Tuesday, 6 October 2009
एक नदी, जिसे माना जाता है अछूत
-उत्तरकाशी जनपद में बहती है टौंस नदी, तमसा भी कहा जाता है
-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किरमिरी राक्षस का रक्त गिरा था नदी में
-मान्यताओं के मुताबिक दस वर्ष लगातार पानी पीने से हो जाता है कुष्ठ
पुरोला: यूं तो उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है और मान्यता है कि यहां के पर्वत, वन, नदियां आदि में देवता वास करते हैं। गंगा, यमुना जैसी सतत प्रवाहिनी व पवित्र नदियां भी यहीं से निकलती हैं। इसके अलावा क्षेत्र में अन्य नदियों को भी पूज्य माना गया है और सामान्यत: सभी प्रमुख नदियों के साथ गंगा प्रत्यय जोडऩे की परंपरा रही है, लेकिन इसी देवभूमि में एक नदी ऐसी भी है, जिसे अछूत माना गया है और इसका पानी पीना तो दूर, छूना भी निषेध किया गया है। टौंस नाम की इस नदी के बारे में मान्यता है कि पौराणिक काल में एक राक्षस का वध किए जाने पर उसका रक्त इस नदी में गिर गया था, जिससे यह दूषित हो गई। यही वजह है कि इस नदी को तमसा भी कहा जाता है।
उत्तरकाशी जनपद में दो नदियां रूपीन और सुपीन देवक्यारा के भराड़सर नामक स्थान से निकलती हुई अलग- अलग दिशाओं में प्रवाहित होती हैं। रूपीन फते पट्टी के 14 गांवों से होते हुए गुजरती है, जबकि पंचगाई, अडोर व भडासू पट्टियों के 28 गांवों से जाती है, लेकिन इन गांवों के लोग न तो इन नदियों का पानी पीते हैं और ना ही इससे सिंचाई की जाती है। नैटवाड़ में इन नदियों का संगम होता है और यहीं से इसे टौंस नाम से पुकारी जाती है और यहीं से यह नदी दूषित भी मानी जाती है। लोकमान्यताओं के अनुसार रूपीन, सुपीन व टौंस नदियों का पानी पीना तो दूर छूने तक के लिए प्रतिबंधित किया गया है।
वजह, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग में में दरथ हनोल के समीप किरमिरी नामक राक्षस एक ताल में रहता था। उसके आतंक से स्थानीय जन बहुत परेशान थे। लोगों के आह्वान पर कश्मीर से महासू देवता व उनके गण सिड़कुडिय़ा महासू यहां पहुंचे और किरमिरी को युद्ध के लिए ललकारा। भयंकर युद्ध के बाद महासू देव ने आराकोट के समीप सनेल नामक स्थान पर किरमिरी का वध कर दिया। उसका सिर नैटवाड़ के समीप स्थित स्थानीय न्याय के देवता शिव के गण पोखू महाराज के मंदिर के समीप गिरा, जबकि धड़ नदी के किनारे। इससे पूरी टौंस नदी का पानी में राक्षस का रक्त मिल गया। तभी से नदी को अपवित्र व तामसी गुण युक्त माना गया है। दूसरी मान्यता के मुताबिक द्वापरयुग में नैटवाड़ के समीप देवरा गांव में कौरवों व पांडवों के बीच हुए युद्घ के दौरान कौरवों ने भीम के पुत्र घटोत्कच का सिर काटकर इस नदी में फेंक दिया था। इसके चलते भी इस नदी को अछूत माना गया है। राक्षसों का रक्त मिलने के कारण इसमें तम गुण की अधिकता मानी जाती है, इसीलिए इसे तमसा नाम से भी पुकारा जाता है। मान्यता है कि इस नदी का पानी शरीर में कई विकार उत्पन्न कर देता है। इतना ही नहीं, लगातार दस साल तक टौंस का पानी पीने से कुष्ठ रोग भी हो जाता है।
सामाजिक कार्यकर्ता मोहन रावत, सीवी बिजल्वाण, टीकाराम उनियाल, सूरत राणा आदि कहते हैं कि नदी के बारे में उक्त मान्यता सदियों पुरानी है और पौराणिक आख्यानों पर आधारित है। वे कहते हैं कि हालांकि, नदी के पानी के संबंध में किसी तरह का वैज्ञानिक शोध नहीं है, लेकिन स्थानीय जनता की लोकपरंपराओं में यह मान्यता इस कदर रची बसी हुई है कि कोई भूलकर भी इसका उल्लंघन नहीं करता।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment