचारियों ने इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को बार-बार आगाह किया मगर इसके बाद भी नियमों के खिलाफ आरक्षण के आधार पर पदोन्नति दी जा रही हैं। प्रदेश में रोस्टर पण्राली के तहत प्रभावी आरक्षण नीति की व्यवस्था है। इस संबंध में अनुसूचित जाति के लिए जो रोस्टर बिंदु निर्धारित किए गए हैं उनके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में ही मार्गदर्शन सिद्वांत निर्धारित किए गए हैं। जिसके अनुपालन में केंद्र सरकार सहित अधिकतर राज्य सरकारों ने रोस्टर बिंदु में परिवर्तन किया है परन्तु उत्तराखंड में यह मामला 11 साल से लंबित है। देखना यह है कि उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद इस नीति पर कितना अमल किया जाता है। यह बात अहम इसलिए भी है क्योंकि प्रदेश सरकार के लिए यह चुनावी वर्ष है। इस पर सरकार को स्टैंड लेना ही होगा।
देहरादून। नैनीताल उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार की आरक्षण नीति पर सवालिया निशान लगा दिया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से अपनी आरक्षण नीति की छह माह में समीक्षा करने को कहा है। अदालत ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार स्पष्ट आरक्षण नीति बनाकर इस बारे में उसे अवगत कराए। न्यायालय के इस आदेश से प्रदेश सरकार के अधिकारियों में खलबली मच गई। आनन- फानन में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक बुलाई गई। बैठक में इससे जुड़े बिदुंओं पर विचार-विमर्श किया गया। उच्च न्यायालय ने यह फैसला सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता विनोद कुमार नौटियाल की याचिका पर दिया। अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश में आरक्षण नीति की समीक्षा की जरूरत बताई है। श्री नौटियाल ने राज्याधीन सेवाओं में आरक्षित कोटे के पदों पर पदोन्नति के बारे में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। उन्होंने प्रदेश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं ओबीसी के लिए आरक्षण अधिनियम 1994 के अनुरूप पदोन्नति में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने के प्रावधान को चुनौती दी थी। उन्होंने मांग की थी कि उक्त जातियों को तथ्यात्मक आंकड़ों के अभाव में पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। इस याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा क्रीमीलेयर की आय का निर्धारण केवल अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में किया गया है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में क्रीमीलेयर की आय के निर्धारण की व्यवस्था नहीं है। इन जातियों को आरक्षण 1991 की जनगणना के प्रतिशत तथा अन्य रैपिड सव्रे के आंकड़ों के आधार पर एक प्रतिशत की वृद्धि करते हुए दी गई है। यह 2001 की जनगणना के आंकड़ों के समतुल्य है। उच्च न्यायालय ने सहायक अभियंता की पदोन्नति हेतु डीपीसी की संस्तुतियों को अग्रिम आदेश तक लागू न किए जाने का निर्णय दिया। वहीं राज्य सरकार को सभी विभागों के संदर्भ में न्याय विभाग से परामर्श लेकर आरक्षण की स्पष्ट नीति निर्धारित करके छह माह में न्यायालय में प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। न्यायालय के इस आदेश से प्रदेश सरकार के अधिकारियों में खलबली मच गई। आनन-फानन में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक बुलाई गई। इसमें कोर्ट के अंतरिम आदेश का अनुपालन करने या आदेश के विरुद्ध अपील करने पर विचार-विमर्श हुआ। इसके अलावा इन वगरे को आरक्षण देने के लिए इनके आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन के मानकों को तय करने के लिए सव्रे कराने, न्यायालय के आदेश के सापेक्ष विकल्पों पर विचार करने पर भी सहमति बनी। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संदर्भ में क्रीमीलेयर की व्यवस्था लागू करने पर भी विचार हुआ। अन्य पिछड़ा वर्ग को लेकर लागू क्रीमीलेयर की आय सीमा का निर्धारण पर भी विचार किया गया। इस प्रकरण से प्रदेश सरकार असमंजस में है। आरक्षण नीति के तहत पूर्व में दी गई पदोन्नतियां भी इस आदेश के दायरे से बाहर हैं। प्रदेश सरकार ने आरक्षण नीति के तहत जनगणना के किन आंकड़ों पर आरक्षण नीति तय की है यह भी संदेहास्पद है कि प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण किस आधार पर दिया गया है। कार्मिकों ने इसके विरुद्ध कई बार विरोध दर्ज कराया परंतु उनकी सुनी ही नहीं गई। प्रदेश सरकार की नीति के हिसाब से ओबीसी में 14 प्रतिशत, एससी में 19 प्रतिशत व एसटी में चार फीसद आरक्षण दिया गया है। राज्य में आरक्षण की स्पष्ट नीति न होने से अधिकारी इससे खिलवाड़ करते रहे हैं। कर्मचारियों ने इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को बार-बार आगाह किया मगर इसके बाद भी नियमों के खिलाफ आरक्षण के आधार पर पदोन्नति दी जा रही हैं। प्रदेश में रोस्टर पण्राली के तहत प्रभावी आरक्षण नीति की व्यवस्था है। इस संबंध में अनुसूचित जाति के लिए जो रोस्टर बिंदु निर्धारित किए गए हैं उनके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व में ही मार्गदर्शन सिद्वांत निर्धारित किए गए हैं। जिसके अनुपालन में केंद्र सरकार सहित अधिकतर राज्य सरकारों ने रोस्टर बिंदु में परिवर्तन किया है परन्तु उत्तराखंड में यह मामला 11 साल से लंबित है। देखना यह है कि उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद इस नीति पर कितना अमल किया जाता है। यह बात अहम इसलिए भी है क्योंकि प्रदेश सरकार के लिए यह चुनावी वर्ष है। इस पर सरकार को स्टैंड लेना ही होगा।
ढोल बना उत्तराखंडी संस्कृति का संवाहक व , सामाजिक समरसता का अग्रदूत
पौड़ी -
ढोल सात समंदर पार संस्कृति के प्रसार का आधार ही नहीं बना, उसने सामाजिक वर्जनाएं तोड़कर एक नई मिसाल भी पेश की है। इसी ढोल की बदौलत सदियों से चली आ रही जड़ मान्यताएं रेत के टीले की तरह ढह गई और प्रतिष्ठित हुई एक नई परंपरा। जिसमें न तो बड़े-छोटे का भेद और न ऊंच-नीच का भाव। ओड्डा गांव के आंगन में एक ऐसा दृश्य साकार हो रहा है, जो रह-रहकर सोचने को विवश करता है कि रूढि़यों के लिए अब कोई जगह नहीं।
यह कोई कल्पना की उड़ान नहीं, बल्कि वह हकीकत है, जिसका साक्षी बना पौड़ी जनपद का ओड्डा गांव। शनिवार को यहां दिल्ली के उद्यमी डीएस रावत व अमेरिका की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीफन की पहल पर ऐसा अनूठा सामूहिक भोज हुआ, जिसने सदियों से चली आ रही वर्जनाओं को पलभर में तोड़ डाला। वसुधैव कुटुंबकम् के भाव से सभी जातियों के लोग इस भोज में जुटे और एक साथ एक ही पंगत में बैठकर भोजन किया। भोज में विदेशी मेहमान स्टीफन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी एवं प्रीतम भरतवाण, भुवनेश्वर संस्कृत महाविद्यालय भुवनेश्वरी के अनुसूया प्रसाद संुद्रियाल, अनिल बिष्ट, उद्यमी डीएस रावत, डा.डीआर पुरोहित, मीरा मूर्ति स्टीफन, चंदन दास, गणेश दास, रामलाल, सोहन दास, सुखारू दास, दीपचंद की मौजूदगी बता रही थी कि जीवन में इससे सुखद कुछ नहीं।
संभवत: पहाड़ में यह ऐसा पहला ऐतिहासिक भोज था, जिसने बता दिया कि उद्देश्य पावन हो तो जड़ मान्यताओं को टूटते देर नहीं लगती। आयोजन का सुखद पहलू यह है कि ढोल ने इसकी बुनियाद तैयार की, जिसे वक्त के साथ हम हिकारतभरी नजरों से देखने लगे थे। इस ढोल ने साबित कर दिखाया कि वह उत्तराखंडी संस्कृति का संवाहक ही नहीं, सामाजिक समरसता का अग्रदूत भी है।
ढोल सात समंदर पार संस्कृति के प्रसार का आधार ही नहीं बना, उसने सामाजिक वर्जनाएं तोड़कर एक नई मिसाल भी पेश की है। इसी ढोल की बदौलत सदियों से चली आ रही जड़ मान्यताएं रेत के टीले की तरह ढह गई और प्रतिष्ठित हुई एक नई परंपरा। जिसमें न तो बड़े-छोटे का भेद और न ऊंच-नीच का भाव। ओड्डा गांव के आंगन में एक ऐसा दृश्य साकार हो रहा है, जो रह-रहकर सोचने को विवश करता है कि रूढि़यों के लिए अब कोई जगह नहीं।
यह कोई कल्पना की उड़ान नहीं, बल्कि वह हकीकत है, जिसका साक्षी बना पौड़ी जनपद का ओड्डा गांव। शनिवार को यहां दिल्ली के उद्यमी डीएस रावत व अमेरिका की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीफन की पहल पर ऐसा अनूठा सामूहिक भोज हुआ, जिसने सदियों से चली आ रही वर्जनाओं को पलभर में तोड़ डाला। वसुधैव कुटुंबकम् के भाव से सभी जातियों के लोग इस भोज में जुटे और एक साथ एक ही पंगत में बैठकर भोजन किया। भोज में विदेशी मेहमान स्टीफन के साथ ही लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी एवं प्रीतम भरतवाण, भुवनेश्वर संस्कृत महाविद्यालय भुवनेश्वरी के अनुसूया प्रसाद संुद्रियाल, अनिल बिष्ट, उद्यमी डीएस रावत, डा.डीआर पुरोहित, मीरा मूर्ति स्टीफन, चंदन दास, गणेश दास, रामलाल, सोहन दास, सुखारू दास, दीपचंद की मौजूदगी बता रही थी कि जीवन में इससे सुखद कुछ नहीं।
संभवत: पहाड़ में यह ऐसा पहला ऐतिहासिक भोज था, जिसने बता दिया कि उद्देश्य पावन हो तो जड़ मान्यताओं को टूटते देर नहीं लगती। आयोजन का सुखद पहलू यह है कि ढोल ने इसकी बुनियाद तैयार की, जिसे वक्त के साथ हम हिकारतभरी नजरों से देखने लगे थे। इस ढोल ने साबित कर दिखाया कि वह उत्तराखंडी संस्कृति का संवाहक ही नहीं, सामाजिक समरसता का अग्रदूत भी है।
ढोल ने दिलाई पहाड़ को नई पहचान
पौड़ी गढ़वाल: विश्वास नहीं होता कि एक अमेरिकी मूल का नागरिक पराए वाद्य यंत्र को गले डाल नृत्य के लिए विवश कर दे, लेकिन यही सच है। ओड्डा के चौक पर स्टीफन ने दैणा हूंया खोली का गणेशा..नौछमी नारैणा गीत गाने के साथ ही जैसे ही ढोल पर थाप दी, उपस्थित समुदाय ताली बजाता हुआ स्वागत करने लगा। चारों ओर से नजर उन पर टिक गई। वाह! शाबाश ! यही शब्द सुनाई दिए।
ढोल-दमाऊ अब सिर्फ औजी समाज तक ही नहीं सिमटा रहेगा बल्कि इसे अब गले में डालना गर्व समझा जाएगा। अमेरिकी मूल के स्टीफन फ्योल ने शनिवार को ओड्डा के चौक में चौंकाने का कार्य किया है। स्पर्धा में आए औजी समाज की प्रस्तुति समाप्त होने के बाद प्रणाम करते हुए स्टीफन ने ढोल कंधे में रखा और फिर पहली थाम के साथ धूंया8 बजाते हुए गुरु की वंदना की। उनके गुरु सोहन लाल स्टीफन के सुर में सुर मिलाते हुए गाने लगे तो सुकारू दास दमाऊ पर संगत करते रहे। गुरु को प्रमाण करने के बाद स्टीफन पांडव नृत्य की थाप देने लगे और फिर प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी, निर्देशक अनिल बिष्ट, बीएस रावत, अनुसूया प्रसाद सुंदरियाल समेत अन्य ग्रामीण भी नृत्य करने लगे। स्टीफन ने यह संदेश तो दे ही दिया कि अमेरिका मूल का नागरिक जब ढोल को गले लगा सकता है तो फिर उत्तराखंड के लोगों को इसे गले से परहेज नही होना चाहिए।
ढोल-दमाऊ अब सिर्फ औजी समाज तक ही नहीं सिमटा रहेगा बल्कि इसे अब गले में डालना गर्व समझा जाएगा। अमेरिकी मूल के स्टीफन फ्योल ने शनिवार को ओड्डा के चौक में चौंकाने का कार्य किया है। स्पर्धा में आए औजी समाज की प्रस्तुति समाप्त होने के बाद प्रणाम करते हुए स्टीफन ने ढोल कंधे में रखा और फिर पहली थाम के साथ धूंया8 बजाते हुए गुरु की वंदना की। उनके गुरु सोहन लाल स्टीफन के सुर में सुर मिलाते हुए गाने लगे तो सुकारू दास दमाऊ पर संगत करते रहे। गुरु को प्रमाण करने के बाद स्टीफन पांडव नृत्य की थाप देने लगे और फिर प्रसिद्ध लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी, निर्देशक अनिल बिष्ट, बीएस रावत, अनुसूया प्रसाद सुंदरियाल समेत अन्य ग्रामीण भी नृत्य करने लगे। स्टीफन ने यह संदेश तो दे ही दिया कि अमेरिका मूल का नागरिक जब ढोल को गले लगा सकता है तो फिर उत्तराखंड के लोगों को इसे गले से परहेज नही होना चाहिए।
क्या बोलेगा खामोश पौड़ी ?
pahar1- -8 अगस्त 1994 को पौड़ी से जली थी पृथक राज्य की ज्वाला -इसके बाद आंदोलन ने लिया था क्रांतिकारी स्वरूप पौड़ी ले मशाले चल पड़े हैं, लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के... जनवादी कवि बल्ली सिंह चीमा की इन पक्तियों को आत्मसात करने वाला पौड़ी राज्य बनने के बाद से खामोशी की चादर ओढ़े है।
विकास के मोर्चे पर खुद को ठगा सा महसूस करने वाले इस शहर ने गैरसैंण जैसे मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है। हालांकि पौड़ी के ही एक छोर से लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी इस सन्नाटे को चीर रहे हैं, पर सवाल है कि गांधी जयंती पर प्रदेश बंद की गूंज में इस आवाज को पौड़ी का जनमानस धार देगा भी या नहीं। 2 अगस्त 1994 को इंद्रमणि बडोनी कलेक्ट्रेट परिसर में राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। इसके बाद प्रशासन के रवैये ने आग मेंं घी डालने का काम किया और 7 अगस्त 1994 की मध्यरात्रि प्रशासन ने जबरन बडोनी को उठाया दिया था। इसके विरोध में 8 अगस्त 1994 को पौड़ी में व्यापारी वर्ग, छात्र और च्वींचा गांव की सैकड़ों महिलाओं ने आंदोलन को धार देने का काम किया। यहीं से आंदोलन तेजी के साथ आगे बढ़ा। पौड़ी की समूची जनता सड़कों पर उतर गई और इसी दिन पौड़ी में ऐतिहासिक प्रदर्शन भी हुआ। आखिरकार नौ नवंबर 2000 को तमाम शहादतों के बाद पृथक राज्य अस्तित्व में आया। अब एक दशक की यात्रा पूरी करने जा रहे उत्तराखंड में राज्य की अवधारणा के धूमिल होने को लेकर बहस-मुहासिबों का दौर चल रहा है, लेकिन पौड़ी की खामोशी सबको कचोट रही है। यह कचोटता का अहसास इसलिए भी है कि पौड़ी के स्वर में जो गर्मी है, वह ही मौजूदा सवालों से टकराने में सहायक हो सकती है। उसके बगैर कोई भी कोशिश अधूरी ही कही जाएगी। इस खामोशी के सवाल पर लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि पहाड़ में राजधानी बनने से होने वाले पहाड़ के विकास की सोच पर पौड़ीवासी ज्यादा गंभीर नहीं हैं। पौड़ी की उपेक्षा के चलते भी यहां के लोग स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजधानी को महज भौगोलिक दृष्टि से नजदीक देखना ठीक नहीं है। एक प्रकार की मानसिकता यह भी पनप गई है कि गैरसैंण से पौड़ी की दूरी बढ़ेगी। श्री नेगी के मुताबिक विकास के लिए पहाड़ में ही राजधानी होना बेहद जरूरी है। राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली पौड़ी गांव निवासी सावित्री देवी, रामी देवी, बसंती देवी सवाल करतीं हैं कि आखिर राज्य आंदोलन के बाद क्या हासिल हुआ है? राज्य प्राप्ति के बाद भी पौड़ी की लगातार उपेक्षा ही हो रही है। इससे पौड़ीवासी अब राजधानी समेत अन्य मसलों पर खामोश रहना ही बेहतर समझा रहे हैं। राज्य आंदोलन से जुड़े बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा कहते हैं, राज्य में अब तक की सरकारों ने शहीदों के सपनों के साथ मजाक किया है। जिन उद्देश्यों के लिए पृथक राज्य की लड़ाई लड़ी गई, उनको हाशिये पर धकेल दिया गया है। राज्य निर्माण आंदोलनकारी कल्याण परिषद के सदस्य नंदन सिंह रावत कहते हैं कि राज्य प्राप्ति के बाद पौड़ी तमाम मुद्दों पर खामोश हो गया है। पौड़ी अपने आप को भी ठगा सा महसूस कर रहा है।
विकास के मोर्चे पर खुद को ठगा सा महसूस करने वाले इस शहर ने गैरसैंण जैसे मुद्दे पर चुप्पी साधी हुई है। हालांकि पौड़ी के ही एक छोर से लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी इस सन्नाटे को चीर रहे हैं, पर सवाल है कि गांधी जयंती पर प्रदेश बंद की गूंज में इस आवाज को पौड़ी का जनमानस धार देगा भी या नहीं। 2 अगस्त 1994 को इंद्रमणि बडोनी कलेक्ट्रेट परिसर में राज्य की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। इसके बाद प्रशासन के रवैये ने आग मेंं घी डालने का काम किया और 7 अगस्त 1994 की मध्यरात्रि प्रशासन ने जबरन बडोनी को उठाया दिया था। इसके विरोध में 8 अगस्त 1994 को पौड़ी में व्यापारी वर्ग, छात्र और च्वींचा गांव की सैकड़ों महिलाओं ने आंदोलन को धार देने का काम किया। यहीं से आंदोलन तेजी के साथ आगे बढ़ा। पौड़ी की समूची जनता सड़कों पर उतर गई और इसी दिन पौड़ी में ऐतिहासिक प्रदर्शन भी हुआ। आखिरकार नौ नवंबर 2000 को तमाम शहादतों के बाद पृथक राज्य अस्तित्व में आया। अब एक दशक की यात्रा पूरी करने जा रहे उत्तराखंड में राज्य की अवधारणा के धूमिल होने को लेकर बहस-मुहासिबों का दौर चल रहा है, लेकिन पौड़ी की खामोशी सबको कचोट रही है। यह कचोटता का अहसास इसलिए भी है कि पौड़ी के स्वर में जो गर्मी है, वह ही मौजूदा सवालों से टकराने में सहायक हो सकती है। उसके बगैर कोई भी कोशिश अधूरी ही कही जाएगी। इस खामोशी के सवाल पर लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि पहाड़ में राजधानी बनने से होने वाले पहाड़ के विकास की सोच पर पौड़ीवासी ज्यादा गंभीर नहीं हैं। पौड़ी की उपेक्षा के चलते भी यहां के लोग स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजधानी को महज भौगोलिक दृष्टि से नजदीक देखना ठीक नहीं है। एक प्रकार की मानसिकता यह भी पनप गई है कि गैरसैंण से पौड़ी की दूरी बढ़ेगी। श्री नेगी के मुताबिक विकास के लिए पहाड़ में ही राजधानी होना बेहद जरूरी है। राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली पौड़ी गांव निवासी सावित्री देवी, रामी देवी, बसंती देवी सवाल करतीं हैं कि आखिर राज्य आंदोलन के बाद क्या हासिल हुआ है? राज्य प्राप्ति के बाद भी पौड़ी की लगातार उपेक्षा ही हो रही है। इससे पौड़ीवासी अब राजधानी समेत अन्य मसलों पर खामोश रहना ही बेहतर समझा रहे हैं। राज्य आंदोलन से जुड़े बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा कहते हैं, राज्य में अब तक की सरकारों ने शहीदों के सपनों के साथ मजाक किया है। जिन उद्देश्यों के लिए पृथक राज्य की लड़ाई लड़ी गई, उनको हाशिये पर धकेल दिया गया है। राज्य निर्माण आंदोलनकारी कल्याण परिषद के सदस्य नंदन सिंह रावत कहते हैं कि राज्य प्राप्ति के बाद पौड़ी तमाम मुद्दों पर खामोश हो गया है। पौड़ी अपने आप को भी ठगा सा महसूस कर रहा है।
Saturday, 6 August 2011
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Friday, 5 August 2011
एमडी-एमएस और एमबीबीएस की सीटें बढेंगी
देहरादून,- अगले सत्र से सूबे में एमबीबीएस और पीजी कोर्स एमडी, एमएस की सरकारी सीटों में इजाफा होने जा रहा है। सरकारी मेडिकल कालेज हल्द्वानी में एमबीबीएस की सीटें सौ से बढ़ाकर
150 करने और पीजी कोर्स की सीटें 27 से बढ़ाकर 50 करने और श्रीनगर मेडिकल कालेज में नान क्लिनिकल और पैरा क्लिनिकल के आठ पीजी कोर्स शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए स्टाफ की कमी दूर कर जल्द एमसीआई को प्रस्ताव भेजे जाएंगे। उधर, श्रीनगर मेडिकल कालेज में बतौर कार्यवाहक प्राचार्य डा. स्नेहलता सूद ने कार्यभार संभाल लिया है। शासन की उच्चस्तरीय बैठक में यह सहमति बनी है।
150 करने और पीजी कोर्स की सीटें 27 से बढ़ाकर 50 करने और श्रीनगर मेडिकल कालेज में नान क्लिनिकल और पैरा क्लिनिकल के आठ पीजी कोर्स शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए स्टाफ की कमी दूर कर जल्द एमसीआई को प्रस्ताव भेजे जाएंगे। उधर, श्रीनगर मेडिकल कालेज में बतौर कार्यवाहक प्राचार्य डा. स्नेहलता सूद ने कार्यभार संभाल लिया है। शासन की उच्चस्तरीय बैठक में यह सहमति बनी है।
Thursday, 4 August 2011
हजारों नम आंखों ने किया शहादत को सलाम Constable Last salute the martyrs
हल्द्वानी: कुपवाड़ा सेक्टर के गूगलधार इलाके में आतंकियों द्वारा किए गए विस्फोट में शहीद हुए हवलदार जयपाल सिंह की बुधवार को सैन्य सम्मान के साथ अंत्येष्टि कर दी गई।
आर्मी अफसरों के अलावा पुलिस, प्रशासनिक अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने भी शहीद के शव पर पुष्पांजलि अर्पित की।
द्वाराहाट विकासखंड के असगोली निवासी जयपाल सिंह अधिकारी बीस कुमाऊं रेजीमेंट में हवलदार थे। वर्तमान में वह जम्मू के कुपवाड़ा सेक्टर में एलओसी के पास गूगलधार के दुर्गम इलाके में तैनात थे। 30 जुलाई की शाम सवा चार बजे आतंकियों ने तीन तरफ से घेराबंदी कर हमला कर दिया। जयपाल सिंह ने अपने सैनिकों के साथ आतंकवादियों का डटकर मुकाबला किया और उनके घुसपैठ के इरादे को नाकाम कर दिया। तीन तरफ से आतंकियों ने फायरिंग की और फिर ग्रेनेड से विस्फोट कर दिया, जिसमें हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी समेत तीन जवान शहीद हो गए।
जम्मू में तैनात सूबेदार महेंद्र सिंह शहीद हवलदार जयपाल सिंह का शव लेकर मंगलवार देर रात यहां आर्मी कैंट पहंुचे थे। बुधवार की सुबह आठ बजे दस मिनट के लिए शव को शहीद हवलदार के हिम्मतपुर तल्ला स्थित आवास पर ले जाया गया। विस्फोट में शव क्षत-विक्षत हो चुका था, लिहाजा उसे ताबूत से बाहर नहीं निकाला गया। जब तक सूरज चांद रहेगा, जयपाल तेरा नाम रहेगा, जयपाल तेरा ये बलिदान, याद रखेगा हिंदुस्तान, भारत माता की जय, हवलदार जयपाल सिंह अमर रहे नारों के साथ देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले जयपाल सिंह की शवयात्रा रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर पहंुची। वहां सबसे पहले जम्मू के कमान अधिकारी कर्नल दीपक शर्मा का वीरों की गाथा नाम से संदेश स्टेशन हेड क्वार्टर कर्नल आरके भंडारी ने पढ़कर सुनाया। कर्नल राजा माझी, सीएमपी के कर्नल एनएम इरानी, मेजर एमके गुप्ता, द्वाराहाट के विधायक पुष्पेश त्रिपाठी, सिटी मजिस्ट्रेट प्रकाश चंद्र, अपर पुलिस अधीक्षक जेएस भंडारी समेत तमाम अफसरों ने पुष्पांजलि अर्पित की।
आर्मी गारद ने फायरिंग कर शहीद हवलदार को अंतिम सलामी दी। मृतक के भाई हाइकोर्ट में असिस्टेंट रजिस्ट्रार चंदन सिंह अधिकारी, लक्ष्मण सिंह, नंदन सिंह ने चिता को मुखाग्नि दी। इस मौके पर सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल बंशीधर कांडपाल, मेजर जनरल सुरेंद्र साह, पूर्व सैनिक लीग के लेफ्टिनेंट कर्नल सीके चौधरी, लेफ्टिनेंट कर्नल केएस मेहता, कैप्टन टीएस सुयाल, कैप्टन एमएस बिष्ट, एडवोकेट गोविंद बिष्ट, ध्रुव पांडे, रमेश पलडिया, संदीप अधिकारी, कांग्रेस नेता हरीश कर्नाटक, भोलादत्त भट्ट, राजेंद्र फर्सवान, कमल भट्ट, नवीन पांडेय, हर्ष पांडे मौजूद थे।
आर्मी अफसरों के अलावा पुलिस, प्रशासनिक अफसरों और जनप्रतिनिधियों ने भी शहीद के शव पर पुष्पांजलि अर्पित की।
द्वाराहाट विकासखंड के असगोली निवासी जयपाल सिंह अधिकारी बीस कुमाऊं रेजीमेंट में हवलदार थे। वर्तमान में वह जम्मू के कुपवाड़ा सेक्टर में एलओसी के पास गूगलधार के दुर्गम इलाके में तैनात थे। 30 जुलाई की शाम सवा चार बजे आतंकियों ने तीन तरफ से घेराबंदी कर हमला कर दिया। जयपाल सिंह ने अपने सैनिकों के साथ आतंकवादियों का डटकर मुकाबला किया और उनके घुसपैठ के इरादे को नाकाम कर दिया। तीन तरफ से आतंकियों ने फायरिंग की और फिर ग्रेनेड से विस्फोट कर दिया, जिसमें हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी समेत तीन जवान शहीद हो गए।
जम्मू में तैनात सूबेदार महेंद्र सिंह शहीद हवलदार जयपाल सिंह का शव लेकर मंगलवार देर रात यहां आर्मी कैंट पहंुचे थे। बुधवार की सुबह आठ बजे दस मिनट के लिए शव को शहीद हवलदार के हिम्मतपुर तल्ला स्थित आवास पर ले जाया गया। विस्फोट में शव क्षत-विक्षत हो चुका था, लिहाजा उसे ताबूत से बाहर नहीं निकाला गया। जब तक सूरज चांद रहेगा, जयपाल तेरा नाम रहेगा, जयपाल तेरा ये बलिदान, याद रखेगा हिंदुस्तान, भारत माता की जय, हवलदार जयपाल सिंह अमर रहे नारों के साथ देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले जयपाल सिंह की शवयात्रा रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर पहंुची। वहां सबसे पहले जम्मू के कमान अधिकारी कर्नल दीपक शर्मा का वीरों की गाथा नाम से संदेश स्टेशन हेड क्वार्टर कर्नल आरके भंडारी ने पढ़कर सुनाया। कर्नल राजा माझी, सीएमपी के कर्नल एनएम इरानी, मेजर एमके गुप्ता, द्वाराहाट के विधायक पुष्पेश त्रिपाठी, सिटी मजिस्ट्रेट प्रकाश चंद्र, अपर पुलिस अधीक्षक जेएस भंडारी समेत तमाम अफसरों ने पुष्पांजलि अर्पित की।
आर्मी गारद ने फायरिंग कर शहीद हवलदार को अंतिम सलामी दी। मृतक के भाई हाइकोर्ट में असिस्टेंट रजिस्ट्रार चंदन सिंह अधिकारी, लक्ष्मण सिंह, नंदन सिंह ने चिता को मुखाग्नि दी। इस मौके पर सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल बंशीधर कांडपाल, मेजर जनरल सुरेंद्र साह, पूर्व सैनिक लीग के लेफ्टिनेंट कर्नल सीके चौधरी, लेफ्टिनेंट कर्नल केएस मेहता, कैप्टन टीएस सुयाल, कैप्टन एमएस बिष्ट, एडवोकेट गोविंद बिष्ट, ध्रुव पांडे, रमेश पलडिया, संदीप अधिकारी, कांग्रेस नेता हरीश कर्नाटक, भोलादत्त भट्ट, राजेंद्र फर्सवान, कमल भट्ट, नवीन पांडेय, हर्ष पांडे मौजूद थे।
Wednesday, 3 August 2011
उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां कृषि नीति में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसएजेड) को शामिल किया गया।
खेती थामेगी अब पलायन
सूबे के खेत-खलिहान, गांव और किसानों की रंगत बदलेगी। यह सब कृषि नीति की बदौलत होगा। पहली बार मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के विस्तार और उसकी जरूरतों को अलग-अलग तवज्जो दी गई है। नीति पर कारगर ढंग से अमल किया गया तो पहाड़ों से पलायन थमेगा और किसानों को अपने उत्पादों के वाजिब दाम मिलेंगे। वहीं मैदानों में खेती लाभ के मामले में उद्योग की शक्ल लेगी।
उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां कृषि नीति में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसएजेड) को शामिल किया गया। इस नीति की खास बात यह है कि स्वैच्छिक चकबंदी अपनाने वाली ग्राम पंचायत एसएजेड में शामिल होंगी। उन्हें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का सीधे लाभ मिलेगा। फिलहाल पौड़ी जिले की एकमात्र गांव पंचायत लखौली को इस नीति के तहत 34 लाख की परियोजनाएं मिली हैं।
सूबे की संशोधित कृषि नीति पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी। पहले प्रस्तावित नीति में कृषि भूमि खरीद पर रोक लगाई गई थी। सरकार ने फिलहाल यह रोक हटा दी है। साथ ही यह तय हुआ कि एसएजेड चिन्हित किए जाएंगे। इन क्षेत्रों में कृषि के लिए 24 घंटे बिजली मिलेगी। भूमि संरक्षण, जल संरक्षण के साथ किसान को मिट्टी की जांच की सुविधा दी जाएगी। ऐसे क्षेत्र में प्रत्येक किसान परिवार का एक सदस्य मुफ्त ट्रेनिंग पा सकेगा। नीति में पहली बार पर्वतीय और मैदानी क्षेत्र में खेती की अलग-अलग जरूरत के मद्देनजर व्यवस्थाएं की गई हैं।
कृषि सचिव ओमप्रकाश ने बताया कि नीति में उत्तराखंड को बीज प्रदेश और जैव प्रदेश के रूप में स्थापित करने पर जोर है। सूबे में केवल 13.29 फीसदी भूमि खेती योग्य है। पर्वतीय क्षेत्र में चार लाख हेक्टेअर कृषि भूमि का सिर्फ 10.62 फीसदी ही सिंचित है, जबकि मैदानी क्षेत्र में सिंचित भूमि 91.93 फीसदी है। एसएजेड बनने से विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों को ज्यादा फायदा होगा। पहाड़ों में छोटी और बिखरी जोतों को समेटने के लिए स्वैच्छिक चकबंदी को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए ग्राम पंचायतों और किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। चकबंदी क्षेत्र में अपनी भूमि से सटी भूमि खरीदने पर किसान को तीन साल तक स्टांप ड्यूटी नहीं देनी पड़ेगी। एसएजेड में दो फीसदी भूमि सार्वजनिक उपयोग के कार्यो में इस्तेमाल होगी। इनके लिए खेती का प्लान जलागम निदेशालय तैयार करेगा।
नीति के तहत मैदानी क्षेत्र में खेती से लंबे समय तक लाभ दिलाने तो पर्वतीय क्षेत्र में लंबे समय तक खाद्यान्न जरूरत, पोषण और आजीविका सुरक्षा पर फोकस किया गया है। नीति को दस अध्यायों में बांटकर पीपीपी मोड में खेती, कांट्रेक्ट फार्मिग के साथ ही उसे बाजार से जोड़ने की विशेष व्यवस्था की जाएगी। दीर्घकालिक योजना के तहत सूबे का लक्ष्य अपनी करीब 18.85 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न और सवा तीन लाख मीट्रिक टन दलहन-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का है।
सूबे के खेत-खलिहान, गांव और किसानों की रंगत बदलेगी। यह सब कृषि नीति की बदौलत होगा। पहली बार मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के विस्तार और उसकी जरूरतों को अलग-अलग तवज्जो दी गई है। नीति पर कारगर ढंग से अमल किया गया तो पहाड़ों से पलायन थमेगा और किसानों को अपने उत्पादों के वाजिब दाम मिलेंगे। वहीं मैदानों में खेती लाभ के मामले में उद्योग की शक्ल लेगी।
उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां कृषि नीति में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसएजेड) को शामिल किया गया। इस नीति की खास बात यह है कि स्वैच्छिक चकबंदी अपनाने वाली ग्राम पंचायत एसएजेड में शामिल होंगी। उन्हें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का सीधे लाभ मिलेगा। फिलहाल पौड़ी जिले की एकमात्र गांव पंचायत लखौली को इस नीति के तहत 34 लाख की परियोजनाएं मिली हैं।
सूबे की संशोधित कृषि नीति पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी। पहले प्रस्तावित नीति में कृषि भूमि खरीद पर रोक लगाई गई थी। सरकार ने फिलहाल यह रोक हटा दी है। साथ ही यह तय हुआ कि एसएजेड चिन्हित किए जाएंगे। इन क्षेत्रों में कृषि के लिए 24 घंटे बिजली मिलेगी। भूमि संरक्षण, जल संरक्षण के साथ किसान को मिट्टी की जांच की सुविधा दी जाएगी। ऐसे क्षेत्र में प्रत्येक किसान परिवार का एक सदस्य मुफ्त ट्रेनिंग पा सकेगा। नीति में पहली बार पर्वतीय और मैदानी क्षेत्र में खेती की अलग-अलग जरूरत के मद्देनजर व्यवस्थाएं की गई हैं।
कृषि सचिव ओमप्रकाश ने बताया कि नीति में उत्तराखंड को बीज प्रदेश और जैव प्रदेश के रूप में स्थापित करने पर जोर है। सूबे में केवल 13.29 फीसदी भूमि खेती योग्य है। पर्वतीय क्षेत्र में चार लाख हेक्टेअर कृषि भूमि का सिर्फ 10.62 फीसदी ही सिंचित है, जबकि मैदानी क्षेत्र में सिंचित भूमि 91.93 फीसदी है। एसएजेड बनने से विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों को ज्यादा फायदा होगा। पहाड़ों में छोटी और बिखरी जोतों को समेटने के लिए स्वैच्छिक चकबंदी को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए ग्राम पंचायतों और किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। चकबंदी क्षेत्र में अपनी भूमि से सटी भूमि खरीदने पर किसान को तीन साल तक स्टांप ड्यूटी नहीं देनी पड़ेगी। एसएजेड में दो फीसदी भूमि सार्वजनिक उपयोग के कार्यो में इस्तेमाल होगी। इनके लिए खेती का प्लान जलागम निदेशालय तैयार करेगा।
नीति के तहत मैदानी क्षेत्र में खेती से लंबे समय तक लाभ दिलाने तो पर्वतीय क्षेत्र में लंबे समय तक खाद्यान्न जरूरत, पोषण और आजीविका सुरक्षा पर फोकस किया गया है। नीति को दस अध्यायों में बांटकर पीपीपी मोड में खेती, कांट्रेक्ट फार्मिग के साथ ही उसे बाजार से जोड़ने की विशेष व्यवस्था की जाएगी। दीर्घकालिक योजना के तहत सूबे का लक्ष्य अपनी करीब 18.85 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न और सवा तीन लाख मीट्रिक टन दलहन-तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का है।
उत्तराखंड में अगेंस्ट मेडिकल एंड मेडिकल पर्सन डैमेज टू प्रापर्टी एक्ट
देहरादून-वायलेंस अगेंस्ट मेडिकल एंड मेडिकल पर्सन डैमेज टू प्रापर्टी एक्ट के सूबे में लागू होने से स्वास्थ्य कर्मियों के साथ मारपीट व अस्पतालों में तोड़फोड़ की घटनाओं पर अंकुश लगेगा
और अराजक तत्वों पर नकेल कसेगी, लेकिन गलती यदि स्वास्थ्य कर्मी की रही तो वे भी एक्ट के दायरे में आएंगे और उनके खिलाफ भी कार्यवाही होगी।
लंबे जद्दोजहद के बाद सूबे में एक्ट के लागू होने से स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने राहत की सांस ली है। वर्ष 2004 में आंध्र प्रदेश में लागू होने के बाद केंद्र ने सभी राज्यों को इसे आधार बनाकर अपने यहां लागू करने के निर्देश दिए थे। सूबे में अब जाकर लागू हुआ है, हालांकि होमवर्क दो साल से चल रहा था।
और अराजक तत्वों पर नकेल कसेगी, लेकिन गलती यदि स्वास्थ्य कर्मी की रही तो वे भी एक्ट के दायरे में आएंगे और उनके खिलाफ भी कार्यवाही होगी।
लंबे जद्दोजहद के बाद सूबे में एक्ट के लागू होने से स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने राहत की सांस ली है। वर्ष 2004 में आंध्र प्रदेश में लागू होने के बाद केंद्र ने सभी राज्यों को इसे आधार बनाकर अपने यहां लागू करने के निर्देश दिए थे। सूबे में अब जाकर लागू हुआ है, हालांकि होमवर्क दो साल से चल रहा था।
निशंक कैबिनेट ने डाक्टरों, व्यापारियों, किसानों के हित के लिए घोषित की नई नीति
781 डाक्टरों की पदोन्नति, 136 आबकारी सिपाहियों की भर्ती और तीन निजी विश्र्वविद्यालयों के गठन का रास्ता
देहरादून- सूबे में डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों पर हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर लगाम लगेगी।
कैबिनेट ने उत्तराखंड मेडिकेयर सर्विस परसंस एंड इंस्टीट्यूट्स (प्रिवेंशन ऑफ वायलेंस एंड डैमेज टू प्रापर्टी) बिल-2011 को मंजूरी दे दी, लेकिन शर्त यह भी है कि गलत एफआइआर या शिकायत करने पर दोषी भी नपेंगे। संशोधित कृषि नीति में अब विशेष कृषि क्षेत्र (एसएजेड), स्वैच्छिक चकबंदी को तवज्जो दी गई है। अब सर्वसम्मति से चकबंदी लागू करने पर ग्राम पंचायत को एसएजेड का लाभ मिलेगा। कैबिनेट ने फिलहाल कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण के साथ ही व्यापार कर के बकाएदार व्यापारियों और 76 संविदा आयुष डाक्टरों की कार्य अवधि एक साल बढ़ाकर राहत दी गई है। 781 डाक्टरों की पदोन्नति, 136 आबकारी सिपाहियों की भर्ती और तीन निजी विश्र्वविद्यालयों के गठन का रास्ता साफ हो गया है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक कैबिनेट ने मंगलवार को डाक्टरों, व्यापारियों, किसानों के हित में नई नीतियों पर मुहर लगा दी। कैबिनेट के तकरीबन दर्जनभर फैसलों की मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने ब्रीफिंग की। उन्होंने बताया कि अब सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डाक्टरों, स्वास्थ्य कर्मचारियों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले दंड के भागीदार होंगे। लंबे इंतजार के बाद कैबिनेट ने इस बिल को सशर्त मंजूरी दी। यह बिल उन्हीं सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों पर लागू हो, जो क्लिनिकल एक्ट के तहत रजिस्टर्ड होंगे। गलत एफआइआर या शिकायत करने पर डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों पर भी कार्यवाही का प्रावधान बिल में शामिल किया गया है। उत्तराखंड चिकित्सा स्वास्थ्य नियमावली 2009 में संशोधन कर 781 डाक्टरों की पदोन्नति और अन्य लाभ दिए जा सकेंगे। समूह-घ डेड कैडर होने के बावजूद आबकारी महकमे में 139 आबकारी सिपाहियों के पदों को कैबिनेट ने उपयोगी मानते हुए भर्ती की मंजूरी दी। केंद्रपोषित राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम में केंद्र और राज्य की 60:40 की भागीदारी पर कैबिनेट ने आपत्ति जताई। यह तय किया कि विशेष राज्य का दर्जा होने के कारण उत्तराखंड को 90:10 अनुपात में इस योजना का लाभ मिलना चाहिए। तब तक तय अनुपात के मुताबिक राज्य हर साल 20 करोड़ की राशि इस कार्यक्रम के तहत देगा। केंद्र 120 करोड़ और राज्य 89 करोड़ रुपये देगा। होटलों के लिए सुख संसाधन कर नियमावली में तीन संशोधन किए गए हैं। अब एक हजार से ज्यादा कीमत वाले कमरों का रजिस्ट्रेशन होगा। उन्हें मुख्यालय स्थापित करना होगा। वे लग्जरी टैक्स के लिए मौजूदा एक अपील की व्यवस्था के बजाए दो अपील कर सकेंगे। एक अन्य फैसले में वर्ष 1988 से 2006 तक एक लाख के बकाया कर पर ब्याज और अर्थदंड खत्म किया गया है। दस लाख तक बकाया पर सिर्फ दस फीसदी ब्याज और इससे अधिक बकाया पर 25 फीसदी ब्याज देना होगा। व्यापारियों को अर्थदंड माफ किया गया है। 76 संविदा आयुष डाक्टरों को 31 मार्च, 2011 तक संविदा अवधि खत्म होने पर एक साल का कार्य विस्तार दिया गया है। गढ़वाल मंडल विकास निगम की वर्ष 2002-03 में शराब की अलाभकारी दुकानों पर करीब 12.50 लाख रुपये की देनदारी भी माफ की गई है। पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक में बांगघाट पर 1978 में बने पुल पर पथकर नहीं लगेगा। कैबिनेट ने यह बकाया भी माफ कर दिया। तीन निजी विश्र्वविद्यालयों वनस्थली विद्यापीठ (हरिद्वार), लिंग्याज विवि (हरिद्वार) और एचटी ग्लोबल विवि के दून के साथ गढ़वाल व कुमाऊं में एक-एक हिल कैंपस को मंजूरी दी गई। उत्तराखंड लेखा कृषि सेवा नियमावली पारित की गई। इस मौके पर कृषि सचिव ओमप्रकाश, वित्त अपर सचिव हेमलता ढौंडियाल, प्रभारी सचिव अजय प्रद्योत भी मौजूद थे।
देहरादून- सूबे में डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों पर हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर लगाम लगेगी।
कैबिनेट ने उत्तराखंड मेडिकेयर सर्विस परसंस एंड इंस्टीट्यूट्स (प्रिवेंशन ऑफ वायलेंस एंड डैमेज टू प्रापर्टी) बिल-2011 को मंजूरी दे दी, लेकिन शर्त यह भी है कि गलत एफआइआर या शिकायत करने पर दोषी भी नपेंगे। संशोधित कृषि नीति में अब विशेष कृषि क्षेत्र (एसएजेड), स्वैच्छिक चकबंदी को तवज्जो दी गई है। अब सर्वसम्मति से चकबंदी लागू करने पर ग्राम पंचायत को एसएजेड का लाभ मिलेगा। कैबिनेट ने फिलहाल कृषि भूमि की खरीद पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण के साथ ही व्यापार कर के बकाएदार व्यापारियों और 76 संविदा आयुष डाक्टरों की कार्य अवधि एक साल बढ़ाकर राहत दी गई है। 781 डाक्टरों की पदोन्नति, 136 आबकारी सिपाहियों की भर्ती और तीन निजी विश्र्वविद्यालयों के गठन का रास्ता साफ हो गया है।
मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक कैबिनेट ने मंगलवार को डाक्टरों, व्यापारियों, किसानों के हित में नई नीतियों पर मुहर लगा दी। कैबिनेट के तकरीबन दर्जनभर फैसलों की मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने ब्रीफिंग की। उन्होंने बताया कि अब सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में डाक्टरों, स्वास्थ्य कर्मचारियों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले दंड के भागीदार होंगे। लंबे इंतजार के बाद कैबिनेट ने इस बिल को सशर्त मंजूरी दी। यह बिल उन्हीं सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों पर लागू हो, जो क्लिनिकल एक्ट के तहत रजिस्टर्ड होंगे। गलत एफआइआर या शिकायत करने पर डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों पर भी कार्यवाही का प्रावधान बिल में शामिल किया गया है। उत्तराखंड चिकित्सा स्वास्थ्य नियमावली 2009 में संशोधन कर 781 डाक्टरों की पदोन्नति और अन्य लाभ दिए जा सकेंगे। समूह-घ डेड कैडर होने के बावजूद आबकारी महकमे में 139 आबकारी सिपाहियों के पदों को कैबिनेट ने उपयोगी मानते हुए भर्ती की मंजूरी दी। केंद्रपोषित राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम में केंद्र और राज्य की 60:40 की भागीदारी पर कैबिनेट ने आपत्ति जताई। यह तय किया कि विशेष राज्य का दर्जा होने के कारण उत्तराखंड को 90:10 अनुपात में इस योजना का लाभ मिलना चाहिए। तब तक तय अनुपात के मुताबिक राज्य हर साल 20 करोड़ की राशि इस कार्यक्रम के तहत देगा। केंद्र 120 करोड़ और राज्य 89 करोड़ रुपये देगा। होटलों के लिए सुख संसाधन कर नियमावली में तीन संशोधन किए गए हैं। अब एक हजार से ज्यादा कीमत वाले कमरों का रजिस्ट्रेशन होगा। उन्हें मुख्यालय स्थापित करना होगा। वे लग्जरी टैक्स के लिए मौजूदा एक अपील की व्यवस्था के बजाए दो अपील कर सकेंगे। एक अन्य फैसले में वर्ष 1988 से 2006 तक एक लाख के बकाया कर पर ब्याज और अर्थदंड खत्म किया गया है। दस लाख तक बकाया पर सिर्फ दस फीसदी ब्याज और इससे अधिक बकाया पर 25 फीसदी ब्याज देना होगा। व्यापारियों को अर्थदंड माफ किया गया है। 76 संविदा आयुष डाक्टरों को 31 मार्च, 2011 तक संविदा अवधि खत्म होने पर एक साल का कार्य विस्तार दिया गया है। गढ़वाल मंडल विकास निगम की वर्ष 2002-03 में शराब की अलाभकारी दुकानों पर करीब 12.50 लाख रुपये की देनदारी भी माफ की गई है। पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक में बांगघाट पर 1978 में बने पुल पर पथकर नहीं लगेगा। कैबिनेट ने यह बकाया भी माफ कर दिया। तीन निजी विश्र्वविद्यालयों वनस्थली विद्यापीठ (हरिद्वार), लिंग्याज विवि (हरिद्वार) और एचटी ग्लोबल विवि के दून के साथ गढ़वाल व कुमाऊं में एक-एक हिल कैंपस को मंजूरी दी गई। उत्तराखंड लेखा कृषि सेवा नियमावली पारित की गई। इस मौके पर कृषि सचिव ओमप्रकाश, वित्त अपर सचिव हेमलता ढौंडियाल, प्रभारी सचिव अजय प्रद्योत भी मौजूद थे।
Tuesday, 2 August 2011
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बाघ संरक्षण के मामले में उत्तराखंड पहले नंबरFirst case of Uttarakhand tiger conservation in numbers
देहरादून- केंद्र सरकार भले ही लाख कोसती रही हो, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो उसे उत्तराखंड से ही मुंह की खानी पड़ी है।
बाघ संरक्षण के मामले में परिदृश्य कुछ ऐसा ही है। केंद्र लगातार उत्तराखंड में बाघ संरक्षण को लेकर चिंता जताता रहा और इस सिलसिले में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री ने पचास से ज्यादा पत्र भी राज्य सरकार को भेजे, लेकिन नतीजे सामने आए तो साफ हुआ कि यह चिंता ही बेजा थी। बाघों के घनत्व के मामले में उत्तराखंड का कार्बेट नेशनल पार्क अव्वल निकला। इसे देखते हुए अब राज्य सरकार ने भी मांग रख दी है कि वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन के बेहतरीन प्रयासों को देखते हुए इसके लिए केंद्र अलग से बजट मुहैया कराए। कार्बेट नेशनल पार्क यानी बाघों का घर। बीते डेढ़ सालों से यही पार्क केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की चिंता में शुमार था। चिंता यह थी कि बाघों के संरक्षण के मामले में उत्तराखंड सरकार संजीदा नहीं है। यूं कहें कि तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के एजेंडे में यह पहली पायदान पर था और उनकी ओर से पचास से ज्यादा पत्र उत्तराखंड सरकार को भेजे गए। उनकी यह चिंता तब निर्मूल साबित हुई, जब यह खुलासा हुआ कि बाघ संरक्षण के मामले में उत्तराखंड पहले नंबर पर है। पार्क में प्रति 100 वर्ग किमी क्षेत्र में 18 बाघ हैं और ऐसा घनत्व देश में कहीं नहीं है। काजीरंगा भी इस मामले में 6 बाघ पीछे ल्ल शेष पृष्ठ है। अब तो खुद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी उत्तराखंड में बाघ संरक्षण के प्रयासों को सराहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि यदि केंद्र की नजर में कार्बेट में स्थिति चिंताजनक थी तो वह नंबर-वन कैसे बना। खैर, अब उत्तराखंड सरकार ने भी दांव चला है। राज्य वन एवं पर्यावरण सलाहकार अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी के मुताबिक उत्तराखंड सरकार के प्रयास और कार्बेट के नजदीकी पौड़ी व नैनीताल जनपदों के निवासियों के त्याग के बूते ही उत्तराखंड बाघों का सरताज बना है।
बाघ संरक्षण के मामले में परिदृश्य कुछ ऐसा ही है। केंद्र लगातार उत्तराखंड में बाघ संरक्षण को लेकर चिंता जताता रहा और इस सिलसिले में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री ने पचास से ज्यादा पत्र भी राज्य सरकार को भेजे, लेकिन नतीजे सामने आए तो साफ हुआ कि यह चिंता ही बेजा थी। बाघों के घनत्व के मामले में उत्तराखंड का कार्बेट नेशनल पार्क अव्वल निकला। इसे देखते हुए अब राज्य सरकार ने भी मांग रख दी है कि वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन के बेहतरीन प्रयासों को देखते हुए इसके लिए केंद्र अलग से बजट मुहैया कराए। कार्बेट नेशनल पार्क यानी बाघों का घर। बीते डेढ़ सालों से यही पार्क केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की चिंता में शुमार था। चिंता यह थी कि बाघों के संरक्षण के मामले में उत्तराखंड सरकार संजीदा नहीं है। यूं कहें कि तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के एजेंडे में यह पहली पायदान पर था और उनकी ओर से पचास से ज्यादा पत्र उत्तराखंड सरकार को भेजे गए। उनकी यह चिंता तब निर्मूल साबित हुई, जब यह खुलासा हुआ कि बाघ संरक्षण के मामले में उत्तराखंड पहले नंबर पर है। पार्क में प्रति 100 वर्ग किमी क्षेत्र में 18 बाघ हैं और ऐसा घनत्व देश में कहीं नहीं है। काजीरंगा भी इस मामले में 6 बाघ पीछे ल्ल शेष पृष्ठ है। अब तो खुद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी उत्तराखंड में बाघ संरक्षण के प्रयासों को सराहा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि यदि केंद्र की नजर में कार्बेट में स्थिति चिंताजनक थी तो वह नंबर-वन कैसे बना। खैर, अब उत्तराखंड सरकार ने भी दांव चला है। राज्य वन एवं पर्यावरण सलाहकार अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी के मुताबिक उत्तराखंड सरकार के प्रयास और कार्बेट के नजदीकी पौड़ी व नैनीताल जनपदों के निवासियों के त्याग के बूते ही उत्तराखंड बाघों का सरताज बना है।
ढोल दमाऊं का प्यार लाया सात समंदर पार
श्रीनगर गढ़वाल-फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला सात समंदर पार का कोई गोरा अगर गढ़वाली बोले, गढ़वाली गीत गाए और ढोल-दमाऊं बजाए तो हर कोई आश्चर्यचकित होगा ही। टिहरी के पुजार गांव में इन दिनों यह नजारा देखा जा रहा है।
अमेरिका का एक प्रोफेसर गांव वालों के बीच रहकर न सिर्फ उनकी बोली बोलता है, बल्कि गायन और वादन से उनका मनोरंजन भी करता है। ढोल-दमाऊं का प्यार ही उसे सात समंदर पार से भारत खींच लाता है।
हम बात कर रहे हैं अमेरिका की सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के एथनोम्युजिकोलजी विभाग के प्रोफेसर स्टीफन फियोल की। विवि का यह विभाग दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के लोक संगीत का मानव विज्ञान की दृष्टि से अध्ययन करता है। स्टीफन भी उत्तराखंड के लोक संगीत का यहां के लोगों पर प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। वर्ष 2000 में पहली बार वह घूमने के उद्देश्य से एक साल के लिए भारत आया। इस दौरान उन्होंने वाराणसी में सितार सीखने के साथ ही मसूरी में दो माह हिंदी बोलने का प्रशिक्षण भी लिया। 2003 में दो माह के लिए भारत आने पर वह पहली बार उत्तराखंड पहुंचे। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, संस्कृति, संगीत व लोक कलाओं को देखकर वह अंत्यंत प्रभावित हुए।
2005 में यूनिवर्सिटी ऑफ इलेनऑय के अपने रिसर्च के संबंध में वह फिर एक साल के लिए उत्तराखंड पहुंचे। इस दौरान उसकी मुलाकात संस्कृति प्रेमी व गढ़वाल विवि के प्रो. डीआर पुरोहित से हुई। प्रो. पुरोहित के साथ रहकर ही उसने कई तरह की लोक कलाओं, संगीत, नृत्य, परंपराओं इत्यादि का अध्ययन किया। ढोल वादक सोहन लाल व सुकारु दास से भी इसी दौरान उसकी मुलाकात हुई, जिनके साथ रहकर उसने ढोल-दमाऊं, मश्कबीन, मोछंग आदि वाद्य यंत्र बजाने का अभ्यास किया। 2007 में एक साल के लिए वह फिर उत्तराखंड पहुंचे और पुजार गांव में रहकर लोक संगीत की बारीकियां सीखीं। इसी दौरान उन्होंने गढ़वाली बोली व गीत भी सीखे। स्टीफन के अनुसार भारत के कई राज्य घूमने के बाद लगा कि उत्तराखंड के लोक संगीत में यहां के समाज की परंपराएं, मेले, रीति रिवाज, संस्कृति व सभ्यता मिली हुई हैं। इसलिए इस लोक संगीत के अध्ययन में रुचि जागृत हुई। स्टीफन 2005 में छह ढोल-दमाऊं बनाकर अपने साथ अमेरिका भी ले गए। उन्होंने बताया कि अपने विभाग के छात्रों को वह उन्हीं वाद्य यंत्रों की मदद से उत्तराखंड के संगीत का अभ्यास कराते हैं।
अमेरिका का एक प्रोफेसर गांव वालों के बीच रहकर न सिर्फ उनकी बोली बोलता है, बल्कि गायन और वादन से उनका मनोरंजन भी करता है। ढोल-दमाऊं का प्यार ही उसे सात समंदर पार से भारत खींच लाता है।
हम बात कर रहे हैं अमेरिका की सिनसिनाटी विश्वविद्यालय के एथनोम्युजिकोलजी विभाग के प्रोफेसर स्टीफन फियोल की। विवि का यह विभाग दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के लोक संगीत का मानव विज्ञान की दृष्टि से अध्ययन करता है। स्टीफन भी उत्तराखंड के लोक संगीत का यहां के लोगों पर प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। वर्ष 2000 में पहली बार वह घूमने के उद्देश्य से एक साल के लिए भारत आया। इस दौरान उन्होंने वाराणसी में सितार सीखने के साथ ही मसूरी में दो माह हिंदी बोलने का प्रशिक्षण भी लिया। 2003 में दो माह के लिए भारत आने पर वह पहली बार उत्तराखंड पहुंचे। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, संस्कृति, संगीत व लोक कलाओं को देखकर वह अंत्यंत प्रभावित हुए।
2005 में यूनिवर्सिटी ऑफ इलेनऑय के अपने रिसर्च के संबंध में वह फिर एक साल के लिए उत्तराखंड पहुंचे। इस दौरान उसकी मुलाकात संस्कृति प्रेमी व गढ़वाल विवि के प्रो. डीआर पुरोहित से हुई। प्रो. पुरोहित के साथ रहकर ही उसने कई तरह की लोक कलाओं, संगीत, नृत्य, परंपराओं इत्यादि का अध्ययन किया। ढोल वादक सोहन लाल व सुकारु दास से भी इसी दौरान उसकी मुलाकात हुई, जिनके साथ रहकर उसने ढोल-दमाऊं, मश्कबीन, मोछंग आदि वाद्य यंत्र बजाने का अभ्यास किया। 2007 में एक साल के लिए वह फिर उत्तराखंड पहुंचे और पुजार गांव में रहकर लोक संगीत की बारीकियां सीखीं। इसी दौरान उन्होंने गढ़वाली बोली व गीत भी सीखे। स्टीफन के अनुसार भारत के कई राज्य घूमने के बाद लगा कि उत्तराखंड के लोक संगीत में यहां के समाज की परंपराएं, मेले, रीति रिवाज, संस्कृति व सभ्यता मिली हुई हैं। इसलिए इस लोक संगीत के अध्ययन में रुचि जागृत हुई। स्टीफन 2005 में छह ढोल-दमाऊं बनाकर अपने साथ अमेरिका भी ले गए। उन्होंने बताया कि अपने विभाग के छात्रों को वह उन्हीं वाद्य यंत्रों की मदद से उत्तराखंड के संगीत का अभ्यास कराते हैं।
सेल्युलोज एंड पेपर टेक्नोलॉजी में करिए एमएससी Cellulose and Paper Technology MSc urged in
देहरादून,- सेल्युलोज एंड पेपर इंडस्ट्री में ट्रेंड युवाओं की बढ़ती डिमांड को देखते हुए वन अनुसंधान संस्थान (डीम्ड) विवि ने सेल्युलोज एंड पेपर टेक्नोलॉजी में एमएससी डिग्री कोर्स शुरू किया है।
अब तक छात्रों को इस टेक्नोलॉजी में एक साल का पीजी डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है। पाठ्यक्रम के पहले सत्र में 14 छात्रों को दाखिला दिया गया है।
सोमवार को एमएससी कोर्स का शुभारंभ एफआरआइ के निदेशक व डीम्ड यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. एसएस नेगी ने किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सेल्युलोज एंड पेपर टेक्नोलॉजी में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए डिप्लोमा से डिग्री कोर्स शुरू किया गया। कोर्स कोर्डिनेटर डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि डिग्री कोर्स दो साल का होगा। पहले साल का प्रशिक्षण छात्रों को एफआरआइ में कराया जाएगा। जबकि दूसरे साल की पढ़ाई के लिए छात्रों को सेंट्रल पल्प एंड पेपर रिसर्च इंस्टीट्यूट सहारनपुर (सीपीपीआरआइ) भेजा जाएगा। शुरुआती सत्र को देखते हुए रिटर्न टेस्ट की जगह मेरिट के आधार पर 14 छात्रों को दाखिला दिया गया है। कार्यक्रम में सीपीपीआरआइ के निदेशक डॉ. आरएम माथुर, सेल्युलोज एंड पेपर डिवीजन के हेड डॉ. संजय नैथानी, डॉ. विमलेश बिष्ट, डॉ. नितिन, डॉ. आरडी गोदियाल, डॉ. वसुन्धरा ठाकुर, डॉ. सलिल धवन, डॉ. मृदुला नेगी आदि उपस्थित थे।
कोर्स से नौकरी तक
आवेदन: हर साल जून में एफआरआइ एमएससी पाठ्यक्रमों की विज्ञप्ति प्रकाशित करता है। एमएससी इन सेल्युलोज व पेपर टेक्नोलॉजी में प्रवेश के लिए भी जून में ही विज्ञापन जारी किए जाएंगे।
योग्यता: बीएससी (केमेस्ट्री विषय अनिवार्य) 50 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना जरूरी।
प्रवेश: रिटर्न टेस्ट और फिर मेरिट के आधार पर चुनाव।
रोजगार: शुरुआती सैलरी 25 हजार से शुरू, अनुभव और कंपनी के अनुसार बाद में 40-50 हजार प्रतिमाह या अधिक।
अब तक छात्रों को इस टेक्नोलॉजी में एक साल का पीजी डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है। पाठ्यक्रम के पहले सत्र में 14 छात्रों को दाखिला दिया गया है।
सोमवार को एमएससी कोर्स का शुभारंभ एफआरआइ के निदेशक व डीम्ड यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. एसएस नेगी ने किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सेल्युलोज एंड पेपर टेक्नोलॉजी में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए डिप्लोमा से डिग्री कोर्स शुरू किया गया। कोर्स कोर्डिनेटर डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि डिग्री कोर्स दो साल का होगा। पहले साल का प्रशिक्षण छात्रों को एफआरआइ में कराया जाएगा। जबकि दूसरे साल की पढ़ाई के लिए छात्रों को सेंट्रल पल्प एंड पेपर रिसर्च इंस्टीट्यूट सहारनपुर (सीपीपीआरआइ) भेजा जाएगा। शुरुआती सत्र को देखते हुए रिटर्न टेस्ट की जगह मेरिट के आधार पर 14 छात्रों को दाखिला दिया गया है। कार्यक्रम में सीपीपीआरआइ के निदेशक डॉ. आरएम माथुर, सेल्युलोज एंड पेपर डिवीजन के हेड डॉ. संजय नैथानी, डॉ. विमलेश बिष्ट, डॉ. नितिन, डॉ. आरडी गोदियाल, डॉ. वसुन्धरा ठाकुर, डॉ. सलिल धवन, डॉ. मृदुला नेगी आदि उपस्थित थे।
कोर्स से नौकरी तक
आवेदन: हर साल जून में एफआरआइ एमएससी पाठ्यक्रमों की विज्ञप्ति प्रकाशित करता है। एमएससी इन सेल्युलोज व पेपर टेक्नोलॉजी में प्रवेश के लिए भी जून में ही विज्ञापन जारी किए जाएंगे।
योग्यता: बीएससी (केमेस्ट्री विषय अनिवार्य) 50 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण होना जरूरी।
प्रवेश: रिटर्न टेस्ट और फिर मेरिट के आधार पर चुनाव।
रोजगार: शुरुआती सैलरी 25 हजार से शुरू, अनुभव और कंपनी के अनुसार बाद में 40-50 हजार प्रतिमाह या अधिक।
ऑनलाइन होने जा रहा रेवेन्यु रिकार्ड being online record
उत्तराखंड में अब राजस्व रिकार्ड ऑनलाइन होने जा रहे हैं। यानि, नागरिकों को भूमि विवाद, संपत्ति के रखरखाव, खरीद-फरोख्त और उसके मालिकाना हक के
निर्धारण के लिए कोई भी जानकारी चाहिए, वह ऑनलाइन हासिल हो जाएगी। राजस्व न्यायालयों में चल रहे मामलों के समाधान में भी इससे मदद मिलेगी। दरअसल, यह संभव होगा राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के उत्तराखंड में भी लागू होने से। समझा जा रहा है कि मंगलवार को होने जा रही कैबिनेट बैठक में इस पर मुहर लग सकती है।
राज्य में राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के अमल में आने से जमीन संबंधी सभी रिकार्ड, नक्शे व बंदोबस्त का डिजिटलाइजेशन तो होगा ही, साथ ही रजिस्ट्री के लिए सिंगल विंडो सिस्टम भी उपलब्ध हो जाएगा। कार्यक्रम के तहत सभी टैक्सचुअल यानि खसरा, खतौनी और स्पेशल, यानि नक्शे आदि भूमि अभिलेखों के साथ नॉन जेड ए खतौनियों का भी कंप्यूटरीकरण किया जाएगा। साथ ही कंप्यूटराइज्ड खतौनी के लिए कट ऑफ डेट का निर्धारण, पटवारी कानूनगो और तहसीलदार द्वारा भूमि अभिलेखों की जांच व वैधता के लिए जिम्मेदारी का निर्धारण तथा डेटा डिसप्ले के लिए यूनीकोड व्यवस्था व क्षेत्रीय भाषा का उपयोग भी इस कार्यक्रम में सुनिश्चित किया जाएगा ताकि पूरे देश में एक समान व्यवस्था बन सके।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्यक्रम को लागू करने के लिए राजस्व महकमे के कई कार्यो की प्रकृति में भी बदलाव करना पड़ेगा। मसलन, भूमि अभिलेखों से संबंधित मैनुअल और प्रारूपों को सरलीकृत किया जाएगा, तो सभी कंप्यूटराइज्ड अभिलेखों को विधिक मान्यता देने के लिए सरकार को संबंधित एक्ट और नियमों में संशोधन भी करने पड़ेंगे। इससे राज्य में रजिस्ट्री प्रक्रिया भी कंप्यूटराइज्ड हो जाएगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य में यह राष्ट्रीय कार्यक्रम अरसा पहले भी लागू किया जा सकता था लेकिन राज्य सरकार ने इस पर आने वाले 200 करोड़ के खर्च का अधिकांश हिस्सा केंद्र से ही हासिल करने की कोशिश की। इसके लिए लगभग सवा साल पहले राज्य सरकार ने केंद्र से मांग की कि विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा होने के कारण इस कार्यक्रम में उत्तराखंड को 90:10 के अनुपात में धनराशि उपलब्ध कराई जाए लेकिन केंद्र ने इसे अस्वीकार कर दिया। शासन के सूत्रों के मुताबिक अब सरकार मंगलवार को होने जा रही कैबिनेट बैठक में इसे पेश करने की तैयारी में है।
निर्धारण के लिए कोई भी जानकारी चाहिए, वह ऑनलाइन हासिल हो जाएगी। राजस्व न्यायालयों में चल रहे मामलों के समाधान में भी इससे मदद मिलेगी। दरअसल, यह संभव होगा राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के उत्तराखंड में भी लागू होने से। समझा जा रहा है कि मंगलवार को होने जा रही कैबिनेट बैठक में इस पर मुहर लग सकती है।
राज्य में राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के अमल में आने से जमीन संबंधी सभी रिकार्ड, नक्शे व बंदोबस्त का डिजिटलाइजेशन तो होगा ही, साथ ही रजिस्ट्री के लिए सिंगल विंडो सिस्टम भी उपलब्ध हो जाएगा। कार्यक्रम के तहत सभी टैक्सचुअल यानि खसरा, खतौनी और स्पेशल, यानि नक्शे आदि भूमि अभिलेखों के साथ नॉन जेड ए खतौनियों का भी कंप्यूटरीकरण किया जाएगा। साथ ही कंप्यूटराइज्ड खतौनी के लिए कट ऑफ डेट का निर्धारण, पटवारी कानूनगो और तहसीलदार द्वारा भूमि अभिलेखों की जांच व वैधता के लिए जिम्मेदारी का निर्धारण तथा डेटा डिसप्ले के लिए यूनीकोड व्यवस्था व क्षेत्रीय भाषा का उपयोग भी इस कार्यक्रम में सुनिश्चित किया जाएगा ताकि पूरे देश में एक समान व्यवस्था बन सके।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्यक्रम को लागू करने के लिए राजस्व महकमे के कई कार्यो की प्रकृति में भी बदलाव करना पड़ेगा। मसलन, भूमि अभिलेखों से संबंधित मैनुअल और प्रारूपों को सरलीकृत किया जाएगा, तो सभी कंप्यूटराइज्ड अभिलेखों को विधिक मान्यता देने के लिए सरकार को संबंधित एक्ट और नियमों में संशोधन भी करने पड़ेंगे। इससे राज्य में रजिस्ट्री प्रक्रिया भी कंप्यूटराइज्ड हो जाएगी। महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य में यह राष्ट्रीय कार्यक्रम अरसा पहले भी लागू किया जा सकता था लेकिन राज्य सरकार ने इस पर आने वाले 200 करोड़ के खर्च का अधिकांश हिस्सा केंद्र से ही हासिल करने की कोशिश की। इसके लिए लगभग सवा साल पहले राज्य सरकार ने केंद्र से मांग की कि विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा होने के कारण इस कार्यक्रम में उत्तराखंड को 90:10 के अनुपात में धनराशि उपलब्ध कराई जाए लेकिन केंद्र ने इसे अस्वीकार कर दिया। शासन के सूत्रों के मुताबिक अब सरकार मंगलवार को होने जा रही कैबिनेट बैठक में इसे पेश करने की तैयारी में है।
प्रथमा व मध्यमा सूबे में सेकेंड्री व हायर सेकेंड्री के समकक्षPrathama & middle province in the equivalent
देहरादून,-हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद द्वारा संचालित प्रथमा व मध्यमा (विशारद) परीक्षा को सूबे में सेकेंड्री व हायर सेकेंड्री के समकक्ष माना जाएगा। इस बारे में आज शासनादेश जारी हुआ।
शासन ने निदेशक विद्यालयी शिक्षा को कहा है कि हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से प्रथमा व मध्यमा की परीक्षा पास करने वालों को सूबे में सेकेंड्री और हायर सेकेंड्री के समकक्ष माना जाएगा। शासन ने शिक्षा विभाग को इस संबंध में कार्यवाही करने को निर्देश जारी करने का आग्रह किया है, ताकि राज्य में नौकरी के आवेदन में पात्र लोगों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
शासन ने निदेशक विद्यालयी शिक्षा को कहा है कि हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से प्रथमा व मध्यमा की परीक्षा पास करने वालों को सूबे में सेकेंड्री और हायर सेकेंड्री के समकक्ष माना जाएगा। शासन ने शिक्षा विभाग को इस संबंध में कार्यवाही करने को निर्देश जारी करने का आग्रह किया है, ताकि राज्य में नौकरी के आवेदन में पात्र लोगों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
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