Tuesday, 6 October 2009

-उत्तराखंड की सबसे बड़ी ताकत पेंशन के भरोसे

-सरहदों की सुरक्षा कर लौटे फौजियों का न पुनर्वास न स्वरोजगार -राज्य के 50 हजार पूर्व सैनिकों में से मात्र 250 का ही पुनर्वास पिथौरागढ़: सरहदों की सुरक्षा में अपनी जवानी लगा देने वाले पूर्व सैनिकों के पुनर्वास की कोशिशें उत्तराखंड में परवान नहीं चढ़ पा रही हैं। कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत होने के बावजूद पूर्व सैनिक नाममात्र की पेंशन के भरोसे जीवन की गाड़ी घसीट रहे हैं। उत्तराखण्ड सैनिक बाहुल्य राज्यों में शामिल है। लाखों सैनिक देश की सरहदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं, तो लाखों सरहदों की सुरक्षा के लिए अपनी जवानी देकर घर लौट आये हैं। अधिकांश सैनिक 40-45 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त हो जाते हैं, फिर इनके सामने खड़ी होती है जीवन की गाड़ी चलाने की समस्या। कहने को सरकार ने पूर्व सैनिकों के पुनर्वास और स्वरोजगार के लिए तमाम योजनाएं चला रखी हैं, लेकिन योजनाएं कैसी हैं, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीमांत जिले के 50 हजार पूर्व सैनिकों में से मात्र 250 का ही पुनर्वास दो वर्ष के भीतर हो पाया है। पुनर्वास भी सुरक्षा कर्मी या संविदा कर्मचारी के रूप में हुआ है। पूर्व सैनिकों को स्वरोजगार के लिए जिला सैनिक कल्याण विभाग के माध्यम से पांच लाख रुपये तक का ऋण दिये जाने का प्राविधान है, लेकिन पूरे ब्याज पर दिये जाने वाले इस ऋण में मात्र .1 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था है, जबकि सरकार अन्य वर्गों के लिए मोटे-मोटे अनुदान वाली योजनायें चला रही है। इस योजना के प्रति पूर्व सैनिकों में कोई रुचि नहीं है। पुनर्वास और स्वरोजगार योजनाओं की खामियों के चलते ही अधिकांश पूर्व सैनिक नाममात्र पेंशन पर ही अपने जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं। बेहतर योजनाओं की दरकार:पूर्व सैनिकों के संगठन राष्ट्रीय मोर्चा के प्रदेश प्रभारी कर्नल सत्यपाल सिंह गुलेरिया का कहना है कि पूर्व सैनिकों का पुनर्वास करना है, तो बेहतर योजनायें बनानी होंगी। सरकारी नौकरियों में उनके लिए आरक्षण बढ़ाना होगा। स्वरोजगार के लिए संचालित योजनाओं में कम ब्याज और अनुदान का प्रतिशत बढ़ाना होगा। उन्होंने किसानों को स्वरोजगार के लिए तकनीकी रूप से भी सक्षम बनाने वाली योजनाएं भी चलाने पर बल दिया। राज्य के विकास में समुचित उपयोग के लिए पूर्व सैनिकों को केन्द्र में रखकर योजनायें बनाने पर बल दिया। बंटी हुई है ताकत: उत्तराखण्ड में पूर्व सैनिकों की तादात लाखों में है, लेकिन यह ताकत बंटी हुई है। दर्जनों पूर्व सैनिक संगठन यहां काम कर रहे हैं। सेवानिवृत्त कर्नल रामदत्त जोशी का कहना है कि राज्य की राजनैतिक दिशा तय करने की ताकत पूर्व सैनिकों में हैं। पूर्व सैनिक एकजुट हों तो सरकार उनके पुनर्वास और स्वरोजगार के लिए बेहतर योजनाएं बनाने को मजबूर होगी।

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