Saturday, 31 October 2009
कपाट बंद तो नहीं होती खेती
-बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने- बंद होने पर निर्भर हैं दर्जनों गांवों के लोग
-शीतकाल में बदरीनाथ के आसपास नहीं हो पाती है खेती
-यात्रा के चार- पांच माह में ही करनी पड़ती है साल भर की व्यवस्था
गोपेश्वर
यूं तो भगवान बदरीनाथ करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र हैं और इन्हीं के भरोसे श्रद्धालु अपनी जीवन नैया पार लगाने में जुटे रहते हैं, लेकिन बदरीनाथ धाम के समीपवर्ती दर्जनों गांव ऐसे हैं, जिनकी आजीविका ही भगवान के नाम पर चलती है। धाम के कपाट खुलने के साथ ही इन गांवों के सैकड़ों लोगों के लिए रोजी- रोटी के जुगाड़ का रास्ता भी खुल जाता है। दरअसल, शीतकाल में बदरीनाथ व आसपास का इलाका बर्फ की चादर में ढक जाता है। ऐसे में, इन लोगों के खेती कार्य ठप हो जाते हैं, इसलिए चार- पांच महीने के यात्राकाल के दौरान ही ये लोग अपने लिए सालभर के अनाज की व्यवस्था कर लेते हैं।
बदरीनाथ धाम व इसके आसपास के क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों की कृषि व अन्य व्यवसायों के बीच प्राचीन काल से ही अनोखा तालमेल है। धाम के कपाट खुलने व बंद होने पर ग्रामीणों की खेतीबाड़ी व रोजमर्रा का जीवन भी इस पर पूरी तरह से निर्भर करता है। दरअसल, बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के साथ ही शीतकाल भी शुरू हो जाता है और इस दौरान पांच-छह माह तक धाम व इसके आसपास का इलाका बेहद सर्द रहता है। इसके चलते यहां कृषि कार्य करना संभव नहीं होता। यही वजह है कि इलाके के लोग कपाट बंद होते ही यहां से अपने अस्थायी निवासों का रुख कर लेते हैं। मंदिर से लगे बामणी गांव के लोग पांडुकेश्वर, देश के अंतिम गांव माणा के लोग घिंघराण, छिनका, नैगवाड़, नरौं, सैटुणा, मंदिर से जुड़े डिमरी पंचायत के लोग कपाट बंद होने पर रविग्राम, पाखी व डिम्मर कर्णप्रयाग और देवप्रयाग पंडा समाज के लोग देवप्रयाग व अन्य जगहों पर आ जाते हैं। इसके अलावा धाम में होटल, लाज व अन्य व्यवसाय से जुड़े लोग भी कपाट बंद होने पर वापस अपने स्थानों को लौट जाते हैं।
यहां यह उल्लेखनीय है कि धाम के प्रमुख गांव बामणी व अंतिम गांव माणा के लोगों के दो स्थानों पर घर व खेती का काम छह-छह माह के लिए चलता है। ग्रीष्मकाल में कपाट खुलने के साथ ही ग्रामीण धाम की ओर चले जाते हैं और वहां गांव में आलू, राजमा आदि नगदी फसलों की खेती करते हैं। साथ ही धाम क्षेत्र में कई ग्र्रामीण व्यवसाय भी करते हैैं। कपाट बंद होने से पहले वे खेतों में विभिन्न फसलों के बीज बो देते हैं और अगली गर्मियों में वापस लौटने पर इनकी बुआई, निराई- गुड़ाई आदि की जाती है। दरअसल, शीतकाल में बदरीनाथ क्षेत्र में सर्दी इस कदर बढ़ जाती है कि वहां इस समय बीज अंकुरित नहीं हो पाते।
माणा के पूर्व प्रधान पीताबंर मोलफा ने बताया कि कपाट बंद होने से पूर्व ग्रामीण कृषि का अधिकांश काम पूरा कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि माणा में पैदा होने वाली नगदी फसलों के जरिए ही ग्रामीणों को सालभर के लिए रोजी- रोटी का जुगाड़ करना पड़ता है। बामणी के बलदेव मेहता ने बताया कि अब अधिकांश ग्रामीण खेती को छोड़ रहे हैं, क्योंकि इससे अधिक लाभ नहीं हो पाता। इसके स्थान पर अब उन्होंने धाम में लाज व होटल व्यवसाय शुरू कर दिया है। इससे पर्यटक सीजन में अच्छी- खासी कमाई हो जाती है।
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