Friday, 16 October 2009
-अब गढ़वाली पॉप पर थिरकेगी दुनिया
बदलने लगा टे्रंड, नई पीढ़ी ने गढ़वाली गीत-संगीत में शुरू किए नए प्रयोग
पॉप म्यूजिक में गाए जाने लगे हैं पहाड़ के गीत
तेज रफ्तार जिंदगी में लकीर का फकीर बने रहना ठीक नहीं
थोड़े से प्रयासों से पहाड़ी लोकधुनों पर भी थिरकायी जा सकती है पूरी दुनिया
, देहरादून
याद कीजिए उस आईटी प्रोफेशनल के करिश्मे को, जिसने लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत 'जा-जा बेटी नागणी बजार' की रिदम पर शकीरा के नृत्य को कुछ इस अंदाज में जोड़ा कि नेगी भी अवाक रह गए, लेकिन इसने यह तो साबित कर ही दिया कि थोड़े से प्रयासों से पहाड़ी लोकधुनों पर पूरी दुनिया को थिरकाया जा सकता है। सच यह है कि व्यस्तताओं और जिम्मेदारियों से भरे वर्तमान में हमारे पास अपनी परंपराओं व संस्कृति से देश-दुनिया को परिचित कराने का और कोई विकल्प भी नहीं बचा है। यही वजह है कि नई पीढ़ी ने गीत-संगीत में नए प्रयोग शुरू कर दिए हैं।
नई पीढ़ी इस दौर में ऐसा प्रयोग करना चाहती है, जिसमें परंपराओं के सम्मान के साथ ही नयापन भी हो। नवोदित गायक रजनीकांत सेमवाल की हाल में रिलीज वीडियो एलबम 'टिकुलिया मामा' इसी बानगी को पेश करती है। एक खास बात यह है कि लोक संगीत को नए अंदाज में पेश करने के अब तक जो भी प्रयास हुए, वे बचकाने ही अधिक रहे हैं, जिससे गंभीरता के बजाय इसमें लंपटपना अधिक आ गया। इस ऊहापोह के बीच अगर कुछ युवा पहाड़ी गीत-संगीत को नया अंदाज दे रहे हैं तो इसे भविष्य के लिए अच्छा संकेत ही माना जाना चाहिए। प्रीतम भरतवाण, मंगलेश डंगवाल, रजनीकांत सेमवाल सरीखे युवा गायकों ने जिस नई परंपरा का सूत्रपात किया है, वह निश्चित रूप से उत्तराखंडी गीत-संगीत को ऊंचाइयों तक ले जाएगी।
पॉप और लाउंज मिक्स का दौर
बदलते दौर में फॉस्ट म्यूजिक और गैरपारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग गढ़वाली-कुमाऊंनी गीतों में भी तेजी से बढ़ा है। धीरे-धीरे वायलिन, गिटार, माउथ ऑर्गन व ड्रम जैसे आधुनिक साज लोक संगीत की जरूरत बन गए हैं। 'टिकुलिया मामा' की सफलता इस बात का प्रमाण है कि यहां का लोक संगीत वेस्टर्न म्यूजिक का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। इस एलबम में प्र्रोग्राम्ड म्यूजिक की मदद से जिस तरह पॉप और लाउंज मिक्स गाने प्रस्तुत किए गए हैं, वह भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करने वाले साबित होंगे।
ताकि लोकप्रियता मिले
गीत-संगीत में नए प्रयोगों के पीछे यह धारणा भी काम कर रही है कि लोक संगीत को उसी तरह देश-दुनिया में लोकप्रिय बनाया जाए, जैसे पंजाबी, राजस्थानी आदि प्रांतों के लोक संगीत को हासिल है। मूल को ठेस पहुंचाए बिना यदि युवा संगीतज्ञ ऐसे प्रयोग कर रहे हैं तो इसका स्वागत ही किया जाना चाहिए।
''अगर नई पीढ़ी को सिरफिरा कहकर उपेक्षित किया जाता रहा तो हमारी बोली, भाषा, गीत-संगीत को आगे कौन ले जाएगा। यह पीढ़ी तो कमोबेश एक ही रंग में रंगी है, फिर चाहे वह चमोली में हो या चंडीगढ़ में।'' - मुकेश नौटियाल, साहित्यकार
''अपनी बोली में अगर वही संगीत उपलब्ध हो, जिस पर देश-दुनिया थिरक रही है, तो यकीनन देश-दुनिया में छितर चुके प्रवासी इसी बहाने अपनी जड़ों की ओर देख सकते हैं।'' - रजनीकांत सेमवाल, युवा गढ़वाली गायक
''गीत-संगीत में नया प्रयोग वर्तमान की जरूरत है। नए प्रयासों से लोग यदि अपनी संस्कृति, परंपराओं और बोली-भाषा को अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं तो इससे नए संगीतज्ञों को आगे बढऩे की प्रेरणा मिलेगी'' - मंगलेश डंगवाल, गढ़वाली लोकगायक
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Hello, Garhwali Bhaiyu, i belong to garhwal, pauri, pls see my profile.
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