Monday, 12 October 2009
किमोठा: यहां बच्चा- बच्चा जानता है ग्रहों की चाल
--चमोली जिले के किमोठा गांव ने दिए हैं कई विख्यात ज्योतिष
-ग्रामीणों की संस्कृत के प्रति निष्ठा से घोषित हुआ 'संस्कृत ग्राम'
-टिहरी राजदरबार ने गांव को किया था नवरत्नों में शामिल
गोपेश्वर (चमोली)
ग्रहों की चाल देखकर भविष्य बांचना, नक्षत्रों की स्थिति देख अच्छे-बुरे की जानकारी देना, चांद और सूरज का प्रभाव आंकना और अंकों के आधार पर जीवन के अनसुलझो सवालों का जवाब देना। हमारे, आपके लिए भले ही ये सब कार्य करिश्माई हों, लेकिन चमोली जिले का एक गांव ऐसा है, जहां कोई बच्चा भी भूत, वर्तमान और भविष्य के तार जोड़ता दिख जाएगा।
चमोली जिले की पोखरी तहसील में स्थित किमोठा गांव में वर्तमान में 422 परिवार निवास कर रहे हैं। इनमें ब्राह्मण व अनुसूचित जाति के लोग शामिल हैं और 80 फीसदी लोग साक्षर हैं। गांव अपनी ज्योतिष परंपरा के लिए न सिर्फ उत्तराखंड, बल्कि देशभर में विख्यात है। संस्कृत भाषा में 'जीवनादर्शन' कृति के रचयिता व बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व व्याकरणाचार्य पं. ब्रह्मानंद किमोठी, ज्योतिष शास्त्र के प्रामाणिक ग्रंथ 'ज्योतिष भाष्कर' की रचना करने वाले पं. मुकंदराम किमोठी शामिल हैं। पं. देवीदत्त किमोठी की कर्मकांड व ज्योतिष पर हस्तलिखित पुस्तकें आज भी गांव में सुरक्षित हैं। इस गांव के केशवानंद किमोठी को ज्योतिष गणित में महारथ हासिल थी। वह हाथ से लिखकर ही पंचांग बना लेते थे। वहीं मुकुंदराम किमोठी ने भी आंचलिक बोली गढ़वाली में ज्योतिष पर आधारित किताबें लिखी थी।
वर्तमान में इस गांव के विजय प्रसाद किमोठी यमुनानगर दिल्ली में ज्योतिष के लिए खासा प्रसिद्ध नाम हैं। जगदंबा प्रसाद किमोठी व दिल्ली में राजेन्द्र प्रसाद किमोठी भी इस क्षेत्र में खासे चर्चित लोगों में शुमार हैं। इनके अलावा गणित व आयुर्वेद के क्षेत्र में गांव के राम प्रसाद किमोठी, केशवानंद किमोठी, श्रीकृष्ण किमोठी, भाष्करानंद किमोठी, घनश्याम किमोठी, गोपाल भवानी दत्त किमोठी, तुलसीराम किमोठी, मित्रानंद किमोठी, उमादत्त किमोठी, नागदत्त किमोठी, मौजराम किमोठी, उर्वीदत्त किमोठी, जयकृष्ण किमोठी, अनुसूया प्रसाद किमोठी, रतिराम किमोठी, गिरिजा प्रसाद किमोठी, राधाकृष्ण किमोठी व रघुवर दत्त किमोठी के नाम प्रमुखता से लिए जाते हैं।
खास बात यह है कि नई पीढ़ी भी पूर्वजों के कार्य को भूली नहीं है। आज भी गांव के अधिकांश लोग ज्योतिष कार्य से ही जुड़कर अपनी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। यही वजह है कि विभिन्न विषयों में उच्च शिक्षा की उपाधियां हासिल करने वाले युवा भी यहां संस्कृत में पंचांगों की गणना करते और जन्मपत्रियां बांचते नजर आते हैं। हों भी क्यों नहीं, आखिर इसी कार्य की वजह से तो यह गांव टिहरी राज दरबार के नवरत्नों में शामिल था।
वर्ष 1802 में जब गोर्खाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण किया, तो गोर्खा राजा भी किमोठियों की विद्वता से बेहद प्रभावित हुआ और गांव को ताम्रपत्र दिया,जो आज भी सुरक्षित है। ब्रिटिश काल में गढ़वाल रेजीमेंट सेंटर के सिविल गुरुकी उपाधि भी हासिल थी। आज की बात करें, तो सरकार ने संस्कृत के प्रति गांववालों का लगाव देखते हुए इसे संस्कृत ग्राम घोषित किया है।
1880 में स्थापित किया था संस्कृत विद्यालय
गोपेश्वर: किमोठा गांव में वर्ष 1880 में विद्यानंद सरस्वती ने संस्कृत विद्यालय की स्थापना की थी। तब से यह विद्यालय संचालित हो रहा है। विद्यालय उत्तर मध्यमा(कक्षा बारहवीं)तक का है। राज्य सरकार ने पिछले वर्ष इसे संस्कृत ग्राम बनाए जाने को 24 जनवरी 2008 को गजट नोटिफिकेशन जारी किया।
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