Saturday, 5 December 2009
शैक्षिक गुणवत्ता
उत्तराखंड के बुनियादी शिक्षा के नए माडल को राष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी मिलना नि:संदेह
खुशी की बात है। यह खास माडल एनसीईआरटी को न केवल पसंद आया, बल्कि उसने इसे अपनी संदर्भ पुस्तिक में भी स्थान दिया है। यह ऐसा माडल है जिसमें सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को बेहद सरल ढंग से बताया गया है। नौनिहालों को विभिन्न प्रकार की जानकारी देने के लिए जो पद्धति इसमें बताई गई है, वह वाकई में अनूठी है। लिहाजा, इस माडल को राष्ट्रीय स्तर पर शाबासी मिलना राज्य के लिए बड़ी उपलब्धि है। इसे नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बुनियादी शिक्षा में हम कहां खड़े हैं। केवल अच्छा माडल तैयार करके और बुनियादी शिक्षा की असलियत को आंकड़ों में उलझााना कहां तक ठीक है। इस पर गौर करना होगा। उत्तराखंड में प्राथमिक शिक्षा के हालात किसी से छिपे नहीं हैं। सर्वशिक्षा अभियान क्या रंग लाया, इसका कितना फायदा मिला, यह सभी के सामने है। गुणवत्ता सुधार के सरकार के प्रयास कहां तक परवान चढ़े और सरकारी तंत्र इसमें कितनी गंभीरता दिखा रहा है, यह भी बताने की जरूरत नहीं है। हां, इतना जरूर है कि आंकड़ों की बाजीगरी में सरकारी तंत्र माहिर हो गया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या अच्छा माडल बना लेने मात्र से बुनियादी शिक्षा बदल जाएगी, नहीं, अगर ऐसा सोचते हैं तो यह खुशफहमी पालने जैसा है। लिहाजा सरकार को तमाम पहलुओं पर मंथन करना चाहिए। ऐसे हालात क्यों पैदा हुए और सूरतेहाल बेहतरी की संभावनाएं कैसे बढें्र, इस पर फोकस किया जाना चाहिए। भावी कर्णधारों का भविष्य संवारने के लिए जवाबदेही तय करनी होगी। अगर ऐसा नहीं किया गया तो नए माडल बनते जाएंगे, शाबासी भी मिलेगी, लेकिन राज्य जहां खड़ा है वहीं नजर आएगा। यानि बौद्धिक समृद्धि में सूबा लगातार पिछड़ता जाएगा। अभी भी वक्त है सरकार को असलियत से नजरें बचाने की बजाए खामियों को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए, तभी कोई मुकाम हासिल किया जा सकता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment