Friday, 16 October 2009
लंदन के म्यूजिम में सजा है उत्तराखंड का हुनर
-लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहे गढ़वाल के चित्र
- सन् 1775 से 1860 तक की काल अवधि के हैैं सात मिनिएचर
अरविंद शेखर, देहरादून
भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों से जुड़ी गढ़वाली चित्रकला शैली की जो सात चित्रकृतियां लंदन के विक्टोरिया एंड एल्बर्ट
म्यूजियम में अपनी आभा बिखेर रही हैं, वह कहींगढ़वाल के मशहूर चित्रकार मोला राम की तो नहीं, इस पर संशय बरकरार है, लेकिन चित्रों की शैली से लगता है कि ये मोलाराम की कृतियां हो सकती हैं। वे कब और कैसे ब्रिटेन के इस म्यूजियम में पहुंची, यह एक रहस्य ही है। रानी विक्टोरिया और राजकुमार एल्बर्ट के नाम से बना यह म्यूजियम सजावटी कला और अन्य चीजों का दुनिया का सबसे बड़ा म्यूजियम है।
सन 1775 से 1870 तक की अवधि की ये चित्रकृतियां संभवत: गढ़वाली चित्रकला शैली का विकास करने वाले महान चित्रकार मोलाराम की हो सकती हैं। 'अर्ली वालपेंटिंग्स ऑफ गढ़वाल' के लेखक व वरिष्ठ चित्रकार शोधकर्ता प्रो.बीपी कांबोज का कहना है कि गढ़वाल रियासत के राजकीय चित्रकार मोलाराम तोमर (1743-1833) मुगल दरबार के दो चित्रकारों शामदास और हरदास या केहरदास के वंशज थे। शामदास व हरदास 1658 में दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह के साथ औरंगजेब के कहर से बचने के लिए गढ़वाल के राजा पृथ्वीशाह की शरण में श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे थे। राजा के दरबार में वे शाही तसबीरकार बन गए। मोलाराम के बाद उनके पुत्र ज्वालाराम व पौत्र आत्माराम ने चित्रकारी जारी रखी, लेकिन बाद में तुलसी राम के बाद उनके वंशजों ने चित्रकला छोड़ दी। लंदन के म्यूजियम में जो लघुचित्र (मिनिएचर)हैं वे जल रंगों से बने हैं। इनमें सबसे पुराना चित्र रुक्मणी-हरण (1775 से 1785)का है। चित्र में झारोखे में बैठी रुक्मणी, कृष्ण के संदेशवाहक से संदेश सुन रही है। म्यूजियम में 1820 में बना यमुना में नहाती गोपियों द्वारा पेड़ पर चढ़े श्रीकृष्ण से उनके वस्त्र लौटाने की प्रार्थना का दुर्लभ चित्र भी है। अन्य तीन चित्रों में विष्णु के मत्स्य और कूर्मावतार और विष्णु के छठे अवतार परशुराम को दर्शाया गया है। एक अन्य चित्र में श्रीकृष्ण और राधा को एक पलंग पर दर्शाया गया है। म्यूजियम की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इनमें से ज्यादातर चित्र म्यूजियम ने विभिन्न निजी संग्रह कर्ताओं से नीलामी में खरीदे हैैं।
मोलाराम के वंशज डा. द्वारिका प्रसाद तोमर का कहना है कि बहुत संभव है कि ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेज इन कृतियों को अपने साथ ले गए हों या गढ़वाल के राजवंश के मार्फत ही ये विदेशियों के हाथ लग गई हों। प्रो. कांबोज का कहना है कि यह गहन शोध से ही पता चल सकता है कि लंदन म्यजियम की कृतियां मोलाराम की है या गढ़वाली शैली के किसी अन्य चित्रकार की।
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