Friday, 18 December 2009

स्व-राज्य तो मिल गया, लेकिन सु-राज का अभी इंतजार-

लंबे संघर्ष के बाद उत्तराखंड के लोगों को स्व-राज्य तो मिल गया, लेकिन सु-राज का अभी इंतजार है। कर्मचारी बेफिक्र हैं और अधिकारी मस्त। जनता बेचारी क्या करे, किससे गुहार लगाए। कुछ दिनों पहले राजधानी में ही एएनएम ने अस्पताल को किराए पर चढ़ा दिया, किसी को खबर नहीं लगी। कलेक्ट्रेट में मां की बजाए बेटा नौकरी करता रहा, यहां भी महकमे के जिम्मेदार लोगों ने साथी कर्मचारी के लिए 'सद्भावना' का परिचय दिया। वो तो डीएम के निरीक्षण के दौरान पोल खुल गई, वरना न जाने कब तक यह सब चलता रहता। ये तो राजधानी में सामने आए कुछ 'नमूने' हैं। ये हाल उस जगह का है, जहां स्वयं सरकार विराजमान है। अब दूर-दराज के इलाकों की बात करें। वहां तो स्थितियां पूरी तरह अनुकूल हैं, यही वजह है कि वहां 'अपनी मर्जी अपना राज' वाले अंदाज में काम चल रहा है। बिन बताए गैरहाजिर रहने का ट्रेंड तो अब पुराना पड़ चुका है। इससे भी आगे निकल मुलाजिमों ने नए तरीके ईजाद कर लिए हैं। नए तरीके ऐसे कि देखने वाले भी दंग रह जाएं। इसके लिए माह में एकाध बार से ज्यादा उपस्थिति दर्ज कराने की जरूरत नहीं है। चकराता क्षेत्र में शिक्षा विभाग के निरीक्षण में इन तरीकों का खुलासा हुआ। शिक्षकों ने स्कूल में बाकायदा ठेके पर बेरोजगारों को नियुक्त किया हुआ है। ये बेरोजगार ही उनकी जगह पर स्कूल का संचालन कर रहे हैं। अलग राज्य बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि जो खामियां अविभाजित उत्तर प्रदेश में थीं, उनसे मुक्ति मिल जाएगी, वजह यह मानी जा रही थी छोटी प्रशासनिक इकाइयां ज्यादा सक्रियता से जनता तक पहुंचेगी, लेकिन यह मंशा अभी तक फलीभूत न हो सकी। आखिर यह सब कब तक चलेगा। यदि नौ साल बाद भी जनता को उन्हीं समस्याओं से जूझाना पड़ रहा है तो यह गंभीर मसला है। अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह स्वस्थ माहौल बनाए और ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई करे, जिससे दूसरे भी सबक ले सकें। तभी जाकर अवाम का विश्वास बहाल हो सकेगा।

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