Saturday, 31 October 2009

-महाभारत की अनछुई कथा है गैंडी उत्सव

-बसंत पंचमी पर आयोजित होता है च्वींचा गांव में गैंडी उत्सव -पांडवों को पिता के श्राद्ध के लिए चाहिए था विशेष गैंडी का सिर -च्वींचा में गैंडी के स्वामी नागमल से किया था पांडवों ने एक माह तक युद्ध पौड़ी: देशभर में रामलीला का मंचन किया जाता है। उत्तराखंड में भी यह परंपरा है, लेकिन यहां सिर्फ रामलीला ही नहीं, बल्कि महाभारत की प्रमुख कथाओं का भी मंचन किया जाता है। दरअसल, पांडव पितृहत्या दोष से मुक्ति पाने को हिमालय की ओर आए थे, इसीलिए गढ़वाल भर में पांडवों की कथाओं के प्रति खासा जुड़ाव देखा जाता है। ऐसा ही एक आयोजन होता है पौड़ी स्थित च्वींचा गांव में, जहां महाभारत की एक ऐसी कथा का मंचन किया जाता है, जो अधिक प्रचलित नहीं है। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के मौके पर होने वाला यह आयोजन गैंडी उत्सव के नाम से जाना जाता है। च्वींचा गांव में हर साल आयोजित होने वाले गैंडी उत्सव व इससे जुड़ी महाभारत की ऐतिहासिक कहानी की जानकारी बहुत कम लोगों को ही है। असल में यहां एक ऐसी घटना का तीन दिन का जीवंत मंचन किया जाता है, जो महाभारत के जुड़े तमाम लेखों से अछूती है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, पांडवों को पिता पांडु के श्राद्ध के लिए एक विशेष प्रकार की गैंडी (मादा गैैंडा) के सिर की जरूरत थी। उन्होंने खोजबीन की तो पता चला कि च्वींचा गांव के नागमल व उसकी बहन नागमली के पास सीता व राम नामक गैंडी व गैंडा मौजूद थे। बताया जाता है कि पांडवों ने जब नागमल से सीता गैंडी देने के कहा तो नागमल ने इसके लिए युद्ध करने की शर्त रखी। पांडवों व नागमल के बीच एक माह तक लगातार रात-दिन का घोर युद्ध चला। युद्ध के दौरान नागमली ने भाई की परोक्ष रूप से सहायता की, लेकिन आखिरकार पांडवों ने नागमल को पराजित कर दिया। इसके बाद पांडवों ने गैंडी का वध कर गैंडी के सिर से पिता पांडु का श्राद्ध किया। इसी मान्यता के आधार पर गांव में प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के दिन तीन दिवसीय गैंडी उत्सव को आयोजित किया जाता है। पंचमी के दिन गांव में स्थित मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। कथा के मंचन के दौरान गांव के पांच युवक पांडवों व दो लोग नागमल व नागमली की भूमिका निभाते हैं। प्रतीक रूप में गैंडी बनाई जाती है। आखिरी दिन पांडवों व नागमल के बीच युद्ध होता है, मंचन में आखिरकार नागमल को पांच पांडव पराजित कर देते हैं। युद्ध का मंचन ढोल दमाऊ के साथ किया जाता है। इसके बाद च्वींचा गांव में भी विधि विधान ने पांच पांडव अपने पिता पांडु का पितृविसर्जन करते हैं। संस्कृतिकर्मी अरविंद मुदगिल व गैंडी उत्सव मंचन से जुड़े मनोज रावत, अंजुल बताते हैं कि इस परंपरा को आगे भी जारी रखा जाएगा।

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